कारण चाहे जो भी हो, किन्तु जिस तरह गुजरात की मुख्यमंत्री आनंदीबेन ने खुद के 75 साल हो जाने के सन्दर्भ में मुख्यमंत्री पद की जिम्मेदारी से मुक्त होने का आग्रह किया है, वह बेमिसाल है. हालाँकि, इस मामले में खूब राजनीतिक बातें कही जाएंगी, किन्तु-परंतु लगाए जायेंगे पर हकीकत यही है कि वह ससम्मान सक्रिय राजनीति से दूर हो रही हैं. भारतीय जनता पार्टी और संघ की रणनीति भी कमोबेश यही रही है कि 75 साल के बाद नेताओं को अगली पीढ़ी के लिए मैदान स्वेच्छा से छोड़ देना चाहिए और गुजरात की मुख्यमंत्री आनंदी बेन पटेल को भी (Anandi Ben Resigns, BJP Age Policy for Leaders) आखिरकार पार्टी लाइन पर आना ही पड़ा है. हालाँकि, बेहद कष्टदायक निर्णय होता है जब कोई सत्ता से दूर होता है, पर यही तो खूबसूरती है जीवन की! परिवर्तन को चाहे ख़ुशी से स्वीकार कर लिया जाए, अन्यथा वह जबरदस्ती अंजाम दिया जाता है. आनंदीबेन ने गुजरात चुनाव से पहले नेतृत्व परिवर्तन की भाजपा की मंशा को अमलीजामा पहनाते हुए खुद ही इस्तीफे की पेशकश कर दी और इस सन्दर्भ में उन्होंने राष्ट्रीय अध्यक्ष अमित शाह को इस्तीफा भेज दिया है. जहाँ तक बात गुजरात की है तो किसी युवा चेहरे को मुख्यमंत्री बनाये जाने की चर्चा है. मंत्री नितिन पटेल, प्रदेश अध्यक्ष विजय रूपाणी, गणपत भाई बसावा और संगठन महामंत्री भीखू भाई दलसाणिया का नाम आगे माना जा रहा है, पर अंततः नरेंद्र मोदी की पसंद मायने रखेगी. आखिर, गुजरात गृह राज्य है प्रधानमंत्री का.
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इससे पहले आनंदीबेन ने फेसबुक पोस्ट लिखकर राजनीति में नैतिकता का एक नया अध्याय शुरू करने की कोशिश की, जिसकी धमक आने वाले दिनों में भी बखूबी सुनी जाएगी. अपनी पोस्ट में उन्होंने कहा कि 'पार्टी ने 75 साल की उम्र तक सक्रिय राजनीति में रहने की परंपरा शुरू की है. वह नवंबर में 75 की हो रही हैं और अब मुक्त होना चाहती हैं.' अपनी पोस्ट में प्रधानमंत्री की विश्वस्त रहीं आनंदीबेन ने यह भी लिखा कि तीस साल से ज्यादा वक्त तक पार्टी में अलग अलग पदों पर रहने के लिए वह पार्टी की शुक्रगुजार हैं. इस सिलसिले में आनंदीबेन ने कहा कि वह चाहती हैं कि उनके उत्तराधिकारी (Anandi Ben Resigns, BJP Age Policy for Leaders, 75 Years) को अगले चुनाव और वाइब्रेंट गुजरात की तैयारियों के लिए पर्याप्त वक्त मिले.' बताया जा रहा है कि सैद्धांतिक तौर पर आनंदीबेन का इस्तीफा स्वीकार भी कर लिया गया है. हालाँकि, अमित शाह ने कहा है कि आनंदी बेन का इस्तीफा संसदीय बोर्ड के समक्ष रखा जाएगा. जाहिर है, एक उच्च मानदंड का प्रदर्शन किया गया है. हालाँकि, यह बात अलग है कि आनंदीबेन को मुख्यमंत्री पद से हटाकर राज्यपाल बनाने की कवायद पहले से ही चल रही थी, तो जिस तरह वहां पटेल आंदोलन ने उल्टा रंग लिया और फिर स्थानीय चुनाव में भाजपा की शिकस्त हुई उससे नेतृत्व पहले से आशंकित था. इसके साथ दलित उत्पीड़न की घटनाओं के चलते मामला और भी खराब होता जा रहा था. साफ़ है कि भाजपा नेतृत्व गुजरात विधानसभा चुनाव को लेकर किसी तरह का रिस्क नहीं लेना चाहता था और यह एक बड़ा कारण था, जिसे आनंदीबेन को बता दिया गया था.
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लोकसभा चुनाव में जीत के साथ ही भाजपा में उम्रदराज नेताओं को सलाहकार की भूमिका में रखा गया है. हाल ही में केन्द्रीय मंत्रिमंडल से भी नजमा हेपतुल्ला की छुटटी व मध्यप्रदेश में बाबूलाल गौर व सरताज सिंह जैसे नेताओं की छुटटी के बाद से गुजरात के राजनीतिक गलियारों में मुख्यमंत्री आनंदीबेन पटेल की ही चर्चा चल रही थी. एक फ्रेश चेहरे के साथ गुजरात में भाजपा की ढीली पड़ती पकड़ को मजबूत करने का मौका मिल सकता है. हालाँकि, कयासों के बीच अमित शाह ऐसे व्यक्ति को आगे करना चाहेंगे जो 2017 में पार्टी को तो सत्ता में जरूर लाये, किन्तु उसकी छवि अमित शाह से आगे न हो. भाजपा अध्यक्ष पहले से ही गुजरात के सीएम बनने की इच्छा संजोये हैं, किन्तु जो बातें छन-छनकर आ रही थीं, उसके अनुसार पीएम ने यूपी इलेक्शन 2017 के मद्देनजर अमित शाह को इलेक्शन कैम्पेनिंग में लगा रखा है. ऐसे में 2017 में यूपी चुनाव के बाद अमित शाह गुजरात पर वर्चस्व (Anandi Ben Resigns, BJP Age Policy for Leaders, 75 Years, Hindi Article) की दृष्टि से निगाह गड़ाए होंगे. हालाँकि, अभी भाजपा को वहां की कई स्थानीय चुनौतियों से निपटना होगा और तभी भाजपा का यह गढ़ बचा रह सकता है. अगले एक डेढ़ साल में नए सीएम को कई मोर्चों पर जीत हासिल करनी होगी. हालाँकि, भाजपा का संगठन इस राज्य में काफी मजबूत है और फिर पीएम का गृह राज्य होने से नरेंद्र मोदी का एक खास प्रभाव भी है. ऐसे में नए सीएम के लिए अवसर और चुनौतियां दोनों एक साथ आने वाली हैं, इस बात में दो राय नहीं!
- मिथिलेश कुमार सिंह, नई दिल्ली.
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