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कैशलेश इकॉनमी: कितना हकीकत, कितना फ़साना?

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यूं तो अर्थशास्त्र बेहद गूढ़ विषय माना जाता रहा है, किन्तु हालिया नोटबंदी से उपजे हालातों ने तमाम नागरिकों को अर्थशास्त्र की कई शब्दावलियों से परिचित कराया है. 'कैशलेश इकॉनमी' इन दिनों खूब सुना जा रहा है, जिसका सीधा मतलब यही है कि 'टेक्नोलॉजी' की सहायता से आप प्रत्येक लेन देन करें, जिसमें कैश के आदान-प्रदान की कोई आवश्यकता नहीं. क्रेडिट/ डेबिट कार्ड के साथ-साथ इन्टरनेट बैंकिंग, मोबाइल बैंकिंग, डिजिटल वॉलेट जैसी सुविधाओं को इसमें गिनाया जा सकता है. हालाँकि, तमाम प्रचार के बावजूद देश की आबादी का बड़ा हिस्सा आज भी कैश पर ही डिपेंडेंट है. लोगों के पास क्रेडिट/ डेबिट कार्ड जरूर हैं, किन्तु उसका प्रयोग वह लोग एटीएम से पैसा निकालने के लिए ही ज्यादे करते हैं, सीधी खरीददारी के लिए कम! इसके पीछे जो मुख्य कारण हैं, उनमें हर एक जगह प्लास्टिक मनी लेने की सुविधा नहीं होना और डेबिट/ क्रेडिट कार्ड से जुड़ी असुरक्षा की भावना है. आखिर, डेबिट/ क्रेडिट कार्ड फ्रॉड की तमाम खबरें यूं ही तो नहीं आती हैं न! चूंकि, भारत अब इस दिशा में कदम बढ़ा चुका है तो समझना लाजमी होगा कि आखिर इस दिशा में मुख्य चुनौतियां क्या हैं और उनसे किस प्रकार पार पाया जा सकता है. Cashless Economy, Reality vs Concept, Hindi Article, New, Security Majors, Internet Speed, Indian Economy, Way to Proceed


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ऑनलाइन सिक्योरिटी का मसला: कैशलेस इकॉनमी में जिस मोर्चे पर सर्वाधिक कार्य किये जाने की जरूरत है, वह निश्चित रूप से ऑनलाइन सिक्योरिटी ही है. कार्ड का क्लोन बना लेना, पिन चुराकर पैसे निकाल लेना या क्रेडिट कार्ड से आपकी जानकारी के वगैर ट्रांसक्शन कर लेने जैसे फ्रॉड अब पुराने पड़ चुके हैं और कई जगह उसके साथ-साथ फिशिंग / हैकिंग के सहारे बल्क डाटा चोरी, रैन्जमवेयर जैसे खतरे, कॉल सेंटर से डाटा लीक होने जैसी वारदातें सामने आ रही हैं. 2009 में एक खबर आई थी कि भारत के कॉल सेंटरों में अपराधियों के गिरोह पैसे लेकर ब्रिटेन के क्रेडिट कार्ड होल्डर्स की जानकारियां धड़ल्ले से बेच रहे हैं. ऐसे ही 2008 में भी क्रेडिट कार्ड घोटाला हुआ था जिसमें कुल मिलाकर 609 लाख पाउंड के घपले की बात कही गई थी, फिर 2012 में मार्च के महीने में एक करोड़ क्रेडिट कार्ड खातों में सेंध की बात सामने आयी थी, जिसे लेकर क्रेडिट कार्ड कंपनी मास्टर कार्ड और वीजा ने विस्तृत जांच की थी. इसके अतिरिक्त, स्टेट बैंक ऑफ़ इंडिया से सम्बंधित, अभी पिछले ही अक्टूबर में 32 लाख डेबिट कार्ड की सुरक्षा में सेंध लगने की जो बात सामने आयी थी, उसने हर एक को हिलाकर रख दिया था. वित्त मंत्रालय से लेकर, आरबीआई तक इस फ्रॉड से चिंतित नज़र आये थे, किन्तु जैसाकि हर बार होता है, इस बार भी लोगबाग इसे महीने भर से कम समय में ही भूल गए. क्या उस फ्रॉड का कारण था, भविष्य में क्यों यह नहीं होगा, इस पर कोई खास गाइडलाइन सामने नहीं आयी और न ही इस घोटाले के प्रति जिम्मेदार लोगों की जवाबदेही तय की गयी. ऐसे में यह क्यों न माना जाए कि कैशलेश इकॉनमी की बारीकियों को समझने और इस हेतु पुख्ता व्यवस्था करने में हम अभी काफी पीछे हैं. वैश्विक स्टैंडर्ड्स की बात करें तो, कैशलेस इकॉनोमी के मामले में स्वीडन पहले नंबर पर है. हालाँकि, वहां बैंकों में लूट कम हुई. आंकड़े के अनुसार, 2008 में 110 लूट हुई जबकि 2011 में सिर्फ 16. गौरतलब है कि यह आंकड़ा 30 सालों में सबसे कम रहा, लेकिन इसका दूसरा पहलू यह है कि यहां साइबर क्राइम्स में बढ़ोतरी आ गई. Cashless Economy, Reality vs Concept, Hindi Article, New, Security Majors, Internet Speed, Indian Economy, Way to Proceed



