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स्वच्छ भारत अभियान का संकल्प है 'सर्वोत्तम'

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निस्संदेह हमारा देश भारत कई मायनों में सौभाग्यशाली है कि जब जिस क्षेत्र में प्रेरणा की आवश्यकता पड़ती है तो कोई न कोई महापुरुष लाठी लेकर राह दिखाता मिलता है. दीप जलते रहते हैं, रौशनी की उम्मीद बनी रहती है और यही उम्मीद हमें हर समस्या से पार निकलना भी सिखलाती है. महात्मा गाँधी का जीवन न केवल भारतवासियों के लिए वरन तमाम वैश्विक नागरिकों के लिए प्रेरणा का श्रोत रहा है और उनके तमाम योगदानों में 'स्वच्छ रहने' का मन्त्र वर्तमान परिप्रेक्ष्य में सर्वोपरि माना जा सकता है. यूं तो आलोचना करने वाले किसकी आलोचना नहीं करते हैं, किन्तु जो व्यक्ति यह कहने का साहस करे कि 'उसका जीवन ही उसका सन्देश है', तो फिर उसकी महानता में किसी प्रकार का शक-ओ-सुबहा नहीं (Swachh Bharat abhiyan in hindi, new, article, 2 October, Gandhi Jayanti) होना चाहिए. सफाई और स्वच्छता के सन्दर्भ में ऐसे कई दृष्टान्त इस महान नेता के जीवन में ढूंढने पर मिल जायेंगे, जिनसे हम आज भी प्रेरणा ले सकते हैं. निस्संदेह गांधी जी स्वच्छता के सबसे बड़े पैरोकारों में से थे. उन्होंने एक बार सफाई के सन्दर्भ में कहा था कि ‘जिस नगर में साफ संडास नहीं हों और सड़कें तथा गलियां चौबीसों घंटे साफ नहीं रहती हों, वहां की नगरपालिका इस काबिल नहीं है कि उसे चलने दिया जाए'. साफ़ है कि सफाई और स्वच्छता का इस महात्मा के जीवन में क्या अभिप्राय था. महात्मा गांधी रोजाना सुबह चार बजे उठकर अपने आश्रम की सफाई किया करते थे. वर्धा आश्रम में तो उन्होंने अपना शौचालय स्वयं बनाया था और इसे प्रतिदिन वह खुद ही साफ भी करते थे. प्रसंगवश, एक बार एक अंग्रेज ने महात्मा गांधी से पूछा था कि, यदि आपको एक दिन के लिए भारत का बड़ा लाट साहब (वायसराय) बना दिया जाए, तो आप क्या करेंगे. गांधीजी ने तत्काल कहा था कि, राजभवन के पास जो गंदी बस्ती है मैं उसे साफ करूंगा. 

