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राहुल गाँधी के अलावा जिस दूसरे राजनीतिक व्यक्ति पर मुझे तरस आता था, वह दिल्ली के उप राज्यपाल पद से इस्तीफा दे चुके माननीय नजीब जंग ही थे! कहने को तो उप राज्यपाल का पद राजनीतिक पद नहीं होता है, किन्तु दिल्ली में अरविन्द केजरीवाल के मुख्यमंत्री पद का दायित्व संभालने के बाद से ही यह पद प्योर राजनीति के दायरे में आ गया था. खैर, बात हो रही थी राहुल गाँधी और नजीब जंग की! अब आप ही बताइये, ऐसे सीधे सादे लोग राजनीति में कैसे रहते होंगे? राहुल गाँधी पर तो टिटहरी की भांति कांग्रेस का ऐतिहासिक बोझ है, किन्तु नजीब साहब जाने क्यों अब तक कशमकश में रहे! राजनीति भी कितनी अजीब चीज है. इसमें जो मनुष्य को पसंद नहीं वह करना पड़ता है और जो पसंद है उससे दूर रहना पड़ जाता है. अब नजीब जंग को ही ले लीजिये, उनके जैसे शरीफ, बोले तो 'गाय' व्यक्तित्व को कड़ी कश्मकश से उपराज्यपाल के कार्यकाल को कई सालों तक निभाना पड़ा. नजीब जंग की दुविधा कई थी. उपराज्यपाल पद पर उन्हें कांग्रेस पार्टी ने बिठाया था, तो केंद्र में सरकार बदलने के बाद भाजपा ने भी उन्हें उप राज्यपाल पद से क्यों नहीं हटाया यह बात वह बखूबी समझ गए थे. अगर उनके दिल से पूछा जाता तो अब तक वह शायद यही चाहते रहे होंगे कि भाजपा उन्हें हटा दें और किसी और को यह पद दे दे! पर कहते हैं ना कि बंदर जब घड़े के अंदर चने निकालने के लिए हाथ डाल देता है और भरी हुई मुट्ठी घड़े के मुंह से बाहर नहीं निकलती है, कुछ-कुछ वैसी ही हालत नजीब जंग की भी हो गई थी. अब उप राज्यपाल पद का दायित्व कोई छोटा दायित्व तो होता नहीं है कि झटके से इस्तीफा देकर बाहर निकल आया जाए. तो, इसी मोहपाश में बंधे जंग साहब रोज ही किसी न किसी मुद्दे पर अरविन्द केजरीवाल से जंग लड़ते रहने को अपनी नियति मान चुके थे. ऊपर तो आम आदमी पार्टी से, किन्तु भीतर ही भीतर भाजपा से भी वह अवश्य ही जंग लड़ते होंगे, क्योंकि केंद्रीय गृह मंत्रालय उन्हीं के अधीन तो है. चूंकि कांग्रेस ने उन्हें नियुक्ति-पत्र दिया था तो बहुत मुमकिन है कि एकाध बार सोनिया जी या अजय माकन जैसों की भी सुन लेते हों! वैसे तो, उपराज्यपाल पद की ले-देकर यही भूमिका होती है कि केंद्रीय गृह मंत्रालय के आदेशों को वह केंद्र शासित प्रदेश के शासन प्रमुख तक पहुंचाए. कहने को उसके पास ताकत जरूर होती है, लेकिन आखिरकार उसे सेन्ट्रल होम मिनिस्ट्री का आदेश ही मानना पड़ता है. LG Najeeb Jung, Tenure in Delhi, Fight with Arvind Kejriwal, Hindi Article, New, Politics, Home Ministry, BJP, AAP, Congress in Delhi
यूपीए के कार्यकाल में तो जैसे तैसे जंग साहब ने मलाई काटी, किन्तु ज्योंही अरविन्द केजरीवाल मुख्यमंत्री बने, जंग साहब का पाला उनसे रोज ही पड़ा और केजरीवाल एंड पार्टी ने उन्हें दलाल, चमचा, मोदी के लिए अपनी आत्मा को बेचने वाला, उप राष्ट्रपति पद का लालची और जाने क्या-क्या नहीं कहा, यह बात हम सभी जानते हैं. जाहिर था केजरीवाल सरकार से बढ़ती हुई कटुता और भाजपाई केंद्र सरकार के बीच नजीब जंग सैंडविच से बने हुए थे. कई राज्यों के राज्यपालों को हटाकर भाजपा ने दूसरे लोगों को राज्यपाल बना दिया था, लेकिन दिल्ली में वह भी कसम खाए बैठी थी कि नजीब जंग को ही केजरीवाल से दो-दो हाथ करते रहना होगा! संभवतः वह यह नहीं चाहती थी कि उसके ऊपर आरोप लगता कि केजरीवाल सरकार को वह जानबूझकर परेशान करना चाह रही है, इसीलिए नजीब जंग को उस ने हटाया नहीं पर जब पानी सर से ऊपर निकल गया तो नजीब जंग ने खुद ही इस्तीफा देना बेहतर समझा. आखिर