What is the cause of atrocities on Journalists? |
खबरों में ऐसा शायद ही कोई दिन गुजरता हो, जब हमें यह सुनने को ना मिले कि 'अमुक पत्रकार पर अमुक जगह' पर हमला हुआ...
या फिर किसी पत्रकार के साथ धक्का-मुक्की हुई, या फिर किसी पत्रकार को सरकारी दफ्तर से भगा दिया गया, या फिर किसी पत्रकार को माफिया ने धमकी दी... !!
जाहिर तौर पर इस तरह की तमाम समस्याओं से हम दो-चार होते रहते हैं, लेकिन इन समस्याओं के मूल में जाकर हमें यह समझना जरूरी है कि, आखिर पत्रकारों पर अत्याचार का मूल कारण क्या है? सच कहा जाए तो आप चाहें सही हैं, या गलत हैं... यह सबसे बाद में तथ्य आता है, पहले यह तथ्य आता है कि आप मजबूत हैं या कमजोर हैं?
जब मजबूती और कमजोरी की बात आती है, तो लोकतंत्र में मजबूती 'संगठन' के अलावा कुछ और नहीं हैं। अगर आप संगठित नहीं हैं, तो आप कमजोर हैं, और अगर आप संगठित हैं, तो निश्चित तौर पर आप मजबूत हैं।
जब आप संगठित होने की बात करते हैं, तो उसका सबसे मूल मंत्र है, कि अपने जैसे लोगों के साथ आप संवाद बनाए रखिए। न्यूज़ पोर्टल्स एसोसिएशन समान विचारधारा के लोगों के साथ निरंतर संवाद बनाने में यकीन रखता है, और प्रत्येक रविवार सुबह 11:00 बजे से हमारी बैठक होती है। यह बैठक किसी फिजिकल प्लेस पर होने की बजाय ऑनलाइन होती है और सिर्फ लोगों को, प्रत्येक सप्ताह 40 मिनट का समय भर निकालना होता है।
वहीं अगर दूसरे फैक्टर की बात करें तो, दूसरा फैक्टर है 'विश्वसनीयता'!
जब एक पत्रकार ठीक ढंग से, फैक्ट्स के साथ लागातार लिखता है, तो वह विश्वसनीय होता है। वहीं जब आप 'पीत पत्रकारिता' (Yellow Journalism) करते हैं,ब्लैक मेलिंग करते हैं, तो निश्चित रूप से आप कभी न कभी लपेटे में आ ही जाते हैं!
इसीलिए ब्लैक मेलिंग की सोच से आपको बचना चाहिए, क्योंकि कई पत्रकार किसी को एक बार ब्लैकमेल तो जरूर करने की कोशिश करते हैं, लेकिन बाद के दिनों में इस वजह से शत्रुता बढ़ जाती है। तो प्रत्येक पत्रकार को इससे बचना चाहिए।
सीनियर जूनियर के बीच तकरार तीसरा महत्वपूर्ण कारण है!
खासकर जब डिजिटल मीडिया का प्रभाव बढ़ रहा है, तब पुराने प्रिंट मीडिया के पत्रकार इस तरह की प्रतिद्वंद्विता की भावना रखने लगे हैं। कई जगह ऐसा देखा गया है कि अधिकारियों तक को सीनियर पत्रकार उकसा रहे हैं कि अमुक डिजिटल पत्रकार तो फर्जी पत्रकार है। जबकि कानूनी रूप से यह पूरी तरह ग़लत तथ्य है!
ऐसी अवस्था में आपसी प्रतिद्वंद्विता भी बढ़ती है, और बिखराव का मैसेज आता है। पत्रकारिता में बिखराव का मैसेज कहीं ना कहीं प्रत्येक पक्ष के लिए नुकसानदायक होता है।
आप क्या सोचते हैं?
पत्रकारों पर अत्याचार के और क्या- क्या मूल कारण हैं, कमेंट बॉक्स में जरूर बताइए, और हमारे न्यूज़ पोर्टल एसोसिएशन पर इस विषय पर विस्तार से चर्चा हुई है, उसको भी अवश्य सुनिए।
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