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समझना मुश्किल नहीं है कि सफाई की महत्ता उस महान आत्मा के लिए कितनी अहमियत रखती थी. इसी बातचीत में अंग्रेज ने फिर पूछा था कि, मान लीजिए कि आपको एक और दिन उस पद पर (वायसराय) रहने दिया जाए तब? गांधीजी ने फिर कहा, दूसरे दिन भी वहीं करूंगा. एक दुसरे प्रसंग में एक स्कूल को देखने के बाद महात्मा गांधी ने शिक्षकों से कहा था कि, आप अपने छात्रों को किताबी पढ़ाई के साथ-साथ खाना पकाना और सफाई का काम भी सिखा सकें, तभी आपका विद्यालय आदर्श होगा. कई बार तो यह बात भी सामने आयी है कि गांधी जी की नजर में आजादी से भी महत्वपूर्ण अगर कुछ था तो वह 'सफाई' थी. तब की बात छोड़ भी दें तो आज डेंगू और चिकनगुनिया का खूब प्रकोप चला है, खासकर देश की राजधानी दिल्ली तो इसकी मार से बेहाल हो चुकी है. कई जानें जा चुकी हैं तो कई मरीज अस्पतालों के चक्कर (Swachh Bharat abhiyan in hindi, new, article, 2 October, Gandhi Jayanti, Patient of Dengue, Chikangunia) काट-काटकर बेदम हो चुके हैं. बावजूद इसके अगर साफगोई से इस समस्या की तह में जाकर देखा जाए तो साफतौर पर नज़र आ जायेगा कि मामला सिर्फ और सिर्फ गंदगी से जुड़ा हुआ है, जिससे भयानक स्तर पर डेंगू या चिकनगुनिया के मच्छर पैदा होते हैं और फिर उन्हीं के माध्यम से बीमारियां उत्पन्न होती हैं. सिर्फ यही रोग ही क्यों, बल्कि तमाम ऐसे रोग हैं, जिनसे इंसान की जान पर बन आती है पर बावजूद इसके वह 'सफाई और स्वच्छता' की अहमियत नहीं समझ पाता है. इस हेतु कई जागरूकता अभियान भी चले हैं पर जनता की तरह नेता भी खानापूर्ति करके अपने कर्तव्य की 'इतिश्री' समझ लेते हैं और मामला जस का तस ही रह जाता है. हालाँकि, आज 2 अक्टूबर 2016 से ठीक दो साल पहले भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने 'स्वच्छ भारत अभियान' को गंभीरता से शुरू किया और सौभाग्य से सरकार की ओर से इस कार्यक्रम की सफलता के लिए सभी प्रयास किये जा रहे हैं. इसके लिए सरकार फण्ड जारी करने से लेकर, तमाम फिल्म अभिनेताओं या सेलिब्रिटीज के माध्यम से लोगों को जागरूक कर रही है तो अधिकारियों को अपेक्षित परिणाम के प्रति जिम्मेदार बनाये जाने की कोशिश भी की जा रही है. 




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2 अक्टूबर 2014 को टेलीविजन पर करोड़ों लोगों ने वह विशेष दृश्य देखा था, जिसमें प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के हाथों में झाड़ू था और वे दिल्ली की सड़कों की सफाई करते नज़र आ रहे थे. तब हमारे पीएम ने नई दिल्ली के राजघाट पर स्वच्छता अभियान को आधिकारिक तौर पर लांच किया था. ‘हर सपना सच करेगा इंडिया, बनेगा स्वच्छ इंडिया’ के साथ शुरु हुआ स्वच्छ भारत अभियान को दो साल पूरे हो चुके हैं और जगह-जगह इस सम्बन्ध में कार्यक्रम भी हो रहे हैं. इस अवसर पर राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी ने राष्ट्रपति भवन में आयोजित स्वच्छ भारत अभियान में हिस्सा लिया, तो गृहमंत्री राजनाथ सिंह ने इस अवसर पर नई दिल्ली के रफी मार्ग पर पब्लिक टॉयलेट का उद्घाटन किया. वहीं महाराष्ट्र में रक्षा मंत्री मनोहर पर्रिकर, कोलकाता में मानव संसाधन मंत्री प्रकाश जावडेकर और नई दिल्ली के सफदरजंग अस्पताल में केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्री जेपी नड्डा (Swachh Bharat abhiyan in hindi, new, article, 2 October, Gandhi Jayanti, Central Ministers) ने स्वच्छता अभियान में हिस्सा लिया. जाहिर तौर पर जागरूकता फैलाने में हमारी सरकार कोई कोर-कसर नहीं छोड़ रही है, पर बावजूद इसके अभी तक अपेक्षित परिणाम मिलने में कुछ ख़ास सफलता हाथ नहीं लगी है. बताते चलें कि भारत में अब तक का यह सबसे बड़ा अभियान है जिसमें भारत के स्कूल व कॉलेजों और सरकार के 3 मिलियन कर्मचारियों ने हिस्सा लिया है. गौर करने वाली बात यह भी है कि स्वच्छ भारत अभियान के तहत सरकार ने 2019 तक संपूर्ण स्वच्छता का वादा किया है, यानि भारत के हर घर में इस तारीख तक एक शौचालय होगा. जाहिर तौर पर लक्ष्य बड़ा है, किन्तु इस सन्दर्भ में यह बात निराशा उत्पन्न करती है कि 19 राज्यों व 60 शहरों में कराए गए ऑनलाइन सर्वे के अनुसार, दिल्ली, उत्तर प्रदेश, पजाब और बिहार कुछ ऐसे राज्य हैं जहां दो सालों में कोई प्रगति नहीं हुई है. हालांकि लोगों को इस अभियान से प्रगति दिख रही है लेकिन सर्वे के परिणामों के अनुसार अभियान की गति बेहद धीमी है. 