घुट-घुटकर प्रशासन चलाने से अच्छा है, चुपचाप रिटायरमेंट का स्वाद लिया जाए और इसे अपने लिए बेहतर फैसला मानकर नजीब जंग राज भवन से रुखसत हो गए हैं. देखा जाए तो, राज्यपाल या उप राज्यपाल का पद भारतीय लोकतंत्र में प्रतिकात्मक ही रहा है, तो नीतीश कुमार जैसे कई नेताओं ने इस पद को खत्म करने की मांग कर डाली है. पर इस पद की क्या बेबशी होती है, क्या दुश्वारियां होती है यह कोई नजीब जंग से पूछे? मैं कहता हूँ, उनके कार्यकाल के ऊपर कोई बॉलीवुड की मसाला फिल्म बनायी जा सकती है. हालांकि बड़ी बहादुरी से उन्होंने केंद्र सरकार और राज्य सरकार के बीच पुल का कार्य किया पर उनकी बहादुरी भी आखिर कब तक साथ देती, अंततः जवाब दे गई बहादुरी और जंग लड़ते लड़ते नजीब जंग मैदान ए जंग से रुखसत हो गए. देखा जाए तो उनके और दिल्ली सरकार के बीच कई विवाद बड़े रहे और उनके जाने के बाद आप, भाजपा और कांग्रेस एक दूसरे पर आरोप-प्रत्यारोप का खेल खेलने में लग गए हैं, मानो नजीब जंग की सबको कितनी फिक्र थी! कांग्रेस ने आप और केंद्र सरकार से इस बारे में जवाब तलब किया है तो अरविंद केजरीवाल भागे-भागे उनके पास मिलने ही पहुंच गए. जैसे केजरीवाल अफसोस जता रहे हों कि किस देवता को उन्होंने दलाल और अपनी आत्मा को बेचने वाला कह दिया है. बहुत उम्मीद है कि मुलाकात के दौरान केजरीवाल भविष्य की शुभकामनाएं देते हुए नजीब जी से कह रहे होंगे कि "आप पर्सनली मत लेना जी, मेरी आदतन मजबूरी है कि मैं लड़ता ही रहता हूँ." LG Najeeb Jung, Tenure in Delhi, Fight with Arvind Kejriwal, Hindi Article, New, Politics, Home Ministry, BJP, AAP, Congress in Delhi
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जंग साहब भी मुस्कुरा रहे होंगे कि 'मुझसे लड़ने में तो तुम्हें खूब मजा आया होगा, किन्तु भूले भटके अगर किरण बेदी या सुब्रमण्यम स्वामी दिल्ली के उप राज्यपाल बन गए तो फिर तुम्हें लड़ाई का असली स्वाद पता चलेगा'! सच भी यही है कि नजीब जंग जैसे भी थे, केजरीवाल को उनसे अच्छा उप राज्यपाल दिल्ली में शायद ही मिले! याद आता है महाभारत काल के युद्ध का दृश्य जब महारथी भीष्म कौरव सेना के सेनापति थे, तब युद्ध नियमों का दोनों सेनाएं पालन करती रहीं, पर ज्यों ही भीष्म युद्ध भूमि से हटे, सारे नियमों की धज्जियां उड़ गयीं. तो बहुत कुछ उम्मीद है कि दिल्ली की दिलचस्प जंग में जंग के मैदान से निकल जाने के बाद जंग और भी जोरदार होने वाली है. इस जंग में राजनीतिक विश्लेषकों को जहाँ और भी दिलचस्प खबरें मिलेंगी, वहीं दिल्लीवासियों की सर पीटने की हालत में सुधार दिखना मुमकिन नहीं लग रहा है. आखिर, नजीब जंग जैसे सीधे सादे व्यक्ति से जब केजरीवाल ने तमाम मुद्दों पर जबरदस्ती की रार ले ली तो फिर आगे की बात ही कौन करे. जरा देखिये, दिल्ली सरकार और नजीब जंग के बीच किन मुद्दों पर मुख्य रूप से जंग हुई. नवंबर 2016 में एलजी जंग ने सुप्रीम कोर्ट के 15 वकीलों के पैनल की नियुक्ति रद्द करने का फरमान सुनाया. गौरतलब है कि केजरीवाल सरकार ने इन 15 वकीलों को वर्ष 2014 और 2015 में उप राज्यपाल की अनुमति लिए बिना ही नियुक्त किया था. इसी तरह, नवंबर 2016 में ही नजीब जंग ने दिल्ली में बढ़ते प्रदूषण को देखते हुए 15 साल पुराने डीजल वाहनों के चलने पर रोक लगाने का आदेश जारी किया, तो धार्मिक कार्यक्रमों को छोड़कर पटाखों के इस्तेमाल पर रोक लगा दिया. एलजी के इस आदेश पर भी आप नेताओं की भृकुटियां तन गयी थीं. ऐसे ही, अक्टूबर 2016 में नजीब जंग ने विधायकों की स्थानीय क्षेत्र विकास निधि में एक ही बार में 10-10 करोड़ रुपये की बढ़ोतरी से जुड़ी फाइल केजरीवाल सरकार को लौटा दी थी, जिस पर होहल्ला मचना ही था और मचा भी. ऐसे ही जब नजीब जंग ने तरुण सीम को डायरेक्टर जनरल हेल्थ सर्विसेज के पद से हटाया और डॉ. बीना खुराना को यह जिम्मेदारी सौंपी तो खूब हंगामा बरपा. इसी कड़ी में, नजीब जंग ने सितंबर 2016 में दिल्ली बिजली नियामक आयोग (डीईआरसी) के अध्यक्ष कृष्णा सैनी की नियुक्ति को रद्द कर दिया था और इसके लिए उन्होंने नियुक्ति में हुई कानूनी कमियों का हवाला दिया था. LG Najeeb Jung, Tenure in Delhi, Fight with Arvind Kejriwal, Hindi Article, New, Politics, Home Ministry, BJP, AAP, Congress in Delhi
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गौर करने वाली बात यह भी है कि केजरीवाल सरकार ने बिना एलजी की अनुमति के सैनी को डीईआरसी के अध्यक्ष पद पर नियुक्त किया था. भई, केजरीवाल जैसे बन्दे को किसी की अनुमति लेने की आवश्यकता कबसे पड़ने लगी. यह बाद जंग साहब समझ नहीं रहे थे और इसलिए उन्हें ... !! खैर, इस कड़ी में आगे देखते हैं तो अगस्त 2016 में नजीब जंग ने दिल्ली सरकार के लिए फैसलों की वैधता की जांच के लिए शुंगलू कमेटी का गठन किया, जिस पर मामला सुप्रीम कोर्ट तक जा पहुंचा है. ज्ञातव्य हो, दिल्ली सरकार ने उप राज्यपाल से इस कमेटी को भंग करने का अनुरोध किया जिसे ठुकरा दिया गया. इसी तरह जून 2015 में दिल्ली सरकार की भ्रष्टाचार निरोधी शाखा यानी एसीबी में बिहार के पांच पुलिसकर्मियों की नियुक्ति को उपराज्यपाल ने खारिज कर दिया था. इससे पहले जून 2015 में ही नजीब जंग ने अपना प्राधिकार साबित करने के लिए दिल्ली पुलिस के एक संयुक्त आयुक्त मुकेश मीणा को एसीबी का प्रमुख नियुक्त कर दिया जो कि सीएम केजरीवाल की ओर से नियुक्त एसीबी चीफ एसएस यादव के ऊपर हैं. वस्तुतः पावर की लड़ाई केजरीवाल और जंग में खूब लड़ी गयी तो निश्चित रूप से इस पूरे मामले का तार केंद्रीय गृह मंत्रालय से अंडरग्राउंड रूप से जुड़ा रहा. हालाँकि, परदे की बात परदे में ही रही. मई 2015 में उप राज्यपाल नजीब जंग ने संविधान का हवाला देकर कार्यकारी मुख्य सचिव के पद पर शकुंतला गैमलिन की तैनाती कर दी थी, जिस पर केजरीवाल ने खूब शोर मचाया और आदतन जबरदस्त ढंग से बयानबाजी भी की. इसी तरह जुलाई 2015 में नजीब जंग ने दिल्ली महिला आयोग में अध्यक्ष के तौर पर स्वाति मालिवाल की नियुक्ति रद्द कर दी थी. हालाँकि, बाद में मालीवाल की बहाली हो गयी थी, किन्तु तब उप राज्यपाल की ओर से कहा गया कि इस मामले में उनके मंजूरी नहीं ली गई थी. खैर, अब यह चैप्टर समाप्त हो चुका है और बहुत उम्मीद है कि आने वाले उप राज्यपाल नजीब जंग से बेहतर परफॉरमेंस करेंगे. वैसे ट्विट्टेरबाजों की नजीब जंग के इस्तीफे पर दी जाने वाली टिप्पणियां कहीं ज्यादे दिलचस्प हैं. मसलन, @imManissh ट्विटर हैंडल से मनीष ने जंग के इस्तीफ़े की वजह पर चुटकी लेते हुए लिखा है: 'दिल्ली के एलजी को जब पता चला कि दिल्ली पर राज करने के लिए तैमूर का जन्म हो चुका है, तो उन्होंने इस्तीफ़ा दे दिया'. बताते चलें कि तैमूर सैफ और करीना के नवजात का नाम रखा गया है. ऐसे ही, रजत मिश्रा नामक यूजर ने ट्विटर पर लिखा है कि 'नजीब जंग का इस्तीफ़ा आर अश्विन को प्लेयर ऑफ़ द इयर चुने जाने से नाराज़ होने पर दिया गया है. जंग ने कहा: मैंने भी किया केजरीवाल के ख़िलाफ़ दमदार खेल का प्रदर्शन'. खैर, हास्य अपनी जगह है, किन्तु नजीब जंग खूब जंग लड़े, इस बात में दो राय नहीं!
- मिथिलेश कुमार सिंह, नई दिल्ली.
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