वैसे तो हमारे देश कई प्रकार के खेल खेले जाते हैं, लेकिन जो जूनून क्रिकेट के लिए है शायद ही किसी और खेल के प्रति है. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की 18वीं मन की बात कार्यक्रम की शुरुआत भी खेलों पर ही आधारित थी. इस क्रम में, पीएम ने पहले टी20 विश्वकप में भारत के जीत के सिलसिले को याद किया और चर्चा को आगे बढ़ाते हुए फुटबॉल के बारे में भी काफी अहम बातें कही, जो फुटबॉल प्रेमियों को निश्चित रूप से पसंद भी आयी होंगी, साथ ही साथ उनको एक बेहतर प्रेरणा भी मिली होगी. पीएम ने कहा कि ये वक्त देश में खेलों में एक नई क्रांति के दौर का है, जिसमें क्रिकेट की तरह अब फुटबॉल, हॉकी, टेनिस और कबड्डी का एक शानदार मूड बनता जा रहा है. अपनी मन की बात में पीएम ने चर्चा के दौरान फुटबॉल पर खासा जोर दिया और भारत की फुटबॉल टीम की रैंकिंग के बारे में निराशा भी जाहिर की. उन्होंने यहाँ तक कह डाला कि भारत की फीफा फुटबॉल रैंकिंग इतनी खराब है कि इस बारे में बात नहीं करना ही ठीक है, लेकिन पीएम यह जरूर चाहते हैं कि सवा अरब से अधिक की आबादी वाले इस देश में फुटबॉल को लेकर एक नई ऊर्जा तैयार हो. इसी कड़ी में नरेंद्र मोदी ने कहा कि इन दिनों भारत में युवाओं की फुटबॉल में रुचि बढ़ रही है, हालाँकि इसमें और भी रफ़्तार जरूरी है. जाहिर है कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी पूरे विश्व के सर्वाधिक लोकप्रिय खेल के बारे में अपने देश का सही प्रतिनिधित्व न होने से निराश हैं, लेकिन इसे लेकर वह न केवल युवाओं में प्रेरणा भरना चाहते हैं, बल्कि अपने सरकार की खेलों के प्रति सजग रुचि भी जाहिर करना चाहते हैं.
जनता में लोकप्रिय प्रधानमंत्री इस बात को बखूबी जानते हैं कि हमारे देश में खेलों का माहौल किसी 'धार्मिक माहौल' से कम नहीं होता है. चूंकि क्रिकेट पूरे विश्व के 12 से 15 देशों में ही खेला जाता है, जबकि फुटबाल की उपस्थिति कई गुना है. जाहिर तौर पर अगर भारत फुटबाल में अपनी अहमियत साबित करता है तो इसकी वैश्विक साख को जबरदस्त सपोर्ट मिलेगा. खिलाडियों के रूप में देश के युवाओं की पहुँच भी विश्व के प्रत्येक कोने में होगी! कहना अतिश्योक्ति नहीं है कि ओलम्पिक खेलों के बाद या फिर उसके ही समकक्ष फुटबाल अकेले लोकप्रिय है. प्रधानमंत्री का वह भाषण तो सबको याद ही होगा, जब उन्होंने यूपीए गवर्नमेंट को कॉमनवेल्थ गेमों की ठीक तरह से ब्रांडिंग न कर पाने के लिए आड़े हाथों लिया था. अब वह यह गलती अपने कार्यकाल में दुहराना नहीं चाहते हैं. शायद इसलिए भी हमारे तेज तर्रार प्रधानमंत्री अभी से फुटबाल को लेकर हर ओर शानदार माहौल बनना देखना चाहते हैं. ठीक ही तो है, आखिर ओलम्पिक से लेकर दुसरे खेलों की मेजबानी करने के लिए अनेक देश जी-जान से जुट जाते हैं, क्योंकि इससे उस देश की अर्थव्यवस्था को तेज गति मिलती है तो विश्व स्तर पर देश की छवि निर्माण को भी बड़ी सम्भावना का रास्ता दिखता है. इस बात में कोई शक नहीं है कि अगर भारत फुटबाल सहित अन्य लोकप्रिय खेलों की मेजबानी सही से करने का भरोसा पूरे विश्व को समय रहते दिला पाता है, मीडिया में सकारात्मक कवरेज हो पाती है, इंटरनेट और ब्लॉग की दुनिया में इस बारे में उत्साहजनक लेख और पोस्ट्स लिखी जाती हैं तो पूरी दुनिया से लोग हमारे देश में आने को उत्सुक होंगे. जाहिर है, यह तबका धनाढ्य होता है. ऐसे में होटलों से लेकर दूसरी जगहों पर डायरेक्ट आमदनी तो होगी ही, साथ ही साथ निवेश के द्वार भी खुलेंगे! जाहिर है, जो व्यक्ति किसी देश में खेल देखने जाता है, वह केवल खेल ही नहीं देखता, बल्कि दूसरी तमाम संभावनाओं को टटोलता है. शायद इसलिए भी पीएम ने कहा कि अगले वर्ष 2017 में भारत FIFA अंडर सेवेनटीन विश्व