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नवरात्री का शाब्दिक, सामाजिक भावार्थ - Hindi article on Navratri, Maa Durga, Social message, mithilesh ke lekh

भारतीय संस्कृति के तमाम पर्वों की यही खूबसूरती है कि वह धार्मिक कर्मकांडों के सहारे बड़ा सामाजिक सन्देश देते रहे हैं. आप कोई भी पर्व उठा लो, होली, दिवाली, रक्षाबंधन या फिर नवरात्री, आपको हर पर्व के पीछे मजबूत सामाजिक सन्देश नज़र आएगा. इसी क्रम में, नवरात्री की शुरुआत हो चुकी है, बहुत सारे लोग नवरात्री में 9 दिन व्रत -उपवास करते हैं तो विभिन्न उपायों के द्वारा माँ दुर्गा को प्रसन्न कर मनोवांछित फल की चाहत रखते हैं. यूं तो हिंदी के चैत्र और अंग्रेजी के अप्रैल महीने में नवरात्री के पर्व का सम्बन्ध भगवान राम के जन्म से जोड़ा जाता है, किन्तु इसके 9 व्रत के दिनों में भी माँ दुर्गा का ही पूजन मुख्यतः होता है. इस सम्बन्ध में तमाम पौराणिक कथाएं विद्यमान हैं तो वर्तमान में भी इसकी प्रसांगिकता यथावत बनी हुई है. माँ दुर्गा देवी पार्वती का ही दूसरा नाम है, जिनकी उत्पत्ति राक्षसों का नाश करने के लिये देवताओं की प्रार्थना पर देवी पार्वती की इच्छा से हुआ था. हिन्दुओं के शाक्त साम्प्रदाय में भगवती दुर्गा को ही दुनिया की पराशक्ति और सर्वोच्च स्थान दिया गया है. उपनिषदों में देवी "उमा हैमवती" (उमा, हिमालय की पुत्री) का वर्णन है तो पुराण में दुर्गा को आदिशक्ति माना गया है. युद्ध की देवी दुर्गा के स्वयं कई रूप हैं, जिनकी नवरात्रों के दौरान पूजा आराधना की जाती है. देवी का मुख्य रूप "गौरी" है, अर्थात शान्तमय, सुन्दर और गोरा रूप! इसी क्रम में, उनका सबसे भयानक रूप काली है, अर्थात काला रूप, जिसे देखने मात्र से ही भय की उत्पत्ति होती है, किन्तु यह भय उनके भक्तों के लिए नहीं बल्कि दुष्ट शक्तियों, अर्थात राक्षस रुपी शक्तियों के लिए है. थोड़ा और विस्तार से बात करें तो, भगवती दुर्गा पहले स्वरूप में 'शैलपुत्री' के नाम से जानी जाती हैं और ये ही नवदुर्गाओं में प्रथम मानी जाती हैं. पर्वतराज हिमालय के घर पुत्री रूप में जन्म लेने के कारण इनका नाम 'शैलपुत्री' पड़ा. इनका वाहन वृषभ है, इसलिए 'वृषारूढ़ा' भी इनके कई नामों में से एक है. इनके दाएं हाथ में त्रिशूल और बाएं हाथ में कमल सुशोभित है. माँ दुर्गा का यही रूप 'सती' के नाम से भी जाना जाता है. 

