कोर्ट के न्यायाधीश रह चुके मार्कण्डेय काटजू के उस बयान को मीडिया में कवरेज मिली थी, जिसमें कश्मीर मुद्दे का हल सुझाते हुए उन्होंने कहा था कि सेक्युलर, मजबूत, और आधुनिक सोच वाली सरकार के नेतृत्व में भारत पाकिस्तान और बांग्लादेश एकीकृत हों. काटजू ने यह भी कहा था कि ऐसा तभी हो सकता है जब इसका नेतृत्व धार्मिक कट्टरता से मुक्त सरकार करे और इस तरह की चीजों को खत्म कर सके. इसके अलावा इस समस्या का सामना करने का कोई रास्ता नहीं है. बयान के समय काटजू ने पाकिस्तान के देश होने पर ही सवाल उठाते हुए कहा था कि पाकिस्तान एक फर्जी देश है जिसे अंग्रेजों द्वारा हिंदू और मुस्लिमों को लड़ाने के लिए बांटा गया था. उन्होंने साथ में यह भी कहा कि अंग्रेजों ने ऐसा इसलिए किया ताकि भारत चीन की तरह औद्योगिक रूप से मजबूत देश न बन सके. खैर, तत्कालीन परिदृश्य में काटजू के बयान को बहुत गंभीरता से नहीं लिया गया था, किन्तु वर्तमान में भाजपा के राममाधव के 'अखंड भारत' बयान ने हलचल मचा दी है.सवाल यह नहीं है कि पाकिस्तान जिन पंजाब, सिंध, बलूचिस्तान और उत्तर-पश्चिमी सीमांत राज्योंराज्यों से मिलकर बना है वो कभी अशोक, अकबर और ब्रिटिश के समय तक भारत में शामिल थे, बल्कि इससे बड़ा सवाल यह है कि धर्म के नाम पर अलग हुए या अलग किये गए दो राष्ट्रों के बीच आज क्या बदल गया है, जिसके पीछे इस सुगबुगाहट को हवा दी जा रही है. नरेंद्र मोदी की लाहौर-यात्रा से कुछ और कितना असर होगा, यह तो भविष्य के गर्त में है, किन्तु संघ के राम माधव जैसे लोग बड़े सपनों का दृश्य रचने में जुट गए हैं. वस्तुतः यह कोई नया विचार नहीं है, बल्कि उस अखंड भारत के विचार का हिस्सा है जिसकी कल्पना और वकालत हिन्दू महासभा, राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ और भारतीय जनता पार्टी जैसी संस्थाएं करती आई हैं. इस अखंड भारत की प्रेरणा 'कथित' प्राचीन काल से ली जाती है, जिसमें वर्तमान समय के भारत के साथ पाकिस्तान, अफ़ग़ानिस्तान और बांग्लादेश के अलावा श्रीलंका, भूटान, नेपाल, बर्मा और तिब्बत भी शामिल हैं.
देखा जाय तो आकार में वर्तमान भारत 'कल्पना' के अखंड भारत के आधे से भी कम है. हिन्दू राष्ट्रवादी दीनानाथ बत्रा अखंड भारत की परिकल्पना बड़े बिस्तार से करने के लिये जाने जाते हैं. खैर, भाजपा के प्रखर राष्ट्रीय प्रवक्ता माने जाने वाले राम माधव ने अपनी बात को संतुलित करने का खूब प्रयास भी किया और कहा अगर दो जर्मनी एक साथ आ सकते हैं अगर दो वियतनाम एक साथ आ सकते हैं तो भारत-पाकिस्तान एक साथ क्यों नहीं हो सकते! राम माधव ने अपने वक्तव्य में यह भी क्लियर करते हुए कहा कि यह किसी की ज़मीन हड़पने और जोर-जबरदस्ती के बजाय अखंड भारत की कल्पना पॉपुलर गुडविल पर यानी बड़ा तादाद में लोग क्या चाहते हैं इस निर्भर करती है. मतलब, अगर बहुमत में लोग राजी हो जाएँ तो यह संभव हो सकता है. आरएसएस के प्रचारक रह चुके माधव ने बयान में बाकायदा राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ का पक्ष रखते हुए कहा कि आरएसएस का मानना है कि ऐतिहासिक कारणों से तीनों देश अलग हुए थे. और कुछ असहमतियों से परे हटकर अखंड भारत की परिकल्पना को मूर्त रूप में लाया जा सकता है. आईआईएम से जुड़े एक प्रोफ़ेसर वैद्यनाथन ने इस मामले में एक बेहद दिलचस्प ट्वीट किया कि 'उम्मीद है कि राम माधव पाकिस्तान, भारत और बांग्लादेश के फिर से एक होने के अपने विचार को लेकर गंभीर नहीं हैं. अगर ऐसा हुआ तो जनसांख्यकीय रूप से एक इस्लामिक गणराज्य उभरेगा. क्या वह और भाजपा यह चाहते हैं? सच ही तो है, आखिर भारत के 18 करोड़ मुसलमान, पाकिस्तान के भी 18 करोड़ मुसलमान और बांग्लादेश के लगभग 15 करोड़ मुसलमान मिलकर 50 करोड़ से ज्यादे हो जायेंगे. ऐसे में धर्म के नाम पर ही अलग हुए राष्ट्रों के जुड़ने से किस प्रकार के असंतुलन पैदा हो सकते हैं, इसकी सहज ही कल्पना की जा सकती है. एक मित्र ने मजाक में कहा कि सबसे बड़ी दिक्कत तो गिरिराज सिंह और साक्षी महाराज जैसे लोगों को होगी कि वह बात-बेबात पर भारतीय मुसलमानों को पाकिस्तान भेजने को तैयार रहते हैं. ऐसे में 50 करोड़ मुसलमानों को इंडोनेशिया भेजना थोड़ा बेतुका सा लगेगा... इसलिए अखंड भारत की सियासी सोच को फिलहाल डब्बे में ही रखना उचित रहेगा.
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