कई नेता जो माने बैठे हैं कि 'सरकारी संपत्ति उनकी अपनी संपत्ति होती है', उन्हें सुप्रीम कोर्ट के हालिया निर्णय ने निश्चित तौर पर झटका दिया है. देखा जाए तो, किसी भी सरकारी कर्मचारी को सरकार की सेवा समाप्त होने का बाद पेंशन सहित कुछ और भत्ते मिलते हैं. सेवानिवृत्ति के बाद सरकार द्वारा दी गई सुख- सुविधाओं को हर एक सरकारी मुलाजिम को छोड़ना ही पड़ता है. यहाँ तक कि यदि देश के प्रथम नागरिक राष्ट्रपति का भी कार्यकाल समाप्त होता है, तो उन्हें भी राष्ट्रपति भवन छोड़ना पड़ता है, लेकिन कुछ लोग इन नियमों के विपरीत चलना अपना जन्मसिद्ध अधिकार समझते हैं. लोकसभा चुनाव के बाद जब भारतीय जनता पार्टी सत्ता में आयी थी, तब हार चुके कई सांसदों और पूर्व मंत्रियों ने (Bunglow for life time, Hindi Article New, Supreme Court Decision) आबंटित बंगलों को खाली करने में खूब ना-नुकर की थी. हालाँकि, सरकार की सख्ती से उन्हें आवासों को तब खाली करना ही पड़ा था. हालिया मामला उत्तर प्रदेश का है, जिसमें उत्तर प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री आवास नियमावली 1997 के अनुसार यूपी सरकार ने पूर्व मुख्यमंत्रियों को आलीशान बंगले खुले हाथों से दे रखा है, जिसमें पूर्व मुख्यमंत्री तो रहते नहीं हैं, हाँ उनकी जगह उनके परिजन जरूर रहते हैं.
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Former Chief Ministers will not get bunglow for life time, Hindi Article New, Supreme Court Decision! |
साफ़ तौर पर यह सरकारी धन और सुविधाओं की एक तरह से खुली लूट ही थी, जिसका निराकरण सुप्रीम कोर्ट ने ठीक ही किया है. गौरतलब है कि यूपी में पूर्व मुख्यमंत्री आवास नियमावली 1997 के अनुसार करोड़ों रुपये की कीमत के आवास जीवन भर के लिए आवंटित किये गए थे, जिस पर लोकप्रहरी नामक संस्था ने आपत्ति जताने के बाद कोर्ट में जनहित याचिका डालकर सरकारी फैसले को 2004 में चुनौती दे डाली थी. सुप्रीम कोर्ट ने इस मामले में हस्तक्षेप करते हुए स्पष्ट किया है कि यूपी पूर्व मुख्यमंत्री आवास नियमावली 1997 साफ तौर पर संविधान के अनुच्छेद 14 का उल्लंघन करती हैं. सुप्रीम कोर्ट ने इस सन्दर्भ में इस नियम के तहत आबंटित सभी बंगलों को दो महीने के भीतर खाली करने का आदेश (Bunglow for life time, Hindi Article New, Supreme Court Decision) दिया है, जो कि बिलकुल ही उचित है. साल 2014 में ही सुप्रीम कोर्ट ने सुनवाई पूरी कर ली थी और आदेश सुरक्षित रख लिया था. अब सुप्रीम कोर्ट ने 2016 में अपना फैसला सुनाया है. जानकारी के अनुसार, जिन पूर्व मुख्यमंत्रियों को आवास मिले हैं, उनमें राजनाथ सिंह, कल्याण सिंह, एनडी तिवारी, मुलायम सिंह यादव, मायावती, राम नरेश यादव जैसे पूर्व मुख्यमंत्री शामिल हैं. याचिका के मुताबिक इनमें से बहुत के पास दूसरे सरकारी बंगलें हैं फिर भी लखनऊ में इन्हें बंगला दिया गया है जिसमें इनके परिवार के लोग रहते हैं.
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देखा जाए तो इस तरह के मामलों का निपटारा कोर्ट के जरिये आना अपने आप में शर्मनाक है. आखिर खुद ही लाभ लेने वालों के भीतर नैतिकता कहाँ चली गयी है, जो हर बात पर उन्हें कोर्ट से डंडे का इन्तजार रहता है. जीवनभर के लिए आबंटित सरकारी आवास का लाभ उठाने वाले मंत्रियों को खुद से आगे भी सोचने की जरूरत है, क्योंकि इस सवा अरब आबादी वाले इस देश में आज भी करोड़ों लोग खुले आसमान के नीचे, फुटपाथों पर अपनी ज़िन्दगी बिताते हैं और यहा मंत्री महोदयों के पास खुद की हवेली होने के बाद भी एक साथ कई सरकारी आवासों पर कुंडली मार कर बैठने के उपक्रम को कतई जायज़ नहीं ठहराया जा सकता है (Former Chief Ministers will not get bunglow for life time). हमारे देश के नेताओं को ब्रिटेन के पीएम से सीख लेनी चाहिए, जब ब्रेक्जिट के बाद उन्होंने इस्तीफा दिया, तो उसके साथ ही नए घर की तलाश करने लगे क्योंकि उनको वहां कोई आजीवन आवास मिलने का प्रावधान नही है. सरकारी सुविधाओं की बात सिर्फ बंगलों तक ही सीमित नहीं है, बल्कि पिछले दिनों जिस तरह से संसद कैंटीन में सब्सिडी का मुद्दा उठा था, उस से भी नेताओं को सीख लेनी चाहिए.
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आखिर, एक ओर तो हमारे प्रधानमंत्री देशवासियों से रसोई गैस जैसी जरूरी चीजों पर सब्सिडी छोड़ने की अपील करते है, ताकि देश में जरूरतमंद लोगों को सुविधाएं मिल सके, वहीं दूसरी ओर नेता सरकारी संसाधनों का बेजा इस्तेमाल आखिर क्यों करते हैं, यह बात समझ से बाहर है. उम्मीद की जानी चाहिए कि सुप्रीम कोर्ट के हालिया फैसले से ऐसे माननीयों को कुछ सीख जरूर मिलेगी!
- मिथिलेश कुमार सिंह, नई दिल्ली.
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