नए लेख

6/recent/ticker-posts

Ad Code

गाँवों का बजट, लेकिन... Union budget of 2016 - 17, hindi article, mithilesh

इस बार बजट में ग्रामीण विकास के लिए 87,000 करोड़ रुपए का आवंटन, मनरेगा के लिए 38,500 करोड़, प्रधानमंत्री ग्राम सड़क योजना के तहत आवंटन बढ़ाकर 19,000 करोड़ रुपए और किसानों पर ऋण का बोझ कम करने के लिए 15,000 करोड़ रुपए का भारी भरकम प्रावधान निश्चित रूप से किसानों को लेकर केंद्र सरकार की प्राथमिकता बतलाता है. पिछले कुछ सालों में, अब तक जितने भी बजट पेश किये गए हैं, उनमें अबकी बार का बजट कई पक्षों से गाँवों के विकास पर केंद्रित प्रतीत होता है. वैसे, बजट पेशी के मात्र एक दिन पहले प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने मन की बात में इसकी झलक पेश कर दी थी और कहा था कि वर्ष 2022 तक देश के किसानों की आय दोगुनी करने के प्रयास में उनकी सरकार लगी हुई है. कई घोषणाएं हुई हैं इस बजट में जो गाँवों के विकास पर केंद्रित हैं, लेकिन कहीं न कहीं यह प्रतीत होता है कि सरकार समग्रता से गाँवों के विकास का अध्ययन करने में चूक गयी है. यह बात पहली बार कोई शायद ही माने, किन्तु जब आप यह समझने का प्रयत्न करेंगे कि किसानों के हालात खराब क्यों हुए, तब आप यह यकीनन समझ जायेंगे कि किसानों के हालात ठीक किस प्रकार हो सकते हैं? भारत, जो एक कृषि आधारित अर्थ व्यवस्था रही है, आखिर तिल-तिल करके वह अंतिम सांस क्यों ले रही है, इस बात पर गंभीर मनन किये वगैर आप जो कुछ भी कर लो, वह अधूरा परिणाम ही देगा. बहरहाल, सरकार ने ग्रामीण इलाकों और किसानों के विकास पर इस बजट में ध्यान देने की सार्थक कोशिश जरूर की है. एक मई 2018 तक देश के हर गांव में बिजली पहुंचाने के साथ सरकार ने 2022 तक किसानों की आय दोगुनी करने का भी लक्ष्य रखा है, जो बेशक एक बेहतरीन कदम दिखता है, किन्तु वह वाकई बेहतरीन कदम है, इस बात में बड़ा प्रश्नचिन्ह लगा हुआ है! यह बात इसलिए कहना पड़ रहा है क्योंकि किसानों की वर्तमान आय आप जितनी मानते हैं, वह जितनी है, उसे दोगुनी तो क्या आप तिगुनी, चौगुनी अथवा पांच गुनी भी करने का दावा करें तो वह नाकाफी ही दिखता है. 

