पहले इस आदमी 'ज़ाकिर नाईक' का सिर्फ नाम सुना था, किन्तु इसका भाषण देखने की न तो दिलचस्पी थी और न ही कभी देखा, किन्तु बांग्लादेश की राजधानी ढ़ाका हमले के आतंकियों के साथ जब ज़ाकिर का नाम और मुख्य चैनलों पर आ रही उसकी वीडियो-क्लिप देखा तब यकीन हो गया कि भारत में ज़हर की खेती करना और उसका लगातार प्रचार करना कितना आसान है, आज भी! 21वीं सदी में भी ज़हर का प्रचार हो रहा है और उससे भी आश्चर्य की बात तो यह है कि लोग ज़ाकिर नाईक जैसे लोगों द्वारा फैलाए गए ज़हर को बड़ी दिलचस्पी से पी भी रहे हैं. वैसे भी, आजकल फेमस होने का फंडा बहुत ही आसान हो गया है, किसी भी दूसरे धर्म के बारे में कुछ भी उल्टा-सीधा बोल दो आप रातों-रात सेलब्रिटी बन जाओगे. हालाँकि, मोदी सरकार के सत्ता में आने के बाद कुछ हिंदूवादी नेताओं ने भी अपनी जुबान चलायी थी, किन्तु उसी मुद्दे पर असहिष्णुता-सहिष्णुता और पुरस्कार-वापसी का इतना लम्बा अभियान चला कि उन सबको अपनी जुबान लगभग बंद ही करनी पड़ी, पर अफ़सोस यह है कि सारी सहिष्णुता और असहिष्णुता से मुस्लिम-प्रचारकों (Zakir naik, Terrorism, Islam) को मुक्त कर दिया जाता है. क्या आपने अब तक सुना है कि 'ज़ाकिर नाईक' के ज़हर बुझे अनर्गल प्रलापों पर किसी बुद्धिजीवी ने चूं तक कसी हो! अपने आप को डॉक्टर बताने वाले नाईक का कहना है कि उसने कुरान के साथ ही सभी धर्मों की धार्मिक किताबों को पढ़ रखा है और अपने इसी अधकचरे दिमाग के आधार पर वो दूसरे धर्मों के देवी-देवताओं को ले कर बेहूदा कुतर्क गढ़ता रहता है. एक यूपी का हिन्दू महासभाई नेता कमलेश तिवारी कुछ इस्लाम के बारे में कह देता है तो सारे मुसलमान उसके पीछे पड़ जाते हैं और सरकार उस पर 'रासुका' लगा देती है और ये बददिमाग न सिर्फ भारत में बल्कि विश्व के कई देशों में घूम-घूम कर अपना ज़हर उगलता जा रहा है.
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इसके हिसाब से इस्लाम को छोड़ कर सारे धर्म बेकार हैं, और जो इस्लाम को नहीं मानता उसे मार देना चाहिए, वह मरेगा तो उसे जन्नत नसीब नहीं होगी, बला-बला! कई मुसलमान और दुसरे धर्मगुरु भी ज़ाकिर जैसों का विरोध करते हैं और उसकी संस्था पर प्रतिबन्ध लगाने की मांग करते हैं, किन्तु यह बिडम्बना ही है कि अपनी इसी कट्टरता की वजह से ये काफी मशहूर बन चुका है. सरकार भी इस पर हाथ डालने से पहले जांच की बात कह रही है, जबकि इसके ज़हर भरे विचारों से मुस्लिम युवा प्रभावित होकर लगातार आतंक की राह पर बढ़ते चले जा रहे हैं, जिसके कई वाकये सामने आ चुके हैं. इस्लामिक रिसर्च फाउंडेशन चलाते हुए, पूरी दुनिया में घूम-घूम कर कुरान और इस्लाम पर लेक्चर देने वाले इस सख्श को मिलने वाली भारी-भरकम फंडिंग की जांच कड़ाई से की जानी चाहिए, जिसकी मांग खुद कई मुसलमान (Zakir naik, Terrorism, Islam) कर चुके हैं, किन्तु सरकार जाने किस बात का इंतजार कर रही है. कहा तो यह भी जा रहा है कि ये सुन्नी समुदाय के लिए किसी सुपरस्टार से कम नहीं है और सुपरस्टार जब कट्टरपंथ से प्रभावित हो तो उसके फैन भी उसी कुएं में तो कूदेंगे, जिसमें इस्लामिक-स्टेट और अल-क़ायदा के आतंकी कूदते हैं. यह समझना बेहद कठिन और अवैज्ञानिक है कि विश्व भर में मासूमों की जान लेने वाले आतंकवादियों को शहादत कैसे मान लेते हैं मुस्लिम भाई? कैसे ज़ाकिर जैसे कट्टरपंथियों और आतंक के प्रेरणा-सूत्रों को वह अपना मान बैठते हैं? क्या वाकई इस राह पर उन्हें ऊपरवाले की मेहरबानी नसीब होगी, उन्हें जन्नत मिल जाएगी?
