पिछले कुछ दिनों में इतने नए मुद्दे उठे हैं देश में, मानो पहले कोई कार्य होता ही न था या फिर राजनीति में आये केंद्रीय बदलाव से तिलमिलाहट ने नया रूख अख्तियार करना शुरू किया हो. सहिष्णुता-असहिष्णुता के साथ गोमांस, सेंसर-बोर्ड मामला, एफटीआईआई समेत दूसरे मामलों में नियुक्ति विवाद, भाषा-साहित्य विवाद बला... बला... !! यहाँ तक कि खालिस्तान जैसे मुद्दों को भी हवा देने की कोशिश की जा रही है. राजनीति भी कभी-कभी इतनी कुत्सित हो जाती है कि आम तो आम, खास लोग भी इसके जाल में फंस ही जाते हैं. फंस ही जाएँ तो एक बात हो, किन्तु इसके प्रभाव में आकर वह विपरीत समय में देशद्रोही बयान देने से भी नहीं चूकते हैं. इस समय देश पाकिस्तानी फ़ौज और आईएसआई द्वारा समर्थित आतंकियों द्वारा 'पठानकोट हमले' का दर्द महसूस कर रहा है, वहीं कांग्रेसी नेता मनीष तिवारी ने एक पुरानी अफवाह को यह कहकर अनावश्यक रूप से सनसनी फैलाने की कोशिश की है कि भारतीय सेना की कुछ टुकड़ियों ने मनमोहन सरकार का तख्तापलट करने की कोशिश की थी! मनीष तिवारी शायद राजनीति कर रहे हों, शायद पुरानी अफवाह के बारे में उन्हें कोई सुराग भी मिले हों... किन्तु उन्हें यह तथ्य किस प्रकार भूल जाता है कि पठानकोट हमले के बाद, पाकिस्तानी फ़ौज पर 'आतंकियों के खिलाफ कार्रवाई करने का चौतरफा दबाव' है. खुद उनके देश के प्रधानमंत्री नवाज शरीफ इस बात के लिए खुले रूप से फ़ौज पर प्रेसर डाल रहे हैं तो दूसरी ओर अमेरिका और तीसरी ओर उनके नए दोस्त बने भारतीय प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने भी दो टूक बात कही है! ऐसे नाजुक समय में, भारतीय सेना के बारे में किसी भी प्रकार की बयानबाजी, क्या विषय भटकाव नहीं करेगी? और इस वक्त विषय भटकाव क्या देशद्रोह जैसी राजनीति नहीं होगी?
कांग्रेस के वरिष्ठ नेता और पूर्व केंद्रीय मंत्री रह चुके मनीष तिवारी के इस तथाकथित 'खुलासे या अफवाह' का तत्कालीन सैन्य प्रमुख और वर्तमान केंद्रीय मंत्री वीके सिंह ने हालाँकि खंडन किया है, जिसमें उन्होंने कहा है कि 2012 में सेना की दो टुकडि़यां दिल्ली की ओर बढ़ रही थी. वीके सिंह ने साफ़ कहा है कि तिवारी कह रहे हैं कि यूपीए सरकार के दौरान सेना ने दिल्ली की ओर कूच किया था. यह सही नहीं है. आजकल मनीष तिवारी के पास कुछ काम नहीं है. यदि उन्हें इस खुलासे के बारे में ज्यादा जानकारी लेनी है तो वह मेरी किताब पढें. सिर्फ तत्कालीन जनरल वीके सिंह ही क्यों, बल्कि कांग्रेस नेता पीसी चाको ने कहा कि जैसा कि पहले भी इस संबंध में अंग्रेजी अखबार इंडियन एक्सप्रेस में खबर छपी थी जिसके बाद तत्कालीन करकार ने इस खबर का खंडन किया था. कांग्रेस की ओर से मैं आज भी इस खबर का खंडन करता हूं. किसी भी तरह की कोई सेना की टुकड़ी तत्कालीन सरकार की जानकारी में दिल्ली की ओर कूच नहीं की थी. हालाँकि, राजनीति में हासिये पर खड़ी कांग्रेस में ही कई ज़हर उगलने वाले लोग भी हैं, जिनमें मणीशंकर अय्यर हैं, जिन्होंने सुगबुगाहट को जन्म दी है कि जहां तक लगता है कि उस रात कुछ न कुछ हुआ था जो संविधान के खिलाफ था. वहीं, मामले को उलझाते हुए कांग्रेस नेता अभिषेक मनु सिंघवी ने कहा कि मनीष तिवारी पार्टी के प्रवक्ता नहीं हैं और न ही इस मामलों के जानकार हैं. उन्हें इस मामले में ऐसी टिप्पणी नहीं करनी चाहिए थी. मुझे उम्मीद है कि वह भविष्य में ऐसे मुद्दों पर टिप्पणी करने से बचेंगे. सिंघवी ने कहा कि मनीष तिवारी ने जो बयान दिया है उसमे सच्चाई नहीं है. अब सवाल यह है कि ये सारे नेता कांग्रेस के वरिष्ठ नेताओं में गिने जाते हैं और इस पूरे मामले से यही प्रतीत होता है कि वर्तमान हालातों में दिया गया बयान न केवल राजनीति से पूर्णतः प्रेरित है, बल्कि देशद्रोह की कैटगरी में भी आता है, क्योंकि पठानकोट हमले को लेकर पाकिस्तान सरकार और सेना पर दबाव बनाने की कोशिश में सरकार जुटी हुई है.
