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बिना 'प्रयोगों' के यह संसार आगे कैसे बढ़ेगा? #Agnipath #Agniveer #Soldiers


  • हम ऐसा क्यों मानते हैं कि सभी युवक बेरोजगार ही हो जाएंगे, 23 - 24 साल में ही, सभी के भीतर कार्य करने की क्षमता ही खत्म हो जाएगी?
  • प्राइवेट कंपनियों में इसीलिए भी लोग तरक्की करते हैं, क्योंकि वह भिन्न कंपनियों में बदलाव करके अपनी स्किल को बढ़ाते हैं.

लेखकमिथिलेश कुमार सिंहनई दिल्ली 
Published on 21 June 2022 (Update: 21 June 2022, 22:06 IST)

कहते हैं आवश्यकता आविष्कार की जननी है, और यह आवश्यकता ही है कि मनुष्य ने छोटे-बड़े तमाम आविष्कार किए हैं. इससे पहले कि अग्निपथ  योजना पर मैं अपनी बात आगे कहूं, अपना एक व्यक्तिगत अनुभव शेयर करना चाहूंगा.

आर्मी से मेरे पिताजी रिटायर हुए हैं, और उन्होंने अपने भाइयों के साथ मिलकर गांव में अपने जीवन की तमाम पूंजी लगाकर, लंबे-चौड़े मकान का निर्माण कर दिया. पुराने मेथड से बना हुआ मकान, वर्तमान समय में अप्रासंगिक नहीं, तो बेहद कम उपयोगी साबित हो रहा है. चूंकि समय बदला है, समय के साथ लोगों की जरूरतें बदली हैं, प्राइवेसी- सुविधा आदि प्राथमिकता सूची में अब ऊपर हैं, और इन वर्तमान खाँचे में पुरानी पीढ़ी द्वारा निर्मित मकान फिट नहीं बैठता है. सुरक्षा, मजबूती और दूसरी चीजों को अगर छोड़ भी दिया जाए, तो भी आने वाले समय में एक नए मकान का निर्माण अवश्यंभावी लगता है.

चूंकि मैंने गांव की बात की है, और गांव में अब लोग बेहद कम रहते हैं, इसलिए गांव में कोई इन्वेस्ट भी नहीं करना चाहता. अपनी ज़रूरतों, रोजगार आदि के लिए लोग बाग शहरों में कार्य करने लगे हैं, लेकिन मेरे घर की वर्तमान पीढ़ी, अर्थात हम सभी भाई इस योजना पर चर्चा कर रहे हैं कि अलग-अलग मकान बनाने की बजाय, क्यों ना गांव में फ्लैट सिस्टम से निर्माण हो, जो वर्तमान पीढ़ी की जरूरतों पर भी खरा उतरे, और खर्च भी कम लगे. साथ ही सुरक्षा, प्राइवेसी आदि जरूरतें भी पूरी हो सकें.

अब मैं जो बात कहने जा रहा हूं वह गौर करने के साथ-साथ अग्निपथ योजना पर प्रासंगिक भी है, और वह यह है कि पिताजी यह चाहते हैं कि पुराने मकान को ही मेंटेन किया जाए, और उसी में काम चलाया जाए, जबकि समय परिवर्तन की मांग कर रहा है. यूं पुरानी चीजों को मेंटेन करने में कोई बुराई नहीं है, किंतु आर्थिक रूप अतिरिक्त बोझ पड़ने के साथ-साथ उसकी उपयोगिता पर भी प्रश्न चिन्ह है.खैर, इसी विषय पर अभी परिवार में मंथन चल रहा है, आगे क्या होगा कौन जाने!

यह तो रही मेरे परिवार की बात, किंतु अब आप अग्निपथ  योजना को लेकर चलिए!
सेना में बदलाव की बात, सेना की औसत उम्र कम करने की बात, सेना पर अधिक खर्चे होने एवं सेना के आधुनिकीकरण की बात जैसे तमाम मुद्दे गाहे बगाहे उठते ही रहते हैं. इन मुद्दों को हल करने की दिशा में सरकार एक योजना लेकर आई है, जिसमें उसने शुरुआती रोडमैप रखा है. इस रोड मैप के मुताबिक सेना में न केवल सैनिकों की कमी पूरी की जा सकेगी, बल्कि सेना की औसत उम्र भी कम की जा सकती है. साथ ही अधिक से अधिक युवाओं को सेना से जोड़ा जा सकता है.