इस पूरे कृषि-अर्थशास्त्र को एक लाइव उदाहरण से समझते हैं. यूपी, बिहार के एक किसान के पास अगर 10 बीघे ज़मीन है तो वह तमाम मशक्कत करके साल में दो फसलें उगा लेता है. दो बार यह फसलें 1 - 1 लाख में वह बेच भी लेता है, किन्तु इसके लिए वह खेत की जुताई, बुआई और खाद-पानी में क़र्ज़ लेकर लगभग इतना ही लगा भी देता है. यदि इस 10 बीघे ज़मीन पर एक व्यक्ति को ही मजदूर मानकर उसका औसत निकालें तो महीने की न्यूनतम मजदूरी 10 हजार के हिसाब से वह 1 लाख 20 हज़ार की मजदूरी गँवा चुका होता है. अब उसकी आमदनी आप खुद ही जोड़ लीजिये या फिर कैलकुलेट करके मैं ही बता देता हूँ कि यह अंततः माइनस में चली जाती है. 10 बीघे से कम ज़मीन वालों की हालत आप खुद समझ जाओ और इन्हें कृषक नहीं, बल्कि 'कृषि-मजदूर' से ज्यादा कुछ और ना कहो. बहुत आशावादी होकर अगर आप इन्हें फायदे में ही दिखाना चाहें तो महीने के 2 हजार, 4 हज़ार, 6 की आमदनी दिखाने में आपकी सांसें फूल जाएँगी! अब अगर मोदी सरकार की झोली के मन्त्रों से इसे डबल भी कर दें तो यह क्रमशः 4 हज़ार, 8 हज़ार और 12 हज़ार मासिक हो जाएगी. आशावादिता के चरम सीमा पर चढ़ने के बाद भी इस आय पर कोई व्यक्ति कार्य करने को तैयार होगा क्या? एक शहरी मजदूर की आय भी इससे ज्यादा है आज! इस आशावादिता पर पूर्व प्रधानमंत्री और वरिष्ठ अर्थशास्त्री मनमोहन सिंह ने कहा है कि सरकार की अगले पांच वर्षों में किसान की आय दोगुना करने की योजना तो है, किन्तु यह 'मेरे विचार से यह एक असंभव सा सपना है. देश को यह बताने की इच्छा नहीं दिखाई गई कि यह कैसे हासिल किया जाएगा, क्योंकि इसके लिए पांच में से हर वर्ष खेती की आय में करीब 14 फीसदी वार्षिक बढ़ोतरी की जरूरत है. जाहिर है, यह लक्ष्य कहीं न कहीं कम होमवर्क के साथ लाया गया दिखता है. अब सवाल यह है कि ऐसा क्या होना चाहिए था, जिससे इस क्षेत्र में सुधार की आस जाग सकती तो इसके सीधा जवाब यही है कि 'युवाओं का रूझान'! जी हाँ, अगर किसी तरह से युवाओं का रूझान इस तरफ पैदा करने की कोशिश की जाती, रोज़गार बढ़ाने की संभावनाएं जगाई जातीं, स्टार्टअप की सुगबुगाहट इसमें खोजी जाती तो निश्चित रूप से इस क्षेत्र को नयी उम्मीदें मिलतीं. आखिर, आज के युवा तमाम मॉडल विकसित करके सब्जी बेच रहे हैं, कार चला रहे हैं, जूता बना रहे हैं तो कृषि-क्षेत्र से उनकी दूरी कम क्यों नहीं की जा सकती है! उसके बाद किसानों की आमदनी दोगुनी, तिगुनी या दस गुनी, पचास गुनी वह खुद ही कर लेते! बस मुश्किल यही है कि कोई युवाओं को कहने वाला नहीं है कि 'इस क्षेत्र में भी रोजगार की अपार संभावनाएं ढूंढी जा सकती हैं'? 

