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तो ममता बनर्जी भी केजरीवाल बन गई हैं?

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बड़ा अजीब कॉम्बिनेशन है! अगर हम केजरीवाल और ममता बनर्जी की तुलना करते हैं तो सीधे तौर पर यह उचित नहीं जान पड़ता है किंतु बात ही कुछ ऐसी हुई है कि मजबूरन ऐसा कहना पड़ रहा है. नोटबंदी की प्रधानमंत्री ने जिस अंदाज में घोषणा की, उसने कमोबेश सभी विपक्षी दलों को अवाक कर दिया. निश्चित रूप से इस फैसले से जनता के कई वर्गों में हलचल सी मची तो लोग बाग़ परेशान भी हुए. यात्रा करने वाले, इलाज कराने वाले मरीज, शादी जिनके घरों में हैं वह लोग, लगभग सभी परेशान हुए और बैंकों के बाहर कतार में लगे दिखे. दिलचस्प यह भी है कि इतनी परेशानी के बावजूद जनता में कहीं कुछ वैसा आक्रोश नहीं दिखा, जिसे नरेंद्र मोदी के खिलाफ माना जा सके और यही तथ्य समझ कर कांग्रेस समेत दूसरे विपक्षी दल असमंजस में थे कि करेंसी बैन के फैसले का विरोध किया जाए या ढुलमुल रवैया अपनाया जाए! विपक्षी दलों की असमंजस की स्थिति को ममता बनर्जी ने बड़े तरीके से पकड़ा और मोदी सरकार के विरोध का बिगुल बजा दिया. एक तरह से नोटबंदी के फैसले का विरोध कर राष्ट्रीय स्तर पर विपक्षी चेहरा बनने की कोशिश में वह जुट गईं. दिल्ली से लेकर पटना और अपने गढ़ पश्चिम बंगाल में उन्होंने अपने कैडर को पूरे जोर-शोर से काम पर लगा दिया. बड़े दिनों बाद ऐसा मौका मिला था उन्हें, जिससे कि ममता राष्ट्रीय स्तर पर फ्रंट फुट पर आ सकती थीं. बिहार के सीएम नीतीश कुमार उनकी इस चालाकी को भांप गए और उनके नेतृत्व में आने से एक तरह से इंकार ही कर दिया और लगे हाथ केंद्र सरकार की विमुद्रीकरण योजना का समर्थन भी कर दिया. ऐसी स्थिति ममता को भला कैसे बर्दाश्त हो जाती? आखिर उन्होंने भी 2014 के लोकसभा चुनाव से पूर्व नीतीश का खूब समर्थन किया था, तो बाद में भी कई सारे मुद्दों पर नीतीश ममता बनर्जी का समर्थन लेते रहे और जब एक बार ममता नेतृत्व करती दिखीं तो नीतीश ने कन्नी काट लिया. ममता बनर्जी को इस तरह के रवैये की उम्मीद नहीं थी, इसलिए लगे हाथों उन्होंने नीतीश एंड पार्टी पर 'गद्दारी' का आरोप चस्पा कर डाला. जनता दल यूनाइटेड ने भी ममता बनर्जी के इस रिएक्शन का जवाब देते हुए पश्चिम बंगाल को घोटालों का गढ़ बता डाला. Mamta Banerjee, Indian Army, Movement, Hindi Article, New, Kejriwal style, Politics, Indian Army is best, Dirty Politics, Bad Facts!


