कभी-कभी यह सोचना बेहद अजीब और दोहरा अहसास देता है कि इस दुनिया में जब सब अच्छे हैं, तो बुराई इतनी तेजी से फैलती कहाँ से है? आप किसी भी व्यक्ति, समूह या संस्थान से उसका पक्ष जान लीजिये, अंततः आप यही निष्कर्ष निकालेंगे कि सब लोग ईश्वर के कितने भक्त हैं, एक दूसरे का कितना ख़याल रखते हैं... बला, बला... और अगले ही दिन आपको इसके विपरीत पता चलता है कि अमुक ने अमुक की हत्या कर दी! कितना बड़ा झटका होता है. न केवल व्यक्तिगत अनुभव, बल्कि वैश्विक अनुभव भी कुछ ऐसे ही होने लगे हैं. सभी देश शांति चाहते हैं, सभी देश निरस्त्रीकरण चाहते हैं... किन्तु एक-एक करके पागलों के हाथ में परमाणु और हाइड्रोजन बम तक पहुँचते जा रहे हैं. इसी कड़ी में, आख़िरकार, एक तानाशाह ने अपने मन की कर ही ली. तमाम अंतर्राष्ट्रीय दबावों और आलोचनाओं को धत्ता बताते हुए उत्तर कोरिया ने अपने पहले हाइड्रोजन बम के सफल परीक्षण की घोषणा कर ही दी. साथ ही साथ एक बड़ी चुनौती उन धुरंधरों के सामने भी पेश कर दी, जिन्होंने वैश्विक राजनीति को अपनी ड्राइंग-रूम की राजनीति से ज्यादा कुछ नहीं समझा है. यूनाइटेड नेशन जनरल असेम्ब्ली द्वारा 1996 में ही सीटीबीटी प्रस्ताव को अपना लिया गया, जिसका अनुमोदन बड़े देशों सहित अधिकांश देशों ने कर दिया. इस प्रस्ताव से आज लगभग 20 साल होने को हैं, मगर इस दौरान हथियारों का प्रसार कहाँ रूका, यह बात समझ से बाहर नजर आती है. एक बड़ी एजेंसी की रिपोर्ट में हाल ही में कहा गया था कि चरमपंथियों से प्रभावित पाकिस्तान अपने परमाणु हथियारों के जखीरे में तेजी से बृद्धि कर रहा है, किन्तु इसे रोकने अथवा निष्प्रभावी बनाने के लिए वैश्विक संस्थाओं और मजबूत देशों द्वारा क्या प्रयास किये गए, यह कहीं नज़र नहीं आया. यह हाल तब है जब अमेरिका सहित बड़े देश इस बात की गंभीर आशंका जता चुके हैं कि पाकिस्तान के परमाणु हथियार असुरक्षित हैं और उनके चरमपंथियों के हाथों में पड़ने का पूरा खतरा है. दक्षिण एशिया के इस असफल राष्ट्र के हाथों में परमाणु हथियार से दुनिया परेशान ही थी कि एक और सनकी तानाशाह द्वारा शासित उत्तर कोरिया हाड्रोजन बम के साथ परमाणु हथियारों से लैस हो गया है. आश्चर्य तो यह है कि दुनिया के हर एक मुद्दे में दादागिरी करने वाले अमेरिका, रूस, चीन सहित तमाम ख़ुफ़िया सूत्रों को इसकी भनक तक नहीं थी और इस परिक्षण के फलस्वरूप धरती में जो कम्पन्न हुआ, उसे सभी भूकम्प सझते रहे. आखिर, लोगों से लेकर सेटेलाइट और दूसरी व्यवस्थाएं किस काम की, जो वह परमाणु-पागलपन पर भी रोक न लगा सके.
