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आर्थिक कुप्रबंधन का बढ़ता चलन एवं राजपाल यादव को जेल! Rajpal Yadav Comedian, Hindi Article New, Economy, Jail, Loan, Murli Projects, Ata Pata Laapata Movie



यूं तो जीवन-दर्शन के चार सूत्रों 'धर्म, अर्थ, काम और मोक्ष' में सभी की महत्ता समान बतलायी गयी है, पर वर्तमान में इन सबमें 'अर्थ' की प्रधानता सर्वाधिक हो चुकी है. जाहिर है जब अर्थ की प्रधानता होगी तो उसके प्रबंधन पर ज़ोर होगा ही. ऐसी स्थिति में वह चाहे, व्यक्ति हो, कोई संस्था हो अथवा कोई राष्ट्र ही क्यों न हो, 'अर्थ-प्रबंधन' में अगर उसने लापरवाही बरती तो फिर उसकी दुर्गति भी कुछ-कुछ बॉलीवुड के मशहूर अभिनेता राजपाल यादव (Rajpal Yadav Comedian, Hindi Article New, Economy, Jail) की तरह हो सकती है. फिल्मों के बारे में थोड़ा-बहुत भी जानने वाले राजपाल यादव को बखूबी जानते होंगे. जिस तरह उन्होंने कई फिल्मों में अपने कॉमेडी रोल से लोगों को गुदगुदाया है, विभिन्न दुखों से दुःखी कई आत्माओं को सुख के कुछ क्षण प्रदान किये हैं वह कोई आसान काम नहीं है. कहते हैं, दुनिया में सबसे मुश्किल काम है किसी को 'हँसाना' और यह काम बखूबी करने वाले चरित्र अभिनेता राजपाल यादव पिछले दिनों जब जेल गए तो मुझ सहित  कइयों को यकीन नहीं हुआ होगा. बाद में पता चला कि 'फिल्म-निर्माण' के चक्कर में फंसकर उन्हें यह दिन देखना पड़ा है. गौरतलब है कि कर्ज नहीं चुकाने और गलत हलफनामा मामले में सुप्रीम कोर्ट ने फिल्म अभि‍नेता राजपाल यादव को कड़ी फटकार लगाते हुए सरेंडर करने और 6 दिन की बची हुई जेल की सजा काटने के आदेश दिए हैं. बताते चलें कि गलत हलफनामा देने के लिए दिल्ली हाई कोर्ट ने राजपाल यादव को 10 दिन जेल की सजा सुनाई थी, जिसमें से 4 दिन की सजा वह काट चुके हैं. यह पूरा मामला पैसे लेने के मामले से जुड़ा हुआ है. 

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सुप्रीम कोर्ट ने राजपाल यादव को जमकर फटकार लगाई है और उनसे कहा है कि वह बताएं कि बकाया कर्ज कब तक चुकाएंगे. कोर्ट की सख्ती इतने पर ही नहीं रुकी, बल्कि कोर्ट ने सख्त लहजे में यह भी कहा कि आपको 6 दिन नहीं, बल्कि 6 महीने के लिए जेल भेज देना चाहिए. आप समझ सकते हैं कि अपनी क़र्ज़ लेना कितना खतरनाक हो सकता है, खासकर तब जब आपको 'अर्थ-प्रबंधन' के जरूरी सूत्रों का पता न हो! दरअसल, राजपाल ने 'अता पता लापता' नाम की फिल्म बनाने के लिए मुरली प्रोजेक्ट्स नाम की कंपनी से 5 करोड़ रुपये का कर्ज लिया था. अभि‍नेता द्वारा कर्ज के पैसे नहीं चुकाने पर कंपनी ने दिल्ली हाई कोर्ट में मुकदमा दायर कर दिया. राजपाल हाई कोर्ट में बार-बार कर्ज की रकम चुकाने को लेकर टालमटोल (Rajpal Yadav Comedian, Hindi Article New, Economy, Jail) करते रहे. अभि‍नेता ने हाई कोर्ट में नकली दस्तखत वाले झूठे दस्तावेज भी जमा करवाए थे, जिससे नाराज होकर हाई कोर्ट की सिंगल बेंच ने दिसंबर 2013 में उन्हें 10 दिन के लिए जेल भेजने का आदेश दिया था. राजपाल ने 4 दिन जेल में भी गुजारे. इसके बाद डबल बेंच ने उनकी सजा को स्थगित कर दिया. समझा जा सकता है कि राजपाल यादव पर क्या गुजर रही होगी, किन्तु उनके इस हश्र से हम कुछ सीख तो ले ही सकते हैं. वैसे बॉलीवुड में निर्माता बनने के चक्कर में कई लोग बर्बाद हुए हैं, जिसमें खुद महानायक अमिताभ बच्चन का नाम भी शामिल रहा है. वह तो उन्होंने वापसी करने में सफलता प्राप्त कर ली, अन्यथा 'अर्थ-कुप्रबंधन' के कारण वह भी कभी 'सड़क' पर आ गए थे. प्रश्न सिर्फ राजपाल यादव या अमिताभ बच्चन जैसे चर्चित नामों के 'अर्थ-कुप्रबंधन' का ही नहीं है, बल्कि यह विषय हमारे-आपके जीवन में गहरे से जुड़ा विषय बन गया है. 