एक और बड़ी बात यह है कि सेना में एक बार भर्ती हो जाने के पश्चात अगर कोई पहले छोड़ना चाहता था, तो उसके सामने किसी बैंक या किसी कंपनी में सिक्योरिटी गार्ड बनने के अलावा कोई दूसरा रास्ता नहीं था. रिटायर होने वाले जेसीओ/ ऑफिसर लोग भी किसी के पीएसओ, सुपरवाइजर अथवा सिक्यूरिटी हेड ही बनते थे. कहने का मतलब है बेहद कम अवसर इनके लिए उपलब्ध थे. अब जबकि अग्निपथ योजना लांच हो चुकी है, तो 23 साल से कम समय में ही, 4 साल का सैन्य अनुभव लेकर, अपने जीवन में अनुशासन लेकर, यह सोसाइटी में होंगे.
अगर वह दसवीं हैं, तो उनको 12वीं का प्रमाण पत्र भी मिलेगा. 23 साल की उम्र में उनके सामने भला क्या समस्या होगी, किसी अन्य फील्ड में कंप्टीट करने में?
  • क्या वह कोई स्किल सीखकर किसी प्राइवेट कंपनी में काम नहीं कर सकते?
  • क्या वह यूपीएससी की तैयारी नहीं कर सकते?
ध्यान रखिए, इन सभी चीजों में सेना का अनुशासन, उसका जज्बा इस बात के लिए प्रेरित करेगा कि वह जीवन में आगे बढें. साथ ही उनके पास 4 साल के बाद एकमुश्त ₹1100000 (ग्यारह लाख) हाथ में होंगे, जिससे वह किसी कोर्स में, किसी बिजनेस में खर्च कर सकते हैं. आजकल शादी की औसत उम्र भी 30 से 35 वर्ष हो चुकी है, तो अगर 25 साल में भी कोई अग्निपथ योजना से गुजरा सैनिक समाज में आता है, तो भी उसके पास 10 साल का समय शेष होगा कि वह खुद को स्टेबल कर सके.और हम यह क्यों भूल रहे हैं कि 4 साल निरंतर सेना जैसे अनुशासित संगठन में काम करने का अनुभव उसके बहुत काम आ सकता है. 

इस अग्निपथ योजना की आलोचना में कही जाने वाली यह बात एक हद तक सच है कि अब तक जो सैनिक आर्मी से रिटायर होते थे, वह सिक्योरिटी गार्ड बने रह जाते थे. उसके पीछे कारण यह होता था कि अगर वह अपनी 15 साल की जॉब पूरी भी करके आते थे तो उनकी उम्र तकरीबन 40 साल की हो जाती थी. रिटायरमेंट के बाद तो यह उम्र और ज्यादा हो जाती थी. अब जरा सोचिए कि 40 साल की उम्र में कोई नई स्कील क्या सीखेगा?
एक तरह से वह टाइप्ड भी हो जाते थे. कारपोरेट की दुनिया में काम करने वाले लोग इस बात को जानते हैं कि एक ही कंपनी में बहुत लंबे समय तक काम करने के बाद एक व्यक्ति दूसरी कंपनी के लिए कहीं ना कहीं अनफिट सा हो जाता है.

इसे कंफर्ट जोन कह लें, टाइप्ड कह लें, पर बात एक ही है. प्राइवेट कंपनियों में इसीलिए भी लोग तरक्की करते हैं, क्योंकि वह भिन्न कंपनियों में बदलाव करके अपनी स्किल को बढ़ाते हैं. तो इसमें क्या समस्या है, अगर अग्निपथ योजना से भर्ती व्यक्ति, सेना को वह एक सामान्य जॉब के तौर पर देखें? 