देश के युवाओं, इधर भी देखो ज़रा! इस फिल्ड में फिर रिसर्च, पैकिंग, मार्केटिंग, सेलिंग, प्रमोशन, नयी टेक्नोलॉजी, इ-कामर्स अपने आप ही आ जाता. काश, मोदी सरकार "युवा और कृषि क्षेत्र में रोजगार और उद्यम" पर कुछ कार्यक्रम लगातार करती, उनको प्रोत्साहन देती और फिर देखती कि किस तरह से इस विशाल क्षेत्र में क्रांति आती है. हालाँकि, स्किल इंडिया के तहत में 3 साल में एक करोड़ युवाओं को प्रशिक्षित करने की योजना भी इस लिहाज से अहम है, किन्तु यह शोधपरक और स्टार्टअप को बढ़ावा देने के बजाय सिर्फ 'रोजगार केंद्रित' होने से स्थिति में कुछ ख़ास बदलाव लाने की दिशा में शायद ही सक्षम होगी. बजट के अगले प्रावधानों पर जब हम नज़र डालते हैं तो गांवों में सड़कों के लिए 19 हजार करोड़ रुपये का आबंटन महत्वपूर्ण है, यानि शहरों से गांवों को जोड़ना प्राथमिकता है, जिससे गांव में सड़क होने से रोजगार में भी सहूलियत होगी, तो 2016-17 के लिए कृषि ऋण लक्ष्य नौ लाख करोड़ रुपये का है और खेती के लिए 35,984 करोड़ रुपये आवंटित किए गए हैं. निश्चित रूप से, कृषि, ग्रामीण क्षेत्र, अवसंरचना और सामाजिक क्षेत्र के लिए भी अपेक्षाकृत ज्यादा पैसा दिया गया है. गाँवों के लिहाज से इस बजट को सम्पूर्ण नहीं तो अपेक्षाकृत बेहतर होने का दर्ज अवश्य ही दिया जा सकता है. इस कड़ी में, गांवों में सरकार न सिर्फ डिजिटल इंडिया स्कीम ला रहा है बल्कि किसानों के लिए ई-प्लेटफॉर्म और स्वास्थ्य बीमा योजना के अलावा ग्राम स्वराज योजना के लिए भी 655 करोड़ का बजट रखा है. डिजिटल इंडिया स्कीम अगर बेहतर तरीके से लागू हुई तो गांवों के विकास में पंख लग सकते हैं, इस बात में किसी को शायद ही कोई शक हो! खेती में लगातार सूखे की मार और नुकसान को देखते हुए सरकार ने किसानों की सुविधा के लिए फसल बीमा के लिए 5500 करोड़ रुपये, सूखाग्रस्त इलाकों के लिए दीनदयाल अंत्योदय योजना और ग्राम पंचायतों के विकास के लिए 2.87 करोड़ का फंड दिया है, जो सामाजिक समरसता के साथ विकास के पहिये की गति तेज कर सकता है. सरकार ने गरीबी रेखा से नीचे रहने वालों का भी पूरा ध्यान रखा है और नई हेल्थ बीमा योजना से लेकर एलपीजी कनेक्शन तक की सुविधा देने का वादा किया है. कई लोग इस बजट को आने वाले 5 राज्यों के विधानसभा चुनावों से जोड़ेंगे तो कई लोग इसकी व्याख्या करने में खूब किन्तु-परन्तु करेंगे, लेकिन हम सब जानते हैं कि सरकार के पास कोई जादू की छड़ी नहीं होती है, जिसे घुमा भर देने से समस्यायें छू मंतर हो जाएँ, जैसा कि एक फेसबुक पोस्ट में एक मित्र महोदय ने लिखा कि "आम बजट से जो यह उम्मीद लगाये बैठे हैं कि उनकी समस्याएं यूं गायब हो जाएँगी, उनकी आशा कुछ ऐसी ही है मानो 'फेयरनेस क्रीम' लगा लेने से कोई काला व्यक्ति गोरा हो जायेगा! जाहिर है, विकास एक समग्र प्रयास की मांग करता है और इसे आम-ओ-खास सबको ही समझना होगा.

Union budget of 2016 - 17, hindi article, mithilesh,

मनमोहन सिंह, पूर्व प्रधानमंत्री, बजट 2016, आइडिया, Manmohan Singh, Budget 2016,IDEA, अरुण जेटली, राहुल गांधी, बजट भाषण, Arun Jaitley, Budget Speech, आम बजट 2016-17, केंद्रीय बजट 2016-17, किसानों का बजट, नरेंद्र मोदी सरकार, General Budget 2016-17, Budget for farmers, Narendra Modi Government,Union Budget 2016-17, startup, agriculture, krishi, majdoori, depth analysis, village reforms, good and bad for village, gaanv, lekhak, political analyst, Indian economy, arthshastra, kisan, finance minister, vitt mantri,

एक टिप्पणी भेजें

0 टिप्पणियाँ