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साधारण से असाधारण की ओर - New hindi article on swami vivekanand, indian youth and development, lifestyle of human, mithilesh2020

स्वामी विवेकानंद के विशेष गुणों में अगर एक गुण धर्म को लेकर चला जाय तो उनसे बड़ा सनातन धर्म का प्रचारक कोई दूसरा व्यक्ति नहीं दिखता. न केवल देश में, बल्कि विश्व के अनेक छोरों तक उन्होंने संतान धर्म की कीर्ति को नए आयाम दिए. यहाँ अगर इस उद्धरण को वर्तमान से जोड़ते हुए एक छोटा सा सवाल उठाया जाय कि एक ओर धर्म के नाम पर पूरी दुनिया में आतंक मचाये हुए इस्लामिक स्टेट के आतंकी हैं तो खुद भारत में भी हिन्दू और मुस्लिम समेत दुसरे लोग धर्म प्रचार के नाम पर आग उगलते रहते हैं! क्या ये लोग वाकई, स्वामी विवेकानंद के धर्म प्रचार के पासंगा भी हैं? आज के समय में धर्म-प्रचार और विनम्रता को एक-दुसरे का शत्रु घोषित कर चुकने वाले तथाकथित 'धर्मात्मा' क्या अंग्रेजी के पोलाइटनेस की भी मीनिंग समझने की कोशिश करते हैं? यूं तो देश में हज़ारों महापुरुष हुए हैं और होंगे भी, किन्तु स्वामी विवेकानंद का जो प्रेरणादायी स्थान सबके हृदय में है, वह किसी और को शायद ही प्राप्त हो. जिनके व्यक्तित्व का लोहा न केवल हर वर्ग में समान रूप से है, बल्कि भारतीय जनमानस के मन मस्तिष्क से होते हुए व्यवहारिक धरातल पर उनके सूत्र वाक्य समयातीत हैं. वस्तुतः स्वामीजी का व्यक्तित्व कोई चमत्कार नहीं है, बल्कि वह किसी साधारण व्यक्ति की उलझन भरी मानसिकता से सुलझे हुए योगी की यात्रा की तरह है. वह कोई, अविश्वसनीय शक्ति लेकर पैदा नहीं हुए थे, बल्कि हम आप ही की तरह उस परमात्मा की दी शक्ति से ही उन्होंने न केवल अपना जीवन सफल किया बल्कि दूसरों का जीवन सफल करने की असीम प्रेरणा देने वाले बन गए. सबसे बड़ी बात जो उनके जीवन काल से हम सबको सीखनी चाहिए, वह है प्रश्न खोजने, समझने और पूछने का उत्साह! जीवन के उलझे प्रश्नों के उत्तर आप न केवल बाहर खोजें, बल्कि उससे पहले खुद से मुठभेड़ करें और ढूढ़ें उसे, और तब तक न रूकें, जब तक उसका उत्तर न मिल जाए. आम आदमी की तरह स्वामी विवेकानंद के मन में भी कई प्रश्न उठते थे, जिसके बाद वह काफी परेशान हो जाते थे. कई तथाकथित ज्ञानियों से जब उन्हें संतुष्टि नहीं मिली तब उनकी परेशानी उन्हें रामकृष्ण परमहंस के पास खींच कर ले गयी, और स्वाभाविक रूप से उनके मन में क्या चल रहा है वह प्रश्न पूछने को कहा? 

