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बेंजामिन फ्रैंकलिन की आत्मकथा: एक विश्लेषण - Benjamin Franklin Autobiography in Hindi, Summary by Mithilesh


पिछली साल जब अमेरिका के राष्ट्रपति बराक ओबामा की भारत-यात्रा हुई थी, तब भारतीय प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने 'मन की बात' रेडियो कार्यक्रम में 'बेंजामिन फ्रैंकलिन' की जीवनी पढ़ने का ज़िक्र किया. पुस्तक खरीदने मैं बुक स्टोर पर पहुंचा तो 'बेंजामिन फ्रैंकलिन की आत्मकथा' किताब की बड़ी भारी मांग थी. अग्रिम बुकिंग के बाद ज्ञान गंगा, दिल्ली पब्लिकेशन द्वारा प्रकाशित पुस्तक हाथ में आयी. थोड़ा- थोड़ा समय निकालकर एक सप्ताह में इस किताब को मैंने पढ़ा. सच कहा जाए तो बेंजामिन फ्रैंकलिन किसी आम आदमी के द्वारा सामान्य परिस्थितियों में बुलंदी छूने की कहानी है. यही नहीं, बेंजामिन फ्रैंकलिन उन तमाम व्यक्तित्वों का प्रतिनिधित्व करते हैं, जो अपने जीवन में नैतिकता के प्रति गहरा झुकाव रखते हैं और साथ ही साथ उन नैतिक उसूलों को कार्यरूप में परिणत करने में जी-जान से लगे रहते हैं. एक व्यवहारिक जीवनशैली, दोस्तों-सम्बन्धियों के साथ संबंधों में उतार-चढाव, व्यवसाय की सावधानियां, लेखन एवं अध्ययन के प्रति बचपन से गहरी अभिरूचि, धार्मिक विचारों के प्रति आस्था एवं उन सबसे बढ़कर कुछ निर्माण करने की प्रतिबद्धता बेंजामिन फ्रैंकलिन को ख़ास बनाती है. यहाँ पर उनकी जीवनी को सारतत्व में प्रस्तुत करने की कोशिश की जा रही है, किन्तु महापुरुषों की जीवनी का सार शब्दों की परिधि में नहीं बाँधा जा सकता है, उसे पढ़ने वाले को हृदय की गहराइयों से आत्मसात करना पड़ता है. बेंजामिन फ्रैंकलिन का जन्म 6 जनवरी, 1706 में एक चर्बी व्यापारी जोसिए फ्रैंकलिन के घर हुआ था. 12 वर्ष की उम्र में ही अपने भाई जेम्स फ्रैंकलिन के प्रिंटिंग प्रेस में एक प्रशिक्षु के रूप में उन्होंने कार्य करना शुरू कर दिया. संभवतः यहीं से उन्हें पढ़ने और लेखन में रुचि लगी होगी. भाइयों में विवाद होने के बाद बेंजामिन न्यूयार्क होते हुए 1723 में फिलाडेल्फिया पहुंचे. तमाम उतार- चढ़ाव के बाद उन्होंने अपना प्रिंटिंग प्रेस स्थापित किया और 'द पेंसिलवैनिया गजट' का प्रकाशन आरम्भ किया, फिर 1732 में प्रसिद्द 'पुअर रिचर्ड्स एलमैनक' जारी किया. 1758 में उन्होंने 'एलमैनक' में स्वयं के लेखों का प्रकाशन रोक दिया. उन्होंने उसमें 'फादर अब्राहम सरमन' को छापना प्रारम्भ किया, जिसे औपनिवेशिक अमेरिका में साहित्य का प्रसिद्द हिस्सा माना जाता है. इसके साथ राजनीति में उन्होंने अपनी छवि एक कुशल प्रशासक की स्थापित की, जबकि नौकरियों में भाई - भतीजावाद जैसे मुद्दों के कारण वह विवादग्रस्त भी रहे. इसी क्रम में 1777 में संयुक्त राज्य अमेरिका के आयुक्त (कमिश्नर) के रूप में फ़्रांस भेज दिया गया. वहां 1785 तक रहकर उन्होंने अपने देश का कामकाज बड़ी कुशलता एवं बुद्धिमत्तापूर्वक निभाया. अंततः जब वे स्वदेश लौटे तो अमेरिका की स्वतंत्रता के लिए जार्ज वाशिंगटन के बाद उन्हें दूसरा स्थान अर्जित करने का श्रेय हासिल हुआ. 17 अप्रैल 1790 को उनका देहावसान हुआ. बेंजामिन फ्रैंकलिन की आत्मकथा को औपनिवेशिक दौर के सर्वाधिक महत्वपूर्ण व्यक्तित्वों में से एक तथा दुनिया की महान आत्मकथाओं में प्रतिष्ठा प्राप्त है. Benjamin Franklin Autobiography in Hindi, Summary by Mithilesh, Great People Stories in Hindi, Inspiration, Motivational

