16 जनवरी को, बिहार की राजधानी पटना के श्रीकृष्णपुरी थाना क्षेत्र में अज्ञात अपराधियों ने दिन-दहाड़े एक स्वर्ण व्यवसायी की गोली मारकर हत्या कर दी. कारण था, जबरन पैसों की मांग! इसके पहले 12 जनवरी को, बिहार के सीतामढ़ी जिले के सुप्पी सहायक थाना क्षेत्र में हथियारबंद अपराधियों ने एक सीमेंट व्यवसायी की गोली मारकर हत्या कर दी. हालां की, इन घटनाओं पर, अपनी चुप्पी तोड़ते हुए राज्य के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने कहा कि हर एक घटना की गंभीरता से जांच की जाएगी और राज्य पुलिस की तरफ से किसी तरह की ढिलाई नहीं दी जा रही है. कहते हैं कि वगैर आग के धुंआ नहीं होता और बिहार में जंगलराज की बातें भी इस सन्दर्भ में काफी कुछ कहानी कह देती हैं. इस क्रम में, चुनाव के समय नीतीश कुमार पर कहीं न कहीं यह यकीन भी था कि वह अपनी प्रतिष्ठा के साथ यूं खिलवाड़ नहीं होने देंगे, पर जैसे-जैसे समय बीत रहा है, वैसे-वैसे आपराधिक घटनाओं में हो रही बढ़ोत्तरी ने मुख्यमंत्री के साथ खुद लालू यादव को भी चिंता में डाल दिया होगा. अगर यह कह दें कि लालू 'जंगलराज' आने के खतरों से अनजान होकर उसे बढ़ावा दे रहे हैं तो यह अन्यायपूर्ण आंकलन ही होगा! यह बात वह बखूबी जानते हैं कि अपराध-तंत्र को बढ़ावा देने से उनके और नीतीश के बीच तलाक भी हो सकता है और ऐसी किसी भी स्थिति में उनके नए-नवेले राजनेता बने दोनों बेटों के ग्राफ पर ग्रहण लग जायेगा! ऐसे में प्रश्न उठता है कि आखिर यह अपराधी कौन हैं और सरकार इन पर नकेल कसने में इतनी विवश सी क्यों दिख रही है? आखिर यह अपराधी कहीं आसमान से तो आये नहीं हैं. साफ़ है कि यह सभी अपराधी उन्हीं जड़ों से जुड़े हुए हैं, जिनके लिए बिहार ने व्यापक स्तर पर बदनामी झेली है. कई विधायक और छुटभैये नेताओं का इन्हें छुपा संरक्षण प्राप्त तो है ही, साथ ही साथ कई अधिकारी भी इन्हें बढ़ावा देने से बाज नहीं आ रहे हैं!
लालू इन्हें हिदायत तो जरूर दे रहे हैं, किन्तु इन्हें निकालने और सख्त कार्रवाई की हद तक चेतावनी देने में असफल भी हो रहे हैं! ऐसे में इस हिदायत और कार्रवाई के बीच के गैप से अपराधी 'जंगलराज' के अभियान को हवा दे रहे हैं. दूसरी वारदातों को छोड़ भी दें तो, बिहार के सीएम नीतीश कुमार के एक विधायक पर हाल ही में छेड़खानी का केस दर्ज किया गया है. इस घटना के बाद से नीतीश कुमार स्वाभाविक तौर से विरोधियों के निशाने पर हैं. बिहार में बढ़ते अपराधों के मद्देनजर बीजेपी नेता सुशील मोदी ने प्रेस कॉन्फ्रेंस करके नीतीश कुमार को 'बेचारा सीएम' बताया. सुशील मोदी ने यह भी कहा कि 'हमने फैसला किया था कि महागठबंधन के छह महीने के हनीमून पीरियड में हम कुछ नहीं कहेंगे. लेकिन बिहार में बढ़ती आपराधिक घटनाओं के मद्देनजर मजबूरन हमें बोलना पड़ रहा है.' उन्होंने कहा 'सत्ताधारी दल के विधायक कानून तोड़ रहे हैं और मुख्यमंत्री नीतीश कुमार , लालू यादव और कांग्रेस के दबाव में आकर उनपर ठोस कार्रवाई नहीं कर रहे हैं. नीतीश कुमार के पास सरफराज आलम पर कार्रवाई करने की हिम्मत नहीं है. नीतीश तो केवल बेचारे सीएम बनकर रह गए हैं.' अब सवाल है कि जब खुद सत्ताधारी पार्टी के विधायक पर आरोप हों तो फिर आम जनता की कौन कहे? इसके साथ-साथ बीजेपी नेता सुशील मोदी ने प्रेस कॉन्फ्रेंस कर पूर्णिया की घटना को भी उठाया. उन्होंने जेडीयू विधायक बीमा भारती पर अपने अपराधी पति को पुलिस लॉक-अप से फरार करवाने का आरोप लगाया. उन्होंने कहा कि अगर नीतीश कुमार के पास अधिकार हैं तो वह बीमा भारती और संतोष कुशवाहा के खिलाफ कार्रवाई क्यों नहीं करते.
साथ ही उन्होंने ये भी कहा कि जबतक नीतीश जेडीयू और आरजेडी के विधायकों की नकेल नहीं कसते तब तक बिहार में कानून व्यवस्था काम नहीं की जा सकेगी. भाजपा के इन आरोपों के अलावा मात्र कुछ ही दिन पहले, राज्य में तीन इंजीनियरों की हत्या हो चुकी है तो इसके अलावा जबरन वसूली और चोरी की भी कई घटनाएं सामने आई हैं. इसके अलावा पटना की महिला चिकित्सक से 15 लाख की रंगदारी मांगने से क्षेत्र में दहशत फैली हुई है तो उसके अलावा पटना में अपराधिक सरगना द्वारा माल बनवाने से क्षेत्र में तरह-तरह की चर्चाएं हो रही हैं. हालाँकि, नीतीश के लिए यह राहत की बात है कि मुख्यधारा की मीडिया ने अभी तक उनको विशेष छूट दे रखी है और बिहार में अपराध की घटनाओं पर उस तरह से प्रतिक्रिया नहीं आ रही है, जिस तरह की प्रतिक्रिया दादरी के अख़लाक़ अथवा हैदराबाद के पीएचडी स्कॉलर रोहित के आत्महत्या के बाद मीडिया में रिएक्शन आये. जाहिर है, अगर समय रहते मुख्यमंत्री नीतीश कुमार और बिहार की सबसे बड़ी पार्टी के अगुआ लालू प्रसाद यादव ने इस पर ध्यान नहीं दिया तो वह दिन दूर नहीं जब आने वाले समय में जंगलराज की आहट के साथ जनता की चीख-पुकार भी खुलेआम सुनाई देने लगेगी और बिहार फिर वहीं खड़ा मिलेगा, जहाँ वह 15 साल पहले खड़ा था! हालाँकि, इन स्थितियों से बचने की नीतीश जी-जान से कोशिश कर रहे होंगे और वह अपनी कोशिश में सफल हों, इसी बात में उनका और समस्त बिहारवासियों का भी हित है. जाहिर है, पुराने बदनाम समय में लौटना किसी तरह से और किसी के लिए भी हितकर नहीं होगा!
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