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नए 'सेनाप्रमुख' के सामने बड़ी चुनौतियां, बेवजह है नियुक्ति विवाद!

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दुनिया में सर्वाधिक अनुशासित सेना के रूप में जानी जाने वाली इंडियन आर्मी को अपना नया चीफ मिल गया है. जी हाँ, लेफ्टिनेंट जनरल विपिन रावत अब भारतीय सेना के प्रमुख हैं और उनके ऊपर इस विशाल देश के अरबों नागरिकों को सीमा सुरक्षा (Indian Army, People of India and Border Security Article in Hindi) के प्रति आश्वस्त करने की महती जवाबदेही है. हालाँकि, जनरल की नियुक्ति में कुछ राजनीतिक पार्टियां विवाद खड़ी करती नज़र आईं, क्योंकि जनरल रावत को दो अन्य जनरल्स के वरिष्ठता क्रम में ऊपर होने के बावजूद नियुक्त किया गया है. चूंकि, ऐसा फैसला सामान्य तौर पर नहीं लिया जाता है पर ऐसा भी नहीं है कि सिर्फ वरिष्ठता का नियम ही आर्मी चीफ के लिए स्थाई मानक हो! पहले भी इस सिनियोरिटी क्रम को तोड़कर नियुक्तियां की गयी हैं, इसलिए इस पर होहल्ले की बजाय आगे की चुनौतियों पर ध्यान केंद्रित करना ज्यादा आवश्यक है. वैसे भी, आर्मी चीफ के लिए सरकार के सामने जो नाम जाते हैं उनमें विपिन रावत का नाम भी शामिल था, तो तमाम रिपोर्ट्स के मुताबिक जनरल रावत के प्लस पॉइंट कहीं ज्यादा हैं. जाहिर है, भारतीय कल्चर में बड़े भाई का उत्तराधिकार परिवार में पहले माना जाता है, जिसके सर्वश्रेष्ठ उदाहरण मर्यादा पुरुषोत्तम राम हैं, किन्तु योगेश्वर श्रीकृष्ण जैसे उदाहरण भी हमारी सभ्यता में मौजूद हैं, जिन्हें छोटा भाई होने के बावजूद राजा का दायित्व (Seniority, Juniority examples in Indian Culture) निभाना पड़ा था. खैर, देश समय काल के अनुकूल जैसी परिस्थितियां होती हैं, उसी अनुरूप हर एक को व्यवहार करना चाहिए और सरकार ने जनरल रावत की नियुक्ति में निश्चित रूप से इस पक्ष को सबसे ऊपर रखा है. आइये देखते हैं नए जनरल के सामने कौन-कौन सी चुनौतियां प्रमुखता से आने वाली हैं, जिनसे पार पाने में उनकी असल परीक्षा होने वाली है: General Bipin Rawat, Army Chief, Hindi Article, New, Military Opportunity and Solutions in 21st Century, Hindi Essay

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परंपरागत एवं गैर परंपरागत चुनौतियां:  अब तक हमारी सेना के पास परंपरागत चुनौतियां ही ज्यादा रही हैं, मसलन पाकिस्तान के रूप में स्थाई प्रतिद्वंदी, चीन के साथ कुछ स्तर पर सीमा विवाद, कश्मीर क्षेत्र में अलगाववादियों का प्रोपोगैंडा और पूर्वोत्तर इलाकों में उग्रवादियों द्वारा अशांति फैलाना (Major Opportunity infront of Indian Army, Editorial article in Hindi)! देखा जाए तो इनमें भी पाकिस्तान चीन की शह पर न केवल सीमा पर उपद्रव मचाये हुए है, बल्कि देश के भीतर पठानकोट, उरी अटैक जैसी वारदातों को अंजाम देने में भी नहीं हिचकिचा रहा है. हालाँकि, भारतीय पक्ष की ओर से अभूतपूर्व कदम उठाते हुए पाकिस्तान द्वारा कब्ज़ा किये गए क्षेत्र में सफलतापूर्वक सर्जिकल स्ट्राइक जरूर किया गया है, जिसका पर्याप्त असर या डर कह लीजिये पाकिस्तानी सेना और सरकार के मन में व्याप्त कर गया है, किन्तु इतने भर से वह अपना रवैया बदलने को तैयार हो गए हैं, ऐसा कतई नहीं कहा जा सकता है. तो ऐसे में जाहिर है, भारत के नए सेना प्रमुख को न केवल अपना सुरक्षा-तंत्र अभेद्य करना होगा, बल्कि ज्यादा