स्वीडिश नेशनल काउंसिल फॉर क्राइम प्रिवेंशन के मुताबिक साइबर बैंक फ्रॉड तेजी से बढ़े और 2011 में 20,000 पहुंच गए जबकि 2000 में यह सिर्फ 3,304 ही थे. बताते चलें कि स्वीडन को इनफॉर्मेंशन टेक्नॉलोजी में नंबर एक माना जाता है और वहां कई तरह के सिक्योरिटी मेजर्स बखूबी फॉलो किये जाते हैं. स्वीडन में इतने सिक्योरिटी मेजर्स के बाद भी जब साइबर लूट बढ़ सकती है तो भारत जैसे देश जो जहां अभी भी एटीएम में 15 साल पुराना ऑपरेटिंग सिस्टम (विंडोज XP) यूज किया जा रहा है, इसके प्रति खतरा निश्चित रूप से बढ़ जायेगा. ऐसे में, जाहिर तौर पर साइबर क्रिमिनल्स की तादाद बढ़ेगी और लोग इसके शिकार भी होंगे. यहाँ पुनः प्रश्न उठता है कि टेक्नोलॉजी के साथ-साथ क्या कानूनी तौर पर हमारी तैयारियां उतनी पुख्ता हैं कि न्याय-अन्याय करने के प्रति सजग हो सकें. भारत के मुख्य न्यायाधीश वैसे ही जजों की कमियों का सार्वजनिक मंचों पर रोज रोना रो रहे हैं, जबकि नए सिस्टम और तकनीक के हिसाब से जजों को बड़े स्तर पर ट्रेनिंग देने की जरूर पड़ेगी. इसी कड़ी में साइबर एक्सपर्ट्स का साफ़ तौर पर मानना है कि भारतीय कानून रैंजमवेयर के खतरों के लिए पर्याप्त नहीं है, जबकि रैंजमवेयर का खतरा भारत में तेजी से बढ़ रहा है. गौरतलब है कि रैन्जामवेयर के तहत लोगों के कंप्यूटर्स को एन्क्रिप्ट करके उसे खोलने के लिए उनसे पैसे मांगे जाते हैं. जानकारी के मुताबिक, भारत में ये खतरा दूसरे देशों के मुकाबले तेजी से बढ़ रहा है, क्योंकि यहां इसके रोकथाम के लिए कुछ पुख्ता नहीं है. ऐसे मामलों में दोषी को आसानी से बेल मिल जाती है. कानूनी जानकार कहते हैं कि आईटी ऐक्ट की धारा 66, 66A, 66C और 66D फिशिंग, फर्जी ईमेल लिंक और फ्रॉड से निपटने के लिए है तो, लेकिन इसके तहत पुलिस दोषी को हिरासत में नहीं ले सकती है और इन सारे मामलों में दोषी को बेल मिल जाती है. ऐसे ही हमारे देश में डेटा सुरक्षा के लिए भी कोई ठोस कानून नहीं है, तो प्राइवेसी कानून का भी हमारे यहाँ आभाव है, जिससे कम से कम ई-ट्रांजैक्शन के दौरान कस्टमर्स इस बात को लेकर श्योर हो सकें कि वो सुरक्षित हैं. समझा जा सकता है कि इस मामले में काफी कुछ किये जाने की आवश्यकता है. Cashless Economy, Reality vs Concept, Hindi Article, New, Security Majors, Internet Speed, Indian Economy, Way to Proceed