Benjamin Franklin Autobiography in Hindi, Summary by Mithilesh
इस किताब को जब आप पढ़ेंगे तो लगभग ढाई सौ साल पहले की कथा होने के बावजूद आपको विभिन्न सन्दर्भ आज के समय से मेल खाते हुए प्रतीत होंगे. बेंजामिन फ्रैंकलिन की आत्मकथा की शुरुआत से ही आपको प्रतीत होने लगेगा कि उन्हें अपने पूर्वजों के छोटे-छोटे किस्सों की जानकारी मिलने पर काफी ख़ुशी होती थी. अपने परिवार के गौरव को ऊर्जा-रूप में महसूस करते थे, जो उन्हें हमेशा आगे बढ़ने की प्रेरणा प्रदान करता था. अपने पारिवारिक सामंजस्य को वर्णित करते हुए बेंजामिन फ्रैंकलिन एक जगह उद्धृत करते हैं कि "मुझे याद है कि हमारे परिवार के 13 से अधिक लोग एक साथ बैठकर डाइनिंग टेबल पर साथ में भोजन किया करते थे." अपने पिता की सीख को भी उन्होंने एक जगह पर व्यक्त करते हुए कहा है कि जब अपने दोस्तों के साथ मिलकर तालाब के किनारे एक घाट का निर्माण करने के दौरान उन्होंने दूसरी जगह से बिना पूछे पत्थरों को उठा लिया, तो उनके पिता ने यह कहकर बात नकार दी कि "कोई भी काम जिसमें ईमानदारी नहीं है, वह उपयोगी नहीं होगा." पारिवारिक सन्दर्भों में कपडे, खान-पान इत्यादि तुच्छताओं को नजरअंदाज करते हुए वह अपने पलने-बढ़ने की बात करते हुए कहते हैं कि खाने-पीने में नुक्ता-चीनी करने की आदत उन्हें कभी नहीं रही. अपनी माँ को वह एक विनम्र व गुणी महिला बताते हुए अपने नैतिक आचार के लिए उन्हें आधारशिला बताते हैं. इस किताब के अगले हिस्से में बेंजामिन फ्रैंकलिन अपने पुस्तकीय रूझान के प्रति रुचि जाहिर करते हुए कहते हैं कि पुस्तकों की ओर मेरा रूझान देखकर मेरे पिता ने मुझे मुद्रक बनाने का निश्चय किया. आगे वह कहते हैं कि जब कोई पुस्तक मुझे पढ़ने के लिए शाम को मिलती तो प्रायः देर रात तक मैं उसे पढता रहता, ताकि दुसरे दिन सुबह उसे लौटा सकूँ. फ्रैंकलिन ने कुछ छोटी-मोटी कवितायेँ भी लिखनी शुरू कीं, जिनके बिकने के बाद उन्होंने आत्मदंभ के बढ़ने की बात कही है, लेकिन उनके पिता ने यह कहते हुए निरुत्साहित कर दिया कि कविता लिखने वाले सामान्यतः भिखारी ही रहते हैं. हालाँकि फ्रैंकलिन ने यह स्वीकार किया है कि गद्य-लेखन उनके जीवन के दौर में काफी अहम और उनकी उन्नति का प्रमुख साधन रहा है. लेखन की बारीकियों को बताते हुए फ्रैंकलिन कहते हैं कि "मुझे पता चला कि मुझमें उचित शब्दों और उन्हें याद करके प्रयोग करने की तत्परता में कमी थी. तभी मैंने महसूस किया कि यह समस्या कविता लिखने से दूर हो सकती हैं, क्योंकि कविता में विभिन्न अर्थ एवं आकारवाले उपयुक्त शब्दों का चयन करके उन्हें प्रयोग करना पड़ता हैं. तदुपरांत, बेंजामिन फ्रैंकलिन ने