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शनिदेव, हाजी अली और 21वीं सदी - Shani mandir, shingnapur, hindi article by mithilesh

यूं तो हम प्रगतिवादी हैं, लेकिन जब बात महिलाओं की आती है तो हम ज़रा देर में रूढ़िवादी भी हो जाते हैं. इस पूरे सन्दर्भ में शनि महाराज और हाजी अली पर जो हालिया विवाद उत्पन्न हुआ है, उसने एक बार फिर यह साबित किया है कि आदमी खुद को हर किसी से बड़ा समझता है और शनि से लेकर शुक्र और हाजी अली तक सबको वह अपनी सुविधा के अनुसार इस्तेमाल करता रहता है. तमाम उथल-पुथल के बाद अब शनि मंदिर मुद्दे पर शरद पवार का रूख सामने आया है. महाराष्ट्र के अहमदनगर जिले के शनि शिंगणापुर मंदिर में महिलाओं के प्रवेश से पाबंदी हटाने की मांग का समर्थन करते हुए राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी के प्रमुख ने कहा है कि भगवान लिंग भेद नहीं कर सकते और उनका मानना है कि किसी को भी प्रार्थना करने से नहीं रोका जाना चाहिए. पवार ने यह तक कह डाला कि ‘‘मंदिरों में महिलाओं का प्रवेश प्रतिबंधित करने वाले ये किस तरह के भगवान हैं? अगर वास्तव में ऐसे कोई भगवान हैं तो मैं उनमें विश्वास नहीं करता, क्योंकि मेरे भगवान लैंगिक भेदभाव नहीं कर सकते.’’ आगे उन्होंने मीडिया से यह भी कहा कि उनकी मंदिर के अधिकारियों से बात हुई है और उनसे आग्रह किया है कि अपने निर्णय पर पुनर्विचार करें और महिलाओं को मंदिर में प्रवेश करने की अनुमति दें. रांकापा प्रमुख की हालिया बातों से तो यही लगता है कि उन्हें समाज की चिंता कितनी ज्यादा है, लेकिन वह शायद भूल रहे हैं कि अप्रत्यक्ष रूप से यह मंदिर उनकी ही पार्टी से जुड़ा हुआ है. उससे भी बड़ी बात यह है कि यह परंपरा कोई आज तो स्थापित हुई नहीं, लेकिन अब तक इस मामले में किसी के कान पर जूं तक नहीं रेंगी, जबकि इससे पहले महाराष्ट्र में और केंद्र में भी शरद पवार की सीधी सहभागिता थी. 

हालाँकि, इसके साथ यह भी एक सच ही है कि जब तक लोग खुद अपनी रूढ़िवादी रिवाजों को नहीं छोड़ते हैं तब तक सरकार बहुत कुछ नहीं कर सकती, किन्तु असल सवाल तो यही है कि यह मुद्दा अब ही इतना ज़ोर शोर से क्यों उठ रहा है! इससे पहले के जो घटनाक्रम हुए थे, उसके अनुसार शनि शिंगणापुर मंदिर के गर्भगृह में महिलाओं को प्रवेश की अनुमति नहीं देने की प्राचीन परंपरा का उल्लंघन करते हुए महिला प्रदर्शनकारियों ने हाल ही में मंदिर में जबरन प्रवेश करने का प्रयास किया लेकिन उन्हें ऐसा करने से मंदिर-प्रशासन द्वारा रोक दिया गया. इसके बाद उन्होंने महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री देवेन्द्र फडणवीस से मुलाकात कर इस सिलसिले में ज्ञापन सौंपा था। बाद में फडणवीस ने कई ट्वीट कर सांस्कृतिक परम्पराओं में बदलाव की वकालत करते हुए साफ़ कहा कि भारतीय संस्कृति और हिंदू धर्म महिलाओं को प्रार्थना का अधिकार देते हैं. आर्ट ऑफ लिविंग के संस्थापक श्री श्री रविशंकर ने भी बीती सात फरवरी को शनि शिंगणापुर मंदिर का दौरा कर मंदिर के अधिकारियों और ग्रामीणों के बीच जारी गतिरोध को तोड़ने का प्रयास करते हुए वाराणसी के विश्वनाथ मंदिर और बालाजी तिरुपति मंदिर का उल्लेख किया था और न्यायपूर्ण हल की उम्मीद जताई थी. इस बात से कतई इंकार नहीं किया जा सकता कि इस मुद्दे को बेवजह उछाला जा रहा है और राजनीति करने की कोशिश जमकर की जा रही है, लेकिन प्रश्न फिर वही उठता है कि आखिर इस प्रकार के मुद्दे पर राजनीति करने की जगह आज 21 वीं सदी में भी क्यों विराजमान है? 
पिछले दिनों आरएसएस प्रमुख मोहन भागवत ने बड़ा सटीक बयान देते हुए कहा था कि हिंदुत्व, वैज्ञानिकता को मानने का दर्शन है और हमें उन परम्पराओं में निश्चित रूप से बदलाव करना चाहिए जो विज्ञान की कसौटी पर खरी नहीं उतरती हैं. साफ़ है कि आज के समय में शनि महाराज का डर दिखाकर वैज्ञानिक सोच को ही धत्ता बताया जा रहा है और उससे भी बड़ी बात यह कि इस गैर जरूरी मुद्दे पर राजनीति करने की खुली छूट दी जा रही है, जो निश्चित रूप से पीड़ादायक है. आखिर, देश में कई और जरूरी मुद्दे हैं, मगर कोई समझने को तैयार हो तब न! यही हालत कमोबेश हाजी अली दरगाह को लेकर भी है. मुंबई स्थित संगठन भारतीय मुस्लिम महिला आंदोलन ने हाजी अली दरगाह में मज़ार तक जाने की माँग को लेकर आज़ाद मैदान में धरना दिया है तो इस संगठन ने मुंबई उच्च न्यायालय में इस मांग को लेकर एक जनहित याचिका पहले से ही दायर की है. यह मामला राज्य महिला आयोग तक भी पहुँच चूका है अथवा संगठन की सदस्यों द्वारा पहुंचाने की बात कही जा रही है. अब इन तमाम जद्दोजहद के बावजूद हालात में कुछ परिवर्तन आते हैं तो उसकी कुछ सार्थकता होगी, अन्यथा राजनीति और होहल्ला तो होता ही रहता है!

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