हां कई लोग इस बात की आलोचना कर सकते हैं, और कर भी रहे हैं कि इससे सेना की कार्य क्षमता पर असर पड़ेगा, किंतु यह क्यों नहीं समझा जा रहा है कि सेना के पास 100 लोगों में से 25 बेहतरीन लोगों को अपने पास रखने का विकल्प भी होगा. साथ ही कई युवा आईटीआई से लेकर दूसरी तकनीकी स्किल सीखकर, सेना में प्रोफेशनलिज्म लाने में मदद भी कर सकते हैं. अब वह जमाना तो रहा नहीं कि सेना सिर्फ बाहुबल से ही लड़ती हो. अब सेना तकनीक से कहीं अधिक लड़ाई करती है.ऐसे में अगर सेना की औसत उम्र में कमी आती है, तो तकनीकी रूप से हमारी सेना भी दक्ष होती चली जाएगी. रही बात अग्निवीर के तौर पर, युवाओं के मानसिक रूप से मजबूत होने की, तो निश्चित रूप में उसमें समय लगेगा, और इसीलिए 4 साल के बाद मात्र 25% लोगों को ही सेना में नियमित करने की बात कही गयी है.
कई लोग यह भी बोल रहे हैं कि इससे समाज के सैन्यकरण होने का खतरा होगा. अग्निपथ से निकले कई सारे युवा गलत राह पर जा सकते हैं, लेकिन हम यह क्यों भूल जाते हैं कि उन्हीं युवाओं में से कई लोग समाज में सही चीज के लिए आवाज भी तो उठा सकते हैं!
हम ऐसा क्यों मानते हैं कि सभी युवक बेरोजगार ही हो जाएंगे, सभी के भीतर कार्य करने की क्षमता ही खत्म हो जाएगी?

निश्चित रूप से हमारी सेना का पारंपरिक स्वरूप कुछ ऐसा रहा है कि उसमें लंबे समय तक कार्य करने वाले लोग बाहर निकलने के पश्चात दुनिया से कट से जाते हैं, किंतु सेना में कार्यरत किसी युवक से आप बात कीजिए, जो 4 या 5 साल सेना में गुजार चुका हो. आप निश्चित रूप उसके अंदर आगे बढ़ने की ललक देखेंगे, जो किसी यूपीएससी का इंटरव्यू देने की तैयारी करते युवक की होती है. आखिर सेना में भर्ती हो चुके युवक को समाज के दूसरे क्षेत्रों में बढ़ने का अवसर भला क्यों नहीं प्रदान करना चाहिए?वास्तव में इससे समाज के समरस होने की गुंजाइश भी बढ़ेगी. आखिर क्यों एक ही युवक अपना जीवन देकर सेना में खतरा उठाये... इसके लिए तो अधिक से अधिक लोगों को आगे आना चाहिए. विदेशों में ऐसी व्यवस्था है. ब्रिटेन में तो राजकुमार जैसे वीआईपी लोग भी सेना में शामिल होते हैं, ऑपरेशन में जाते हैं.

यह भी हो सकता है कि यह प्रयोग बहुत अधिक सफल न भी हो, किंतु बिना प्रयोगों के समाज चलेगा कैसे?
अगर हम नई चीजें इंट्रोड्यूस नहीं करेंगे, नई टेक्नोलॉजी नहीं लाएंगे, नए प्रयोग नहीं करेंगे, नयी योजनाओं को क्रियान्वित नहीं करेंगे, तो अपनी दक्षता भला किस प्रकार से बढ़ाएंगे?किसी भी योजना को भारत में राजनीतिक चश्मे से देखना शगल-सा बन गया है. 

हाल-फिलहाल किसानों से संबंधित कानून आए थे, जिस पर देश भर में बड़ा बवाल काटा गया. सरकार ने अंततः वह कानून वापस ले लिया. पर इससे क्या किसानों की हालत सुधर गई?सच्चाई तो यह है कि इस क्षेत्र में प्रयोगों की गुंजाइश ही समाप्त हो गई. आने वाले सालों साल तक किसानों के बारे में कोई कुछ अच्छा सोचेगा, कोई कुछ क्रांतिकारी परिवर्तन करने का जोखिम लेगा, इस बात पर बड़ा प्रश्नचिन्ह है.

