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पांच राज्यों के विधानसभा चुनाव में किसका जमेगा रंग और ... !! Election Analysis in UP, Punjab, Goa, Uttrakhand, Manipur, Hindi Article, Politics, Congress, BJP, Samajwadi Party, BSP, AAP



Election Analysis in UP, Punjab, Goa, Uttrakhand, Manipur, Hindi Article, Politics, Congress, BJP, Samajwadi Party
इधर समाजवादी पार्टी का आपसी दंगल चल रहा था और लोग बाग उसका मजा ले ही रहे थे कि चुनाव आयोग ने पांच राज्यों में चुनावी तिथि की घोषणा कर दी. जाहिर तौर पर लोग इस उहापोह में ही थे कि अखिलेश और शिवपाल खेमा अलग रहेंगे या साथ लड़ेंगे और उनका चुनाव निशान क्या होगा, तब तक चुनाव आयोग ने राज्यों में चुनाव की डुगडुगी बजा दी! खैर चुनाव आयोग द्वारा विधानसभा चुनाव की तारीखों की घोषणा करने के बाद से ही कई चैनलों ने सर्वे दिखाना शुरु कर दिया है कि किस राज्य में किसकी सरकार बनेगी और किसकी हालात पतली रह जायेगी! वैसे तो हर चुनाव अपने आप में बेहद महत्वपूर्ण होता है, किंतु इस बार जिन पांच राज्यों में विधानसभा चुनाव होने हैं, उनकी अहमियत और भी ज्यादा बढ़ गयी है और इसका कारण साफ है कि प्रधानमंत्री मोदी द्वारा नोट बंदी के बड़े निर्णय के बाद लोगबाग इस पर क्या फैसला देते हैं, यह सामने आ जाएगा. खासकर उत्तर प्रदेश जैसा बड़ा राज्य, जिसके अकेले 80 सांसद लोकसभा में हैं, वहां की जनता इन बड़े मुद्दों पर क्या सोचती है, यह साफ़ हो जायेगा! यह चुनाव इसलिए भी महत्वपूर्ण हैं, क्योंकि इनमें दो राज्यों में कांग्रेस पार्टी की सरकार है और लोकसभा चुनाव में बुरी तरह हार झेलने के बाद क्या उसके नेता जनाधार के स्तर पर कुछ कार्य कर सके हैं अथवा कांग्रेस के लिए मामला पहले से भी बदतर हो गया है? ऐसे ही, देश में नई राजनीति का नारा देकर आने वाली आम आदमी पार्टी की परीक्षा भी होने वाली है, क्योंकि दिल्ली से बाहर पहली बार वह गंभीरता से पंजाब और गोवा में चुनाव लड़ने जा रही है, तो जाहिर तौर पर इन दोनों राज्यों में उसकी हालत यह बयां करेगी कि उसकी राष्ट्रीय अपील कितनी है? अथवा केजरीवाल की राजनीति को लोग ख़ारिज कर चुके हैं? अगर चुनाव तारीखों की बात करें, तो यूपी में 7 चरणों में 11 फरवरी से 8 मार्च के बीच, गोवा और पंजाब दोनों जगहों पर 4 फरवरी, उत्तराखंड में 15 फरवरी और मणिपुर में दो चरणों में 4 और 8 मार्च को चुनाव कराने की घोषणा की गई है. चुनाव आयोग के अनुसार, सभी राज्यों में वोटों की गिनती 11 मार्च को होगी और यही वह दिन होगा, जब सभी को पता चल जायेगा कि हवा किधर और कितनी तेज है! सभी राज्यों में राजनीतिक पार्टियां चुनावी समीकरण दिखाने में तो लगी ही हुई हैं, किंतु उत्तर प्रदेश में तो जैसे समाजवादी पार्टी की पारिवारिक जंग ने राजनीतिक पारा जबरदस्त ढंग से बढ़ा दिया है. यहाँ 403 सीटों पर 7 चरणों के चुनाव में यह फैसला हो जाएगा कि मामला भाजपा की ओर झुकता है या सपा और बसपा में से ही जनता अपना सीएम चुनती हैं, जो पिछले कई सालों से चल रहा है. Election Analysis in UP, Punjab, Goa, Uttrakhand, Manipur, Hindi Article, Politics, Congress, BJP, Samajwadi Party, BSP, AAP

