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'नीली क्रांति' और 'जल यातायात' के दावे में कितना है दम! Blue Revolution, Nili Kranti, Jal Yatayat, Nitin Gadkari, Hindi article

नितिन गडकरी निश्चित रूप से केंद्र सरकार के सर्वाधिक काबिल मंत्रियों में से एक रहे हैं. वह जब भाजपा अध्यक्ष बने थे, तब भी इस बात की खूब चर्चा हुई थी कि जब वह राज्य सरकार में मंत्री थे तब उन्होंने सड़क ट्रांसपोर्ट का कायापलट कर दिया था. जबसे केंद्र सरकार बनी है और नितिन गडकरी की प्रोफाइल में 'रोड ट्रांसपोर्ट, हाइवेज एंड शिपिंग' जुड़ा है, लगभग तभी से इस बारे में विभिन्न ख़बरें आती रही हैं. हालाँकि, कई बार उनके इस दावे पर विरोधी तो विरोधी भाजपा के ही मुरली मनोहर जोशी जैसे नेताओं ने सवाल खड़ा किया, किन्तु गडकरी अपनी चाल से चलते रहे और अबकी बार इस मामले में ठोस बातें निकल कर सामने आ रही हैं तो कुछ उम्मीद भी जग रही है. किसी भी देश के व्यापार में उसके बंदरगाहों का अहम रोल रहता है. हमने, आपने 'हरित क्रांति' तो कई-कई बार सुना सुना है, जिसके अंतर्गत कृषि-क्षेत्र में बढ़ावा मिलता है, कुछ-कुछ वैसा ही है 'नीली क्रांति', जिसमें मत्स्य पालन के व्यापार को बढ़ावा दिया जाता है. भारत में आजादी के बाद यह पहला अवसर होगा जब यहाँ नीली क्रांति होने की बात कही जा रही है. यदि यह क्रांति आती है तो केंद्रीय जहाजरानी मंत्री नितिन गडकरी के अनुसार देश में करीब-क़रीब 2 करोड़ बेरोजगारों की बेरोजगारी दूर हो जाएगी. जाहिर है यह एक बड़ा आंकड़ा है और यह कहीं 'जुमला' न साबित हो जाए, इसके लिए सरकार को कई स्तरों पर ठोस कार्य तो करना ही होगा, उसके निरन्तर कार्यान्वयन की समीक्षा भी जारी रखनी होगी. कहा जा सकता है कि इस नीली क्रांति को धरातल पर उतारने के लिए उसके लिए जरुरी जतन करने होंगे, जैसे पुराने बंदरगाहों का नवीनीकरण तथा नए बंदरगाहों का निर्माण. 

इसके लिए गत 14 और 15 अप्रैल को सामुद्रिक सम्मेलन किया गया और इस सम्मेलन की सफलता जहाजरानी, सड़क परिवहन एवं राजमार्ग मंत्री नितिन गडकरी  की बातों में साफ झलक रही थी. उन्होंने बार-बार इस बात पर जोर दिया कि इससे करोड़ों रोजगार उत्पन्न हो सकते हैं, जिससे रोजगारी अपने साथ-साथ आपने परिवार का भी भरण पोषण आसानी से कर सकता है. इसी सन्दर्भ में अगर हम आगे की ओर देखते हैं तो, भारत की तटीय रेखा पूर्व से पश्चिम तक कुल मिला कर 7,500 किलोमीटर होने के साथ अंतरर्देशीय जलमार्ग की लम्बाई 14,000 किलोमीटर है. भारत के पास 7,500 किलोमीटर के 12 तटवर्ती इलाकों में 13 बड़े बंदरगाह और 200 छोटे बंदरगाह हैं. बड़े बंदरगाहों की देख-रख केंद्र सरकार करती है तो छोटे बंदरगाह राज्‍य सरकारों के अंतर्गत आते हैं. जाहिर है, भारत के पास एक विशाल समुद्री किनारा है और इस किनारे का लाभ उठाया जा सकता है. इस क्षेत्र में जबरदस्त बदलाव लाने की उम्मीदें तब और बढ़ गई हैं, दो दिन के सामुद्रिक सम्मेलन में 12 अरब डॉलर के कारोबारी करार हुए. इसमें पाइपलाइन की 240 परियोजनाएं जल्द ही अंतिम रूप लेंगी, जिसकी लागत 60 अरब डॉलर है. नितिन गडकरी का साफ़ कहना है कि दुनिया की सभी महान सभ्यताएं नदियों और समुद्र के आसपास ही समृद्ध हुई हैं. ऐसे में, जलमार्ग न केवल परिवहन का एक प्रभावशाली माध्यम बन सकते हैं, बल्कि इनसे ऊंची लॉजिस्टिक्स लागत को भी कम करने में मदद मिलेगी. जाहिर है, ऐसी योजनाओं से न केवल आंतरिक तौर पर इन क्षमताओं का दोहन किया जाएगा, बल्कि बांग्लादेश जैसे पड़ोसी देशों के साथ भी करार कर इनका लाभ उठाया जा सकता है. मिली जानकारी के अनुसार, इस नीली क्रांति के लिए और 8 नए प्रमुख बंदरगाहों का निर्माण किया जायेगा, जिसमें पहले स्टेप में 9,167 करोड़ रुपये का खर्च है तो आगे के तीन बंदरगाहों के निर्माण का कुल खर्च 50,000 करोड़ रुपये है. 