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रोज, हम में से कोई न कोई अपनी 'आर्थिक गल्तियों' के कारण मुसीबत झेलता है तो कई लोग इससे सीख लेकर सुधार की राह पर अग्रसर हो जाते हैं, किन्तु फिर भी कई लोग सुधरते नहीं हैं और अंततः 'बर्बादी' उनके गले पड़ जाती है. कुछ व्यवहारिक 'केस-स्टडी' बताऊँ तो मेरे एक मित्र मल्टीनेशनल कंपनी में काम करते थे, जिनकी सेलरी भी बढ़िया थी. दिल्ली के किसी पाश-इलाके में उन्होंने बढ़िया सा फ्लैट देखा और बैंक ने उन्हें लोन भी दे दिया. उनकी मंथली सेलरी का 50 प्रतिशत से अधिक पैसा तब ईएमआई में जाने लगा. मुश्किल से 6 महीने भी नहीं बीते होंगे कि उनकी कंपनी में कुछ विवाद हो गया और मित्र महोदय को नौकरी से रिजाइन देना पड़ा. ये बिचारे खूब हाथ-पाँव मारे, मगर चार महीने तक कहीं नौकरी नहीं मिल पायी. यह कोई इकलौता मामला नहीं है, बल्कि आपके आस-पास घटने वाली तमाम घटनाएं ही हैं. मित्र महोदय ने इन चार महीनों में मुझ सहित कइयों से उधार (Rajpal Yadav Comedian, Hindi Article New, Economy, Jail) मांग डाले और बैंक वालों की धमकी अलग से झेली. मजबूर होकर उन्हें अपने लेवल से कम की नौकरी ज्वाइन करनी पड़ी. इस बीच उनकी फेमिली, बच्चों की फीस सब कुछ डिस्टर्ब हो चुका था. ऐसा नहीं है कि उन्होंने फ्लैट लेकर कुछ गलत किया, पर मंथली सेलरी का 50 फीसदी हिस्सा ईएमआई के रूप में देकर उन्होंने भारी गलती की थी और आपात स्थिति के लिए बैकअप के बारे में उन्होंने कोई प्लानिंग नहीं की थी. खैर, मेरे मित्र महोदय ने तो जैसे-तैसे वापसी कर ली, पर ऐसे कई 'योग्य और कमाऊ' लोग हैं जो 'अर्थ-कुप्रबंधन' के कारण बर्बाद हो जाते हैं, घर-गाड़ी नीलाम हो जाते हैं, तो आत्महत्या की नौबत तक आ जाती है. 