कहानियों चुनकर उन्हें काव्य-शैली में ढालना शुरू किया. इससे आने वाले समय में बेंजामिन फ्रैंकलिन अपने शब्दों में 'एक बर्दाश्त करने योग्य' अंग्रेजी लेखक बनने की महत्वाकांक्षा पाल सके थे. अच्छी स्मृति व सही मनोवृति के लिए फ्रैंकलिन शाकाहारी होने को भी श्रेय देते हैं साथ ही अपने एक अच्छे दोस्त 'कॉलिंस' की चर्चा करते हुए वह कहते हैं कि सभी को लगता था कि जीवन में वह कोई अच्छा काम करेगा, लेकिन उसे शराब की लत लग गई थी. जब उसे थोड़ा नशा चढ़ जाता तो वह बहुत बदमिजाज हो जाता. इस उद्धरण की विस्तृत चर्चा से फ्रैंकलिन ने यह साबित किया हैं कि शराब अधिकांश अवसरों पर बुरा प्रभाव ही छोड़ती हैं. आगे के पृष्ठों में वह यह भी कहते हैं कि 1 पेनी भर कीमत की ब्रेड को पानी के साथ यदि खाया जाय, तो वह एक क्वार्टर बियर की अपेक्षा ज्यादा ऊर्जा देती है. Benjamin Franklin Autobiography in Hindi, Summary by Mithilesh, Great People Stories in Hindi, Inspiration, Motivational

इस किताब में बेंजामिन फ्रैंकलिन विभिन्न जगहों पर अनेक सूक्तियों का प्रयोग भी करते हैं. जैसे-
अपने भीतर 'दंभ' होने की पुष्टि करते हुए वह कहते हैं कि "ज्यादातर लोग दूसरों के दंभ को पसंद नहीं करते, भले ही यह स्वयं उनमें कितना भी क्यों न हो". इसी प्रकार अपने आत्मविश्वास को रेखांकित करते हुए वह कहते हैं कि "मेरा यही विश्वास है कि ईश्वरीय अनुकम्पा मुझ पर बनी रहेगी, जिससे मेरी खुशियाँ जारी रहें या दुर्भाग्य के चक्र प्रारम्भ होने पर मुझमें उनसे लड़ने का साहस बरकरार रहे. इसी तरह का एक अन्य सन्दर्भ है "हमें तर्क-वितर्क करने में बड़ा मजा आता है, लेकिन यह आदत धीरे-धीरे एक दुसरे को नीचा दिखाने की बुरी आदत में बदलने लग जाती है और लोग एक दुसरे से कटने लगते हैं. यही नहीं, इससे बातचीत का माहौल ख़राब होने के साथ दुश्मनी तक पैदा हो जाती है." बेंजामिन फ्रैंकलिन स्वस्थ मानसिकता के लोगों को इससे बचने की सलाह देते हैं. एक दुसरे सन्दर्भ में फ्रैंकलिन कहते हैं कि आदमी कभी-कभी पैसे ज्यादा होने पर इतना उदार नहीं होता, जितना पैसे की तंगी के दौरान होता हैं और शायद ऐसा इसलिए होता हैं कि कहीं कोई उसे मुफ़लिस या गरीब न समझ बैठे. इसी तरह मछली खाने और न खाने के बीच सिद्धांत और रूझान के बीच संतुलन स्थापित न होने पर फ्रैंकलिन ने इस तर्क के सहारे मछली खाई, क्योंकि बड़ी मछलियाँ भी छोटी मछलियों को खा जाती हैं. मानव मन की स्थिति पर फ्रैंकलिन स्पष्ट कहते हैं कि 'तर्कशील प्राणी होने के कारण जो हमारे मन को अच्छा लगे, वह करना कितना आसान हो जाता है. एक और तर्क जो इस पुस्तक में मुझे प्रभावित कर गया, वह यह कि यदि आप काबिल हैं, चतुर हैं तो लोग आपकी प्रतिभा को खरीदने के लिए तत्पर रहते हैं, जो बाद में उसका दुरूपयोग भी कर सकते हैं. फ्रैंकलिन की काबिलियत से उनका एक दोस्त 'कीमर' बेहद प्रभावित हो गया, जो एक नया पंथ स्थापित करना चाहता था, जिसमें वह सिद्धांतों पर प्रवचन देता और फ्रैंकलिन को उसका विरोध करनेवालों को चुप कराना था. एक और प्रसंग में