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2023: यह कैसा जश्न? यह कैसा कल्चर? यह कैसा राजस्व?

  • दिल्ली में ही 218 करोड़ से अधिक की एक करोड़ बोतलें बिकने से दिल्ली सरकार को 560 करोड़ का राजस्व मिला, जिसका इस्तेमाल संभवतः फ्री बिजली पानी देने में होगा!
  • नोयडा में IT कंपनियों के ऑफिस में अब 24 घंटे शराब मिलेगी, और उस शराब के पैसे से देश को ट्रिलियन डॉलर की इकॉनमी और संभवतः विश्वगुरु बनाने में मदद मिलेगी!

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लेखकमिथिलेश कुमार सिंहनई दिल्ली 
Published on 3 January 2023 (Update: 3 Jan 2023, 13:52 IST)

दिल्ली की सड़कों पर 20 साल की एक लड़की अंजली सिंह के क्षत-विक्षत शव ने यह सोचने पर मजबूर कर दिया है कि हम किस प्रकार से जश्न मनाने का कल्चर बना रहे हैं? नए साल 2023 के ऐसे स्वागत की उम्मीद तो शायद ही किसी भारतवासी ने की होगी!

आखिर किसी भी जश्न का मतलब शराब और हुड़दंग ही क्यों है?

इस पूरे लेख में कानून व्यवस्था की कोई बात नहीं करेंगे, बल्कि कुछ सार्थक आंकड़े आपके सामने रखेंगे. इसे देखें, और आप खुद विचार करें कि क्या वाकई हम भारतवासी ऐसे ही थे, या फिर यही सोच लीजिए कि क्या वाकई हम ऐसा ही बनना चाहते हैं?

कानून व्यवस्था जो है सो है ही, उसकी कार्यप्रणाली पर बात होती ही है, होती ही रहेगी, परंतु यकीन मानिए इससे बड़ा कारण हमारी सरकारें हैं, हमारा समाज है, हमारी संस्थाएं हैं, और स्वयं हम भी हैं?
शराबी, हुड़दंगी, नशे की हालत में रोड पर अनियंत्रित गाड़ी चलाना, फिर जेल की सलाखों के पीछे नजर आना... क्या सच में यही जश्न है?

इस खबर के साथ दो और खबरों को देखिए...

एक आंकड़ा आया है जिसमें 24 से 31 दिसंबर 2022 तक, सिर्फ दिल्ली में ही 218 करोड रुपए से अधिक कीमत की एक करोड़ बोतलें बिक गयीं. सिर्फ नए साल की पिछली रात, यानी 31 दिसंबर को ही 45 करोड़ से अधिक की शराब बिकी.निश्चित रूप से इससे दिल्ली सरकार को तकरीबन 560 करोड़ रुपए का राजस्व मिला, और इस राजस्व का उपयोग संभवतः दिल्ली वासियों को फ्री बिजली पानी देने में किया जाएगा.
मामला बड़ा साफ है, और वह यह है कि दिल्ली वालों को खूब शराब पिलाओ, और उनसे पैसे लेकर, बाद में उन्हीं पैसों से उनको फ्री बिजली पानी दे दो!
और यह बात सिर्फ दिल्ली की ही नहीं है, नए साल के शुभ अवसर पर, एक और खबर आपको बताते हैं, और वह ख़बर श्रीराम और श्रीकृष्ण के प्रदेश उत्तर प्रदेश के नोएडा से है. नोएडा से यह खबर है कि वहां की आईटी और आईटीईएस (IT & ITes) यानी आईटी इनेबल्ड सर्विसेज कंपनियों के ऑफिस में अब बार खुल सकेंगे. नोएडा अथॉरिटी द्वारा इस प्रस्ताव को मंजूरी दी गई है, और बताया जा रहा है कि इसकी मांग लंबे समय से चल रही थी.आखिर, ऐसे समाज के ज़रूरी मुद्दों की मांग लंबे समय से चलनी ही चाहिए. 

अर्थात अब नोएडा के ऑफिसों में जो भी कर्मचारी और अधिकारी हैं, वह जाम छलकाते हुए अपना काम करेंगे. 

निश्चित रूप से इससे भारतवर्ष को 5 ट्रिलियन या उससे अधिक ट्रिलियन डॉलर इकोनॉमी बनने में मदद मिलेगी, जो अंततः भारत को विश्वगुरु बनाने में मदद करेगा!

मामला बड़ा साफ है कि अब 24 घंटे जिन कंपनियों में काम होता है, वहां पर नोएडा अथॉरिटी भी आसानी से बाहर खोलने की एनओसी दे सकती है, और अधिकारियों द्वारा किसी कागजात पर किस प्रकार से साइन होता है, कैसे आसानी से नो ऑब्जेक्शन सर्टिफिकेट मिलता है, इसकी व्यवस्था कंपनियों की मोटी पॉकेट्स को बखूबी आता है. तो अब भारत में लोग जमकर काम करेंगे, और थकने के बाद शराब पी पीकर काम करेंगे!

बाकी ऑफिस से निकलने के बाद उन लोगों में से नशे की हालत में कोई रोडवेज करे, कोई अनियंत्रित ड्राइविंग करे, कोई किसी बच्ची का रेप करे, इससे भला किसी अथॉरिटी को, किसी सरकार को क्या मतलब है?
और ऑफिस से निकलने के बाद ही क्यों, ऑफिस में ही अगर किसी लड़की का गैंग रेप हो जाए, तो फिर पुलिस है ही... सारा ठीकरा सरकारें उस पर फोड़ देंगी... जनता का गुस्सा उस ओर मोड़ देंगी!

