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संयुक्त परिवार का 'नया स्वरुप' - (समाधान परक लेख)


लेखकमिथिलेश कुमार सिंहनई दिल्ली 
Published on 21 May 2023 

संयुक्त परिवार शुरू से ही मेरा पसंदीदा विषय रहा है। बजरंगबली की कृपा रही है कि जन्म से ही पारिवारिक माहौल मिला है, और इसी कारण बुद्धि पर उसका सदप्रभाव भी बना रहा है। 

मैंने होश संभालते ही देखा है कि, मेरे  स्व. बड़े पापा गांव पर खेती-बड़ी करते थे, तो मेरे पिताजी और चाचा जी भारतीय सेना में अपनी ड्यूटी करते थे। जब वह लोग छुट्टी पर गांव आते थे, तब अपनी अटैची खोल कर सभी घरवालों को बैठा कर कैंटीन से लाए हुए सामान दिखलाते थे और बांट देते थे। उसमें सबके लिए कुछ न कुछ होता ही था। किसी के लिए कपड़े, किसी के लिए साबुन, किसी के लिए चायपत्ती, तो बच्चों के लिए कैंटीन की चॉक्लेट्स आदि... 
संभवतः यह वह पहला बीज था, जिसने कुटुंब की भावना को मेरे हृदय में वास्तविक रूप से उत्पन्न किया। 

बाद के दिनों में कई परिवर्तन आये। चूंकि मेरे पिताजी, चाचाजी सेना में अपना कर्तव्य-पालन कर रहे थे, तो अपने छोटे भाईयों को साथ लेकर अलग-अलग जगहों पर अध्ययन करने का सुअवसर मिला, और कुटुंब की भावना और मजबूत होती गयी।

फिर इसी क्रम में मेरा साहित्यिक जुड़ाव होने लगा, और समाज को अध्ययन करने के क्रम में यह देखा कि, संयुक्त परिवारों का विघटन आम बात होती जा रही है। जो भाई जीवन का एक तिहाई हिस्सा साथ में व्यतीत करते हैं, साथ में खेलते- पढ़ते- सीखते हैं, वही भाई-भाई आपस में लड़ने लगते हैं, और बड़ी जल्दी लोगों में अलगाव हो जाता है, तनाव हो जाता है। 

बात इस अलगाव पर ही नहीं रूकती, बल्कि इस क्रम में परिवार का विकास ठप हो जाता है। कई बार तो एक ही मां के पेट से जन्मे भाई अपनी ही संपत्ति के विवाद में अदालतों में मुकदमे लड़ते रहते हैं। इसे देखकर मन बड़ा विचलित रहता था कि, जो परिवार सभी के हितों का संरक्षक है, आखिर उस का विघटन हो क्यों रहा है?

जो कुटुंब भाव विकास का संरक्षक है, वह विघटित क्यों हो रहा है भला?
समाज के लोगों को यह वाकई समझ नहीं आ रहा है, या फिर बात कुछ और है?

मेरी जूझने की प्रवृत्ति रही है, और संयुक्त परिवार में पलने के कारण यह प्रवृति निखरी भी है, अपने साहित्यिक गुरुओं से यह सीख मिली है कि, जब समस्या है तो समाधान भी है। 

इस क्रम में बहुत सारे लेख पढ़े और लिखे भी, टेक्नोलॉजी से लेकर तमाम चीजों से इसका समाधान बनाने की कोशिश करता रहा पर मन भीतर से बेचैन रहता था, क्योंकि समाज में विघटन तो साफ नजर आता था। 

इस बीच अपने परिवार को लेकर भी कई व्यावहारिक चुनौतियां सामने आती गईं, और मन - मस्तिष्क इन बातों पर विचार करता चला गया।

विचार करने से इनमें से कुछ का समाधान निकलता तो कुछ समस्याएं उलझी रह जातीं। 

इसी बीच मुझे कहीं से एक व्हाट्सअप फॉरवर्ड आया, जो संयुक्त परिवार के सम्बन्ध में था।
क्योंकि मैं संयुक्त परिवार के विषय पर विचार करता रहता हूं, लिखता रहता हूं, इसलिए संबंधित सूचना, लेख आदि मेरे पास रहते हैं। 

उस व्हाट्स सन्देश में एक पत्रिका ने संयुक्त परिवार पर एक लेखन प्रतियोगिता आयोजित की थी। उसमें लिखा था कि संयुक्त परिवार के लोग पुरानी परंपराओं के अनुसार लंगोट पहनें, लड़कियां दुपट्टा लगाएं, गुरु परंपरा के अनुसार शिष्य आरुणि और एकलव्य जैसे हों... और ऐसी ही कई बातें उसम लिखी थीं!