ठीक इसी प्रकार से सेना के आधुनिकीकरण की आस अभी जगी है. यहां तक कि अधिक से अधिक भर्तियां खुलने की भी आस जगी है. आज अगर सेना पुराने प्रोसेस से भर्ती करती है, तो 25% युवकों को ही तो जॉब मिलेगी, जो नियमित रहेंगे.पर नयी अग्निपथ स्कीम में, 25 की जगह 100 लोग भर्ती हो रहे हैं. बाद में 100 लोगों में से 25 अत्यंत काबिल लोगों को सेना अपने साथ अग्निवीर बनायेगी, तो इसमें कहां हो हल्ला करने की जरूरत है?

युवा छात्र सड़कों पर उतरे हैं, ट्रेन जला रहे हैं, बस जला रहे हैं, तो क्या इससे उन्हें जॉब मिल जाएगी?हमेशा युवा सड़कों पर उतरते हैं, और उन्हें बताने वाले लोग यह बताते हैं कि तुम्हारी जॉब के साथ खिलवाड़ किया जा रहा है, तुम्हें यह चीज नहीं मिल पाएगी. अरे भाई! पहले भर्ती तो होने दो!

हाँ! अगर इससे बेहतरीन कोई अन्य योजना है, जो भारत भर में रोजगार पैदा कर दे, भारत भर में लोगों को सशक्त बना दे, तो निश्चित रूप से वह किया जाना चाहिए.
व्यक्तिगत रूप से कहूँ, तो अग्निवीर ही क्यों, अन्य क्षेत्रों जैसे रेलवीर, ट्रांसपोर्ट वीर, प्रशासनिक वीर, शिक्षा वीर जैसी योजनाएं भी लानी जानी चाहिए.
यह हकीकत है कि सरकारी नौकरियों में जमे तमाम लोग 'दामाद' बन कर बैठ जाते हैं, और उसी तरह व्यवहार भी करते हैं, इसीलिए सरकारी क्षेत्र एक प्रतियोगी क्षेत्र नहीं बन पाता है. आखिर किसी भी सरकारी नौकरी में लोगों को 'सरकारी दामाद' क्यों बनाना चाहिए?

 सरकार को निश्चित रूप से अग्निपथ जैसी योजनाएं प्रत्येक सरकारी डिपार्टमेंट में लागू करनी चाहिए. अगर 25 लोगों की जगह है तो वहां पर 100 भर्तियां करनी चाहिए, और 4 साल के बाद सर्वाधिक काबिल 25 लोगों को ही नियमित जॉब पर रखा जाना चाहिए. इससे न केवल अधिक अवसर उत्पन्न होंगे, बल्कि सरकारी क्षेत्र काबिलियत की दिशा में तीव्र गति से आगे बढ़ेगा, प्रतियोगी भी बनेगा. हां इन प्रयोगों से समय-समय पर जो भी रिपोर्ट आयें, जो भी नतीजे आयें, उस अनुरूप सुधार की गुंजाइश भी बनी रहनी. 

पर प्रयोगों की धार को ही कुंद कर दिया जाए, यह कहीं से उचित नहीं है. इससे तो हमारा समाज जड़ हो जाएगा. वह चाहे मेरे गाँव वाले घर में फ्लैट बनाने का नया कांसेप्ट हो, या फिर अग्निपथ योजना हो. परिवर्तन, प्रयोग समाज का अनिवार्य नियम हैं.आप क्या सोचते हैं, कमेन्ट बॉक्स में अपने विचार, अपने प्रयोग से हमें अवश्य अवगत कराएं.

लेखकमिथिलेश कुमार सिंहनई दिल्ली 
Published on 21 June 2022 (Update: 21 June 2022, 22:06 IST)

एक पत्रकार हैं, तो सीखने-जानने-समझने एवं जूनियर्स को बताने हेतु इन लेखों को अवश्य पढ़ें:

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