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कश्मीर-समस्या 'आज़ादी से आज तक' अनसुलझी क्यों और आगे क्या?

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आज़ादी के बाद 1951 में जब देश की जनगणना हुई तब भारत की आबादी 361,088,090 (छतीस करोड़) बताई गयी और 2011 की जनगणना के अनुसार 1,210,854,977 (एक अरब इक्कीस करोड़ लगभग). तबसे आज तक हर एक भारतीय कश्मीर समस्या को जस का तस देख रहा है, कभी एक कदम आगे दो कदम पीछे की तर्ज पर! पाकिस्तान इसको लेकर हमसे चार लड़ाइयां लड़ चुका है तो उसके द्वारा फैलाये आतंकवाद के कारण आज तक शायद ही कोई महीना ऐसा रहा हो जब भारतीय जवान या कश्मीरी लोग (Kashmir Issue in Hindi) मरे न हों! कांग्रेस पार्टी को डुबोने वालों में से एक नेता पी.चिदंबरम का बयान आया कि कश्मीर समस्या का समाधान उसको और अधिक 'स्वय्यत्ता' देना है तो कोई ऐसे ज्ञानी महापुरुषों से पूछे कि पिछले 69 साल से हम और क्या कर रहे हैं? क्या चिदंबरम जैसी आत्माएं इस बात को जानती हैं कि पिछले 69 सालों में कश्मीर को भारत सरकार ने चार लाख करोड़ रूपया प्रत्यक्ष सहायता के रूप में दिया है, तो अप्रत्यक्ष और सीमाओं की रक्षा, आतंकवाद से निपटने के मामलों पर खर्च होने वाले लाखों करोड़ रूपये (Jammu Kashmir Solution) का कोई हिसाब ही नहीं है. चिदंबरम से कोई पूछे कि क्या वह जानते हैं कि कुछ साल पहले देशभर में अगर गरीबी रेखा से नीचे रहने वालों का प्रतिशत 26 था तो जम्मू कश्मीर में यह प्रतिशत 3.4 था. अर्थात जम्मू कश्मीर एक ऐसा राज्य था जहां गरीबों की संख्या 3.4 प्रतिशत थी और वह भी कश्मीर में नहीं गरीब सिर्फ जम्मू संभाग में थे. 

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अब कौन सी स्वाययत्ता चाहिए भाई? जम्मू कश्मीर को लेकर नरेंद्र मोदी ने चुनाव से पहले खूब वादा और दावा किया, किन्तु दो साल बीतते-बीतते हकीकत यही सामने आयी कि उनमें से किसी वादे का पूरा होना तो दूर, अमल भी शुरू नहीं हो सका! एक बात हम पिछले 69 साल से नहीं समझ सके हैं कि पहाड़ की ढलान पर या तो हम ऊपर चढ़ते हैं अथवा स्वयं ही नीचे फिसलते जाते हैं. चढ़ान पर 'यथास्थिति' जैसी कोई बात नहीं होती है. कश्मीर के मामले में कमोबेश हमारे साथ भी यही हो रहा है कि हम यथास्थिति (Jammu Kashmir Solution) बनाने के चक्कर में नीचे की ओर फिसलते जा रहे हैं. इतिहास में अगर हम नेहरू, शास्त्री और इंदिरा की बात करें कि उन्होंने मौका और वक्त रहते ही पाकिस्तान को ठीक ढंग से नहीं मरोड़ा तो उस प्रलाप का क्या लाभ, क्योंकि सवाल तो आज भी है हमारे सामने! आज हमारे सामने चीन का उदाहरण है कि किस तरह वह अकेला खड़ा होकर पूरे विश्व-समुदाय से 'दक्षिणी चीन सागर' पर टक्कर ले रहा है और हम हैं कि कश्मीर में कश्मीरियों के रूप में रह रहे पाकिस्तानियों के मुकाबले उसकी डेमोग्राफिक स्थिति तक नहीं बदल पाए हैं. आज 'पैलेट गन' की आड़ लेकर पाकिस्तान पूरी दुनिया में कहता फिर रहा है कि भारत कश्मीरियों (Kashmir Issue in Hindi) पर जुल्म ढा रहा है, मिलिट्री के दम पर वह कब्ज़ा किया बैठा है तो क्या 'कश्मीरी पंडितों की पूरी वापसी और उनके लिए सुरक्षित माहौल हम नहीं दे सकते हैं?' फौज के दम पर ही सही! 

