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शहरी मध्यम वर्ग के अच्छे दिन - Real estate bill in parliament, hindi article, mithilesh ke lekh

हाल ही में जब बजट पेश हुआ था तब ईपीएफ पर केंद्र सरकार द्वारा टैक्स लगाने की घोषणा से मध्यम वर्ग में उदासी की लहर दौड़ गयी थी तो सरकार को इस पर रोल बैक लेना पड़ गया. इस ख़ुशी से शहरी मध्य वर्ग मुस्करा ही रहा था कि सरकार द्वारा रियल स्टेट बिल पास करवा लेने से उसकी मुस्कराहट निश्चित तौर पर खिलखिलाहट में बदल रही होगी. आखिर, यही मध्य वर्ग तो बिल्डर्स के चक्कर में सर्वाधिक परेशान होता था तो कई लोगों को लाखों रूपये का भारी नुक्सान तक झेलना पड़ जाता था. जाहिर तौर पर उनके लिए अच्छे दिन की बात तो है ही, क्योंकि ज़िन्दगी भर की कमाई लगा देने के बाद कोई व्यक्ति फ्लैट लेने की हिम्मत कर पाता है और जब उससे धोखाधड़ी हो जाती है या फिर उसे मानसिक संत्रास झेलना पड़ता है तो यह उसके लिए ताउम्र दुःख पहुंचाता है. कुछ दिन पहले की स्थिति पर गौर किया जाय तो, कांग्रेसनीत यूपीए गठबंधन के दौरान प्रॉपर्टी की कीमतों में इतना भारी उछाल हुआ था कि रातोंरात कई लोगों ने जबरदस्त रूप से धन इकठ्ठा किया तो कई जगहों से उतनी ही बड़ी मात्रा में धोखाधड़ी की खबरें भी आने लगीं. कहीं झूठे वादे तो कहीं तय पैसे से ज्यादे मांगने की खबरें मीडिया में हर दिन आने लगीं. इसका कारण भी कोई अजूबा नहीं था, क्योंकि सरकार द्वारा तब तक रियल स्टेट क्षेत्र को लेकर खरीददारों के हितों की रक्षा करने वाले समुचित कानून का अभाव था. कहना अतिश्योक्ति नहीं होगी कि बड़ी मात्रा में खरीददार बिल्डर्स की मनमानी का शिकार हुए तो मानसिक त्रासदी की बड़ी पीड़ा से भी उन्हें दो चार होना पड़ा. अब केंद्र की मोदी सरकार के कार्यकाल में जनहित का यह बड़ा कार्य संपन्न हो गया है. 

बिल्डरों की मनमानी पर लगाम कसने वाला रियल एस्टेट बिल राज्यसभा में भी पास हो गया है. गौरतलब है कि इसके लागू होने से देश में फ्लैटों की गुणवत्ता से लेकर तय वक्त पर घर देने के लिए रियल एस्टेट कंपनियां मजबूर होंगी, जिसका सीधा फायदा आम जन को मिलेगा. बिल पर नरेंद्र मोदी की सरकार को कांग्रेस का भी साथ मिला है, जिसे संसद को न चलने देने की अपनी रणनीति में बदलाव करना पड़ गया है. यह विधेयक 2013 से राज्यसभा में लंबित था. खैर, देर आयद, दुरुस्त आयद की तर्ज पर कांग्रेस द्वारा इस महत्वपूर्ण बिल का साथ दिए जाने का स्वागत करना चाहिए. इससे पहले ऊपरी सदन में केंद्रीय आवास एवं शहरी गरीबी उन्मूलन मंत्री वेंकैया नायडू ने बिल पेश किया, जिस पर आगे की कार्यवाहियां की गयीं. इस महत्वपूर्ण बिल में कहा गया है कि हर राज्य के रियल एस्टेट रेग्युलेटर नियुक्त किए जाएंगे, जो सभी प्रोजेक्ट्स की मॉनिटरिंग करेंगे और ग्राहक उनसे सीधे शिकायत कर पाएंगे. शिकायतों की सुनवाई भी रेग्युलेटर द्वारा की जाएगी. कहा जा रहा है कि इस बिल से रियल एस्टेट सेक्टर में पारदर्शिता बढ़ेगी, जिसका सीधा फायदा आम जनता को ही मिलेगा. इसके अतिरिक्त जो प्रावधान इस बिल में किये गए हैं, उसके अनुसार प्रोजेक्ट लॉन्च होते ही बिल्डर्स को प्रोजेक्ट से संबंध‍ित पूरी जानकारी अपनी वेबसाइट पर देनी होगी, तो इसमें प्रोजेक्ट के अप्रूवल्स के बारे में भी स्पष्ट रूप में बताना होगा. इसके साथ ही प्राजेक्ट में रोजाना होने वाले अपडेट के बारे में भी वेबसाइट पर सूचित करना जरूरी कर दिया गया है. इसी क्रम में बिल में जो प्रावधान किये गए हैं, उसके तहत 500 स्क्वायर मीटर एरिया या आठ फ्लैट वाले प्रोजेक्ट को भी रेग्युलेटरी अथॉरिटी के साथ रजिस्टर कराना होगा. गौरतलब है कि यह नियम पहले 1000 स्क्वायर मीटर वाले प्रोजेक्ट पर ही लागू होता था. 