इसी क्रम में, नवरात्रि पर्व के दूसरे दिन मां ब्रह्मचारिणी की पूजा-अर्चना की जाती है. ब्रह्म का अर्थ है तपस्या और चारिणी यानी आचरण करने वाली. इस प्रकार ब्रह्मचारिणी का अर्थ हुआ तप का आचरण करने वाली. इन्होंने भगवान शंकर को पति रूप में पाने के लिए घोर तपस्या की थी, जिस कारण इन्हें ब्रह्मचारिणी नाम से जाना जाता है. मां दुर्गा की तीसरी शक्ति का नाम चंद्रघंटा है, जिनकी पूजा नवरात्रि में तीसरे दिन होती है. इनके मस्तक पर घंटे के आकार का आधा चंद्र है जिससे इनका यह नाम पड़ा. इनके दस हाथ हैं जिनमें वह अस्त्र-शस्त्र लिए हैं. हालांकि ऐसा माना जाता है कि देवी का यह रूप परम शांतिदायक और कल्याणकारी है. इसी तरह, नवरात्रि का पांचवां दिन स्कंदमाता की पूजा का दिन होता है. माँ दुर्गा के भक्त कहते हैं कि इनकी कृपा से मूर्ख भी ज्ञानी हो जाता है. स्कंद कुमार कार्तिकेय की माता होने के कारण इन्हें स्कंदमाता नाम से जाना जाता है और यह कमल के आसन पर विराजमान रहती हैं, इसीलिए इन्हें पद्मासना भी कहा जाता है. मां दुर्गा के छठे स्वरूप का नाम कात्यायनी है और इनकी उपासना से भक्तों को आसानी से अर्थ, धर्म, काम और मोक्ष की प्राप्ति संभव होती है. महर्षि कात्यायन ने पुत्री प्राप्ति की इच्छा से मां भगवती की कठिन तपस्या की. तब देवी ने उनके घर पुत्री के रूप में जन्म लिया, जिससे इनका यह नाम पड़ा. महाभारत काल में, भगवान कृष्ण को पति रूप में पाने के लिए ब्रज की गोपियों ने कालिंदी यमुना के तट पर इनकी पूजा की थी. माना जाता है कि तब से ही अच्छे पति की कामना से कुंवारी लड़कियां इनका व्रत रखती हैं. नवरात्री के इसी क्रम में, दुर्गापूजा के सातवें दिन मां कालरात्रि की उपासना का विधान है. कालरात्रि की पूजा करने से ब्रह्मांड की सारी सिद्धियों के दरवाजे खुल जाते हैं और सभी आसुरी शक्तियों का नाश होता है. देवी दुर्गा के इस नाम से ही पता चलता है कि इनका रूप भयानक है, जिनके तीन नेत्र और शरीर का रंग एकदम काला है. राक्षसी शक्तियां जहाँ इनसे भयभीत हो जाती हैं, वहीं इनकी कृपा से भक्त हर तरह के भय से मुक्त हो जाते हैं! नवरात्री के अंतिम दिनों में माँ दुर्गा के दो रूपों की महिमा का वर्णन भी कम रोचक एवं आध्यात्मिक नहीं है. इसी सन्दर्भ में, मां दुर्गा की आठवीं शक्ति का नाम महागौरी है, जिनकी आयु आठ साल की मानी गई है. इनके सभी आभूषण और वस्त्र सफेद होने की वजह से इन्हें श्वेताम्बरधरा भी कहा गया है. 

किवदंतियों के अनुसार, शिव को पति रूप में पाने के लिए महागौरी ने कठोर तपस्या की थी! इस कारण इनका शरीर काला पड़ गया, लेकिन तपस्या से प्रसन्न होकर भगवान शंकर ने इनके शरीर को गंगा जल से धोकर कांतिमय बना दिया, तब से मां महागौरी कहलाईं! इनकी उपासना से सभी पापों से मुक्ति मिलती है, ऐसी मान्यता हिन्दुओं में मान्य है. नवरात्रि पूजन के नौवें दिन देवी सिद्धिदात्री की उपासना की जाती है. इस दिन शास्त्रीय विधि-विधान और पूर्ण निष्ठा के साथ साधना करने वालों को सभी सिद्धियों की प्राप्ति हो जाती है. भगवान शिव ने भी सिद्धिदात्री की कृपा से ही ये सभी सिद्धियां प्राप्त की थीं. इनकी कृपा से ही महादेव का आधा शरीर देवी का हुआ था और वह अर्द्धनारीश्वर नाम से प्रसिद्ध हुए. इनकी साधना से सभी मनोकामनाएं की पूरी हो जाती हैं. देखा जाए तो नवरात्री का महत्त्व सामाजिक रूप से इन देवियों के पूजन से नारी शक्ति का अहसास कराता है तो भटके हुए पथिकों को इस बात का बोध भी होता है कि अगर इस संसार में नारी शक्ति नहीं तो कुछ भी नहीं! हालाँकि, हमारे समाज में भ्रूण हत्या, बलात्कार जैसे कुकृत्य से लेकर दहेज़ हत्या तक अनेक ऐसे प्रचलन हैं, जिनका ज़िक्र करते हुए भी न केवल व्यक्तिगत रूप में हमारा माथा शर्म से झुकता है, बल्कि सामाजिक रूप से भी हम कहीं मुंह दिखाने के काबिल नहीं रहते. इन बुराइयों पर खूब चर्चाएं हुई हैं तो कई आंदोलन भी चले हैं! कुछ सुधार जरूर हुआ है, किन्तु आज भी हम नारी सम्मान के लक्ष्य से कोसों दूर नज़र आते हैं. अगर देवियों के पूजन के बहाने ही सही, हमारा समाज कन्याओं की सृष्टि रचना में भूमिका स्वीकार करते हुए उन्हें सम्मान देता है, उनके अधिकारों की रक्षा करता है तो नवरात्री का बड़ा उद्देश्य हल हो जायेगा, अन्यथा तब तक यह उद्देश्य अधूरा ही रहेगा, इस बात में दो राय नहीं! इस बात से भी हमें सबक लेना होगा कि अगर नारी शक्ति माँ कालरात्रि की तरह हमारी आसुरी प्रवृत्ति से हम पर कुपित हो जाए तो क्या हम अन्धकार में नहीं चले जायेंगे? यही तो सोचना है हमें और यही हमारे धर्म और नवरात्री जैसे संस्कारों का मूल भी है!
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