अति होने पर वृहद स्तर पर सर्जिकल स्ट्राइक के लिए तैयार भी रहना होगा. उरी अटैक में जिस तरह चंद आतंकियों ने हमारे सेना के सोते हुए जवानों को काल के गाल में धकेल दिया था, उसने हमारे सुरक्षा-तन्त्र की अभेद्यता पर गहरे सवाल उठाये थे, जिनसे निपटा जाना आवश्यक है. जहाँ तक बात सर्जिकल स्ट्राइक (What after surgical strike, read in Hindi.) की है तो पिछले साल म्यांमार में नगा आतंकियों के खिलाफ की गई सफल सर्जिकल स्ट्राइक के साथ-साथ पाक अधिकृत कश्मीर में की गई सर्जिकल स्टाइक में भी नए जनरल की सीधा और महत्वपूर्ण भूमिका रही है. इसके अतिरिक्त, कश्मीरियों को भड़काने वाले अलगावादियों एवं आतंकवादियों पर इस तरह से नकेल कसने की चुनौती भी है कि वहां के नागरिक कम से कम हलकान हों! परंपरागत समस्याओं के अतिरिक्त, अब भारतीय सेना को ऐसी तमाम दूसरी चुनौतियों से दो-दो हाथ करना पड़ रहा है, जो नए सिरे से अस्तित्व में आ रही हैं. बीते सितंबर में राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी ने चेन्नई के ऑफिसर्स ट्रेनिंग अकादमी (OTA) में कहा था कि इंडिया के समक्ष परंपरागत सीमाओं और परंपरागत खतरों से परे जाने की चुनौतियां हैं. तब एकेडमी की ग्रीष्मकालीन पासिंग आउट परेड की समीक्षा के बाद मुखर्जी ने साफ़ तौर पर कहा था कि दुनिया के अस्थिर क्षेत्र, ऊर्जा सुरक्षा के मुद्दे और समुद्री मार्गों की सुरक्षा आदि व्यापक दायरे हैं, जिसमें सेना को चुनातियों का सामना करना पड़ रहा है. राष्ट्रपति के अनुसार, समय-समय पर और आतंरिक संकट के समय फिर से देश को मानव निर्मित और प्राकृतिक दोनों रूप से सशस्त्र बलों की जरूरत पड़ी. इस बात में दो राय नहीं है कि देश के नागरिकों को शांति और समृद्धि के पथ पर ले जाने के लिए सशक्त सेना की भूमिका (Role of Indian army for peace keeping and development of Indian) सदा से महत्वपूर्ण रही है, किन्तु जैसे-जैसे तकनीक का दायर बढ़ता जा रहा है, वैसे-वैसे तकनीकी दक्षता की डिमांड भी बढ़ती जा रही है. अब साइबर अटैक से खुफिया सूचनाएं हासिल करने की प्रवृत्ति बेहद तेजी से आगे बढ़ी है, जो बदलते वक्त में और भी बड़े खतरे के रूप में दृष्टिगोचर हो रही है. अत: सबसे बड़ी चुनौती एक मजबूत और सक्षम सशस्त्र बल सुनिश्चित करना है, जो सिर्फ तेज आधुनिकीकरण से ही संभव है. इस बात में दो राय नहीं है कि गैर परंपरागत चुनौतियों से निपटने के लिए सीमा और दूसरी जगहों पर रक्षा का प्रबंधन परंपरागत सेना की गहन तैनाती के बजाय तकनीक पर आधारित रखना पड़ेगा. General Bipin Rawat, Army Chief, Hindi Article, New, Military Opportunity and Solutions in 21st Century, Hindi Essay

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सेना की साख हेतु सैन्य पुनर्गठन: अभी हाल ही में एयर फ़ोर्स के पूर्व चीफ एस.पी.त्यागी को सीबीआई ने अगस्टा वेस्टलैंड घोटाले के मामले में गिरफ्तार किया है. आप इसे छोटी घटना भर मानकर इग्नोर नहीं कर सकते, बल्कि सभी सशस्त्र सेनाओं के मनोबल पर ऐसे प्रकरणों से भारी असर पड़ता है. पर क्या वाकई हमने सोचा है कि सामान्य दुनिया से कटकर अपनी पूरी ज़िन्दगी भारत माता की जय बोलने वाले सैनिक आखिर ऐसे मामलों में फंस कैसे जा रहे हैं? पिछले दिनों हनीट्रैप में फंसकर वायुसेना के कार्यरत जवान द्वारा जासूसी की खबर ने सनसनी फैला दी थी. पूछताछ में रंजीत नामक जवान ने कहा था कि उसे खुफिया