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चाणक्य का अपमान एक बार फिर हुआ और ... !!

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महात्मा चाणक्य के बारे में भला कौन नहीं जानता. उनके जैसे विद्वान, राजनीतिज्ञ और अर्थशास्त्र के ज्ञाता इस विश्व में कम ही महापुरुष हुए हैं. सर्वविदित है कि जिस तरह मगध के राजदरबार में उनका अपमान नंद वंश के राजा ने किया था, उसके बाद चाणक्य ने नन्द वंश का समूल नाश करने की प्रतिज्ञा की थी और मौर्य वंश की स्थापना करके चाणक्य ने अपनी प्रतिज्ञा पूरी भी की! चाणक्य के जैसा ही अपमान एक बार उत्तर प्रदेश की राजनीति में भी हुआ और वह था समाजवादी पार्टी की रीढ़ माने जाने वाले रामगोपाल यादव का! वैसे तो रामगोपाल की मुख्य पहचान मुलायम सिंह यादव के छोटे भाई के रूप में रही है, किन्तु उसके साथ-साथ एक प्रोफेसर होने का दायित्व और समाजवादी पार्टी के राष्ट्रीय प्रवक्ता व महासचिव पद की जिम्मेदारी भी उन्होंने लंबे समय तक निभाई है. कहा जाता है कि रूखे स्वभाव के रामगोपाल मुलायम सिंह को पार्टी हित में सटीक सलाह दिया करते थे, बेशक उससे कोई भी नाराज हो अथवा वह सलाह कितनी भी कठोर न हो! दिलचस्प यह भी है कि वगैर उनकी सलाह के मुलायम कोई भी बड़ा निर्णय नहीं करते थे, किन्तु वही रामगोपाल जब अखिलेश यादव को समाजवादी पार्टी में सबसे सक्षम नेता बताने लगे, तब से शिवपाल यादव, अमर सिंह जैसे नेताओं के निशाने पर आ गए. संयोग देखिये कि चाणक्य भी अपने ज़माने में शिक्षण-कर्म ही करते थे और शिक्षकों की इतनी न्यूनतम योग्यता तो मानी ही जा सकती है कि अपने छात्रों को वह बखूबी समझते हैं. अखिलेश रामगोपाल के सामने छात्र ही माने जा सकते हैं, क्योंकि इस पूरी उठापठक में रामगोपाल की सलाह से ही वह एक-एक कदम चले हैं. सपा की सत्ता पर अखिलेश का पूरा नियंत्रण जिस सरलता से हुआ, उससे यह बात साबित हुई कि रामगोपाल यादव का आंकलन सटीक और सफल रहा है. हाल-फ़िलहाल, उत्तर प्रदेश की राजनीति में सपाई दंगल पर हर पल कुछ न कुछ नया अपडेट आ रहा है, किन्तु यह लड़ाई अब निर्णायक मोड़ पर पहुँचती मानी जा सकती है. अब अखिलेश यादव का खेमा हावी होकर अपने विरोधी राजनीतिक विरोधी शिवपाल यादव, अमर सिंह को किनारे लगाने में सफल हो गया है. Hindi Article on Chankya, New, Politics, Ramgopal Yadav, Samajwadi Party, Crime, Caste, Akhilesh Yadav Future Politics Analysis 