फ्रैंकलिन अपने साथ हुए धोखे का ज़िक्र करते हुए कहते हैं कि "किसी गवर्नर जैसे स्तर के व्यक्ति का एक भोले-भाले लड़के के साथ चालबाजी खेलने का भला हम क्या अर्थ निकालते! यह उसकी आदत बन चुकी थीं. वह सभी को खुश रखना चाहता था. इसलिए देने को और कुछ न होने के कारण वह केवल उम्मीदें और आश्वासन दिया करता. इसी प्रकार फ्रैंकलिन की योग्यता का पता हमें उस वक्त भी चलता है जब कीमर ने उसे बहुत ज्यादा वेतन पर अपने मुद्रणालय में रखने की सोची, क्योंकि वह अपने सस्ते, गंवार, नौसिखिया कर्मचारियों को फ्रैंकलिन से प्रशिक्षित कराना चाहता था. वहीं बाद में अपने लोगों के प्रशिक्षण के बाद कीमर ने फ्रैंकलिन को बहानेबाजी से अपनी कंपनी से निकाल बाहर किया. व्यवसायिक सफलता के लिए कई जगहों पर 'साख और मितव्ययी' रहने पर फ्रैंकलिन जोर देते हैं. एक दुसरे सन्दर्भ में फ्रैंकलिन जरूरतमंद व्यक्ति की ईमानदारी की तुलना एक खाली बोरे को सीधा खड़े करने जितना कठिन बताते हैं. इसके साथ अनेक जगहों पर फ्रैंकलिन के वैज्ञानिक स्वभाव की चर्चा की गयी है और साथ में 'पेटेंट' पर उनकी अनिच्छा को इस तरह से दर्शाया गया है कि जिस प्रकार हम दुसरे प्रयोगों का लाभ लेते हैं, उसी प्रकार हमारे प्रयोगों से दुनिया को लाभ मिलना चाहिए. आज के समय में जिस प्रकार अमेरिकी कंपनियां दवा इत्यादि क्षेत्रों में पेटेंट के लिए उत्पात मचा रही हैं, उन्हें 'पेटेंट' पर फ्रैंकलिन के विचारों का अध्ययन जरूर करना चाहिए. Benjamin Franklin Autobiography in Hindi, Summary by Mithilesh, Great People Stories in Hindi, Inspiration, Motivational



पुस्तक की अगली कड़ी में अपने सार्वजनिक जीवन की चर्चा करते हुए फ्रैंकलिन 'वाचनालय' परियोजना का ज़िक्र करते हैं, जो आगे चलकर उत्तरी अमेरिका के सदस्यता शुल्क पर आधारित वाचनालयों की जननी सिद्ध हुई. अपने अख़बार सञ्चालन के आदर्शों का उल्लेख करते हुए बेंजामिन फ्रैंकलिन कहते हैं कि 'किसी का अपमान करनेवाले लेख को प्रकाशित न करने के प्रति मैं हमेशा सजग रहा, क्योंकि वह कई बार देश के लिए काफी अपमानजनक सिद्ध होते हैं. फ्रैंकलिन की मीडिया के बारे में सलाह को यहाँ उद्धृत करना ठीक रहेगा जो उन्होंने युवा प्रकाशकों को दी है. उन्होंने कहा है कि- प्रेस की स्वतंत्रता के नाम पर निजी विवाद, गलत आरोप, दो व्यक्ति या संस्थाओं में दुश्मनी बढ़ाने वाले लेख, यहाँ तक कि पड़ोसी सरकारों पर आक्षेपपूर्ण विचारों को प्रकाशित करने से बचा जाना चाहिए. फ्रैंकलिन युवाओं को यहाँ आश्वस्त करते हैं कि इससे उनके हितों को कोई क्षति नहीं पहुंचेगी, बल्कि दीर्घकालिक लाभ होगा. यह बात आश्चर्यजनक है कि लगभग ढाई सौ साल पहले बेंजामिन फ्रैंकलिन महिलाओं के अधिकारों की बात किसी 21वीं सदी के सामाजिक कार्यकर्त्ता की तरह करते हुए कहते हैं कि "महिलाओं की शिक्षा व्यवस्था उन्हें सशक्त करने के साथ ऐसी होनी चाहिए, जो वैधव्य की स्थिति में उनके एवं उनके बच्चों के काम आ सके." स्वास्थ्य के प्रति लोगों को जागरूक करते हुए बेंजामिन 1736 में अपने एक बेटे की चेचक से