जानकारी देने के एवज में 30 हजार रुपए मिले थे, जिसके बदले में उसने फंसकर कई सीक्रेट्स दे दिए थे. इसके अतिरिक्त कथित वायुसेना कर्मचारी रंजीत फेसबुक के जरिए एक ब्रिटिश महिला मैक्नॉट दामिनी के संपर्क में आया था. तीन साल पहले रंजीत को मैक्नॉट दामिनी की तरफ से फेसबुक पर फ्रेंड रिक्वेस्ट मिली, जिसमें दामिनी ने रंजीत से बताया था कि वो यूके की एक मैगजीन में काम करती है. उसके बाद दोनों के बीच देर रात तक चैट होती थी, फिर चैट के बाद मामला वॉट्सऐप और स्काइप तक जा पहुंचा. पूरा हनी ट्रैप बिछाकर इस जासूस लड़की ने रंजीत से एयरफोर्स से जुड़ी काफी सूचनाएं हासिल कर ली थीं (Spying of military personal, honey trap and money matter, Hindi article). मात्र चंद रूपयों और सेक्स-जाल में फंसकर किस प्रकार एक वेल-ट्रेंड सैनिक सेना के राज उगल देता है, इसे देखकर न केवल हैरानी होती है, बल्कि आने वाली चुनौतियों को लेकर सेना की सजगता और उसकी ट्रेनिंग पर भी सवालिया निशान लगाता है. इस बात का यह मतलब कतई नहीं है कि हमारी सेना की ट्रेनिंग और उसके ढाँचे में कहीं कोई खोट है, बल्कि इसका सीधा मतलब 21वीं सदी के लिहाज से सैन्य ढाँचे के पुनर्गठन से है, जिसमें ट्रेनिंग और बदले हालातों में चुनौतियों से निपटने का मनोवैज्ञानिक और भौतिक ढांचा खड़ा किया जा सके. आखिर, 80 के दशक में फेसबुक पर कोई लड़की किसी सैनिक को तो लुभा नहीं सकती थी, किन्तु आज ग्लोबलाइजेशन और इंटरनेट के प्रसार ने सैन्य-प्रतिष्ठानों की गोपनीयता को भी व्यापक रूप से मुश्किल में डालने का आधार तैयार कर दिया है. न केवल, दूसरे देशों की आईएसआई जैसी जासूसी एजेंसियां, बल्कि हैकर और गूगल जैसे कार्पोरेट प्रतिष्ठानों से भी समस्याएं कहीं कम नजर नहीं आती हैं. पिछले दिनों जब गूगल के सुन्दर पिचाई अपने भारत दौरे पर थे, तब भाजपा के बड़े नेता और थिंक टैंक रहे गोविंदाचार्य ने इसे लेकर सवाल उठाते हुआ पिचाई से पूछा था कि गूगल अर्थ मैपिंग प्रोजेक्ट को बगैर सुरक्षा एंजेसियों की मंजूरी के कैसे चलाया जा रहा हैं? जाहिर तौर पर बदलती चुनौतियों के मद्देनजर हमें सैन्य पुनर्गठन की ओर ध्यान देना ही होगा. इसे समझने के लिए हमें चीनी सेना के पुनर्गठन (Army should be modernized, Hindi Article) की ओर नज़र घुमानी होगी, जब 2015 के सितम्बर में, चीनी राष्ट्रपति ने चीन की सेना में तीन लाख सैनिकों की बड़ी कटौती करने का ऐलान किया था. विशेषज्ञों ने सेना में कटौती को चीन के सैन्य तकनीक पर अधिक निर्भर होने की ओर बढ़ने का सीधे तौर पर संकेत बताया. साफ़ तौर पर, कटौती से होने वाली बचत का इस्तेमाल राष्ट्रीय सुरक्षा के लिए उच्च तकनीक आधारित सैन्य क्षमताएं विकसित करने के लिए किया जा सकता है. तकनीक और मानव-संशाधन का बेहतर उपयोग, बदलते दौर में नयी तरह की चुनौतियां लेकर आये हैं, इस बात से इनकार नहीं किया जा सकता है. 'जासूसी' शब्द की परिभाषा अब कैमरा या कान लगाकर बातें सुनने तक नहीं रह गए हैं, बल्कि डेटा एनालिसिस, ट्रेंड एनालिसिस से काफी कुछ तथ्य सामने खुद-ब-खुद निकलकर आ जाते हैं.  