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आप कह सकते हैं कि इस राजनीतिक उठापठक में रामगोपाल को 'चाणक्य' कैसे कहा जा सकता है तो कुछ महीने पीछे जाइए, जब इस घटनाक्रम की शुरुआत के बाद बवाल मचा और अखिलेश यादव को यूपी प्रदेश अध्यक्ष पद से हटाकर शिवपाल यादव को यूपी अध्यक्ष घोषित कर दिया गया. नाराज अखिलेश ने शिवपाल यादव को मंत्रिमंडल से हटा दिया, किन्तु सपा सुप्रीमो मुलायम सिंह की कृपा से शिवपाल यादव प्रदेश अध्यक्ष पद पर कब्ज़ा करने में सफल रहे थे. तब मंत्री पद से हटने की खुन्नस कह लीजिए या प्रदेश अध्यक्ष पद पाने की अत्यधिक खुशी कह लीजिए, शिवपाल यादव ने समाजवादी पार्टी के थिंक टैंक कहे जाने वाले रामगोपाल का भरपूर अपमान करने में कोई कोताही नहीं की! पार्टी के तमाम मामलों में रामगोपाल को कहाँ चाणक्य का दर्जा हासिल था और हरेक मुसीबत में उनकी राय ली जाती थी, किंतु इस बार शिवपाल ने ना केवल उन्हें पार्टी से निकलवा दिया, बल्कि एक-एक करके उनके रिश्तेदारों और राजनीतिक समर्थकों को भी शिवपाल यादव ने किनारे लगाया. यहां तक कि रामगोपाल के पुत्र जो सांसद हैं, अक्षय यादव उन पर सीधे भ्रष्टाचार के आरोप शिवपाल द्वारा लगाए ही गए, साथ ही अक्षय की पत्नी, जिनका राजनीति से कोई संबंध नहीं है, बल्कि वह डॉक्टरी करती हैं, उन पर भी शिवपाल यादव ने भ्रष्टाचार का आरोप जड़ दिया. रामगोपाल ने चतुराई से कार्य किया और अखिलेश का दामन कस कर पकड़े रहे, क्योंकि वह देख चुके थे कि जैसे दिया बुझने से पहले तेजी से जलता है, कुछ वैसी ही हरकत शिवपाल कर रहे थे. रही सही कसर मुख्तार अंसारी, अतीक अहमद, अमनमणि त्रिपाठी जैसे आपराधिक पृष्ठभूमि के नेताओं को टिकट देकर शिवपाल ने पूरी कर दी. यह सीधे-सीधे अखिलेश यादव की उस इमेज पर प्रहार था, जिसे डीपी यादव को निकालने से लेकर सपा के रामपाल तक को निकाल कर अखिलेश ने हासिल की थी. अखिलेश के मन में गहरी टीस उभरी, और इस टीस को रामगोपाल ने कुछ वैसे ही पहचान जैसे एक चरवाहे में सम्राट की छवि चाणक्य ने देख ली थी. बिना रामगोपाल के अखिलेश यादव पर सपा के अमर सिंह, शिवपाल जैसे नेता हावी हो गए थे, किन्तु यह रामगोपाल ही थे, जिन्होंने न केवल अखिलेश को इन मकड़जालों से निकाला, बल्कि समस्या की जड़ में 'मट्ठा' डाल दिया, ताकि फिर वह सर न उठा सके! Hindi Article on Chankya, New, Politics, Ramgopal Yadav, Samajwadi Party, Crime, Caste, Akhilesh Yadav Future Politics Analysis 

