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कॉलेज प्लेसमेंट के बाद कंपनियों की मनमानी का मंतव्य! College placement, Corporate sector and Engineering graduates, Hindi Article, Mithilesh

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भारत से जितने ग्रैजुएट निकल रहे हैं, उनमें से बेहद कम ही नौकरी पा रहे हैं जबकि बाकियों को संघर्ष के रास्ते आगे बढ़ना पड़ता है. हालाँकि, बात जब आईआईटी और आईआईएम जैसे प्रतिष्ठित संस्थानों की होती है तो यहाँ से ग्रेजुएट होने वाले लड़कों को अब तक बढ़िया प्लेसमेंट मिलती रही है, किन्तु कुछेक वाकये ऐसे भी सुनने को मिल रहे हैं, जिसे जानकर लड़कों का कॉलेज प्लेसमेंट से भरोसा ही उठ जायेगा! वैसे, छोटी मोटी कंपनियां पब्लिसिटी पाने के लिए कैम्पस प्लेसमेंट को एक हथियार की तरह इस्तेमाल करती रही हैं. मतलब, कैंपस प्लेसमेंट के नाम पर किसी कॉलेज में घुस जाओ, थोड़ा बहुत ड्रामा करो, कुछ लड़कों को सेलेक्ट करने के नाम पर एक कागज थमा दो और तमाम अख़बारों में, दूसरी मीडिया में अपनी कंपनी की पब्लिसिटी कर लो कि भाई हमने इन्हें हायर कर लिया, उन्हें हायर लिया. हम इतनी बड़ी कंपनी हैं, उतनी बड़ी कंपनी हैं और जब हायर होने वाले ग्रेजुएट्स जोइनिंग के लिए पहुंचे तो फिर प्लेसमेंट रद्द कर दो! हालाँकि, ऐसे तमाम ख़बरें अब तक बी और सी ग्रेड कंपनियों की ही आती रही हैं, किन्तु हालिया दिनों में ऐसा लगता है कि कई बड़ी कंपनियों को भी यह कीड़ा काट गया है. आईआईएम अहमदाबाद भारत का शीर्ष प्रबंधन संस्थान होने के साथ-साथ विश्व के गिने चुने संस्थान में से एक है. 