इन तीन बंदरगाहों में वर्धवान महाराष्ट्र  में पहला, तमिलनाडु के कोलाचेन में दूसरा और पश्चिम बंगाल में तीसरे नए बंदरगाह का निर्माण होगा. इसके लिए निजी निवेशकों को भी अवसर देने की बात सरकार के तरफ से हुई है और निजी क्षेत्र तो जहाँ लाभ मिलता है, अथवा लाभ की सम्भावना दिखती है, वहां अवश्य ही जाता है. बताया जाता है कि नीली क्रांति में देश की नदियों और समुद्र का खासा उपयोग होगा, जो आज तक नहीं हो सका है. हालाँकि, कुछ व्यवहारिक दिक्कतें हैं, जिन पर सरकार को अपना रूख और भी स्पष्ट करना होगा. दिसंबर 2014 से ही नितिन गडकरी जोर लगा रहे हैं कि जल यातायात में नयी सम्भावनाएं जन्म लें, किन्तु अब तक कुछ ठोस आकार लेता नहीं दिख रहा है. तब फिक्की के 87वें सालाना सम्मेलन में नितिन गडकरी ने जल परिवहन को सस्ता सुविधाजनक तथा पर्यावरण के अनुकूल बताते हुए उद्योगपतियों से जल मार्ग विकसित करने में सरकार को सहयोग देने का आह्वान किया था, किन्तु तबसे आज तक डेढ़ साल पूरे हो चुके हैं, किन्तु कुछ ठोस इस मोर्चे पर दिखा नहीं है. हालाँकि, आंकड़ों के अनुसार, भारत में सिर्फ तीन से चार फीसदी जल परिवहन का ही इस्तेमाल हो रहा है, जबकि चीन में 45 प्रतिशत परिवहन जल मार्ग से होता है. जहाँ तक समुद्री मार्ग की बात है, तो वहां फिर भी जल मार्ग से दूसरे देशों के साथ तमाम एक्सपोर्ट-इम्पोर्ट होता है, किन्तु अगर देश के भीतर जल-यातायात का रेशियो देखें तो यह 'नगण्य' ही है. बांधों, अवैध कब्जों और दूसरी पर्यावरणीय समस्याओं के कारण आज कई नदियां सूख चुकी हैं तो कई विलुप्त होने के कगार पर हैं, ऐसे में देश में किस प्रकार जल यातायात के स्वप्न को हकीकत का आकार दिया जायेगा, इस बात में बड़ा प्रश्नचिन्ह लगा है. खैर, इन तमाम झंझावतों के बावजूद सामुद्रिक सम्मलेन और नीली क्रांति की बात से एक आस तो जगती ही है और इस आस को अमली जामा पहनाने की काबिलियत केंद्र सरकार और नितिन गडकरी दोनों में ही है. अब बस इसके कार्यान्वयन पर लोगों की दृष्टि टिकी रहेगी, ताकि 'नीली क्रांति' एक नारा बनकर ही न रह जाए!

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