हुई मौत का ज़िक्र करते हैं और इस बात पर अफ़सोस जाहिर करते हैं कि उन्होंने अपने बच्चे को चेचक का टीका क्यों नहीं लगवाया. अपने सार्वजनिक जीवन में विरोधियों को अपना बनाने की कला में फ्रैंकलिन माहिर थे. इसका एक फार्मूला वह बताते हैं कि "वह जिसने एक बार कभी तुम पर दया का भाव व्यक्त किया है, वह दूसरी बार भी ऐसा करने के लिए उस व्यक्ति की अपेक्षा ज्यादा तत्पर रहेगा, जिस पर स्वयं तुमने कभी कोई कृतज्ञता की है." व्यवसायिक साझेदारी पर फ्रैंकलिन की टिप्पणी बड़ी सटीक प्रतीत होती है, जिसमें उन्होंने कहा है कि 'साझेदारी प्रायः झगडे या कलह में समाप्त हो जाती है, क्योंकि साझेदारी में प्रवेश के पूर्व सभी नियम व शर्तें और साझेदार की जिम्मेदारियों इत्यादि का स्पष्ट उल्लेख तथा उस पर आधारित समझौता नहीं किया जाता है, जिससे समय के साथ एक-दुसरे के प्रति ईर्ष्या व चिढ का भाव पैदा हो जाता है.' Benjamin Franklin Autobiography in Hindi, Summary by Mithilesh, Great People Stories in Hindi, Inspiration, Motivational

Benjamin Franklin Autobiography in Hindi, Summary by Mithilesh (Pic Credit: philanthropyroundtable.org)
इस पुस्तक का एक प्रसंग दिल छू जाता है, जब फ्रैंकलिन कहते हैं कि चंदे के द्वारा उन्होंने एक सुविधा-संपन्न और खूबसूरत भवन का निर्माण कराया. इससे मिली ख़ुशी जाहिर करते हुए वह कहते हैं कि "मुझे याद नहीं है कि मेरी राजनीतिक चालों से प्राप्त सफलताओं में मुझे कभी इतनी ख़ुशी मिली है, जितनी इस सफलता से मुझे प्राप्त हुई." इस उद्धरण से किसी 'निर्माण की ख़ुशी' के साथ फ्रैंकलिन की राजनीतिक चातुर्यता का भी पता चलता है. इसी क्रम में अपने सैनिक गुण को भी फ्रैंकलिन ने वर्णित किया है, जब वह ब्रिटिश सेना को सलाह देते हैं कि " 4 मील लम्बे पंक्तिबद्ध सैनिक कूच में इंडियंस द्वारा घात लगाकर हमला करने का डर है." हालाँकि उनकी इस सलाह को हंसी में उड़ा दिया जाता है और बाद में फ्रैंकलिन की सलाह सही साबित होती है और राजा की प्रशिक्षित सेना तहस-नहस हो जाती है. इस तरह के अनेक उदाहरणों एवं उद्धरणों से सुसज्जित यह पुस्तक एक सार्थक अध्ययन का अहसास देती है. पुस्तक के अंत में फ्रैंकलिन के जीवन की प्रमुख घटनाओं को बुलेट पॉइंट में दिया गया है, जिनमें 1730 में रेबेका रीड से विवाह, 1737 में असेंबली के सदस्य निर्वाचित व डिप्टी पोस्ट्मास्टर जनरल के पद पर नियुक्ति होने के साथ सिटी पुलिस की योजना, 1744 में अमेरिकन फिलॉसॉफिकल सोसाइटी की स्थापना, 1751 में एक अस्पताल की स्थापना व 1752 में पतंग से विद्युतीय प्रयोग द्वारा तड़ित को विद्युतीय प्रवाह सिद्ध करना है. इसी तरह से 1755 में ब्रेडोक की सेना को निजी तौर पर मालवाहक गाड़ियां एवं रसद उपलब्ध कराना, 1772 में फ्रेंच एकेडमी का असोसिएट सदस्य चुना जाना, 1775 में अमेरिका वापसी, 1779 में मिनिस्टर प्लेनिपोटेंशियरी टू फ़्रांस नियुक्त, 1782, 1783 में शांति के प्रारंभिक एवं निश्चित संधि पर हस्ताक्षर करना, 1785 में अमेरिका वापसी के साथ पेंसिलवैनिया का प्रेजिडेंट चुना जाना, 1787 में फेडरल संविधान के निर्माण प्रतिनिधिमंडल का सदस्य नियुक्त होना, 1788 में सार्वजनिक जीवन से सन्यास लेना एवं 17 अप्रैल 1790 में उनका देहावसान होना प्रमुख है. Benjamin Franklin Autobiography in Hindi, Summary by Mithilesh, Great People Stories in Hindi, Inspiration, Motivational