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नीतीश को अगर नोटबंदी के प्रकरण से निकाल दिया जाए तो ममता बनर्जी नोट बंदी के विरोध का चेहरा बनने की कोशिश में कमोबेश सफल रहीं. केजरीवाल, कांग्रेस और दूसरे तमाम राजनीतिक दल मोदी सरकार का विरोध करने में ममता से पीछे ही रहे. वैसे भी जब तक कांग्रेस पार्टी के राहुल गाँधी जैसे कर्णधार रहेंगे, तब तक दुसरे क्षेत्रीय नेता लीड लेते ही रहेंगे. तो, ममता बनर्जी ने इस मामले में अच्छा स्कोर बना लिया और थोड़ा बहुत ही सही विपक्षी दलों और मोदी पर अपना सिक्का जमाने में सफल भी रहीं. पर ऐसा लगता है कि किस्मत इस लौह-महिला से थोड़ी नाराज थी या फिर वह अति उत्साह में आ गईं और बेवजह 'भारतीय सेना' को मामले में घसीट बैठीं! ममता का मोदी सरकार के फैसले का मुखर विरोध भाजपा समर्थकों को पहले ही रास नहीं आ रहा था, किंतु उनकी छवि अपेक्षाकृत गंभीर और संघर्षशील महिला की होने के कारण उन पर कठोर हमला करने का मौका हाथ नहीं आ रहा था. पर यह मौका खुद ममता बनर्जी ने दे दिया है. जानकारी के अनुसार, इंडियन आर्मी अपनी रूटीन एक्सरसाइज में विभिन्न शहरों, जिलों में अलग-अलग जगह महत्वपूर्ण जानकारियां इकट्ठा करती है और यह कार्य स्थानीय प्रशासन और पुलिस की सहमति से ही किया जाता है. इसी क्रम में, इस बार पश्चिम बंगाल में यह कार्य हो रहा था. मामला तब उलझा जब, ममता बनर्जी पश्चिम बंगाल में अलग-अलग जगहों पर सेना की मौजूदगी देखकर उखड़ गईं और केंद्र सरकार पर तुरत-फुरत में आरोप लगा डाला कि सेना के जरिए चुनी हुई सरकार पर दबाव बनाने की कोशिश की जा रही है. बस फिर क्या था संसद तक में मामला उठा और विभिन्न जगहों पर इसकी चर्चा होने लगी. सेना की सफाई आने से पहले तक ममता खूब मूड में दिखी थीं, राष्ट्रपति से शिकायत तक करने की बात कह रही थीं, किंतु ज्यों ही सेना ने स्थानीय प्रशासन द्वारा दिया गया सहमति पत्र मीडिया को जारी किया और अपनी सफाई पेश की, तो ममता बनर्जी की पोल खुल गई. उनके सारे दावों की हवा निकल गई और सोशल मीडिया पर लोग उन्हें 'दूसरा केजरीवाल' बताने लगे! Mamta Banerjee, Indian Army, Movement, Hindi Article, New, Kejriwal style, Politics, Indian Army is best, Dirty Politics, Bad Facts!




42 साल तक सेना में रहे और तीन वर्ष तक भारतीय सैन्य प्रमुख रहे जनरल वीपी मलिक के मुताबिक़ सैन्य अभ्यास की जानकारी प्रशासन को दी जाती है और यह इजाज़त नहीं विचार विमर्श के आधार पर होता है. वो कहते हैं, "अगर राज्य सरकार में किसी को ऐतराज़ था, तो क्या गृह सचिव या मुख्य सचिव को सेना मुख्यालय फ़ोन करके बात नहीं करनी चाहिए थी कि ये क्या हो रहा है. ये पूरा मामला तमाशा बनता जा रहा है. ये राजनीतिक मामला बन गया है." वो आगे कहते हैं कि "सैन्य गतिविधि की जानकारी केंद्र सरकार को दी जाती है. जहां सेना राज्य पुलिस के साथ कोई अभ्यास करती है तब राज्य को जानकारी दी जाती है. नहीं तो ये रूटीन मामला होता है." समझा जा सकता है कि इस पूरे मामले में ममता और उनकी टीम ने बकवासबाजी ही की है. वैसे भी यह तर्क बेहूदा ही है कि सेना पश्चिम बंगाल जैसे एक राज्य में तख्तापलट करना चाहेगी? इसी मामले में पूर्व कैबिनेट सचिव टीएसआर सुब्रमणियम के मुताबिक़ सेना को उस वक्त स्थानीय प्रशासन को जानकारी देनी होती है जब राज्य के अनुरोध पर सेना को क़ानून व्यवस्था, बाढ़, दंगों जैसी स्थितियों से निपटने के लिए बुलाया जाता है या केंद्र सरकार के कहने पर सेना को तैनात किया जाता है तब राज्य सरकार की सहमति की ज़रूरत होती है, अन्यथा नहीं! साफ है कि सेना के साथ पिछले दिनों से गन्दा राजनीतिक खेल खेलने की कोशिश हो रही है, जिसका पुरजोर विरोध किया जाना चाहिए. आखिर राजनीतिक माइलेज के लिए भारतीय सेना जैसे महत्वपूर्ण प्रतिष्ठानों को दाव पर लगाने की नेताओं की 'बीमारी' को 'गद्दारी' नहीं कहा जाए तो और क्या कहा जाए भला? पिछले दिनों सर्जिकल स्ट्राइक में भारतीय सेना ने जिस जांबाजी का परिचय दिया था, उसको अनदेखा कर उससे सबूत माने जाने लगे थे. केजरीवाल जैसे लोगों की इस पर खूब खिंचाई हुई. सोशल मीडिया पर जनता ने खूब खरी-खोटी सुनाई और इस बार भी भारतीय सेना पर जब ममता बनर्जी ने प्रश्न चिन्ह लगाया तो जनता ने उनको जमीन पर लाने में देर नहीं किया. Mamta Banerjee, Indian Army, Movement, Hindi Article, New, Kejriwal style, Politics, Indian Army is best, Dirty Politics, Bad Facts!