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भारत जैसे देश में इस तरह की विचारधारा का खुला प्रचार अपने आप में बेहद घातक है, जिस पर वगैर किन्तु-परन्तु के तुरंत रोक लगनी चाहिए. जाकिर के कट्टर विचारों को फ़ैलाने का काम उसके "इस्लामिक रिसर्च फाउंडेशन" के द्वारा संचालित टीवी चैनल 'पीस टीवी' के द्वारा किया जाता है. इसका प्रसारण लगभग100 से ज्यादा देशों में होता है और आश्चर्य देखिये कि इस टीवी चैनल को भारत में लाइसेंस नहीं मिला है फिर भी सिस्टम कि दुर्ब्यवस्था के चलते इसका प्रसारण धड़ल्ले से हो रहा है. सूचना और प्रसारण मंत्रालय को इस तरह के उल्लंघन पर कड़ाई से रूख अख्तियार करना चाहिए, सिर्फ एकाध बयानों से कुछ नहीं होने वाल! वैसे, अपने जहरबुझे विवादित बयानों (Zakir naik, Terrorism, Islam) के चलते सुर्ख़ियों में रहने वाला ज़ाकिर नाईक इस बार नेशनल इन्वेस्टीगेशन एजेंसी (NIA) के चंगुल में फंस सकता है, क्योंकि सामने आया है कि बांग्लादेश के ढाका में जिन युवकों ने आतंकवादी हमला किया था वह नाइक की विचारधारा से प्रभावित थे. उनमें से दो ने अपने फेसबुक अकाउंट से जाकिर के भाषण की वीडियो पोस्ट कर अन्य युवकों को आतंकवादी बनने के लिए प्रेरित किया था. इसी आधार पर NIA द्वारा इनके भाषणों की जाँच के आदेश दिए गए हैं. वैसे तो उसके बयान और तथाकथित जहरबुझे उपदेशों की भाषा इतनी साफ़ है कि कोई बहरा और अँधा भी बता देगा कि उसे सुनने के बाद मुसलमानों का झुकाव आतंक और आतंकवादियों की तरह निश्चित होगा तो भारत जैसे देश में भाईचारे की माँ-बहन एक हो जाएगी.
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वह हिन्दू देवताओं का खुला अपमान तो करता ही है, साथ में कहता है कि "अगर ओसामा बिन लादेन इस्लाम के दुश्मनों से लड़ रहा है तो मैं उसके साथ हूं." ऐसे बयानों की वजह से इसका अमेरिका और कनाडा जैसे देशों में प्रवेश वर्जित है. ढ़ाका की हालिया घटना के बाद शिवसेना और आरएसएस जैसे संगठन तो इनको प्रतिबंधित करने की मांग कर ही रहे हैं लेकिन साथ में ही मुस्लिम समुदाय (Zakir naik, Terrorism, Islam) के तरफ से भी इनके विरोध में आवाजें उठ रही हैं. कितना अजीब है कि समाज के ये पढ़े-लिखे लोग विकास की बातें करते लोगों को राह दिखाते, लेकिन ये तो अपनी शिक्षा और काबिलियत को नयी पीढ़ी को भ्रष्ट बनाने और आतंक की तरफ धकेलने में लगे हैं. उससे भी अजीब बात ये है कि समाज के लोग इन जैसों को अपना हीरो बना लेते हैं तो सर्वाधिक अजीब तथ्य और गलती सरकार की है, जिसे पिछले 20 सालों से चल रहे इस ज़हरीले कारोबार को रोकने की जरूरत ही महसूस नहीं हुई. उम्मीद की जानी चाहिए कि तमाम बुद्धिजीवी, मुस्लिम समुदाय और सरकार इस तरह के आतंकवादी विचारधारा का प्रसार करने वाले लोगों को उनकी औकात बता देंगे!
- मिथिलेश कुमार सिंह, नई दिल्ली.
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