परिक्षण की सुबह चाइना अर्थक्वैक नेटवर्क सेंटर ने कहा कि उत्तर कोरिया में जमीनतल से शून्य किलोमीटर की गहराई में भूकंप आया, रिक्टर पैमाने पर जिसकी तीव्रता 4.9 मापी गई. अमेरिका के भूवैज्ञानिक सर्वेक्षण ने अपनी रिपोर्ट में कहा कि उत्तर कोरिया में 5.1 तीव्रता वाला भूकंप आया और यह जमीनतल में 10 किलोमीटर नीचे हुआ. क्या मजाक है, इन देशों का इस बारे में सूचना देना? हालाँकि, इस घटना के बाद यूएन काउन्सिल ने इमरजेंसी मीटिंग बुलाई है तो साउथ कोरिया ने भी अपने अफसरों की मीटिंग बुलाई है. पर असल सवाल तो यह है कि पागलों के हाथ में किसी खिलौने की भाँती परमाणु हथियार बढ़ते जा रहे हैं. जहाँ तक उत्तर कोरिया की बात है तो यांगयोन न्यूक्लियर रिसर्च सेंटर को नॉर्थ कोरिया और यूएसएसआर (अब रूस) के बीच 1950 में हुई डील के बाद बनाया गया था. यहीं नॉर्थ कोरिया एटमी और हाइड्रोजन बम बनाने का कार्य लगातार कर रहा है. इस पर 1961 में काम शुरू हुआ और 1964 में यह बनकर तैयार हो गया. इस सेंटर पर करीब 3321 करोड़ रुपए (1962 में यूएस डॉलर की कीमत के मुताबिक) खर्च हुए थे. जानकारी के मुताबिक, नॉर्थ कोरिया के न्यूक्लियर रिसर्च और डेवलपमेंट में इस सेंटर को सबसे खास माना जाता है. यह सेंटर जनरल डिपार्टमेंट ऑफ एटॉमिक एनर्जी के 4 अहम न्यूक्लियर इंस्टीट्यूट्स में से एक है. बाकी तीन संगठनों में आइसोटोप एप्लिकेशन कमेटी, द एटॉमिक एनर्जी कमेटी और प्योंगयांग एटॉमिक एनर्जी शामिल हैं. हालाँकि, इस शक्तिशाली परीक्षण से पहले भी नॉर्थ कोरिया 2006, 2009 और 2013 में न्यूक्लियर बम की टेस्टिंग कर चुका है. अब जब परमाणु तकनीक चाइनीज खिलौने की भांति हथियार-मार्किट में मिलने लगी है, तो इसकी भयावहता सोच कर ही रूह काँप जाती है. यदि वैज्ञानिक ढंग से बात करें तो, परमाणु बम नाभिकीय संलयन या नाभिकीय विखण्डन या इन दोनों प्रकार की नाभिकीय अभिक्रियों के सम्मिलन से बनाया जा सकता है. दोनों ही प्रकार के रिएक्शन के दौरान भारी मात्रा में ऊर्जा उत्पन्न होती है. इसे कुछ यूं समझा जा सकता है कि एक हजार किलोग्राम से थोड़े बड़े परमाणु बम इतनी ऊर्जा उत्पन्न कर सकता है, जितनी कई अरब किलोग्राम के परम्परागत विस्फोटकों से भी उत्पन्न नहीं हो सकती है. परमाणु बमों को महाविनाशकारी हथियार यूं ही नहीं कहा जाता है. द्वितीय विश्वयुद्ध में जिस सबसे शक्तिशाली विस्फोटक 'ब्लॉकबस्टर' का इस्तेमाल किया गया था, उसके निर्माण में 11 टन ट्राईनाइट्रीटोलीन प्रयुक्त हुआ था. इस विस्फोटक से 2000 गुना अधिक शक्तिशाली प्रथम परमाणु बम था, जिसका विस्फोट टीएनटी के 22,000 टन के विस्फोट के बराबर था.
इसी कड़ी में देखें तो, हाइड्रोजन बम में चेन रिएक्शन फ्यूजन होता है, जो परमाणु बम के मुकाबले में भी कई गुना ज्यादा शक्तिशाली और विनाशकारी होता है. हाइड्रोजन बम में हाइड्रोजन के समस्थानिक ड्यूटीरियम और ट्राइटिरियम की आवश्यकता पड़ती है. हाइड्रोजन बम में परमाणुओं के संलयन करने से विस्फोट होता है और इस संलयन के लिए बेहद ऊंचे ताप लगभग 500,00,000 डिग्री सेल्सियस की आवश्यकता पड़ती है. जाहिर है, पहले परमाणु बम बिस्फोट से इतना ऊंचा ताप प्राप्त किया जाता है, और फिर हाइड्रोजन बम की प्रक्रिया पूर्ण होती है. देखना दिलचस्प होगा कि वैश्विक राजनीति इस सम्बन्ध में किस प्रकार जिम्मेदारी तय करती है और कभी क्लाइमेट पर मगरमच्छी आंसू बहाने वाले देश, परमाणु तकनीक के खिलौना बनते जाने पर क्या रूख अख्तियार करते हैं. आखिर, सब अगर मानवता की भलाई चाहते हैं तो फिर पागलों के हाथों में परमाणु हथियार क्यों और कहाँ से बढ़ते जा रहे हैं. इससे भी महत्वपूर्ण बात यह है कि कूटनीति के स्तर पर पाकिस्तान और उत्तर कोरिया का पागलपन दूर करने के कितने सम्मिलित उपाय किये जा रहे हैं. कहीं ऐसा तो नहीं है कि वैश्विक गुटबाजी में फंसकर मानवता को ही दांव पर लगाया जा रहा है. चीन, रूस और सबसे ज्यादा अमेरिका को यह बात समझनी होगी.
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