सुप्रीम कोर्ट में 159 पृष्ठों की रिपोर्ट सौंपने के बाद पत्रकारों को संबोधित करते हुए जस्टिस लोढ़ा ने अपने रिपोर्ट की व्यापकता के सन्दर्भ में कहा कि उन्होंने बोर्ड अधिकारियों, क्रिकेटरों और अन्य हितधारकों के साथ 38 बैठकें की और उस आधार पर तैयार रिपोर्ट पर सुप्रीम कोर्ट यह फैसला करेगा कि भारतीय क्रिकेट कंट्रोल बोर्ड इन सिफारिशों को मानने के लिये बाध्य है या नहीं. जाहिर है, संवाददाता सम्मेलन को सम्बोधित करते हुए कहीं न कहीं जस्टिस लोढ़ा को भी इस बात का बखूबी अहसास था कि उन्होंने कितनी कड़ी सिफारिशें दी हैं. लोढ़ा ने सिफारिशों के बारे में विस्तार से जानकारी देते हुए यह भी कहा कि बीसीसीआई के ढांचे और संविधान को लेकर और व्यापक होने की आवश्यकता है. वर्तमान में बीसीसीआई के 30 पूर्णकालिक सदस्य हैं और इनमें से कुछ सदस्यों जैसे सेना, रेलवे आदि का कोई क्षेत्र नहीं है. इनमें से कुछ टूर्नामेंट में नहीं खेलते तो कुछ राज्यों में कई सदस्य हैं जैसे कि महाराष्ट्र में 3 और गुजरात में ३. जाहिर है इन तमाम विसंगतियों को दूर करने की अपनी तरफ से जस्टिस लोढ़ा ने भरपूर कोशिश करने की बात स्वीकारी है. आखिर, क्रिकेट में भ्रष्टाचार पर 'हथौड़ा' चलने की नौबत आ ही गयी. इससे भी बड़ी बात यह सामने आयी है कि राजनेताओं को क्रिकेट-प्रशासन में प्रवेश से रोकने की बात कही गयी है, जो निश्चित रूप से एक क्रन्तिकारी और सुगबुगाहट को बढ़ाने वाली बात होगी. इस क्रम में, जस्टिस लोढा समिति ने आखिरकार, भारतीय क्रिकेट में सुधार से जुड़ी अपनी रिपोर्ट सुप्रीम कोर्ट को सौंप दी है. समिति ने इस रिपोर्ट में बीसीसीआई में बदलाव के लिए जो अहम सुझाव दिए हैं, उनमें क्रिकेट में सट्टेबाज़ी को वैध किया एवं सरकारी अफ़सरों और मंत्रियों को भारतीय क्रिकेट कंट्रोल बोर्ड से बाहर रखने की बात शामिल है.
यह दो फैसले ऐसे हैं, जिनको लेकर क्रिकेट में सुधार की बातें कही जाती रही हैं, किन्तु व्यवहारिक रूप से इनको कैसे लागू किया जाएगा, यह अपने आप में एक बड़ा प्रश्न है. हाल ही में, दिल्ली के डीडीसीए में वित्तीय अनियमितता और उसमें वित्त मंत्री अरुण जेटली का नाम घसीटा गया, उससे राजनेताओं को खेल संगठनों से दूर करने की मांग ने जोर पकड़ा है. परन्तु, प्रश्न वही है कि क्या मुंबई क्रिकेट संघ के अध्यक्ष और धुरंधर राजनेता शरद पवार, गुजरात क्रिकेट संघ (जीसीए) के अध्यक्ष और भाजपा के प्रेजिडेंट अमित शाह, कांग्रेस सांसद राजीव शुक्ला के रूप में इंडियन प्रीमियर लीग के चेयरमैन, जो उत्तर प्रदेश क्रिकेट संघ में भी कई साल से सचिव हैं, इस समिति की रिपोर्ट पर इतनी आसानी से मान जायेंगे. इसके अतिरिक्त, मध्य प्रदेश क्रिकेट संघ के मौजूदा अध्यक्ष कांग्रेसी नेता ज्योतिरादित्य सिंधिया, जम्मू कश्मीर राज्य क्रिकेट संघ के मुखिया फारुख अब्दुल्लाह, भारतीय जनता पार्टी के युवा मोर्चे के अध्यक्ष अनुराग ठाकुर जो बीसीसीआई के मौजूदा सचिव हैं तो हिमाचल प्रदेश क्रिकेट संघ के अध्यक्ष भी हैं इस फैसले को