इस दारू के पैसे से कोई राजनेता ट्रिलियन डॉलर की इकोनॉमी बनाने का वादा करेगा, तो कोई उसी जनता को फ्री बिजली पानी देकर जनता का मन मोहते हुए, चुनावों में क्लीन स्वीप कर देगा।

परंतु प्रश्न वही है कि शराब के पैसे से चाहे जितने ट्रिलियन डॉलर की इकॉनमी हम बना लें, उससे भला क्या मिलेगा?शराब के पैसे से चाहे जितनी चीजों को हम जनता को फ्री दे दें, आखिर उससे अंजलि जैसी लड़की को कार के नीचे 13 किलोमीटर ता घसीटने वाला ही तो समाज बनेगा?

ऐसा नहीं है कि शराब को बंद कर देने से यह समस्याएं हल हो जाएंगी. शराबबंदी वाले बिहार में इसी 2022 की दिसंबर में ही 70 से अधिक लोगों की मौत हुई, और यह अवैध शराब पीने के कारण हुई. तो शराबबंदी भला इसका विकल्प कैसे हुई?

और बिहार ही क्यों, गुजरात में भी शराबबंदी होने के बावजूद शराब भला गुजरात के किस हिस्से में नहीं मिलती है?

हकीकत तो यह है कि यह जीवन मध्य मार्ग में है... ना ही शराबबंदी, और ना ही शराब का इतना प्रचार-प्रसार ही उचित है. यह दोनों स्थितियां अतिवादी हैं. 
भिन्न सरकारों द्वारा शराब को राजस्व (Revenue-Stream) के मुख्य सोर्स के रूप में सम्मिलित करना, समाज के हित के पूर्णतः विपरीत है. 

वास्तव में सार्वजनिक स्थानों पर तो कड़ाई से शराबबंदी होनी चाहिए, लाइसेंस प्रक्रिया इतनी जटिल होनी चाहिए, ताकि किसी अधिकारी को घूस खिलाकर उसे कोई हासिल न कर सके! 

अगर संभव हो सके, तो आधार कार्ड से लिंक करके शराब की बिक्री करनी चाहिए, एक कोटा फिक्स करना चाहिए. आखिर, दुनिया भर की तमाम सर्विसेज अगर आधार से लिंक हो सकती हैं, तो शराब की बिक्री क्यों नहीं?

आर्मी जैसी सर्विसेज में जिस प्रकार से प्रत्येक आर्मी पर्सनल (Army Personnel) को एक कोटे के तहत शराब दी जाती है, उसी प्रकार आम जनता को भी, व्यक्तिगत इस्तेमाल के लिए एक कोटे के तहत सीमित मात्रा में ही मिलना चाहिए. ऐसा नहीं होना चाहिए कि किसी के पास अधिक पैसा है, तो वह शराब की नदियाँ बहा दे! 

निश्चित रूप से ऐसा बैलेंस किया जा सकता है कि न तो बिहार जैसे राज्यों की तरह ब्लैक मार्किट पैदा हो, न ही दिल्ली जैसे राज्यों में अनियंत्रित शराब की नदी ही बहे!

जरा सोचिए! इतनी आसानी से इस चीज की उपलब्धता लोगों को किस ओर ले जा रही है, और अंततः वह समाज के ऊपर किस प्रकार से अपना प्रभाव डाल रहे हैं? खुद विचार कीजिए, सोचिए कि नए साल का स्वागत हो, या फिर शादी-विवाह जैसा ही कोई अवसर क्यों न हो, इस तरह की हुड़दंग, इस तरह की असंवेदनशीलता हमें, और हमारे लोगों को किस दिशा में ले जा रही है?

आखिर, किसी कार के नीचे कोई व्यक्ति घिसट रहा है, और उस कार में बैठे 5 लोगों को इसका पता ही नहीं चल रहा है? अगर पता भी चल रहा है, तो आखिर कौन सा नशा है, जो उन पांचों को नहीं रुकने दे रहा था?

आखिर अंजलि हमारे घर की भी तो बहन - बेटी - पत्नी हो सकती है? या आप सोचते हैं कि आप मुक्त हैं? सच कहा जाए तो चाहे शराबबंदी करें, या ना करें, किंतु सार्वजनिक शराब के सेवन पर पूर्ण प्रतिबंध की आवश्यकता है. यह पूर्णतः व्यक्तिगत होना चाहिए. और सरकारों को इस बात के प्रति खास रूप से सचेत होना पड़ेगा कि भारत को शराब के पैसे से विश्व गुरु नहीं बनाया जा सकता? या दिल्ली वासियों को फ्री बिजली पानी देकर, बेवड़ा बनने की राह पर नहीं धकेला जा सकता!

ऐसी मुफ्त चीजों का भला क्या लाभ? या फिर ऐसे ट्रिलियन डॉलर की इकॉनमी का ही क्या लाभ, जिसकी जड़ में शराब ही शराब हो!

गाँवों में यह प्रचलित कहावत चलती है कि चाहे जितना धन कमा लो, एक शराबी बेटा ही उसे बर्बाद करने के लिए काफी है... और यहाँ तो हम पूरे समाज को ही शराबी बना रहे हैं, वह भी जश्न के नाम पर महिमंडित करते हुए, वह भी राजस्व-प्राप्ति की जस्टिफिकेशन के साथ?
  • आखिर यह कैसा जश्न है? 
  • आखिर यह कैसा कल्चर है? 
  • आखिर यह कैसा राजस्व प्राप्ति का मार्ग है?

स्वयं विचार कीजिए!

लेखकमिथिलेश कुमार सिंहनई दिल्ली 
Published on 3 January 2023 (Update: 3 Jan 2023, 13:52 IST)


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