आम तौर पर जब कोई संयुक्त परिवार के संबंध में बात करता है, तो मैं प्रसन्न होकर और उत्सुक होकर उसकी बात को सुनता हूं, किंतु यह बातें पढ़ते हुए मेरा मन खिन्नता से भर गया और मैं समझ गया कि आज के समय में ये बिल्कुल ही अव्यवहारिक बातें हैं!
किसी भी परिवार को जोड़ना तो छोड़ दीजिए बल्कि इस प्रकार की रूढ़िवादी बातें, विघटन का ही कारण हैं। 

खैर, इसी क्रम में विचार चलता रहा और दिल्ली में मैं जहां रहता हूं, उसी के बगल में एक प्लाट में फ़्लैट का निर्माण हो रहा है। यह तकरीबन 400 गज के आसपास की जमीन है, जिसमें पहला लेंटर पड़ गया है, और यह लेख तैयार करते समय उसमें कितने फ्लैट निकल रहे हैं, इसका स्ट्रक्चर सामने आ गया था।

अपनी बिल्डिंग के टेरेस पर कभी सुबह तो कभी शाम के खाने के बाद टहलते हुए, मैं और मेरी पत्नी अक्सर उस बिल्डिंग को देखते हैं, उसके नक्शे पर चर्चा करते हैं, कहां बाथरूम निकल रहा है, कहां किचन निकल रहा है, बड़ी उत्सुकता से उसको देखते हैं। 
इसमें 75 -75 गज के 4 फ्लैट के साथ 50-50 गज के दो फ़्लैट का नक्शा इस बिल्डिंग में निकला है। हम सभी को पता है कि, महानगरों में फ़्लैट लेना ही अपने आप में एक बड़ी उपलब्धि है, और बाहर की दुनिया से अगर दिल्ली या मुंबई जैसे महानगर में कोई व्यक्ति जाता है, तो अपने लिए वह एक ठिकाना देखता ही है।
फिर एक ठिकाना लेने के बाद उसके मन में दूसरे के प्रति भी स्वाभाविक सी उत्सुकता जागती ही है!

जरा सोचिए एक फ्लोर पर 6 फ्लैट और पार्किंग कह लीजिये, या ग्राउंड फ्लोर कह लीजिये - उसे छोड़कर, कुल 4 फ्लोर की इजाजत है दिल्ली में अभी। ऐसे में कुल 24 फ्लैट इस बिल्डिंग में बनने वाले हैं, अर्थात 24 अलग लोग इन 24 फ़्लैट में आकर रहेंगे। या यूं कह लीजिये कि एक बिल्डिंग में 24 अलग लोग रहेंगे!

आश्चर्य की बात तो यह है कि इन 24 लोगों के विचार, परिवेश यहां तक की भाषा, प्रदेश, इनकम का स्तर सब अलग-अलग होगा। 
कितनी विचित्र बात है, कि इतनी डायवर्सिटी के बावजूद यह सभी लोग एक साथ रहेंगे, किसी 'संयुक्त परिवार' की ही भांति!

जरा सोचिए... ध्यान से सोचिये, और यह आपके दिमाग के तार को झनझना देगा!

गांव में जहां एक परिवार रहता है, एक संस्कार रहता है, एक ही जमीन रहती है, एक ही रिश्तेदार, एक ही कुल देवता, वहां तो 'संयुक्त परिवारों का विघटन हो रहा है, और एक तरफ शहरों में संयुक्त परिवारों का निर्माण होता जा रहा है। 

आखिर शहरों में जो फ़्लैट बन रहे हैं, वहां पर रहने वाले लोग एक परिवार ही तो हैं। उनकी कॉमन सीढ़ी है, कॉमन लिफ्ट है, सफाई वाले से लेकर कूड़ा वाला तक कॉमन है। ऐसा नहीं है कि, उनके बीच में कोई विवाद नहीं होता है, आपस में कोई समस्याएं नहीं होती हैं, किंतु उन्हें सुलझाने के लिए 'कॉमन नियम' भी तो बन जाते हैं, और इस तरीके से अनजान लोग एक परिवार के रूप में जुड़ते जा रहे हैं... या यूं कहें कि 'संयुक्त परिवार' के रूप में जुड़ते जाते हैं।