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पूरे देश में राष्ट्रवाद और हिंदूवाद का दम भरने वाली विश्व की सबसे अनुशासित संस्था आरएसएस और उसकी अनुगामी भाजपा की वहां और केंद्र दोनों जगह सरकारें हैं, तो फिर सामान्य गतिविधियों के लिए हम क्यों एक-दुसरे का मुंह ताकते हैं? जम्मू कश्मीर के लिए हमारे पीएम 80 हज़ार करोड़ का पैकेज देते हैं, वह दें किन्तु 'कश्मीरी-पंडितों' के मुद्दे पर इतना बड़ा क्वेश्चन-मार्क कहाँ से लग गया? साफ़ है कि वहां कश्मीरियों के वेश में छुपे हुए कुछ पाकिस्तानी बैठे हैं तो उनका मुकाबला करने के लिए पूर्व-सैनिकों को, कश्मीरी पंडितों को, टूरिस्टों के रूप में अन्य देशभक्तों को वहां बसाना ही होगा (Jammu Kashmir Solution) और वह भी बेहद तेजी से! पाकिस्तान हमसे चार-युद्ध कर चुका है, आतंकवाद की आग में कश्मीर को जलाने का यत्न कर चुका है और इससे ज्यादा वह क्या कर सकता है? कहते हैं कि शांति का मार्ग, युद्ध से होकर ही जाता है और इसके लिए हमें तैयार होकर वहां पूर्ण दबंगई दिखलानी होगी. छद्म-कश्मीरियों के नाम पर पाकिस्तानियों को जहन्नुम भेजना होगा तो कश्मीरी पंडित (Kashmir Pandit in Hindi) सहित अन्य कश्मीरी निवासियों के मन में यह बात भरनी होगी कि भारत इतना शक्तिशाली है कि वह सबकी रक्षा कर सकता है, बेशक इसके लिए चाहे जो कीमत चुकानी पड़े! इंदिरा गाँधी ने एक बार बांग्लादेश को अलग करने में जो भूमिका निभाई थी, वही भूमिका कश्मीर के सम्बन्ध में वर्तमान सरकार निभाये और जहाँ तक 'स्वाययत्ता' और 'विशेषाधिकार' की बात है तो उस कागज़ को या तो जला देना होगा अथवा उस कागज़ को जो पाकिस्तानी-आँख पढ़ने का दुस्साहस करे, उसे फोड़ देना होगा, पैलेट-गन से ही! 

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किन्तु न केवल कश्मीर के लिए, बल्कि शेष भारत और पूरे दक्षिण एशिया के लिए कश्मीर समस्या के स्थाई समाधान के लिए यत्न शुरू करना होगा. और इसका दूसरा कोई यत्न नहीं है, सिवाय इसके कि पाकिस्तानियों को उस क्षेत्र से भगाओ और कश्मीरी-पंडितों समेत अन्य देशभक्तों को वहां भरो, बुलेट और पैलेट के दम पर ही सही! हाँ, जब तक इन तथ्यों को आत्मसात नहीं कर लिया जाता तब तक राजनाथ सिंह बयानबाजी जरूर करें और कश्मीर घाटी में अशांति के लिए पाकिस्तान को दोषी भी ठहराएं और खूब कहें कि कश्मीरी हमारे अपने लोग हैं जिन्हें बरगलाया जा रहा है, लेकिन हम कश्मीरियत, जम्हूरियत एवं इंसानियत के साथ कश्मीर (Kashmir Issue in Hindi) के हालात को सामान्य बनायेंगे और उसके गौरव एवं शोहरत को बहाल करेंगे. शोहरत और गौरव तो बहाल होना ही चाहिए राजनाथ सिंह जी, पर पैलेट गन के साथ-साथ आप 'कश्मीरी-पंडितों' और 'पूर्व-सैनिकों' को वहां बसाने की दबंगई दिखलाओ. यह बात आप भी जानते हो और देखना यह है कि इसकी शुरुआत कब करती है आपकी सरकार! 

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और हाँ, 'अब पछताए होत क्या, जब चिड़िया चुग गयी खेत' वाली कहावत तो आपने जरूर सुनी होगी. पहले ही हम 69 साल की देरी (Jammu Kashmir Solution) कर चुके हैं और आपकी सरकार भी अपनी आधी उम्र पर करने वाली है. क्या पता 2019 में आप सरकार में रहे न रहें, इसलिए बाकी की आधी-उम्र में तो इस समस्या का स्थाई समाधान करने की ओर मजबूत और सख्त कदम बढ़ा दीजिये. यकीन मानिये, पाकिस्तान जो अब तक कर चुका है उससे ज्यादा कुछ नहीं कर सकता और फौज की जितनी बदनामी वो कर रहा है, उससे ज्यादा हो नहीं सकती! इसलिए ....!!

- मिथिलेश कुमार सिंहनई दिल्ली.



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