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चाणक्य के बारे में भी यही कहा जाता है कि कभी उनके पैरों में 'कुश का काँटा' चुभ गया था, तो उसे जड़ से समाप्त करने की खातिर उन्होंने कुश को गहरे तक खोदकर उसमें मट्ठा डाल दिया था, ताकि फिर कभी उस स्थान से कुश उगे ही न! कहा जा सकता है कि इस पूरी समस्या के पीछे शिवपाल यादव और मुलायम सिंह की दूसरी पत्नी साधना गुप्ता की राजनीति कार्य कर रही थी, जो मुलायम के दूसरे पुत्र प्रतीक की पत्नी अपर्णा यादव के माध्यम से बाहर निकालने की कोशिश में थी. रामगोपाल ने अपने वार से अखिलेश का रास्ता निष्कंटक कर दिया है. अनुमान तो यह भी लगाया जा रहा है कि अखिलेश को सपा का निर्विवाद नेता बनाने की स्क्रिप्ट मुलायम सिंह ने ही लिखी थी, किन्तु अगर ऐसा है भी तो यहाँ बारीकी समझने की आवश्यकता है. मुलायम ऐसा कतई नहीं चाहते होंगे कि शिवपाल और उनके दूसरे विश्वस्तों का रूतबा इस तरह से ख़त्म किया जाए. वह शायद बीच की राह निकालने की जुगत में थे, किन्तु चाणक्य तो फिर चाणक्य ही है! रामगोपाल ने अपने अपमान का बदला कह लीजिये या फिर अखिलेश के राजनीतिक शत्रु के जड़ से उखाड़ने की इच्छा कह लीजिये, शिवपाल एंड पार्टी को पूरी तरह निपटा देने में ही भलाई समझी और ऐसा उन्होंने कर डाला! शिवपाल इस प्रकरण की शिकायत भी नहीं कर सकते, क्योंकि जिस तरह से रामगोपाल यादव को उन्होंने समाजवादी पार्टी से रुखसत कराया था, कुछ वैसे ही अंदाज में शिवपाल यादव को रुखसत होना पड़ा. काश, रामगोपाल जैसे पढ़े लिखों का अपमान करने से पहले शिवपाल चाणक्य के ऐतिहासिक अध्याय को एक बार पलट लेते तो उन्हें ऐसा दुर्दिन न देखना पड़ता! देखा जाए तो विद्वानों को व्यवहारिक जिंदगी में कोई खास तवज्जो नहीं दी जाती है. कई बार तो उन्हें कागज काला करने वाला मानकर अपना पीछा छुड़ा लिया जाता है और इस नाते व्यापारी, अधिकारी या फिर राजनेता तक बुद्धिजीवी वर्ग का अपमान करने में संकोच नहीं करते हैं. जब तब उनसे कह दिया जाता है कि "तुमसे ना हो पाएगा, तुम बस कागज़ काले करते रहो"! पर चाणक्य का अपमान करने वाले नन्दवंश के शासक या शिवपाल यादव जैसे लोगों को समझना चाहिए कि जब-जब वक्त आया है, तब-तब बुद्धिजीवी वर्ग ने अपना कर्म किया है और समाज हित में खुलकर खड़ा भी हुआ है. Hindi Article on Chankya, New, Politics, Ramgopal Yadav, Samajwadi Party, Crime, Caste, Akhilesh Yadav Future Politics Analysis 

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वस्तुतः परिवार, पार्टी या समाज में असल कार्य तो बुद्धिजीवी ही स्थायित्व ढंग से संपादित करते हैं, किंतु बंदरों की तरह उछल-कूद करने से बुद्धिजीवी वर्ग बचता है, जिसे कई बार उसकी कमजोरी समझ लिया जाता है. कहा गया है, ज्ञान से गंभीरता आती है और उस गंभीरता से बड़े-बड़े कार्य संपादित किए जाते हैं, पर इसका कोई क्या करे कि ज्ञान से ज्यादा अर्थ और ताकत का डंका बजाने की कोशिश जब तब की जाती है. शिवपाल यादव जैसों की बुद्धि पर तरस आना चाहिए कि उन्होंने जितनी इज्जत मुख्तार अंसारी, अतीक अहमद जैसे अपराधियों को बख्शी उतनी इज्जत के लायक भी अपनी ही पार्टी के 'चाणक्य' राम गोपाल को नहीं समझा! उनके बारे में यहां तक कहा गया कि उन्हें सपा में लेटर टाइप करने के लिए ही रखा गया था! कहते हैं कि शरीर में धंसी फांस तो निकल जाती है, किंतु मन में धंसी फांस नहीं निकलती है! मन में धँसी फांस जब निकलती है, तो फिर भूकंप ही आता है. अरे... रे... रे...  राहुल गांधी वाला भूकंप नहीं, बल्कि असल भूकंप, जैसा समाजवादी पार्टी में आया! कोई सोच भी नहीं सकता था कि 25 साल से पार्टी पर एकछत्र कब्जा रखने वाले मुलायम सिंह यादव तक को राष्ट्रीय अध्यक्ष से हटाकर प्रतीक मात्र संरक्षक बना दिया जाएगा और इसलिए मामला अध्ययन करने योग्य तो है ही! परिवार में, समाज में या किसी संस्थान में बुद्धिजीवियों की तो वैसे भी कम सुनी जाती है और यदि कोई धनवान है या उसके पास जन की पावर है तो उसकी ज्यादा चलती है, इस बात में दो राय नहीं है. पर चाणक्य जैसों की न सुनने और उनका अपमान करने से क्या दिन देखने पड़ जाते हैं, इसे समझने के लिए सपा के अलावा आम आदमी पार्टी का उदाहरण भी दिया जा सकता है. अरविंद केजरीवाल की पार्टी जो भ्रष्टाचार के खिलाफ आंदोलनों से निकली और बुद्धिजीवियों के बल पर ही खड़ी हुई, किंतु दिल्ली में सरकार बनने के बाद आम आदमी पार्टी के चाणक्य कहे जाने वाले योगेंद्र यादव को धक्के मारकर पार्टी से बाहर कर दिया गया. यह सब ने देखा, उन्हें भी स्वराज अभियान के माध्यम से एक नई पार्टी का गठन करना पड़ा. हालांकि उनकी पार्टी की परीक्षा पंजाब चुनाव और दिल्ली के एमसीडी चुनाव में हो जायेगी, किन्तु असल बात केजरीवाल की है. पिछले दिनों जिस तरह हर मोर्चे पर केजरीवाल सरकार बदनाम हुई है, उतनी बदनामी तो लालू यादव को भी न मिली होगी. पंजाब जैसे राज्य में जहाँ आम आदमी पार्टी का सत्ता में आना पक्का माना जा रहा था, वहीं उस पार्टी में फूट पड़ गयी है और उसके कई नेता बाहर निकल चुके हैं. निश्चित रूप से योगेंद्र यादव पहले इस तरह की समस्याओं को सुलझाने वालों में जाने जाते थे. खैर, योगेंद्र या रामगोपाल को प्रतीक मात्र में बेशक चाणक्य कह दिया जाए, किन्तु चाणक्य के पैरों की धुल बनने से भी ये लोग कोसों दूर हैं, क्योंकि चाणक्य का योगदान सिर्फ इतना ही नहीं था कि उसने एक राजा को गद्दी से हटाकर दूसरे को गद्दी पर बिठा दिया, बल्कि उसका असल योगदान तो उसके बाद का है.  Hindi Article on Chankya, New, Politics, Ramgopal Yadav, Samajwadi Party, Crime, Caste, Akhilesh Yadav Future Politics Analysis 