कप की मेजबानी करने जा रहा है, तो इसे लेकर यह पूरा वर्ष एक फुटबॉल का माहौल बना देना चाहिए. हम सब की कोशिश होनी चाहिये कि हम फुटबॉल को गांव-गांव, गली-गली कैसे पहुंचाएं. उन्होंने इच्छा भी जताई कि देश का हर नौजवान फीफा 2017 अंडर सेवेनटीन विश्व कप का ऐम्बैसडर बने. ठीक ही तो है, अगर देश के नौजवानों में उत्साह पैदा होगा तभी वह वैश्विक स्तर पर उभर रही संभावनाओं का दोहन करने की सोच विकसित कर सकते हैं. यह भी समझना महत्वपूर्ण है कि भारत में पिछले कई सालों से क्रिकेट के खेल का जबरदस्त बोलबाला रहा है. क्रिकेट की लोकप्रियता का अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि पाकिस्तान के खिलाफ होने वाले क्रिकेट मैच देशभक्ति के प्रतीक हो जाते हैं और हाल ही में भारत पाक मैच पर हुई राजनीति इसकी एक बानगी भर है. क्रिकेट खिलाड़ी ग्लैमरस लाइफस्टाइल जीते हैं, एक दो मैच खेलने वाले खिलाडी को भी लगभग सभी लोग राष्ट्रीय स्तर पर पहचानने लगते हैं और वह हर मैच अच्छी खासी कमाई भी कर लेते हैं. वहीं दूसरे खेलों के खिलाडियों की पूरी उम्र बीत जाने के बाद भी उनकी पहचान अपनी गली मोहल्ले तक ही सीमित रहती है, जिससे अन्य खेलों में रूचि रखने वाले खिलाड़ियों की हताशा का अंदाजा सहज ही लगाया जा सकता है. हमारे प्रधानमंत्री इस फुटबॉल कप का उपयोग इन हताश निराश खिलाडियों में जोश भरने के लिए अगर कर रहे हैं तो इसकी निश्चित रूप से तारीफ़ की जानी चाहिए. थोड़ा पीछे देखा जाय तो भारत में फुटबॉल को लोकप्रिय बनाए रखने की कवायद 2013 में शुरू हो गई थी. आईपीएल की तर्ज पर ही इंडियन सुपर लीग की शुरूआत हो चुकी है और बॉलीवुड के कई बड़े सितारों ने आईएसएल में टीमें खरीदकर भारत में फुटबॉल को ग्लैमर प्रदान करने की कोशिश की है. हालाँकि, अभी इसे एक लम्बा सफर तय करना बाकी है.
अगर इस तरह के प्रयासों के साथ राष्ट्रीय अस्मिता का प्रश्न भी जुड़ जाए तो फिर बात बन जाए. जाहिर है, क्रिकेट की टीम को 'टीम इंडिया' का दर्जा मिल गया है और आम भारतीय इससे सीधा जुड़ाव महसूस करते हैं. ठीक ऐसे ही सम्मान का अधिकार दुसरे खेलों को भी है. इसी क्रम में, प्रो कबड्डी जैसे प्रीमियर लीग आयोजित कर कबड्डी के प्रति भी लोगों के मन में उत्साह पैदा करने की कोशिश जरूर हुई है, किन्तु इसका दायरा व्यापक किया जाना अभी शेष है! 2017 फीफा अंडर – 17 विश्वकप एक ऐसा ही अवसर है. इस मेजबानी का एक फायदा यह भी है कि हमारे यहां खेलों का बड़ा इंफ्रास्ट्रक्चर तैयार होगा, खेल के लिए जो आवश्यक सुविधाएं हैं उस पर ध्यान जाएगा तो नौजवान को फुटबॉल के साथ जोड़ने का अच्छा अवसर भी मिल सकता है. चरों तरफ फुटबॉल का माहौल बने, गली -मोहल्ला, स्कूल-कॉलेज हर जगह फुटबॉल का माहौल सुधरे तब शायद शायद इस देश में अन्य खेलों के लिए थोड़ा स्थान और सम्मान जरूर निर्मित होगा और हमारे प्रधानमंत्री का सपना भी पूरा होगा. क्रिकेट और फुटबाल में एक बड़ा अंतर जो समझ आता है वह समय की खपत को लेकर भी है. जब देश में क्रिकेट मैच होता है तो अनेक दफ्तर और दूसरी जगहों पर कार्य ठप्प हो जाता है, जबकि फुटबाल इत्यादि दुसरे खेल अपेक्षाकृत कम समय लेते हैं तो इसमें वैश्विक ग्लैमर भी कहीं ज्यादा है. जाहिर है, कई फैक्टर हैं, जिसको पूरा करने पर हमारा ध्यान होना चाहिए और आने वाले समय में अंडर 17 का फुटबाल विश्व कप इसके लिए एक शानदार और जानदार मौका है और भारतीय जनता तो इस बात को जानती ही है कि 'मौके पर चौका' मारने में हमारे सक्रीय प्रधानमंत्री बहुत आगे हैं. उम्मीद की जानी चाहिए कि समूचे देश को इस बड़े अंतरराष्ट्रीय आयोजन से लाभ मिलेगा तो फुटबाल खिलाडियों को मिलेगा उनके जीवन का लक्ष्य!
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