मसलन, फेसबुक पर अगर कोई सैनिक सक्रिय रूप से इन्वॉल्व है तो उसकी रुचि, दिनचर्या, आदतें, कमजोरियां और फ्रेंड-सर्कल पर आसानी से आतंकियों की नज़र पड़ जाती है (Precaution is mandatory for army person, while using social media, Hindi Article). संभवतः इसीलिए सरकार ने सुरक्षाबलों में स्मार्टफोन के प्रसार को बढ़ता देखर नए दिशा निर्देश भी जारी किये हैं. मसलन, किसी भी पुराने या नए अभियान की फोटो, विडियो या कोई अन्य जानकारी सोशल मीडिया पर अपडेट न किया जाए. हालाँकि, विशेषज्ञों के अनुसार ऐसे दिशा निर्देश अपने आप में अधूरे हैं. जाहिर तौर पर, इन तमाम बातों पर नए सिरे से गौर करने की आवश्यकता है, अन्यथा 'भय' लगातार बढ़ेगा और आतंकियों की ताकत लोगों में डर ही तो होता है. सैन्य पुनर्गठन से सेना में छिटपुट भ्रष्टाचार पर भी अंकुश लग सकेगा, क्योंकि तकनीक से समस्याओं को जल्दी चिन्हित किया जा सकेगा. जाहिर तौर पर सेना की साख इन सभी विषयों के केंद्र में रहने वाली है.  General Bipin Rawat, Army Chief, Hindi Article, New, Military Opportunity and Solutions in 21st Century, Hindi Essay

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उम्मीद की जानी चाहिए कि सामान्य सैन्य प्रशासन देखने के साथ-साथ नए सैन्य प्रमुख इन बदली हुई चुनौतियों पर भी नज़र घुमाएंगे. मूलतः उत्तराखंड गढ़वाल के निवासी बिपिन रावत के पिता एल. एस. रावत भी सेना मे लेफ्टिनेंट जनरल रहे हैं. रावत की पारिवारिक पृष्ठभूमि के अतिरिक्त, 1978 में भारतीय सेना में शामिल हुए इस अफसर ने अपने लंबे करियर में पाकिस्तान सीमा के साथ-साथ चीन सीमा पर भी लंबे समय तक कार्य किया है (Depth detail of General Bipin Rawat in Hindi, New Indian Army Chief). ख़बरों के अनुसार, वे नियंत्रण रेखा की चुनौतियों की गहरी समझ रखते हैं. हाल ही पाकिस्तान ने भी कश्मीर सीमा की बारीक जानकारी रखने वाले जनरल बाजवा को अपना आर्मी चीफ घोषित किया है, तो इसके मुकाबले में माना जा रहा है कि जनरल रावत भी दोनों सीमाओं की चुनौतियों से निपटने में सफल रहेंगे. उप सेना प्रमुख के दायित्व पर कार्य कर चुके जनरल रावत पर वर्तमान केंद्र सरकार का विशवास भी बना हुआ है और विपक्षी दलों को भी इस मामले में 'राई का पहाड़' नहीं बनाना चाहिए! देखा जाए तो जिन तीनों जनरल्स के नाम आर्मी चीफ के लिए रिकमेंड किये गए थे, वह सभी एक से बढ़कर एक थे, किन्तु जनरल रावत विषम परिस्थितियों में ऑपरेशनल डोमेन में ज्यादा सक्रिय थे. उनके अन्य अनुभवों में यूएन के झंडे तले शांति सेना में उनका नेतृत्व और सहयोगियों से उनका तालमेल अभूतपूर्व रहता है. जैसा कि रिटायर्ड लेफ्टिनेंट जनरल अता हसनैन अपने एक लेख में लिखते हैं कि वर्तमान हालातों में जनरल विपिन रावत जैसा आर्मी चीफ हमारे लिए 'एसेट' की तरह है. वैसे भी, पिछले दिनों सेना को कई बार राजनीतिक अखाड़े में घसीटने की कोशिश की गयी, वह चाहे पश्चिम बंगाल में उसका रूटीन अभ्यास रहा है, जिस पर ममता बनर्जी उखड़ गयी थीं या फिर सेना का पाक कब्ज़ा के क्षेत्र में सर्जिकल स्ट्राइक रही हो, जिस पर केजरीवाल सहित राहुल गाँधी जैसों ने सबूत की मांग कर डाली थी. हमें समझना होगा कि सेना अरबों भारतीयों की सबसे महत्वपूर्ण उम्मीद है, इसलिए उसका मान सम्मान हर हाल में सुरक्षित रखा जाना चाहिए और सेना से जुड़े लोगों को भी पल पल बदल रही चुनौतियों के प्रति सजग रहना चाहिए, जिससे संकट को वह नेस्तनाबूत कर सकें. हाँ, इस बीच 'सांप भी मर जाए और लाठी भी न टूटे' की कहावत को हमारी सेना तकनीक की सहायता से लगातार सही साबित करे, इस बात की उम्मीद हर एक भारतवासी को है!

- मिथिलेश कुमार सिंह, नई दिल्ली.




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