अभी कुछ दिन पहले की ही तो बात थी कि लोग बारिश के लिए परेशान थे कि थोड़ी बारिश हो और गर्मी से राहत मिले. लेकिन अभी ठीक से बारिश होनी शुरू भी नहीं हुयी कि लोगों का रास्तों पर चलना दूभर हो
गया है, खास कर शहरों में! अभी-अभी जिस घटना ने सबको हिला दिया वो है गुडगाँव से गुरुग्राम बने शहर में लगे 'भयानक-जाम' ने. जी हाँ, पूरा दिन और पूरी रात, 17 घंटों से भी लोग जाम में फंस जाएं, वह भी दिल्ली-गुरुग्राम हाइवे जैसी चलती सड़क पर तो आप क्या कहेंगे? दिल्ली से सटे गुड़गांव (Gurgaon Rain, Traffic Police) में गुरुवार (28 जुलाई) की रात जो भी गाड़ियां लेकर सड़कों पर उतरा, वो सुबह तक अपने घर पहुंचना तो दूर, कुछ मीटर की दूरी भी तय नहीं कर सका. यहां हुई भारी बारिश के कारण सड़कों पर पानी भरा सो भरा, लेकिन 10 किलोमीटर से भी ज्यादा ऐसा लंबा जाम लगा कि दिन और रात गुजर गए, लेकिन गाड़ियां नहीं गुजरीं और लोग इसमें फंसे के फंसे रह गए. गुड़गांव पुलिस ने लोगों से अपील जरूर की, ताकि वह कम से कम गुड़गांव आएं, किन्तु इस 'महाजाम' ने तथाकथित 'स्मार्ट' और 'मिलेनियम-सिटीज' के मुंह पर करारा तमाचा (Natural Disaters) ही जड़ा है. इस समस्या पर थोड़ी और लोकल दृष्टि डालते हैं तो सोहना रोड, गोल्फ कोर्स रोड और हुडा सिटी सेंटर पर भी कई किलोमीटर लंबा जाम लग गया, जिसके कारण 29 और 30 जुलाई को सारे स्कूलों को बंद करने का आदेश देना पड़ा तो हरियाणा के चीफ सेक्रेटरी को आपातकालीन बैठक बुलाने की जरूरत पड़ गयी.
Situation of Millennium City Gurgaon |
समझना मुश्किल नहीं है कि गुडगाँव जैसे शहरों का इंफ्रास्ट्रक्चर किसी बुलबुले की माफ़िक है, जो झटका लगते ही भरभरा गया. हालाँकि, गुड़गांव पुलिस (Gurgaon Rain, Traffic Police) लोगों की मदद के लिए सड़कों पर दमखम से उतर आई. लेकिन सवाल ये है कि इससे पहले क्यों नहीं सोचा गया ऐसी स्थिति और परिस्थिति के बारे में! आखिर, जब मुसीबत आती है तभी कार्रवाई की क्यों सोची जाती है? आनन -फानन में भले ही लोगों को तात्कालिक राहत पहुंचा दे राज्य सरकार, लेकिन इन समस्याओं के स्थायी समाधान की सख्त जरुरत है और इस दिशा में जो सबसे अहम कदम दिखाई दे रहा है वो है सड़कों पर बेतहाशा प्राइवेट गाड़ियों के हुजूम को कम करना! जी हाँ, ज्यादातर लोग अपने शौक और दिखावे के लिए अपनी गाड़ी लेकर निकल पड़ते हैं और जाम का मुख्य कारण भी ऐसे ही मनमौजी लोग बनते हैं. इस दिशा में ठोस कदम उठाते हुए प्राइवेट गाड़ियों पर विभिन्न माध्यमों से रोक लगाने की जरुरत है, तो इससे भी पहले पब्लिक ट्रांसपोर्ट की सुविधा को और भी बेहतर बनाने की जरुरत है. एक बार इस समस्या पर नियंत्रण हो गया तो फिर जाम की आधी समस्या दूर हो जाएगी. दूसरी तरफ ड्राइविंग लाइसेंस के नियम भी सख्त करने चाहिए जिससे हर कोई आसानी से इसे न पा सके, बल्कि उन्हें ही डीएल मिल पाए जो सड़क-नियमों और गाड़ी-चालन के नियमों से अवगत हैं. अभी तो देश भर में ड्राइविंग-लाइसेंस (Driving Licence in India) कुछ यूं बनता है कि आप दलाल को कुछ हज़ार रूपये पकड़ा तो और फिर आपका 'डीएल तैयार'! समझा जा सकता है कि न केवल 'ट्रैफिक-जाम' बल्कि, तमाम रोड-एक्सीडेंट्स भी में ऐसे नौसिखियों की भूमिका होती है.
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इन सबसे अहम बात यह भी है कि बारिश हम से पूछ के तो नहीं होगी, इसलिए बरसात शुरू होने से पहले ही पानी के निकास करने वाले नालों की सफाई और मरम्मत करा ली जाये, साथ ही साथ सड़कों की भी, ताकि बाद में किसी और पर दोषारोपण करने की नौबत नहीं आये! जैसा कि हरियाणा के सीएम खट्टर साहब ने कहा है कि जाम की वजह 'दिल्ली के सीएम केजीवाल' हैं, क्योंकि उन्होंने नजफगढ़ नाले की सफाई नहीं कराई जिससे पानी नहीं निकल रहा है. बताते चलें कि गुडगाँव का पानी भी नजफगढ़ नाले (Gurgaon Rain, Traffic Police) के माध्यम से यमुना में जाता है. अब गलती चाहे जिसकी हो भुगतना तो आम जनता को ही पड़ता है किसी आम आदमी पार्टी या चंडीगढ़ में बैठे 'खट्टर' (Aam Aadmi Party, Manohar Lal Khattar) को नहीं! तात्कालिक हल तो यही हैं कि प्राइवेट गाड़ियों पर नियंत्रण हो, बरसात से पहले रोड और जल-निकासी के मार्गों की मरम्मत हो तो दीर्घकालिक रूप से शहरों पर ज्यादा ज़ोर दिया जाना एक गलत नीति को दर्शाता है. हमारे पीएम शहरीकरण को एक अवसर के रूप में देखने की वकालत कर चुके हैं और उसी की परिणीति के रूप में 'स्मार्ट-सिटीज' कांसेप्ट सामने आया है. पर यह एक 'बचकाना' सुझाव या नीति है, क्योंकि जिस तेजी से शहरों पर बोझ पड़ रहा है, उतने लोगों की ही व्यवस्था कर पाना सरकारों के लिए असंभव सा हो गया है. ऐसी स्थिति में 'स्मार्ट-विलेज' या 'स्मार्ट-टाउन' का कांसेप्ट कहीं ज्यादा बेहतर (Smart Cities Concept is wrong, Hindi Article) परिणाम दे सकता था. बाढ़-भूकंप जैसी प्राकृतिक आपदाओं से किसी शहर की क्या दुर्गति हो सकती है, यह बात गुरुग्राम के हालिया स्थिति ने बखूबी समझा दी है. पर मूल प्रश्न है कि 'गुरुग्राम' से हम सीख लेंगे, तात्कालिक और दीर्घकालिक दोनों मोर्चों पर या... !! !!
- मिथिलेश कुमार सिंह, नई दिल्ली.
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