तुम फर्जी हो!तुम फ़ेक न्यूज़ वाले हो!क्या तुम्हारा रजिस्ट्रेशन है?न्यूज पोर्टल किसकी मर्जी से चला रहे हो?
यह कुछ ऐसे प्रश्न और स्टेटमेंट हैं, जो प्रत्येक न्यूज़ पोर्टल चलाने वालों से ऐरा-गैरा नत्थू खैरा कोई भी पूछ लेता है. इस तरह के लांछन लगाना और बेतूके प्रश्न न्यूज पोर्टल चलाने वालों से पूछा जाना आम बात बन गयी है.
तथाकथित मठाधीश लोग न्यूज़ पोर्टल चलाने वालों से ऐसे व्यवहार करते हैं, जैसे उसने कोई अपराध कर दिया हो!
उससे शुद्धता की ऐसी उम्मीद की जाती है, मानो मेन स्ट्रीम मीडिया वालों से कोई गलती ही ना होती हो...
मठाधीशी करने वाले भूल जाते हैं कि ऐसे एक नहीं, बल्कि सैकड़ों उदाहरण मिल जाएंगे, जब प्रिंट मीडिया के तथाकथित वरिष्ठ और वरिष्ठतम पत्रकारों ने ऐसी-ऐसी गलतियां की हैं, जिन्हें बताने में खुद उनको भी शर्म आ जाएगी.
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- मिथिलेश कुमार सिंह, नई दिल्ली.
Web Title: What is the fault of those who run the news portal
जिस सूचना और प्रसारण मंत्रालय से और आरएनआई से न्यूज़ पोर्टल वालों को लाइसेंस लेने-देने की बात कही जाती है, उसी मंत्रालय से बकायदे लाइसेंस लेकर टेलीविजन चैनल के एंकर देश की क्या हालत किए हुए हैं, यह किसी से छुपा नहीं है. टेलीविजन पर गाली दोनों से लेकर एक-दूसरे को नीचा दिखाना, धक्का मुक्की और गलत सूचनाओं का भंडार दिखना, पक्षपात दिखना अब आम-सी बात बन चुकी है.
ना कोई संयम, न पत्रकारिता का कोई मोल और ना ही आत्मानुशासन... आखिर, टेलीविजन पर इनमें से क्या दिखता है?
प्रिंट मीडिया के बड़े-बड़े नाम, तमाम नेताओं के तलवे चाटते दिखते हैं....
ऐसे में न्यूज़ पोर्टल जैसा माध्यम, जो तमाम युवाओं को रोजगार दे रहा है, उन तमाम खबरों को स्थान दे रहा है, जिन्हें शायद कभी स्थान ही नहीं मिलता, उनके अस्तित्व के साथ ऐसी नाइंसाफी क्यों?
सच तो यह है कि न्यूज़ पोर्टल चलाने वालों के खिलाफ बकायदे एक समूह कार्य कर रहा है, जो हमेशा उन्हें फर्जी साबित करने की जुगत में लगा रहता है. कई बार तो यह समूह सरकारी अधिकारियों तक को अपने बहकावे में ले लेते हैं और यह साबित करने की कोशिश करते हैं कि न्यूज पोर्टल चलाना कितना खराब कार्य है!
गाहे-बगाहे कई जगह से मेरे पास इस तरह की खबर आती है कि अलग-अलग जिलों के सूचना अधिकारी यहां तक कि डिस्ट्रिक्ट मजिस्ट्रेट भी न्यूज़ पोर्टल वालों को लेकर अनाप-शनाप आदेश जारी करते हैं, जिसका न कोई सिर होता है, न पैर!
कई जगहों से तो सोशल मीडिया पर प्रतिबंध तक की बात होती है.
जी हाँ! वही सोशल मीडिया, जिसने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को रातों-रात देश भर में लोकप्रिय बनाया और उन्हें चुनाव जीतने के लिए जरूरी प्रसार दिया.
उसी ट्विटर पर कुछ सनकी अधिकारी प्रतिबंध लगाने की बात करते हैं, जिस ट्विटर के सहारे तमाम जगहों का प्रशासन जनता से सीधे जुड़ा रहता है.
हां! कई जगहों से कुछ शिकायतें भी आती हैं, कुछ ग़लत खबरें भी आती हैं, तो क्या हमारा प्रशासन इतना लचर है कि उन गलत चीजों की पहचान नहीं कर सकता?
आखिर हमारा तंत्र कहां सोया है कि न्यूज़ पोर्टल और सोशल मीडिया इत्यादि को लेकर कोई गाइडलाइन अब तक जारी न कर सका?
अगर उसे जरूरी लगता है, तो उसे निश्चित रूप से सम्यक नियम बनाने की ओर बढ़ना चाहिए और अगर कोई उन नियमों को तोड़ता है तो जरूर उसके खिलाफ कार्यवाही की जानी चाहिए, लेकिन फेक न्यूज़ के नाम पर तुगलकी फरमान जारी करने को किसी हाल में सही नहीं ठहराया जा सकता.
किसी हालत में न्यूज पोर्टल चलाने वालों के उत्साह को क्षीण किया जाना भारत जैसे लोकतंत्र में मान्य नहीं किया जा सकता है.
सच तो यह है कि न्यूज़ पोर्टल के सामने आने से उन तमाम ठेकेदारों की दुकानें बंद हो गई हैं, जो न्यूज़ छापने के नाम पर दलाली किया करते थे!
क्या यह सच नहीं है कि जिस प्रिंट मीडिया को क्रेडिबिलिटी का सिरमौर माना जाता रहा है, उसी प्रिंट मीडिया के पत्रकार पीत पत्रकारिता के लिए बदनाम रहे हैं?