प्रबंधन के क्षेत्र को करियर के रूप में चुनने वाला हर एक छात्र चाहता है कि उसका दाखिला इस संस्थान में हो. आईआईएम अहमदाबाद से पढाई करना मैनेजमेंट के छात्रों का तो एक ख्वाब ही होता है, क्योंकि यहाँ के छात्रों की योग्यता का लोहा पूरी दुनिया मानती है. यहाँ के छात्रों को प्लेसमेंट भी टॉप के कम्पनियो में अच्छे पैकेज के साथ होता है. लेकिन आज कल जो सुनने में आ रहा है वह आईआईएम अहमदाबाद की साख के लिए कतई सही नहीं है. अब क्या हो रहा है यहाँ इसको बताने से पहले हम इसी तरह के एक घटनाक्रम को बताते चलें. अभी से करीब 7-8 साल पहले की बात है पुणे के जाने माने कॉलेज में मैनेजमेंट के अंतिम सेमेस्टर के परीक्षा से पहले जैसेकि तमाम कॉलेजों में कंपनियां प्लेसमेंट के लिए आती हैं, वैसे ही वहां टाटा जिंजर आई थी. टाटा जिंजर ने उस कॉलेज के छात्रों की नियुक्ति भी कर ली, लेकिन ठीक उसके 2 महीने बाद ही टाटा जिंजर ने उस कॉलेज के प्लेसमेंट को रद्द कर दिया था. 
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जाहिर है उस वाकये के तमाम कारण गिनाए गए होंगे, लेकिन सवाल उन बच्चों का है, जो प्लेसमेंट में सेलेक्ट होने के बाद बड़े-बड़े ख्वाब पाल बैठते हैं! आखिर उन जैसे ग्रेजुएट्स के साथ तो यह धोखा ही हैं! आईआईएम अहमदाबाद की बात करें तो यहाँ नियुक्तियाँ रद्द तो नहीं हुई हैं लेकिन कइयों को नौकरी ज्वाइन करने में बहुत ज्यादा समय लग रहा है. प्राप्त जानकारी के अनुसार, ई-कॉमर्स कम्पनी फ्लिपकार्ट ने आईआईएम अहमदाबाद के 18 छात्रों को नौकरी के लिए चुना था, जिसकी जॉइनिंग जून में होनी थी, लेकिन अब फ्लिपकार्ट की तरफ से यह कहा जा रहा है कि दिसम्बर से ज्वाइन करना है. यह बात फिल्पकार्ट के द्वारा आईआईएम अहमदाबाद के प्रशासन को खत लिख कर सूचित किया गया है. कंपनियों की इस मनमानी की वजह से आईआईएम अहमदाबाद में बवाल मचा है, हालाँकि, फ्लिपकार्ट इसकी भरपाई करने को भी राजी है. वह छात्रों को 1.50 लाख रुपयों हर्जाना देने को तैयार है, लेकिन छात्र नौकरी में देरी नहीं करना चाहते हैं. यदि भारत की शीर्ष संस्थान में ऐसा हुआ है तो इसमें कोई दो राय नहीं है कि दूसरे संस्थानों में भी ऐसा ही होता होगा. ऐसे में उन संस्थानों को आईआईएम की तरह ही आगे आकर अपने छात्रों का सहयोग करना चाहिए ताकि फिर से ऐसा ना हो. जानकारी के अनुसार, दूसरे तमाम संस्थानों के यह वाकया आम बात है और इसे उनके प्रबंधक हल्के में लेते हैं, जिससे छात्रों की मुसीबतें तो बढ़ ही जाती हैं. फ्लिपकार्ट की तरह एलएंडटी इंफोटेक पर भी नियुक्ति रद्द करने का आरोप लगा है. वैसे देखा जाय तो ऐसा वाकया होने के पीछे कई कारण हो सकते हैं, जिसमें सबसे बड़ा कारण आर्थिक मन्दी हो सकती है तो कई कंपनियों का बाद में मूड भी बदल जाता होगा. 
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देखा जाए तो हमारे देश में लाखों खर्च करने के बाद कोई इंजीनियरिंग की पढ़ाई करता है और चार साल खर्च करने के बाद भी अगर उसे नौकरी के लिए दर-दर की ठोकरें खानी पड़े तो फिर यह बेहद शर्मनाक बात है जो हमारी व्यवस्था पर गम्भीर प्रश्नचिन्ह खड़ा करती है. हालाँकि, इस मामले में कंपनियों पर दोष देना और उनका दोष होना बेशक चर्चा में आ जाए, किन्तु सच यह भी है कि हमारे तमाम इंस्टीट्यूट्स से जो ग्रेजुएट्स निकल रहे हैं, उसमें बड़ी संख्या इंडस्ट्री के हिसाब से बिलकुल भी फिट नहीं है. मतलब साफ़ है कि हमें अपनी पढ़ाई का ट्रेंड आधुनिक करना होगा तो जरूरत के हिसाब से चीजें स्किल्ड हों, इस बात पर भी ज़ोर देना पड़ेगा. इसमें न केवल सरकार को गम्भीरता से समझना होगा, बल्कि तमाम कॉलेजों को भी संजीदगी से अपने यहाँ उस तरह का माहौल, प्रयोगशालाएं और प्रशिक्षक रखने होंगे, जिन्हें इंडस्ट्री के साथ तालमेल बिठाने में किसी प्रकार की कठिनाई पेश न आए! अगर हमारे कॉलेज की शिक्षा, उसकी गुणवत्ता और इंडस्ट्री की जरूरतों के बीच तालमेल बिठा लिया जाए तो फिर कंपनियों को गुणवत्ता के नाम पर मगरमच्छी आंसू नहीं बहाने पड़ेंगे और फिर लाखों इंजीनियरिंग ग्रेजुएट्स को नौकरी के लिए सड़कों पर संघर्ष के लिए मजबूर भी नहीं होना पड़ेगा!





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1 टिप्पणियाँ

  1. पिछले कुछ सालो में कितनी सारी कंपनी ने ऐसा किया होगा उसका कोई हिसाब नहीं है . जिसके लिए उन कंपनी के साथ साथ कहि ना कहि संस्थान भी जिम्मेदार है . इसके लिए आवाज उठनी चाहिए ..

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