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सर्वे में यह बात भी सामने आयी है कि स्वच्छ भारत अभियान के लिए उत्तरदायी नगरीय निकायों की नाकामी, अमलीकरण की कमजोर प्रक्रिया और आम लोगों में नागरिक हित वाले भावना की कमी ही अभियान के लिए बाधा बन रहे हैं. हालाँकि, राहत की बात यह जरूर है कि सर्वे के अनुसार, नगरीय निकाय द्वारा प्रभावशाली तरीके से फॉगिंग करवाना और पानी से होने वाली बीमारियों को लेकर लोगों का जागरुक होना एक सकारात्मक संकेत है, जबकि कुछ के अनुसार कूड़े से जुड़ी शिकायतों और सड़कों पर साफ-सफाई को लेकर नगरीय निकाय पहले के मुकाबले कुछ जिम्मेदार हुए हैं. गौरतलब है कि जिन शहरों में काफी सुधार देखने को मिला उनमें बेलगाम, मेंगलुरु, उदयपुर, कोयंबटूर, मदुरै, हैदराबाद, देहरादून और कोलकाता शामिल हैं. इस अभियान के सर्वे से यह भी खुलासा हुआ कि स्वच्छ भारत अभियान के शुरू होने के बाद शहर में पब्लिक टॉयलेट की उपलब्धता बढ़ी है, तो लोग यह भी स्वीकार कर रहे हैं कि इस अभियान की वजह से स्कूली बच्चों में जागरुकता (Swachh Bharat abhiyan in hindi, new, article, 2 October, Gandhi Jayanti, Campaigning at school leval), साफ-सफाई की समझ बेहतर हुई है. जाहिर तौर पर मामला गति पकड़ रहा है, किन्तु इसमें और तेजी लाये जाने की जरूरत है. वस्तुतः साफ़-सफाई या कोई अन्य जन-कल्याण से जुड़ा कार्य तभी सफल हो सकता है, जब उसके लिए जनता स्वयं जागरूक हो. कई लोग अपने घर के सामने रोड पर कूड़ा डाल देते हैं तो कई किसी खाली प्लॉट में कूड़ा डालना अपना जन्मसिद्ध अधिकार समझ बैठते हैं. इस तरह की मानसिकता से अंततः नुक्सान तो हमारा ही होता है और जब नुक्सान बढ़ जाता है तो फिर बीमारियां स्वयं ही हमें घेर लेती हैं. तो आइये, हम अपने स्तर पर, परिवार के स्तर पर और मोहल्ले-समाज के स्तर पर न तो खुद गन्दगी करें और न ही किसी और को गंदे करने दें. शायद तब ही महात्मा गाँधी के सपने को सच करने का प्रयत्न कर रहे नरेंद्र मोदी के प्रयासों को बल मिल सकेगा. निश्चित रूप से अगर प्रत्येक भारतीय साफ़-सफाई के मामले में जागरूक हो जाये तो बेहतर स्वास्थ्य के साथ बीमारियां दूर भाग जाएँगी और जो 'वैश्विक साख' बनेगी, सो अलग! इसलिए ... !! !!

- मिथिलेश कुमार सिंह, नई दिल्ली.




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