आर्य समाज का नाम भला कौन नहीं जानता है? जब भारतवासी गुलाम थे, पीड़ित थे, विभिन्न जातीय संघर्षों में बुरी तरह फंसे हुए थे, आक्रान्ताओं से सहमे हुए थे, उस समय किसी प्रकाश-पुंज की भांति अंधेरों को दूर करने वाले महर्षि दयानंद के तमाम उपकारों को यह देश और देशवासी कभी नहीं भूल सकते हैं. स्वामी दयानन्द सरस्वती का जन्म गुजरात की छोटी-सी रियासत मोरवी के टंकारा नामक गाँव में हुआ था. चूँकि वह मूल नक्षत्र में पैदा हुए थे, इस कारण इनका नाम मूलशंकर रखा गया. मूलशंकर की बुद्धि इतनी ज्यादा कुशाग्र थी कि मात्र 14 वर्ष की उम्र में उन्हें रुद्री आदि के साथ-साथ यजुर्वेद तथा अन्य वेदों के भी कुछ अंश कंठस्थ हो गए थे तो व्याकरण के भी वे अच्छे ज्ञाता बन चुके थे. स्वामी दयानन्द बाल्यकाल में शंकर के भक्त थे और शिवभक्त पिता के कहने पर मूलशंकर ने भी एक बार शिवरात्रि का व्रत रखा था. लेकिन जब उन्होंने देखा कि एक चुहिया शिवलिंग पर चढ़कर नैवेद्य खा रही है, तो उन्हें आश्चर्य हुआ और धक्का भी लगा. उसी क्षण से उनका मूर्तिपूजा पर से विश्वास उठ गया. पुत्र के विचारों में परिवर्तन होता देखकर पिता उनके विवाह की तैयारी करने लगे, किन्तु होनी को कुछ और ही मंजूर था. ज्यों ही मूलशंकर को इसकी भनक लगी, वे घर से भाग निकले, सिर मुंडा लिया और गेरुए वस्त्र धारण कर लिए तथा ब्रह्मचर्यकाल में ही ये भारतोद्धार का व्रत लेकर घर से निकल पड़े. तमाम संघर्षों का सामना करते हुए आर्यसमाज की स्थापना और उसके साथ ही स्वामी जी ने हिन्दी में ग्रन्थ रचना आरम्भ की तो पहले के संस्कृत में लिखित ग्रन्थों का हिन्दी में अनुवाद भी किया. ‘ऋग्वेदादि भाष्यभूमिका’ उनकी असाधारण योग्यता का परिचायक ग्रन्थ है तो ‘सत्यार्थप्रकाश’ उन महाविभूति का सबसे प्रसिद्ध ग्रन्थ है.
अहिन्दी भाषी होते हुए भी स्वामी जी हिन्दी के प्रबल समर्थक थे. आज जो विभिन्न भाषाओँ के नाम पर संघर्ष किये और कराये जा रहे हैं, उन सभी लोगों को स्वामीजी के उन शब्दों को याद करना चाहिए, जिसमें वह कहा करते थे कि: ‘मेरी आँखें तो उस दिन को देखने के लिए तरस रहीं हैं, जब कश्मीर से कन्याकुमारी तक सब भारतीय एक भाषा को बोलने और समझने लग जायेंगे.’ ऐसा भी नहीं है कि स्वामीजी को अपने विचारों की स्वीकृति आसानी से मिल गयी, बल्कि अपने विचारों के कारण स्वामी जी को प्रबल विरोध का सामना करना पड़ा तो उन पर पत्थर मारे गए, विष देने के प्रयत्न भी हुए, डुबाने की चेष्टा की गई, पर वे पाखण्ड के विरोध और वेदों के प्रचार के अपने कार्य पर अडिग रहे. 1863 से 1875 ई. तक स्वामी जी देश का भ्रमण करके अपने विचारों का प्रचार करते रहें और वेदों के प्रचार का बीडा उठाने और इस काम को पूरा करने के लिए संभवत: 7 या 10 अप्रैल 1875 ई. को 'आर्य समाज' नामक संस्था की स्थापना की गयी. शीघ्र ही इसकी शाखाएं देश-भर में फैल गई. इस बात में रत्ती भर भी संदेह नहीं है कि देश के सांस्कृतिक और राष्ट्रीय नवजागरण में आर्य समाज की बहुत बड़ी देन रही है. हिन्दू समाज को इससे नई चेतना मिली और अनेक संस्कारगत कुरीतियों से छुटकारा मिला. जातिवाद और बाल-विवाह का विरोध किया, नारी शिक्षा तथा विधवा विवाह को प्रोत्साहित करना इस संस्था के मुख्य उद्देश्यों में से एक रहा है.
उनका यह कहना था कि किसी भी अहिन्दू को हिन्दू धर्म में लिया जा सकता है. आर्य समाज के इस निर्णय से हिंदुओं का धर्म परिवर्तन न केवल रूका, बल्कि संतुलन साधने में भी इससे बड़ी मदद मिली. आज जब हम इस महान कर्मयोगी द्वारा छोड़ी गयी विरासत पर नज़र डालते हैं तो हृदय पीड़ा से भर उठता है. विभिन्न आर्य समाज संस्थाओं पर तमाम मठाधीशों ने एक तरह से कब्ज़ा जमा रखा है तो कई ऐसी संस्थाओं को गैर-कानूनी विवाह कराने के कारण अपमानित और पुलिसिया कार्रवाई तक का सामना करना पड़ा है. आज अगर सच्चाई से कहा जाय तो महर्षि दयानंद के आदर्श केंद्र के रूप में विख्यात तमाम आर्य समाज मंदिर लूट-खसोट के केंद्र बन चुके हैं और इसकी सुध लेने वाला कोई नहीं है. निश्चित रूप से हर युग के विचार और व्यवहार पुराने से कुछ अलग होते हैं और उसे नयी चुनौतियों के हिसाब से परिभाषित करना पड़ता है. अगर हम इस पैमाने पर खरे नहीं उतारते हैं तो फिर इतिहास हमें जल्द ही भुला देता है. उम्मीद की जानी चाहिए कि कम से कम महर्षि दयानंद द्वारा स्थापित आर्य समाज के पुनरोद्धार पर इससे जुड़े लोग सात्विक विचारों से समाज के हित में कार्य करने को प्राथमिकता देंगे, क्योंकि इसी सद्कर्म से हम उन महान पुण्यात्मा को सच्ची श्रद्धांजलि दे सकते हैं.
Maharshi Dayanand Saraswati, arya samaj, biography, jeevni, sandesh, samaj, mithilesh new article, hindi,
Swamiji, satyarth prakash, hindu samaj, प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी, पीएम मोदी का उत्तराखंड दौरा, स्वामी दयानंद सरस्वती, ऋषिकेश, PM Narendra Modi, PM Modi's Uttarakhand Visit, Swami Dayananda Saraswati, Rishikesh
0 टिप्पणियाँ