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क्या है पीआरबी एक्ट (PRB Act) 1867 - in Hindi

PRB Act 1867 - Press and Registration of Books Act 1867 in Hindi

लेखकमिथिलेश कुमार सिंहनई दिल्ली 
Published on 25 Nov 2022

पहले के समय में जहां खबरें देने का माध्यम प्रिंट मीडिया थे, अखबार या मैगजीन भर थे।  बाद के दिनों में यह इलेक्ट्रॉनिक्स मीडिया में कन्वर्ट हुआ, और अब डिजिटल मीडिया ने इनकी संख्या और अहमियत दोनों ही बहुत बढ़ा दी है। 

संख्या बढ़ने में कोई समस्या नहीं है, किन्तु समस्या तब उत्पन्न होती है, जब इसे लेकर बहुत सारे लोग कंफ्यूज होते हैं, और इस कंफ्यूजन से कईयों का नुकसान होता है, तो कई लोग एक दूसरे को धोखा देने की फिराक में भी रहते हैं, वहीं कई लोग एक दूसरे को धमकी भी देते हैं। 

खासकर डिजिटल मीडिया चलाने वाले लोगों को कई तरह की समस्याओं का सामना करना पड़ता है, और इनमें सबसे बड़ी समस्या है 'लीगल प्रेस आईडेंटिटी कार्ड' इशू करना! 

कई पत्रकार साथियों को इसको लेकर अपमान भी झेलना पड़ता है। ऐसे में यह जानना जरूरी हो जाता है कि PRB Act 1867 (Press and Registration of Books Act) आखिर है क्या? 
आपको बता दें कि यह अंग्रेजों के जमाने का बनाया गया कानून है। क्योंकि अंग्रेज अखबारों को लेकर बहुत सजग थे, और तत्कालीन समय में क्रांतिकारी आवाजों को दबाने के लिए यह कानून बनाया गया था।  

इतना ही नहीं, प्रत्येक जगह पर यह कानून को अनिवार्य कर दिया गया था, कि जो भी अखबार खुलेगा, उसकी समस्त सूचनाएं तत्कालीन समय के प्रेसीडेंसी को देना ही पड़ता था। बता दें कि यही प्रेसिडेंसी आज के समय में डिस्ट्रिक्ट मजिस्ट्रेट कहे जाते हैं। हालांकि आजादी के बाद इसमें कई संशोधन हुए, लेकिन आज भी डिस्ट्रिक्ट मजिस्ट्रेट के हाथ में अखबार की पावर है, और जब भी कोई व्यक्ति अखबार खोलने जाता है, तब डिस्ट्रिक्ट मजिस्ट्रेट इस बात की जांच पड़ताल करता है, कि उस व्यक्ति का रिकॉर्ड क्या है!

हालांकि डिस्ट्रिक्ट मजिस्ट्रेट के हाथ में यह पावर नहीं है, कि वह किसी अखबार खोलने वाले व्यक्ति को मना कर दे। बेशक उसे कोई भी आशंका हो, किन्तु यह उसका बेसिक दायित्व बनता है कि वह इसे स्वीकार करें, अन्यथा उसकी शिकायत की जा सकती है। 

अगर कोई डिस्ट्रिक्ट मजिस्ट्रेट इस बात से इंकार करता है, तो आप प्रेस काउंसिल आफ इंडिया में अपीलेट अथॉरिटी के पास शिकायत दर्ज कर सकते हैं। 

अब आपको बता दें, कि अगर आप का अखबार रजिस्टर्ड हो जाता है, तो आप उसके मालिक हो गए हैं। आप चाहे तो किसी और को संपादक नियुक्त कर सकते हैं, या खुद भी संपादक रह सकते हैं। हालांकि भारत में अधिकांश अख़बारों के मालिक होते हैं, वही पब्लिशर होते हैं, वही इसके संपादक भी होते हैं। तो ऐसी स्थिति में आप स्वयं भी प्रेस आई कार्ड को इशू कर सकते हैं, उस पर सिग्नेचर कर सकते हैं। 

प्रेस एवं पुस्तक रजिस्ट्रीकरण अधिनियम 1867 के तहत प्रमुख प्रावधानों को आइये जानते हैं

प्रेस एवं पुस्तक रजिस्ट्रीकरण अधिनियम 1867 के तहत प्रमुख प्रावधान निम्न हैं:

  • प्रत्येक समाचार पत्र में मुद्रक, प्रकाशक व संपादक का नाम, मुद्रण व प्रकाशन स्थल के नाम का उल्लेख होना चाहिए।
  • मुद्रण के लिये जिलाधिकारी की अनुमति आवश्यक है।
  • समाचार पत्र के मालिक व संपादक का नाम प्रत्येक अंक में प्रकाशित होना चाहिए।
  • समाचार पत्र के नाम, प्रकाशन की भाषा, अवधि, संपादक, प्रकाशक आदि के नाम में परिवर्तन होने पर उसकी सूचना सम्बन्धित अधिकारियों को दी जानी आवश्यक है।
  • एक वर्ष तक समाचार पत्र का प्रकाशन न हो पाने की दशा में जानकारी सम्बन्धी घोषणा पत्र रद्द हो जाएगा।
  • प्रत्येक प्रकाशित समाचार पत्र की एक प्रति रजिस्ट्रार आफ न्यूज पेपर्स इन इंडिया को तथा दो प्रतियाँ सम्बन्धित राज्य सरकार को निशुल्क उपलब्ध कराई जानी चाहिए।
  • रजिस्ट्रार आफ न्यूज पेपर्स इन इंडिया को वर्ष में एक बार समाचार पत्र का पूरा विवरण प्रेषित किया जाय, व इसे पत्र में भी प्रकाशित किया जाय।
तो आपको यह जानकारी कैसी लगी, कमेन्ट-बॉक्स में अवश्य बताएं.




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