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यूरोपियन युनियन में शामिल रहने के बावजूद पिछली साल 'ग्रीस' जैसा देश दिवालिया हो गया. आप कह सकते हैं कि इसमें उसी देश की गलत नीतियां जिम्मेदार थीं, बला, बला...! पर यहाँ सवाल तो उठता ही है कि अगर वाकई यूरोपियन युनियन की नीतियां इतनी ही फायदेमंद हैं तो फिर ऐसी नौबत क्योंकर आयी? अर्थशास्त्री और भी कई फायदे गिन देंगे 'ईयू' के, पर क्या वाकई यह संगठन उतना ही लाभकारी है, जितना कहा जा रहा है. ब्रिटेन जैसा देश अब जबकि इससे अलग होने की राह पर बढ़ चला है तो इस संगठन की महत्ता पर भी कुछ सवाल तो खड़े होंगे ही! कई रिपोर्ट्स में ब्रिटेन की ईयू से अलग होने (ब्रेक्सिट) को विश्व युद्ध की बाद की सबसे बड़ी घटना बताया गया तो कई में ब्रिटेन की इकॉनमी के बर्बाद होने की बात कही गयी. ऐसी ही कई अतिवादी रिपोर्ट्स में ब्रेक्सिट से वैश्विक इकॉनमी की साथ-साथ भारत की इकॉनमी पर भी बड़ा असर पड़ने की बात कही गयी, पर सच तो यह है कि इसे काफी बढ़ा-चढ़ाकर पेश किया गया. ऐतिहासिक जनमत संग्रह में 'लीव और रीमेन' के बीच ‘कांटे की टक्कर’ के बाद भी ब्रिटेन यूरोपीय संघ (ईयू) से अलग हो गया है. ब्रिटेन सहित कुल 28 यूरोपियन देश इस यूनियन (Brexit and European Union) की सदस्य हैं, जिसे यूरोपियन यूनियन के नाम से जाना जाता हैं. हालाँकि अब इसमें से ब्रिटेन की बाहर होने की बाद सदस्य देशों की संख्या 27 ही बचेगी. इस यूनियन के सदस्य देश आपस में व्यापार कर सकते हैं, तो इस 50 करोड़ से ज्यादा आबादी वाले यूनियन की करेंसी भी एक ही है, जिसे 'यूरो' की नाम से जाना जाता है. हालाँकि, ईयू की और भी कई फायदे थे, जिसमें एक वीज़ा पर पूरे ईयू में प्रवेश तो था ही, साथ ही साथ इस संघ के सभी देश आपस में मिलकर साझा कारोबार का फ़ायदा उठाते थे. सबसे मुश्किल बात आयी ईयू की उदार प्रवासी नीतियों की वजह से, जिससे अन्य देशों सहित ब्रिटेन में लगातार प्रवासियों की संख्या बढ़ रही है.