कहा जाता है कि विवेकानंदजी ने उनसे आठ ऐसे प्रश्न पूछे जो दुनियाभर के हर व्यक्ति से जुड़े हुए थे, जिनका उत्तर रामकृष्ण परमहंस ने बड़े ही शांत मन से उत्तर दिया. इसके बाद की कहानी इतिहास है, क्योंकि उन प्रश्नों का उत्तर सुनने के बाद विवेकानंदजी के जीवन की दिशा ही बदल गई, जिसने बाद में भारत को भी आत्म गौरव से भर दिया. उन प्रश्नों में जीवन में समय न निकल पाना, जीवन का जटिल हो जाना, इंसान का हमेशा दुखी रहना, खासकर अच्छे लोगों का एवं दुःख से प्राप्त अनुभव का उपयोगी या अनुपयोगी होना, जीवन की जटिलता में उत्साही बने रहने का मन्त्र, जीवन से जुड़ा सबसे बड़ा चमत्कार, मानव जीवन में सर्वोत्तम बनने का मन्त्र और जीवन में प्रार्थना का महत्त्व. जाहिर है, ऐसे प्रश्नों से अधिकांश लोग जीवन के किसी न किसी मोड़ पर टकराते अवश्य हैं और चूँकि इसका जवाब न वह ढूंढने की कोशिश करते हैं या फिर थोड़ी बहुत कोशिश से हार मान जाते हैं. आज के परिप्रेक्ष्य में भी यह प्रश्न बेहद वाजिब हैं, इसलिए स्वामी रामकृष्ण द्वारा दिए गए उत्तरों पर एक दृष्टि डालना लाजमी रहेगा. उपरोक्त प्रश्नों का क्रमशः उत्तर देते हुए रामकृष्ण परमहंस ने स्वामी विवेकानंद को संतुष्ट कर दिया था. जो उत्तर इतिहास में दर्ज हैं, उनके अनुसार, जब आप सिर्फ गतिविधियों में ही लगे रहते हो तो समय नहीं निकल पाटा, जबकि उत्पादकता आपको निश्चित रूप से समय प्रदान करती है. इसी तरह, जीवन के रोज-रोज विश्लेषण से यह जटिल बन जाता है, जबकि स्वाभाविक कर्म करते हुए आनंदमय बनता है और जटिलता प्रायः दूर होती है और यही लोगों के दुखी रहने का बड़ा कारण भी है. वहीं रामकृष्ण परमहंस ने अच्छे लोगों के दुःख प्राप्त करने को सोने को तपाने की कृपया से जोड़ते हुए कहा था कि अच्छे की परख लोग करते ही हैं, तभी उसकी शुद्धता या अशुद्धता का भान होता है! इस स्थिति को दुःख मानने की बजाय परीक्षा ही मानना चाहिए. जीवन का उत्साह बनाये रखने के लिए जो हासिल हुआ है, उस पर गौरव करना चाहिए तो आगे के लिए प्रयास बनाये रखना भी आवश्यक है. यह एक बड़ा आश्चर्य है कि लोगों को जब दुःख या कठिनाई पेश आती है तो वह तमाम विश्लेषण और किन्तु, परन्तु का प्रयोग करने लगते हैं, जबकि सुख और ख़ुशी के क्षणों के कारणों को भूल जाते हैं. हमें इस स्थिति में भी ईश्वर का धन्यवाद करना आवश्यक है. इस कड़ी में जो सबसे महत्वपूर्ण उत्तर स्वामी विवेकानंद को मिला वह था जीवन में सर्वोत्तम बनने का मन्त्र. इसके लिए स्वामी रामकृष्ण ने अतीत पर अफ़सोस करने से मना किया, वर्तमान का पूर्ण उत्साह से सामना करने का उपदेश दिया तो भविष्य का बिना किसी भय के तैयारी करने का मगर प्रशस्त किया. जाहिर है, स्वामी जी के बाद के हम तमाम योगदानों और उनके प्रभावों का अध्ययन करने के साथ, अगर उनके जीवन के इन बदलावों के केंद्र को भी समझें तो न केवल हमारे जीवन में भटकाव दूर होगा, बल्कि उसमें क्रांति भी निश्चित ही आएगी. शायद इसीलिए, भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने भी स्वामी विवेकानंद के जीवन प्रसंग का ज़िक्र करते हुए रायपुर में जारी 20वें राष्ट्रीय युवा महोत्सव में कहा है कि विश्व भारत की ओर उम्मीदों से देख रहा है . अगर एक दूसरे की परंपराओं और विचारों के प्रति हमारे पास एकता, सद्भाव, सम्मान नहीं है तो भारत के विकास के रास्ते में बाधा अाएगी. स्वामीजी को याद करते हुए पीएम ने साफ़ किया कि वेदान्त के विख्यात और प्रभावशाली आध्यात्मिक गुरु स्वामी विवेकानंद युवाओं के प्रेरणाश्रोत हैं. भारतवासियों के जीवन में बदलाव की ओर संकेत करते हुए नरेंद्र मोदी ने यह भी कहा कि विकास गरीबों के जीवन में एक सकारात्मक बदलाव लाने का तरीका है और इसके लिए हमें कौशल विकास पर ध्यान केंद्रित करना चाहिए. जाहिर है, इन तमाम उम्मीदों पर देश के युवा खरे उतर सकते हैं और इसके लिए उन्हें जरूरत है स्वामीजी के आदर्शों पर चर्चा करने की, उसे अपनाने की. यह एक बेहतर तरीका है साधारण से असाधारण बनने की यात्रा को समझने का!

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