इस पुस्तक की अगली कड़ी 'फ्रैंकलिन और उनकी विरासत' में उनके कार्यों के प्रभावों का आंकलन करने की कोशिश करते हुए बताया गया है कि यह उनका प्रयास ही था कि स्वीडन ने सबसे पहले संयुक्त राज्य अमेरिका को एक गणतंत्र के रूप में मान्यता प्रदान की. फ्रैंकलिन ने जीवन में अपने कोई सिद्धांत प्रतिपादित नहीं किये. वे नैतिकता के रास्ते पर चले. उन्होंने जोर देकर कहा कि नया अमेरिकी गणतंत्र नैतिकता के मार्ग पर चलकर ही उन्नति कर सकता है. उनमें नैतिकता के लिए एक जूनून था. फ्रैंकलिन का ज़ोर 'स्वयं में और अपने समाज में नैतिकता और चरित्र पैदा करने पर' था. उन्होंने नैतिकता पर खूब लिखा भी. इस लेखन की कुछ यूरोपीय लेखकों ने निंदा भी की. वस्तुतः फ्रैंकलिन का जीवन-वृतांत विश्व विरासत की एक महान धरोहर है. इसका अनुसरण कोई भी कर सकता है और महान बन सकता है. उनके बारे में कहा जाता है कि 'वह संयुक्त राज्य अमेरिका के एकमात्र ऐसे राष्ट्रपति थे, जो कभी संयुक्त राज्य अमेरिका के राष्ट्रपति नहीं थे.' उनक व्यक्तित्व बहुआयामी था. वह अच्छे लेखक, वैज्ञानिक एवं राजनेता होने के साथ अच्छे संगीतकार और शतरंज के खिलाड़ी भी थे.

अनेक महान व्यक्तियों की तरह बेंजामिन फ्रैंकलिन ने भी अनेक सूक्तियों को गढन किया है, जिनमें से कुछ निम्नलिखित हैं-
  1. जो अपनी बुद्धिमानी को नहीं छिपा सकता, वह एक मुर्ख व्यक्ति है.
  2. जब कुआं सूख जाता है, तब हमें पानी की कीमत पता चलती है.
  3. एक पैसा बचाना ही एक पैसा कमाना है.
  4. सोती लोमड़ी मुर्गियां नहीं पकड़ सकती.
  5. काम ऐसे करो मानो सैकड़ों साल जीना है और प्रार्थना ऐसे करो मानो कल ही ज़िन्दगी का अंत है.
  6. एक अच्छी मिसाल सबसे अच्छा धर्मोपदेश है.
  7. अपने दुश्मनों को प्यार करो, क्योंकि वे तुम्हारी गलतियां बता देते हैं.
  8. शादी से पहले अपनी आँखें पूरी खुली रखें और बाद में आधी बंद कर लें.
  9. ख़राब लोहे से अच्छा चाकू नहीं बनाया जा सकता.
  10. दोस्त बनाने में सावधानी बरतें और बदलने में और ज्यादा सावधानी.
  11. मछलियाँ और मेहमान तीन दिन में बदबूदार हो जाते हैं.
  12. भीड़ एक राक्षस है, इसमें सिर तो बेशुमार होते हैं, लेकिन दिमाग एक भी नहीं होता.
  13. अचानक प्राप्त हुई सत्ता ढीठ बना देती है, अचानक प्राप्त हुई आज़ादी धृष्ट बना देती है, इनका धीरे-धीरे पाना ही बेहतर है.
  14. तीन बार भरपूर भोजन आदमी को आलसी बना देता है.
  15. अपने जीवन में शांति, संकल्प, श्रम, मितव्ययिता, निग्रह, विनम्रता, संयम, निष्ठा, मौन, शुचिता, न्याय, व्यवस्था, स्वच्छता को अपनाना ही सुख है.


- मिथिलेश कुमार सिंह, नई दिल्ली.




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