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थोड़ा पीछे देखने पर, 2012 के विधानसभा स्थिति की बात करें तो समाजवादी पार्टी के खाते में खाते में जहाँ 224 सीटें गई थी, वहीं बसपा के खाते में 80, भाजपा के 47, कांग्रेस के 28 और निर्दलीय तथा अन्य के खातों में भी 28 सीटें गई थीं. बेहद दिलचस्प होगा देखना कि इस बार क्या समीकरण बनते हैं, क्योंकि केंद्र से लेकर राज्य तक हालात बदले हुए नज़र आ रहे हैं. हालांकि, ओपिनियन पोल में यूपी की स्थिति या तो त्रिशंकु दिखाई जा रही है या फिर समाजवादी पार्टी की आंतरिक कलह के कारण भाजपा की स्थिति मजबूत बताई जा रही है. इस क्रम में बात करें तो इंडिया टुडे एक्सिस के सर्वे के मुताबिक यूपी में बीजेपी को पूर्ण बहुमत मिल सकता है, जिसमें उसका वोट प्रतिशत 33 के आसपास रह सकता है. हालांकि बीजेपी की कमजोरी कहें या कुछ और कि उसके पास कोई सीएम कैंडिडेट ही नहीं है, जबकि अन्य पार्टियों के मामले में यह लगभग स्पष्ट है. वैसे, यह दाव उसके लिए फायदेमंद भी हो सकता है, क्योंकि अगर कोई एक कैंडिडेट चुनाव से पूर्व घोषित होता तो दूसरे लोग उसके नाम पर गुटबाजी कर सकते थे, जबकि अभी पूरा भाजपाई कुनबा अपने-अपने नेता को सीएम बनाने के चक्कर में जी-जान से चुनाव में जुटेगा. उत्तर प्रदेश के बाद अगर हम पंजाब की बात करते हैं तो 2012 के विधानसभा चुनाव में यहां की 117 सीटों पर शिरोमणि अकाली दल जहां 54 सीटों के साथ शीर्ष पर थी, वहीं भारतीय जनता पार्टी को 12 सीटें हासिल हुई थीं और यह दोनों दल सत्ता में 5 साल तक साझेदारी करते रहे थे. पंजाब में कांग्रेस को 46 और निर्दलीय उम्मीदवारों को 5 सीटों के साथ संतोष करना पड़ा था. अगर सच कहा जाए तो कांग्रेस को इस राज्य से सर्वाधिक उम्मीदें हैं और इसके लिए उसने बड़ा जोर भी लगाया है. पंजाब में नशा-प्रसार के लिए शिरोमणि अकाली दल और भाजपा गठबंधन को कांग्रेस पार्टी ने जहां जिम्मेदार ठहराया है, वहीं सत्ता विरोधी लहर का फायदा मिलने की उम्मीद भी कांग्रेसी रणनीतिकार लगाए हुए हैं. इसके साथ नवजोत सिंह सिद्धू के कुनबे को कांग्रेस के साथ जोड़ने में मिली सफलता भी फायदेमंद साबित हो सकती है. हालांकि, आम आदमी पार्टी इस राज्य में कुछ दिन पहले तक खूब चर्चा में रही थी, किंतु केजरीवाली रवैये के कारण बड़े नेताओं को संगठन के साथ जोड़े रखने में आप नेतृत्व सफल नहीं हो सका और इसका खामियाजा पंजाब चुनाव में इस दल को भुगतना पड़ सकता है. यह बात अलग है कि अरविंद केजरीवाल चुनाव तिथि की घोषणा होने के बाद दावा ठोक रहे हैं कि उन्हें पंजाब में बहुमत मिलने जा रहा है! पंजाब के साथ ही गोवा में चुनाव हो रहा है, जहां 2012 में 40 सीटों में से भारतीय जनता पार्टी 21 सीटों के साथ सत्ता पर निर्विवाद रुप से काबिज रही, तो कांग्रेस ने 9, निर्दलीय पांच, महाराष्ट्रवादी गोमांतक तीन और युवा विकास पार्टी को दो सीटें मिली थीं. अरविंद केजरीवाल की पार्टी यहां सक्रिय हो रही है, किंतु देखना दिलचस्प होगा कि एक और केंद्र शासित प्रदेश में अपना आधार वह किस हद तक बना सकी है? Election Analysis in UP, Punjab, Goa, Uttrakhand, Manipur, Hindi Article, Politics, Congress, BJP, Samajwadi Party, BSP, AAP