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चाणक्य देश की अखण्डता के अभिलाषी थे, इसलिये उन्होंने चंद्रगुप्त द्वारा यूनानी आक्रमणकारियों को भारत से बाहर निकलवा दिया और नंद वंश के अत्याचारों से पीड़ित प्रजा को भी मुक्ति दिलाई. रामगोपाल जैसे लोग अगर सच में चाणक्य कहलाने की चाह रखते हैं तो उन्हें अखिलेश यादव को इस बात के लिए तैयार करना होगा कि जाति और धर्म की राजनीति से धीरे-धीरे ही सही मुक्त होकर विकास और अपराधमुक्त होने की बात करें. शिवपाल को तो मीडिया ने अपराधियों का संरक्षक एक सुर में कह दिया, किन्तु अखिलेश द्वारा जारी उम्मीदवारों की लिस्ट में भी कई दबंगों, अपराधियों को टिकट दिया गया है. इसलिए, सिर्फ सत्ता परिवर्तन कराना चाणक्य होने की कसौटी नहीं है, बल्कि अगर बदली हुई सत्ता देश और समाज के हित में खड़ी नहीं हो पाती है तो बुद्धिजीवी वर्ग को चाणक्य की पदवी से सम्मानित होने की बजाय, 'दलाल' जैसे अपशब्दों से अपमानित भी होना पड़ता है. अखिलेश एक उम्मीद जरूर हैं और अब तक सीएम पद की उनकी असफलताओं को शिवपाल जैसों के माथे जरूर मढ़ दिया गया है, किन्तु अब उनकी असफलताओं, प्रदेश में बढ़ते अपराध, दंगों के लिए सिर्फ और सिर्फ वही जिम्मेदार माने जायेंगे तो अगर सपा फिर से अपराधियों की पार्टी बन जाती है तो इसका दोष अखिलेश के सर्वाधिक विश्वासपात्र रामगोपाल पर निश्चित ही मढ़ा जायेगा. बड़ी राजनीतिक जीत हासिल करने के बाद अखिलेश को अहम् से बचाकर, सामाजिक और पारिवारिक संतुलन साधने की कला सिखाने की जवाबदेही भी अब रामगोपाल की ही है और अंततः अखिलेश की कीर्ति या बदनामी के संग वह भी चलेंगे, इस बात में दो राय नहीं!

- मिथिलेश कुमार सिंह, नई दिल्ली.




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