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एक और केस स्टडी का ज़िक्र करूं तो गाँव में शुरूआती कक्षाओं में मेरे साथ पढ़ने वाला एक तेज-तर्रार लड़का था. बाद में उसे 'आलस' का रोग पकड़ गया और किसी काम में उसका मन ही नहीं लगता था. कभी दुकान, कभी नौकरी, कभी खेती, कभी पशु-पालन में शुरुआत तो जरूर करता था, किन्तु जैसे ही मेहनत की नौबत आती थी, वह 'क्विट' कर जाता था. फिर उसकी शादी हुई, बच्चे हुए और कई बार 'दूध' तक की समस्या तक आने लगी. अब आधुनिकता की तड़क-भड़क में एक व्यक्ति को चाहिए तो सब कुछ, पर अकर्मण्य व्यक्ति को यह मिले तो कैसे? खैर, किसी की सलाह पर वह भी शहर भागा और किसी फैक्ट्री में लग कर अपना गुजारा करने लगा. मुसीबत फिर आयी और इसका पता मुझे तब लगा जब उसने मुझसे फिर कुछ पैसे मांगे! मैंने उसे बोला कि भाई, अब तो तुम्हें सेलरी भी मिल रही है, तो उसने कहा कि 8-10 हज़ार सेलरी मिलते ही 'स्मार्टफोन' खरीद लिया है. आप समझ सकते हैं कि उसका 'अर्थ-प्रबंधन' किस तरफ जा रहा था. ऐसे ही मेरे एक पड़ोसी हैं, जो आम तौर पर संयत होकर चलते हैं, किन्तु अपने बच्चे को उन्होंने शहर के महंगे स्कूल में दाखिला करा दिया. अब 5 हजार मंथली फीस के अलावा (Rajpal Yadav Comedian, Hindi Article New, Economy, Jail), स्कूल वालों का रोज कोई न कोई ड्रामा लगा रहता था और उनका एक बच्चे पर बजट 10 हजार तक पड़ जा रहा था. ऊपर से उस बच्चे का व्यवहार 'सुपीरियरिटी-काम्प्लेक्स' से प्रभावित होता जा रहा था, सो अलग! दूसरे बच्चे के एडमिशन के लिए उनका इतना बजट बचा ही नहीं कि वह आगे सोच सकते. ऐसे एक नहीं हज़ारों केस हैं, जहाँ अर्थ-कुप्रबंधन से आप मुसीबत में तो पड़ते ही हैं, मन वांछित फल भी कोसों दूर नज़र आते हैं. 

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एक और वाकये का ज़िक्र करूं तो एक पत्रकार मित्र हैं, जो किसी बड़े अखबार के लिए काम करते थे. ईमानदार थे बिचारे, किन्तु उनको चस्का लग गया अपना अखबार शुरू करने का! मैंने उन्हें कहा कि यार 'अख़बार चलाना' तुम्हारे जैसे 'सीधे' लोगों का काम नहीं है, वह भी इन्टरनेट के युग में 'प्रिंट-मीडिया' की इम्पोर्टेंस दिन-ब-दिन कम ही होती जा रही है, पर वह नहीं माने और कूद पड़े 'मैदान-ए-जंग' में! अब बिचारे, विज्ञापन के लिए यहाँ-वहां भटकते रहते हैं और ऑपरेटर से लेकर प्रिंटिंग प्रेस वाला, कागज़ वाला उनसे रोज तगादा करता रहता है. एक दिन उन्होंने अपने दिल का दर्द बयान कर ही दिया कि 'अब नहीं चल पायेगा' भाई! उनकी हालत देखकर मुझे दुःख हुआ और मैंने उन्हें सलाह दी कि विज्ञापन के लिए 'डीएवीपी' से लाइजनिंग कराने वालों से मिलो! दिल पर पत्थर रखकर वह 'सूचना-भवन' गए और अब उन्होंने खुद को तमाम अख़बार, पत्रिका मालिकों की तरह 'फाइल-कॉपी' तक सीमित कर लिया है. पर उनके चेहरे पर अब वह पुराना वाला तेज नहीं है! मैं सोचता हूँ कि आखिर ऐसे फट्टे में पैर क्यों डालना, जिसके बारे में आपको पूरी जानकारी नहीं है या जिसके लिए आप सक्षम नहीं हैं. हालाँकि, रिस्क लेना मानवीय स्वभाव है और कई बार प्रगति की राह भी इसी से निकलती है, पर आपको परिस्थिति, विशेषज्ञता और क्षेत्र-विशेष के अनुभव के अनुरूप ही चलना चाहिए, अन्यथा राजपाल यादव (Rajpal Yadav Comedian, Hindi Article New, Economy, Jail) का उदाहरण सामने ही है! आप रिस्क लें, आगे बढ़ें पर 'अर्थ-प्रबंधन' के नियमों को भी पढ़ें, समझें. इसी से जुड़े सूत्रों जैसे फ़िज़ूलख़र्ची, आलस्य, लोन इत्यादि शब्दों के अर्थ भी आपको बखूबी पता होने चाहिए, तभी आप बेवजह की मुसीबतों से छुटकारा पा सकेंगे! वैसे भी कहा गया है कि 'जाते पाँव पसारिये, ताते लम्बी सौर' और राजपाल यादव का मामला देखते हुए यह कहावत पूरी तरह सटीक प्रतीत होती है.

- मिथिलेश कुमार सिंह, नई दिल्ली.




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