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उत्तर प्रदेश, पंजाब और गोवा के बाद उत्तराखंड की स्थिति पर हम गौर करते हैं तो 2012 के विधानसभा चुनाव में 70 सीटों में से कांग्रेस और भाजपा की लगभग बराबर सीटें ही आई थी, जिसमें वर्तमान में कांग्रेस के पास 32 तो भाजपा के पास 31 विधायक हैं. वहीं बसपा तीन, निर्दलीय तीन और उत्तराखंड क्रांति दल के पास 1 सीट है. कई लोकलुभावन घोषणाएं करके उत्तराखंड के मुख्यमंत्री हरीश रावत एक बार फिर आने की आस संजोये हुए हैं, तो तमाम सर्वेक्षणों में भाजपा अपने लिए खुशी की गुंजाइश ढूंढ रही है, जिसमें उसे 35 से 43 सीटें मिलती दिखाई जा रही हैं. कांग्रेस की उम्मीद यहाँ से भी हैं, क्योंकि राष्ट्रीय स्तर पर कांग्रेस का भविष्य राज्यों की जीत पर भी निर्भर करने वाला है. इसके बाद मणिपुर की बात करें तो यहां कांग्रेस पार्टी पूर्ण बहुमत में है, जहां उसके पास 42 सीटें हैं तो तृणमूल कांग्रेस के पास 7, मणिपुरी स्टेट कांग्रेस पार्टी के पास 5, नाग पीपल्स फ्रंट के पास चार सीटें हैं, वहीं एनसीपी और लोक जनशक्ति के पास 1 - 1 सीटें हैं. यहां कांग्रेस काफी हद तक अपनी बढ़त बनाए रख सकती है. वैसे, देखा जाए तो चुनाव की यह घोषणा विवादित भी हो सकती है, क्योंकि भारत के मुख्य चुनाव आयुक्त ने कहा है कि चुनाव आयोग चुनाव के दौरान बजट पेश करने के मामले पर अपनी राय देगा. समाचारों के अनुसार कुछ पॉलिटिकल पार्टीज ने चुनाव आयोग को इस संबंध में ज्ञापन दिया है, क्योंकि बिल्कुल चुनाव के दौरान ही केंद्रीय बजट पेश किया जाएगा और विपक्षी पार्टियों के अनुसार इसका लाभ भाजपा को मिल सकता है, क्योंकि चुनावों को देखते हुए वह लोक-लुभावन घोषणाएं कर सकती है. इसी सिलसिले में, आम आदमी पार्टी के नेता आशुतोष ने ट्वीट किया है कि 'गोवा और पंजाब के चुनाव से 3 दिन पहले बजट पेश करना गलत होगा'. कुछ ऐसा ही विचार स्वराज इंडिया के योगेंद्र यादव का भी है. इससे इतर, सबसे बड़ी बात इन चुनाव में देखने वाली होगी, वह जीत हार से अलग यह होगी कि चुनावी खर्चे पर कुछ नियंत्रण हो पाता है अथवा नहीं? चुनाव आयोग द्वारा खर्च की जाने वाली राशि चुनावी उम्मीदवारों के लिए काफी होगी अथवा काले धन से इस बार भी चुनाव लड़ा जाएगा? अगर काले धन का प्रसार इस बार के चुनाव में भी होता है तो कहीं न कहीं यह भी माना जायेगा कि नोट बंदी से राजनीतिक पार्टियों पर कुछ असर नहीं पड़ा, बल्कि जनता ही "हलकान" हुई है. वैसे भी तमाम लोगों की राय सामने आने के बाद विश्व के जाने-माने अमेरिकन अर्थशास्त्री स्टीव एच हांके ने भी प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नोटबंदी के फैसले की आलोचना की है और कहा है कि इसने अर्थव्यवस्था को मंदी के रास्ते पर धकेल दिया है. चुनाव तारीखों की घोषणा के बाद राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी ने भी अर्थव्यवस्था के मंदी में जाने की राय व्यक्त की है. वैसे, आलोचनाओं के बीच यह बात भी उतनी ही सच है कि जनता नरेंद्र मोदी से बहुत ज्यादा नाराज नहीं है और यह बात कई प्री पोल सर्वे में सामने आ चुकी है. विपक्षियों को इसका लाभ इसलिए भी नहीं मिलेगा, क्योंकि कांग्रेस की साख अभी भी काफी खराब है और दूसरा कोई बड़ा दल भाजपा के खिलाफ माहौल बनाने में कामयाब होता दिख नहीं रहा है. देखा जाए तो यह चुनाव 2019 में होने वाले लोकसभा चुनाव की एक झलक भी माना जा सकता है, तो नोट बंदी पर एक जनमत संग्रह भी!

- मिथिलेश कुमार सिंह, नई दिल्ली.




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