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इंटरनेट स्पीड एवं अन्य तकनीकी दिक्कतें: हालाँकि, रिलायंस जिओ के मार्किट में एंट्री के बाद आने वाले दिनों में फ़ास्ट इन्टरनेट मिलने की संभावनाएं बढ़ गयी हैं, किन्तु अभी भी इस मामले में काफी कुछ किये जाने की आवश्यकता है. रिलायंस जिओ के ढाई लाख करोड़ की भारी भरकम इन्वेस्टमेंट के बाद फेसबुक ने भारत के दूरदराज इलाकों में इंटरनेट पहुंचाने के लिए एक्सप्रेस वाईफाई सेवा शुरू कर दी है. गौरतलब है कि एक्सप्रेस वाई-फाई सॉफ्टवेयर की मदद से स्थानीय उद्यमी अब लोगों को एक निश्चित फीस के बदले इंटरनेट सेवा देंगे. फेसबुक ने पहले भी बेसिक इन्टरनेट की सुविधाएं देने के लिए कोशिश की थी, किन्तु ट्राई ने उस पर रोक लगा दी थी. प्रयास जारी हैं, किन्तु इस मामले में बड़ी समस्याएं हैं. अपना एक अनुभव बताऊँ तो पिछले दिनों अपने छोटे भाई की शादी में मुझे गाँव जाना पड़ा. 15 दिनों में, खूब कोशिश करने के बावजूद मात्र कुछ घंटे ही इन्टरनेट इस्तेमाल कर सका, वह भी 'माशा अल्लाह' की विपरीत स्पीड पर! इसमें कई ऑपरेटर्स द्वारा दी जानी वाली सुविधाओं की निगरानी की कोई व्यवस्था न होना, ऊँची डाटा दरें, बिजली की अनुपलब्धता इत्यादि दिक्कतें गिनाई जा सकती हैं. ऐसे में यह बात कल्पना से बाहर है कि भारत आनन-फानन में कैशलेश बन जाएगा. ज्यादातर कैशलेस ट्रांजैक्शन के लिए यूजर्स को अच्छी स्पीड वाले इंटरनेट की जरुरत होती है, लेकिन भारत में इंटरनेट की स्थिति संतोषजनक होने में लंबा समय लगने वाला है. ऐसे में सेशन टाइम आउट, पेमेंट फेल्ड, इंटरनेट डिसकनेक्ट, नेटवर्क एरर और ओटीपी का समय पर न मिलना लोगों की दिनचर्या में शामिल है. ऐसे ही, वक्त बे वक्त पीओएस (POS) मशीन काम करना बंद कर देती हैं और ऐसे में आपके पास कैश न हो तो आप जरूरी सामान तक नहीं खरीद सकते. वैसे भी दिल्ली जैसे मेट्रो शहर में भी संभवतः आधी दुकान पर यह मशीन आपको नहीं मिलेगी, जबकि छोटे शहरों और कस्बों में इसकी संख्या घटते हुए गाँव में शून्य तक पहुँच जाएगी. जाहिर तौर पर इनसे निपटने में समय लगने वाला है. हालाँकि, अगर रिलायंस जिओ की तरह कुछ कंपनियां भारत की आधारभूत संरचनाओं में दीर्घकालीन उद्देश्यों की पूर्ती हेतु भारी निवेश करें तो अवश्य ही तस्वीर में बदलाव आ सकता है. इसमें सर्वाधिक इन्वेस्टमेंट बिजली की उपलब्धता पर किये जाने की आवश्यकता है, क्योंकि तमाम दावों के बावजूद बिजली की अनुपलब्धता बड़े क्षेत्रों को विकास से दूर रखे हुए है. निश्चित रूप से अगर 24 घंटे बिजली और हाई-स्पीड इन्टरनेट भारत के प्रत्येक क्षेत्र में उपलब्ध हो जाए तो स्थिति में सकारात्मक बदलाव आने में अधिक समय नहीं लगने वाला, किन्तु यह कब तक होगा, इस कथन में बड़ा क्वेश्चन मार्क लगा हुआ है. Cashless Economy, Reality vs Concept, Hindi Article, New, Security Majors, Internet Speed, Indian Economy, Way to Proceed