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रक्षामंत्री मनोहर पर्रिकर ने तो ममता बनर्जी के इस व्यवहार को 'पॉलिटिकल फ्रस्टेशन' बता डाला! अन्य हलकों में इसे अरविंद केजरीवाल के साथ का प्रभाव बताया जाने लगा. ठीक ही तो है, अरविंद केजरीवाल जैसे अनाप-शनाप आरोप लगाने वाले व्यक्तियों की विश्वसनीयता वैसे ही ढल चुकी थी और आरोप लगाने के 'हिट-एंड-रन' के उनके स्वभाव के कारण उन्हें राजनीतिक क्षेत्र में गंभीरता से नहीं लिया जाता है. हालांकि ममता बनर्जी का ऐसा स्वभाव और चरित्र नहीं रहा है, किंतु इस बार उन्होंने जिस बचकानेपन का परिचय दिया है, उसने न केवल राष्ट्रीय नेता बनने की उनकी छवि पर आघात किया है, बल्कि जनता जिस गंभीरता से उनको सुनती थी, उनकी बातों को तवज्जो देती थी उस असर को भी उन्होंने कम ही किया है. इसका कारण साफ है कि भारतीय सेना पर किसी भी हाल में धूल उछालने के प्रयासों को न्यायोचित और राष्ट्रहित में नहीं ठहराया जा सकता है. कम से कम संवैधानिक पदों पर बैठे हुए व्यक्तियों को तो तथ्यात्मक जानकारी लेनी चाहिए और अगर ऐसी कोई बात सामने भी आती है तो सेना के मामलों को गुप्त रूप से संबंधित अथारिटी से उठाना चाहिए, प्रधानमंत्री से उठाना चाहिए, राष्ट्रपति से उठाना चाहिए, सुप्रीम कोर्ट के माननीय जजों के सामने उठाना चाहिए, ना कि जनता में उसका पॉलिटिकल फायदा उठाने की कोशिश किया जाना चाहिए. हालाँकि, दोष ममता बनर्जी का भी नहीं है, क्योंकि कई दिनों से वह पश्चिम बंगाल से राष्ट्रीय राजनीति के चक्कर में बाहर थीं और संभवतः इसी आधार पर उन्होंने तथ्यों की अनदेखी भी कर दी हो! पर समझना मुश्किल नहीं है कि इस तरह के बद-प्रयासों से हमारे देश की इज्जत ही धूमिल होती है और ऐसी स्थिति में ममता बनर्जी हों या केजरीवाल हों जनता उन्हें जमीन सुंघाने में जरा भी देर नहीं करती है. यह बात इस बार ममता बनर्जी बखूबी समझ चुकी होंगी और आगे से शायद तथ्यविहीन जानकारियों को सार्वजनिक करने में संकोच करेंगी और अन्यथा 'केजरीवाल' रुपी उपाधि उनके लिए तैयार की जा चुकी है.

- मिथिलेश कुमार सिंह, नई दिल्ली.




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