हालांकि, कई लोगों के लिए यह अनुभव थोड़ा अलग भी हो सकता है। जहां भी मनुष्य रहते हैं, वहां अलग अनुभव, अलग संघर्ष होते ही हैं... चाहे सतयुग की बात की जाए, त्रेतायुग की जो कहानियां हैं, या फिर द्वापर युग की महाभारत ही क्यों न हो... हर युग में संघर्ष रहा है। 
ऐसे में फ्लैट कल्चर में रहने वाले लोगों के बीच भी यदा कदा संघर्ष रहता ही है, लेकिन जरा नजदीक से जाकर देखिए, कि क्या उनके बीच में एक परिवार डिवेलप नहीं हो रहा है?
यह नयी डेवलपमेंट 'संयुक्त परिवार' का नया स्वरुप नहीं है तो और क्या है भला?

इसके बीच में कई चुनौतियां भी आती हैं, यह स्वभाविक है, किंतु उन चुनौतियों को सुलझाने के लिए सक्रिय लोग आगे भी तो आते हैं, उसी बिल्डिंग में कई लोग गार्जियन की तरह एक दूसरे के सुख-दुख में काम भी तो आते हैं। वस्तुतः यह पूरी तरह से आपके अपने स्वाभाविक व्यवहार के ऊपर निर्भर करता है। आप जैसा चाहते हैं, वैसा ही प्रयत्न करते हैं, उसी प्रकार सक्रीय या निष्क्रिय रहते हैं, उसी प्रकार सकारात्मक या नकारात्मक व्यवहार करते हैं, और आपका परिवार भी वैसा ही बन जाता है। 

मैं अगर अपनी बात करूं तो ऐसे ही एक बिल्डिंग में 2017 से मैं रह रहा हूं, जिसमें 18 अलग-अलग पृष्ठभूमि के परिवार हैं। यकीन मानिए तमाम चुनौतियों के बावजूद हमारी बिल्डिंग एक परिवार है। संयुक्त परिवार के सभी लक्षण मैंने पिछले 6 सालों में यहाँ महसूस किया है। लोगों से लड़ाईयां भी होती हैं, झगड़े भी होते हैं, लेकिन किसी भाई की तरह, किसी चाचा की तरह, किसी पिता की तरह, माता की तरह लोग भी यहीं हैं। जरूरत है, तो बस इस सच्चाई को स्वीकार करने की। 

चूंकि हर किसी ने अपनी गाढ़ी कमाई इन्वेस्ट की है, इसलिए हर कोई ऐसे नियम चाहता है, जिससे न केवल उसकी इन्वेस्टमेंट सुरक्षित रहे, बल्कि उसके परिवार को एक सुरक्षित और बेहतर माहौल भी मिले। बस ज़रुरत होती है, तो तालमेल की, दीर्घकालिक नियमों को बनाने और उसे सुधारते रहने की। अपने छोटे छोटे स्वार्थों से ऊपर उठकर अगर आप परिवार का भाव सिंचित करते हैं, तो यकीन मानिये, आप जल्द ही इसे हासिल भी कर लेंगे!

कठिनाइयां या विरोधाभास आने पर लोगों के साथ सामंजस्य बनाकर अगर आपने सच में बेहतर नियमों को तय किया है, तो सब कुछ आसान होता जाता है। खैर, इस पर किसी और लेख में अत्यंत विस्तार से बात होगी, किन्तु यह तो तय है कि यह नए स्वरुप में 'संयुक्त परिवार' ही है!

आज मैं गर्व से कह सकता हूं कि, मैं जहां रहता हूं, वहां मेरे बच्चे एक अच्छे पारिवारिक माहौल में पल रहे हैं, एक सुरक्षित माहौल है वहां।
कमाई की आपाधापी, बेतहाशा दौड़ में बेशक आजकल हम सभी अपने परिवारों से अलग रह रहे हैं, किंतु हम सभी के भीतर कुटुंब की भावना आज की नहीं है, बल्कि वैदिक काल से ही यह रही है।

आखिर ऐसे ही तो नहीं कहा गया है 'वसुधैव कुटुंबकम'!