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रास्ते की गुंजाइश: चूंकि अब हम कदम बढ़ा चुके हैं, तो रास्ता हर हाल में ढूंढना ही होगा. ऊपर के पैराग्राफ में लगभग इन्हीं मुद्दों की विस्तार से चर्चा की गयी है और अगर डायरेक्ट बात करें तो भारत की 60 फीसदी से अधिक जनता जनधन योजना के बाद बैंकिंग से जुड़ चुकी है. अब लगभग हर एक हाथ में मोबाइल आ चुका है तो डिजिटल वॉलेट का कांसेप्ट लोकप्रिय होता जा रहा है. यूएसएसडी (अनस्ट्रक्चर्ड सप्लीमेंट्री सर्विस डाटा - *99# सर्विस) को लोकप्रिय बनाने का प्रयत्न सरकार खूब कर रही है और संयोग की बात यह भी है कि यह तमाम सर्विसेज लोकप्रिय भी हो रही हैं. नोटबंदी के बाद लोगों के गैर-नकदी लेन-देन की ओर रूख करने के चलते डिजिटल मोबाइल भुगतान सेवा मुहैया कराने वाली कंपनी पेटीएम से रोजाना 70 लाख सौदे होने लगे हैं जिनका मूल्य करीब 120 करोड़ रुपए तक पहुंच गया है. कंपनी के साथ कम दिनों में ही 50 लाख से अधिक उपयोगकर्ता जुड़े हैं. कई दूसरी कंपनियों को पेटीएम से जलन हुई तो उन्होंने इसके चाइनीज होने की बात उठा दी. खैर, किसी को पेटीएम पसंद न हो तो न सही, उनके लिए एसबीआई का बडी (SBI BUDDY) एप्स है तो पे यू मनी, आईसीआईसीआई पॉकेट्स जैसे दूसरे एप्स भी मौजूद हैं. हालाँकि, सर्विसेज के मामले में पेटीएम दूसरों पर भारी है अभी और दूसरे खिलाड़ियों से आगे चल रही है. क्रेडिट/ डेबिट कार्ड का प्रयोग बिल पे करने, खरीददारी करने के लिए हम पहले ही करते रहे हैं और अधिकतर शॉपकीपर्स पीओएस मशीन खरीद रहे होंगे, जिनके पास पहले से मौजूद नहीं होगी. हालाँकि, इस लेख की शुरुआत में जिस सायबर सिक्योरिटी की ओर ध्यान दिलाया, उसकी ओर से आम जनता को भी सावधान रहने की आवश्यकता है. सामान्य तौर पर, हर महीने या फिर ज्यादा से ज्यादा 3 महीने के भीतर एटीएम पिन बदल लेना चाहिए. ऐसे ही फोन या मोबाइल पर किसी को भी एटीएम पिन की जानकारी न दें. कोशिश करें कि आपका मोबाइल किसी जानकार या अनजान के हाथ न लगे, चूंकि ओटीपी मोबाइल पर आने के कारण यह बेहद संवेदनशील हो चुका है. इसके साथ-साथ जहां तक मुमकिन हो, आप अपने ही बैंक एटीएम का इस्तेमाल करें, तो डेबिट कार्ड के इस्तेमाल को लेकर बैंक से आने वाले सन्देश, ईमेल अलर्ट पर पूरा ध्यान रखें और कहीं भी कुछ संदिग्ध लगे तो अपने बैंक से तुरंत संपर्क करें. इन्टरनेट बैंकिंग में किसी लिंक से बैंक की वेबसाइट पर न जाएँ, बल्कि खुद टाइप करें और उसमें सिक्योर सर्वर होने की पुष्टि करें. ऐसे ही, मोबाइल एप्स का ऑफिशियल सोर्स देखकर ही इस्तेमाल करें, अन्यथा आप फिशिंग के शिकार हो सकते हैं. इसी तरह, होटल-रेस्तरां, पेट्रोल पंप या किसी भी दुकान पर अगर आप कार्ड का इस्तेमाल कर रहे हैं, तो आप अपने सामने उसकी सामने ही उसे स्वाइप करें ताकि उसे क्लोनिंग से बचाया जा सके. अकाउंट स्टेटमेंट पर नियमित नजर रखना, नेट बैंकिंग का पासवर्ड नियमित बदलते रहना भी आपके कार्ड को सुरक्षित रखने में आपकी मदद कर सकता है. बाकि सरकार, एंटी वायरस और कार्ड कंपनियां समय-समय पर एडवाइजरी जारी करती रहती हैं, उन पर नज़र बनाये रखना भी लाभदायक कदम हो सकता है.

- मिथिलेश कुमार सिंह, नई दिल्ली.




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