कुछेक दलाल समूहों को छोड़ दिया जाए, तो कई पत्रकार मित्र न्यूज पोर्टल से किसी प्रकार की समस्या का अनुभव नहीं करते हैं और वह खुद भी अपना न्यूज़ पोर्टल चलाते हैं और लोगों को तमाम तरह की ख़बरों से अवगत भी कराते हैं, लेकिन कई लोग आज भी इसके खिलाफ षड्यंत्र करते नजर आते हैं.
दुकान बंद होने से छटपटाहट मचना तो स्वाभाविक ही है, लेकिन वह यह जान लें कि ना तो न्यूज़ पोर्टल चलाने वालों का कारवां रुकेगा और ना ही उन युवा पत्रकारों का उत्साह कम होगा, जो जनता को गली-गली की खबरें सुलभता से उपलब्ध करा रहे हैं. लोकल प्रशासन भी न्यूज़ पोर्टल चलाने वालों को हेय दृष्टि से ना देखें और अगर उन्हें जरूरी लगता है तो एक सम्यक नियम बनाएं.
न्यूज़ पोर्टल चलाने वाले मित्रों को भी, अगर ऐसे कोई अन्यायपूर्ण आरोप लगते हैं, तो उससे अपनी हिम्मत हारने की आवश्यकता नहीं है, बल्कि कोशिश करनी चाहिए कि किसी भी प्रिंट मीडिया, किसी भी टेलीविजन मीडिया से ज्यादा ऑथेंटिक खबरें देने की!
यही हमारे सफ़र को मजबूती से आगे ले जा सकता है.
जो भी खबरें आप लिखते हैं, वह पूरे सबूत के साथ लिखें, पूरी प्रमाणिकता के साथ लिखें और यह अधिकार हमें हमारा संविधान देता है, जिसे कोई नहीं छीन सकता!
यह कार्य आप व्यापार के तौर पर भी कर सकते हैं, तो यह एक पत्रकारिता के तौर पर भी आप कर सकते हैं. यकीन रखिये, आपसे आपका अधिकार कोई नहीं ले सकता, जब तक न्यूज़ पोर्टल रजिस्ट्रेशन कराने का गवर्नमेंट द्वारा कोई नियम नहीं आ जाए. जरूरत हो तो आप खुद राईट टू इनफार्मेशन (RTI) का प्रयोग करके सूचना-प्रसारण मंत्रालय से अधिक जानकारी प्राप्त कर सकते हैं.
तब तक आप इसके विकल्प के तौर पर उद्योग आधार में बिल्कुल मुफ्त रजिस्ट्रेशन करा सकते हैं या फिर जीएसटी नंबर लेकर एक बिजनेस के तौर पर इसको चला सकते हैं, बेहिचक चला सकते हैं!
यह कहीं से, किसी तरह से फर्जी नहीं है और अगर कोई इसे फर्जी कहता है तो उससे लिखित में लें और मानहानि का मुकद्दमा दर्ज करायें, बेशक वह कोई मठाधीश पत्रकार हो या फिर कोई सरकारी मुलाजिम ही क्यों न हो!
हाँ! जब भी आप अपना या अपने स्टाफ का पहचान कार्ड बनाएं, उसे देते समय उस पर प्रेस ना लिखें, बल्कि अपनी कंपनी का नाम लिखें और इस संबंध में सम्बंधित जिला अधिकारी / जिला सूचना अधिकारी को मेल लिखें और अगर उनके जवाब से आप संतुष्ट नहीं हैं तो आरटीआई डालें और तब भी आपको संतुष्टि नहीं मिलती है, तो किसी वकील के माध्यम से पीआईएल, जनहित याचिका डालें.
पर यकीन रखिये, कोई अधिकारी या कोई मठाधीश बेशक आपको धमकाए, किन्तु लिखित रूप में वह आपको फर्जी कदापि नहीं कह सकता. वस्तुतः ऐसा करने-कहने का उसको कोई अधिकार ही नहीं है.
ध्यान रखें, आपके अधिकार पूरी तरह से सुरक्षित हैं और कोई भी आपके अधिकार पर हाथ नहीं डाल सकता, लेकिन हां! प्रामाणिकता मेंटेन करना हम सब की खुद की जिम्मेदारी है और यही हम न्यूज पोर्टल वालों को जर्नलिज्म का सिरमौर बनाएगी.
मेहनत तो आप करते ही हैं, बस अपने सफ़र को मजबूती से जारी रखें, बिना किसी जल्दबाजी के!
न्यूज पोर्टल से सम्बंधित तकनीक, प्रसार, अर्निंग या कोई और प्रश्न होता है तो आप जरूर पूछें. मेरा व्हाट्सअप नम्बर है: 9990089080
- मिथिलेश कुमार सिंह, नई दिल्ली.
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Disclaimer: इस पोर्टल / ब्लॉग में मिथिलेश के अपने निजी विचार हैं, जिन्हें तथ्यात्मक ढंग से व्यक्त किया गया है. इसके लिए विभिन्न स्थानों पर होने वाली चर्चा, समाज से प्राप्त अनुभव, प्रिंट मीडिया, इन्टरनेट पर उपलब्ध कंटेंट, तस्वीरों की सहायता ली गयी है. यदि कहीं त्रुटि रह गयी हो, कुछ आपत्तिजनक हो, कॉपीराइट का उल्लंघन हो तो हमें लिखित रूप में सूचित करें, ताकि तथ्यों पर संशोधन हेतु पुनर्विचार किया जा सके. मिथिलेश के प्रत्येक लेख के नीचे 'कमेंट बॉक्स' में आपके द्वारा दी गयी 'प्रतिक्रिया' लेखों की क्वालिटी और बेहतर बनाएगी, ऐसा हमें विश्वास है.
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