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जनसँख्या का असंतुलन इसमें एक बड़ा कारक तो था ही, इसके कारण से धार्मिक-कट्टरता का बढ़ना भी प्रशासकों को चिंतित कर गया था. ऊपर से तो यही मुख्य कारण बताया जा रहा है, जिससे ब्रिटेन यूरोपियन यूनियन से अलग होना चाहता है, पर इकॉनमी के लेवल पर भी ब्रिटेन ईयू से असल में क्या फायदा उठा रहा था, यह शोध करने जैसा विषय है. ब्रिटेन के यूरोपियन यूनियन से अलग होना ही 'ब्रेक्सिट' की नाम से चर्चित होने वाला शब्द सामने आया है. ज्ञातव्य हो कि ईयू से अलग होने पर ब्रिटेन दो पक्षों में बंट सा गया था. एक पक्ष का मानना था कि ब्रिटेन को ईयू से अलग नहीं होना चाहिए क्योंकि इसका बहुत बड़ा असर ब्रिटेन की अर्थव्यवस्था पर होगा, वहीं वही दूसरे पक्ष का कहना था कि ब्रिटेन को यूरोपियन संघ (Brexit and European Union) से अलग हो जाना चाहिए. यदि ब्रिटेन के प्रधानमंत्री डेविड कैमरन की बात करें तो अर्थव्यवस्था को ध्यान में रखते हुए वह ईयू से अलग नहीं होना चाहते थे, जिसके लिए उन्होंने जनमत संग्रह पर जोर दिया. इसके लिए डेविड कैमरन एक कैम्पैन भी चला रहे थे. हालाँकि, परिणाम आया ईयू से अलग होने का. इस मामले में सबसे दिलचस्प टिपण्णी आयी है अमेरिका में राष्ट्रपति पद की दौड़ में शामिल डोनाल्ड ट्रंप की, जिसके अनुसार ब्रिटेन का ईयू से बाहर होना एक बेहतर कदम है. खैर, इस मतदान में एक अनुमान के मुताबिक, 4 करोड़ 60 लाख से ज्यादा लोगों ने भाग लिया. इनमें करीब 12 लाख भारतीय मूल के थे. इसमें ब्रिटेन के ईयू का हिस्सा नहीं रहने के पक्ष में 51.9 फीसदी (17,410,742) लोगों ने वोट किया, जबकि संघ का हिस्सा बने रहने के पक्ष में 48.1 फीसदी (16,141,241) वोट ही मिल पाया! ब्रिटेन ने इस जनमत संग्रह के जरिये 23 वर्षों बाद ईयू की सदस्यता से हटने के पक्ष में मतदान का परिणाम रहा है जिसका सीधा असर ब्रिटेन के साथ साथ यूरोपियन Hयूनियन पर होने की सम्भावना व्यक्त की जा रही है, जिससे यूनाइटेड किंगडम की ट्रेडिंग कॉस्ट बढ़ जाएगी. इससे यूरोपियन सप्लाई चेन में यूके की पुरानी हैसियत भी बदल जाएगी. इसके साथ-साथ युनाइटेड किंगडम में प्रवास को लेकर नियम कठोर हो जायंगे, जो प्रवासियों के लिए एक नए संकट की तरह होगा.
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विशेषज्ञों के अनुसार, एफडीआई के लिए यूरोप के गेटवे के रूप में इसकी चमक फीकी हो सकती हैं, क्योकि ईयू की एफडीआई का बहुत बड़ा हिस्सा यूनाइटेड किंगडम को मिलता है. हालाँकि, ब्रिटेन इन स्थितियों को मैनेज कर सकता है, क्योंकि जिसे लंडन में अपना बिजनेस सेटल करना होगा, वह ईयू का मोहताज नहीं रहेगा. हालाँकि, अच्छे टैक्स बेनिफिट और बिजनेस का माहौल देकर यूके खुद की जबरदस्त मार्केटिंग कर सकता है और अब उसकी मार्केटिंग का फायदा सिर्फ उसे ही मिलेगा. हालाँकि, सबसे बड़ी समस्या वर्कर्स की आपूर्ति को लेकर है, जो कुछ देशो में दिक्कत पैदा कर सकती है तो प्रवास के कठोर नियम के कारण कर्मचारियों को ब्रिटेन में काम करने में परेशानी का सामना करना पड़ सकता है. यह भी बिडम्बना ही है कि यूरोपियन यूनियन का कॉरपोरेट हाउस यूके में है, जिसको पुनर्स्थापितB करने में बहुत सारा पैसा खर्च होगा. ब्रेक्सिट भारतीय अर्थव्यवस्था