विपक्ष को इस प्रकार के अनर्गल हथकंडों से दूर रहना चाहिए, इस बात में रत्ती भर भी संकोच नहीं है. जहाँ तक भारतीय सेना की बात है, तो उसके सम्मान और उसकी देशभक्ति, संविधाननिष्ठा पर किसी भी प्रकार का प्रश्न तो क्या, शंका तक उत्पन्न नहीं हुई है! ऐसे में, विश्व की सबसे अनुशासित सेनाओं में गिनी जाने वाली इंडियन आर्मी पर इस प्रकार का अनर्गल और आधारहीन आरोप कोई पागल ही मढ़ सकता है. मनीष तिवारी जिस घटना को सच बताने का दावा कर रहे हैं वो घटना है 2012 की. 4 अप्रैल को इंडियन एक्सप्रेस ने एक खबर छापकर दावा किया था कि सरकार की बिना इजाजत के सेना की दो टुकड़ियों ने दिल्ली की ओर कूच किया था और इसका मकसद मनमोहन सिंह की सरकार का तख्तापलट करना था. अखबार ने तब जो रिपोर्ट छापी थी उसके मुताबिक 16-17 जनवरी की रात हरियाणा के हिसार से सेना की 33वीं आर्म्ड डिविजन की यूनिट ने दिल्ली की ओर कूच किया था, जिसके साथ 48 टैंक ट्रांसपोर्टर्स थे तो इस पर आर्म्ड फाइटर व्हीकल भी लदे थे. इस यूनिट को नजफगढ़ के पास रोक कर वापस भेजा गया था. आगे इस रिपोर्ट में इस बात का ज़िक्र था कि आगरा में 50वीं पैरा ब्रिगेड की एक दूसरी टुकड़ी भी पालम तक पहुंच गई थी, उसे भी वहीं रोक कर वापस भेजा गया था. इस रिपोर्ट में बताया गया था कि खुफिया एजेंसियों ने सरकार को अलर्ट किया था और दिल्ली की ओर आने वाले ट्रैफिक की चेकिंग शुरू हुई थी.
यही नहीं, तत्कालीन रक्षा सचिव शशिकांत शर्मा ने उसी रात डीजी (मिलिट्री ऑपरेशंस) लेफ्टिनेंट जनरल एके चौधरी को बुलाया था और रूटीन मूवमेंट की जानकारी ली थी. मनीष तिवारी अप्रैल 2012 में तो मंत्री नहीं थे लेकिन वो रक्षा मंत्रालय की एक समिति में जरूर शामिल थे. हालाँकि, 2012 में रक्षा मंत्री रहे एके एंटनी ने साफ किया है कि सेना के मार्च का उन्होंने 2012 में भी खंडन किया था और अब भी उसका खडंन कर रहे हैं. अब सवाल यह है कि क्या सिर्फ एक ही अखबार को इसकी जानकारी मिल पायी थी? क्या राष्ट्रीय, अंतर्राष्ट्रीय मीडिया सो रहा था, जो एक अख़बार के आधार पर ही मनीष तिवारी सारा प्रोपोगेंडा चला रहे हैं. वह भी जब कांग्रेस सत्ता से बुरी तरह बाहर है, तब इस खबर को मीडिया में चर्चित करने के पीछे मनीष तिवारी और खुद कांग्रेस की मानसिकता पर भी सवालिया निशान लगते हैं. आखिर, कौन नहीं जानता है कि सत्ता पाने का रोग, पागलपन के दौरे से लेकर देशहित को भी दांव पर लगाने का रोग है! और 60 सालों तक देश पर राज्य करने वाली कांग्रेस, इस बात को अब तक पचा नहीं पायी है कि वह देश से समाप्त होने की कगार पर है, इसलिए कभी किसी संस्था को तो कभी सेना के सम्मान और निष्ठा पर ही प्रश्नचिन्ह लगा दो! यदि तरीके से देखा जाय तो ऐसी बयानबाजियों पर तो सुप्रीम कोर्ट को संज्ञान लेना चाहिए और मनीष तिवारी जैसों पर 'देशद्रोह की धाराओं के तहत' कार्रवाई होनी चाहिए, क्योंकि सेना पर प्रश्नचिन्ह उठाना सीधा 'देशद्रोह' ही है, वह भी आधारहीनता के साथ!
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