अब जरूरत है तो इस चीज को समझने की और सीखने की। हो सकता है कि आप भी तमाम चुनौतियों की वजह से अपने परिवार से दूर रह रहे हों, किंतु जिनके बीच में भी आप रह रहे हैं, उन्हें गैर ना समझें, उन्हें आप अपना भाई ही समझें, उन्हें आप अपना अंकल ही समझें, किसी को चाची समझें और वास्तव में खुद को ट्रेनिंग दें कि, एक नए परिदृश्य में परिवार के माहौल का निर्माण किस प्रकार हो सकता है। 

इसका मतलब यह कतई नहीं है कि अपने असली परिवार को आप भूल जायें! आखिर, जिनके साथ बचपन गुजरा है, जीवन का एक तिहाई से अधिक हिस्सा गुजरा है, जिनके साथ कॉमन संपत्तियां हैं, जिनके साथ कॉमन रिश्तेदारियां हैं, कॉमन कुल देवता से लेकर जिनके साथ हमारा व्यक्तित्व तक कॉमन है, उनको आप कैसे भूल सकते हैं भला!
आखिर, जब हम शहरों में बिल्कुल ही अंजान लोगों के साथ 'संयुक्त परिवार' बना सकते हैं, तो अपने 'संयुक्त परिवार' में विघटन को कैसे नहीं रोक सकते?

ज़रुरत है तो गंभीरता से विचार करने की, बदलते समय के हिसाब से नियमों को तय करने की। आपस में बैठकर व्यावहारिक चुनौतियों का समाधान करते हुए अगर हम खुद में बदलाव लाने का प्रयास करें तो क्या यह मुश्किल है? हाँ! अगर हम लंगोट और दुपट्टे की पुरानी सोच को नए 'संयुक्त परिवार' की सोच बनायेंगे, तो यह भला किस प्रकार व्यावहारिक होगा भला? 

आज हम 2023 में हैं, जहाँ परिवार का स्वरूप बदल चुका है, अर्थ से लेकर बुद्धि और लोगों के हित बदल चुके हैं, और जितनी जल्दी हम इसे स्वीकार कर लेंगे, उतना ही बेहतर होगा। नए बदलावों के साथ, नए नियम बनाने ही होंगे, और उनका पालन भी सुनिश्चित करना होगा!

बेशक इस प्रक्रिया में थोड़ा बहुत संघर्ष होगा, पुराने नियमों को बदलने से पुराने लोग तात्कालिक रूप से नाराज भी होंगे, लेकिन यकीन मानिये संयुक्त परिवार का विघटन करके 'विकास का मार्ग अवरुद्ध' करने से यह काफी सस्ता सौदा होगा!

ऐसी स्थिति में पलायन के कारण हम जहां रहते हैं, न केवल वहां संयुक्त परिवार का निर्माण कर सकेंगे, बल्कि जो वास्तव में हमारे जन्म से ही संयुक्त परिवार हैं, वहां भी उतनी ही अथॉरटी, उतनी ही सक्षमता के साथ प्रबंधन भी कर सकेंगे। 

इसके बाद भी चुनौतियां आएंगी, लेकिन उन चुनौतियों से भागने की बजाय उसका यथासंभव समाधान तलाशना ही मनुष्य को विकास के पथ पर आगे बढ़ा सकता है। सोचिए दीर्घकालिक समाधान किसमें है, दीर्घकालिक लाभ किसमें है, फिर सलाह लीजिये और उसको डॉक्यूमेंट कीजिए, मेल लिखिए, जो कुछ नकारात्मकता आ सकती है, उसे नियमों के आधार पर लेकर चलने की कोशिश कीजिए। 

क्या यही विकास का मूल मंत्र नहीं है?
क्या यही तनाव से दूर रहने का मूल मंत्र नहीं है? 
क्या यही संपत्ति, सुख-समृद्धि बढ़ाने का मंत्र नहीं है?

स्वयं विचार कीजिए

प्रश्न आमंत्रित हैं, सुझाव आमंत्रित हैं, अनुभव आमंत्रित है, संयुक्त परिवार पर अगर कोई विचार हों, तो मुझे मेरे व्हाट्सएप नंबर पर संपर्क कर सकते हैं: 99900 89080

संयुक्त परिवार में अगर रुचि है, तो 14 पॉइंट्स में लिखा 'व्यक्ति निर्माण' पर यह उपयोगी लेख अवश्य देखें...

लेखकमिथिलेश कुमार सिंहनई दिल्ली 
Published on 21 May 2023 

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