जाहिर तौर पर अब बिना रजिस्ट्रेशन के कोई भी प्रोजेक्ट लॉन्च नहीं हो सकेगा और न ही बिल्डर उसका विज्ञापन निकाल सकेंगे. तमाम तरह के लुभावने विज्ञापन जारी करके ग्राहकों को फांसने की भेड़चाल पर भी रोक लगाने की कोशिश की गयी है, जिसके तहत भ्रामक विज्ञापन पर सजा का प्रावधान करने की सिफारिश की गई है. सरकार ने इस विधेयक के पारित होने से पहले राज्यसभा की प्रवर समिति द्वारा सुझाए गए 20 संशोधनों को भी स्वीकार किया है. विधेयक का लक्ष्य रियल एस्टेट उद्योग को नियमित करना और प्रमोटरों के घोटालों से संपत्ति खरीदारों के हितों की रक्षा करना है. जो दूसरी बातें इस विधेयक में शामिल की गयी हैं, उसके अनुसार बिल्‍डरों को तय समयसीमा में फ्लैट देना होगा तो प्लान में किसी भी बदलाव से पहले 2/3 खरीदारों की मंजूरी जरूरी कर दी गयी है. इसके अतिरिक्त एडवांस पैसे का 70% अलग अकाउंट में जमा करना अनिवार्य कर दिया गया है, जिससे फ्रॉड की संभावनाएं न्यून हो जाएँगी. एक अपुष्ट आंकड़े के अनुसार, रोजगार देने वाला खेती के बाद रियल इस्टेट देश का दूसरा सबसे बड़ा क्षेत्र है, मगर इसमें धोखा खाए शहरी मध्यम वर्ग की दुखभरी कहानियों के अनगिनत उदाहरण मौजूद हैं. जाहिर तौर पर बिल्डर्स की मनमानी अब उस ढंग से नहीं चल सकेगी और शहरी मध्यम वर्ग को इस बिल से सर्वाधिक राहत मिली होगी, क्योंकि उन्हें ही सर्वाधिक भुगतना पड़ता था अब तक! अगर इस कानून का क्रियान्वयन सख्ती से किया गया तो शहरी मध्य वर्ग के लिए इससे बड़ा और बेहतर दिन कोई दूसरा न होगा और वह ख़ुशी-ख़ुशी गाएंगे कि 'अच्छे दिन आ गए हैं'. मोदी सरकार का 2022 तक सभी को घर देने के वादे पर तो देश भर की उम्मीदें टिकी हुई हैं और अगर वह कार्यक्रम भी तय समय पर हुआ तो फिर 2019 कहीं नहीं गया है मोदीजी का!

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