के लिए भी चिंताजनक बताया जा रहा है, क्योंकि ब्रिटेन में 800 भारतीय कंपनियां हैं जो ज्यादातर यहां रहकर ओपन यूरोपियन मार्केट में बिजनेस करती हैं. इससे ब्रिटेन में 1.1 लाख लोगों को रोजगार मिला हैं. अब जबकि यूके ईयू (Brexit and European Union) से बाहर हो चुका है, इस स्थिति में इन भारतीय कंपनियो के बिज़नेस पर असर तो पड़ेगा ही! हालाँकि, भारतीय कंपनियां और अर्थव्यवस्था बेहद मजबूत हालत में है और खुद आरबीआई गवर्नर रघुराम राजन ने कहा है कि 'ब्रेक्सिट' को लेकर हव्वा न खड़ा किया जाए! यूके का तीसरा बड़ा फॉरेन डायरेक्ट इन्वेस्टर भारत है, ब्रेक्सिट के बाद भारतीय कंपनियां यहां से अपना कैपिटल निकाल सकती हैं तो ब्रिटेन में प्रोफेशनल्स की भी कमी होने की सुगबुगाहट है. हालाँकि, यह सारी स्थितियां ब्रिटेन मैनेज कर सकता है, इस बात में दो राय नहीं! ब्रिटेन की सबसे बड़ी चिंता पाउंड करेंसी में गिरावट को लेकर है, क्योंकि पाउंड 31 साल के सबसे निचले स्तर पर आ चुका है. इससे डॉलर में वृद्धि होना निश्चित है. डॉलर का मूल्य बढ़ने से आयात अपने आप महंगा हो जायेगा, जिसकी वजह से कच्चे तेल की कीमतों में वृद्धि होगी और भारत में पेट्रोल-डीज़ल का दाम फिर बढेगा.
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भारतीय वाणिज्य मंत्रालय के रिपोर्ट के अनुसार 2015-16 में ब्रिटेन के साथ भारत का द्विपक्षीय व्यापार 14.02 अरब डॉलर यानी 945 अरब रुपये रहा हैं, जिसमें 5.19 अरब डॉलर का आयात और 8.83 अरब डॉलर का निर्यात हुआ था. भारत को इस कारोबार में 3.64 अरब डॉलर का फायदा हुआ. विशेषज्ञों की मानें तो ब्रिटेन के ईयू से अलग होने से उसके आयात में 25 प्रतिशत की कमी आ सकती है. हालाँकि, आने वाले दिनों में ब्रिटेन इन झंझावतों से उबरने की भी कोशिश जरूर करेगा. कहीं-कहीं से यह खबर भी आ रही है कि स्कॉटलैंड ईयू से अलग होने के फैसले को 'वीटो' कर सकता है. देखा जाए तो साल 2008 में पूरे विश्व के साथ ग्रेट ब्रिटेन को भी अर्थव्यवस्था में मंदी का समना करना पड़ा था, जो देश में बेरोजगारी बढ़ने का कारण बना. इसी पॉइंट से एक बहस की शुरुआत हुई कि क्या ब्रिटेन को यूरोपियन यूनियन (Brexit and European Union) से अलग हो जाना चाहिए? इस मांग को 2015 में ब्रिटेन में हुए आम चुनावों में यूनाइटेड किंगडम इंडिपेंडेंस पार्टी (यूकेआईपी) ने उठाया कि "देश की सारी दिक्कतें दूर करने के लिए ब्रिटेन को यूरोपियन यूनियन से अलग होना होगा". एक चुनावी वादा किस प्रकार से उथल-पुथल पैदा कर सकता है, यह ब्रिटेन को बखूबी समझ आ रहा होगा, किन्तु निश्चित रूप से यह समय खुद 'यूरोपियन युनियन' के भी विचार करने का है कि कहीं यह उसकी प्रसांगिकता ख़त्म होने की शुरुआत तो नहीं? जाहिर है, जब तक चेन के सभी हिस्से आपस में जुड़े रहते हैं तब तक तो कोई दिक्कत नहीं आती है, किन्तु जैसे ही एक 'हिस्सा' अलग होने की कोशिश करता है, पूरी चेन के अस्तित्व पर संकट के बादल मंडराने लगते हैं. ब्रिटेन को तो जो नुक्सान होगा, वह होगा ही, किन्तु असल मसला खुद 'यूरोपियन युनियन' का भी है, जिसे समझने के लिए इसके अन्य सदस्य देशों को संजीदगी से कार्य करना पड़ेगा!
- मिथिलेश कुमार सिंह, नई दिल्ली.
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