आसानी से लागू हो लेने देंगे. कुछ नौकरशाहों की क्रिकेट प्रशासन में इन्वोल्व्मेंट की बात की जाय तो पूर्व आईपीएस अधिकारी अमिताभ चौधरी बीसीसीआई के संयुक्त सचिव और झारखंड क्रिकेट एसोसिएशन के अध्यक्ष हैं. इसके साथ, आंध्र प्रदेश क्रिकेट संघ के सचिव राजू भारतीय जनता पार्टी के सांसद हैं तो ओडिशा क्रिकेट संघ के अध्यक्ष रंजीब बिस्वाल कांग्रेस पार्टी के राज्यसभा सदस्य हैं. बिहार क्रिकेट संघ के एक धड़े के अध्यक्ष भी राजद नेता और मौजूदा बिहार सरकार में वित्त मंत्री अब्दुल बारी सिद्दिकी हैं. प्रश्न वही है कि इतनी आसानी से ये धुरंधर अपना बोरिया-बिस्तर समेटने को तैयार होंगे या फिर शुरू होगा एक लम्बा सिलसिला टालमटोल का. हालाँकि, लोढ़ा का हथौड़ा कुछ और बिन्दुओं पर चला है, जिसको लेकर क्रिकेट के एकाधिकारियों की भृकुटियां तन सकती हैं, जिसमें बीसीसीआई को सूचना के अधिकार (आरटीआई) के दायरे में लाने की बात प्रमुख है.
हालाँकि, इस बात का बीसीसीआई यह कहकर विरोध करती रही है कि यह एक स्वायत्त संस्थान है और इसे आरटीआई के दायरे में नहीं लाया जाना चाहिए, किन्तु यह तर्क देने वाले भूल जाते हैं कि राष्ट्रीय ध्वज और 'भारतीय' नाम का इस्तेमाल करने वाले आप ही राष्ट्रीय कानून के दायरे में आ जाते है. वैसे, जस्टिस लोढ़ा ने स्पष्ट करते हुए कहा है कि क्रिकेट को क्रिकेटर ही चलाएं और बीसीसीआई की स्वायतत्ता बनी रहे. साथ ही साथ, एक राज्य में सिर्फ़ एक ही क्रिकेट संघ हो और सभी को वोट देने का हक़ हो. दुसरे महत्वपूर्ण प्रावधानों में जस्टिस लोढ़ा ने पारदर्शिता और लोकतंत्र पर बल देते हुए मजबूत सिफारिश दी है कि किसी भी बीसीसीआई पदाधिकारी को लगातार दो से अधिक कार्यकाल तक नहीं रहने दिया जाए तो किसी भी व्यक्ति को तीन से अधिक कार्यकाल के लिए पदाधिकारी न बने रहने दिया जाए. आईपीएल के लिए अपनी सिफारिश में जस्टिस लोढ़ा ने साफ़ कहा है कि आईपीएल और बीसीसीआई की अलग-अलग गवर्निंग काउंसिल हो, साथ ही साथ आईपीएल गवर्निंग काउंसिल को सीमित स्वायत्ता प्रदान की जाए. जाहिर है, अपनी ओर से हर एक मुख्य बिन्दुओं को जस्टिस लोढ़ा ने सटीकता से छूने की कोशिश की है. अगर यह पूरी की पूरी रिपोर्ट लागू कर दी जाय तो कोई कारण नहीं है कि क्रिकेट में एक बेहतरीन पारदर्शिता आ जाएगी, मगर प्रश्न यही है कि लगभग आदर्शवादी सिफारिशों को लागू करेगा कौन और कैसे? मतलब, बिल्ली के गले में घंटी बांधेगा कौन? चूँकि यह रिपोर्ट अब सुप्रीम कोर्ट के पटल पर आ चुकी है, इसलिए अब इससे टालमटोल करना भी इतना आसान नहीं होगा. देखना दिलचस्प होगा कि क्रिकेट हित की बात करने वाले, इस सार्थक रिपोर्ट को किस हद तक पचा पाते हैं. अगर सच में इन सिफारिशों को लागू कर दिया जाय तो भ्रष्टाचार, पारदर्शिता, ढांचा, संविधान और लोकतंत्र के स्तर पर दुनिया के सबसे अमीर क्रिकेट बोर्ड का पुनर्गठन निश्चित रूप से सुखद परिणाम लेकर ही सामने आएगा, इस बात में कोई दो राय नहीं है.
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