नए लेख

6/recent/ticker-posts

Ad Code

तो अब राजनीति 'पीआर' के सहारे ही होगी? Digital agencies and Politics in India, Hindi Article, Mithilesh

राजनीति में जीत हार का फैसला अब पीआर एजेंसियां और डिजिटल कंपनियां बखूबी करने लगी हैं. अब नेताओं और कार्यकर्ताओं का जन-संपर्क अभियान और पब्लिक की नब्ज़ पकड़ने की कला जवाब देने लगी है. कहते हैं दुनिया के पुराने धंधों में से एक 'राजनीति' के खिलाड़ी काफी चतुर होते हैं, लेकिन अब उनकी चतुराई के ऊपर भी आदेश देने वाले और रणनीतियां बनाने वाले बड़ी संख्या में सामने आ रहे हैं. देखा जाए तो यह ट्रेंड 'डेमोक्रेसी' के लिए थोड़ा अटपटा सा है, क्योंकि जनता में जो 'एजेंसियां' या 'कंसल्टेंट' किसी नेता या पार्टी का प्रचार कर रहे हैं, वह जनता के प्रति जवाबदेह तो हैं नहीं और उनका उद्देश्य 'येन, केन, प्रकारेण' जीत हासिल करना होता है, वह भी 'कॉर्पोरेट स्टाइल' में. इसके लिए वह टेक्नोलॉजी से लेकर, तमाम मीडिया ऑप्शन और पैसे का खुलकर प्रयोग करते हैं, जबकि इसकी एवज में राजनीतिक पार्टियां उन्हें दुसरे लाभों के साथ 'खासी रकम' भी देती हैं. यह रकम इतनी बड़ी होती है, जिस पर एकबारगी यकीन नहीं होता है, मसलन 500 करोड़ से लेकर हज़ार करोड़ और ऐसे ही आंकड़े! जाहिर है, हमारा चुनाव आयोग तमाम 'चुनावों' में कम पैसे खर्च करने पर ज़ोर देता रहा है, किन्तु देश के चुनाव तो एक 'उद्योग' के रूप में विकसित हो रहे हैं, एक बड़े उद्योग के रूप में! ऐसे में जनता पर बोझ पड़ना तो तय ही है. पीआर यानि 'पब्लिक रिलेशन' और पीआर कंपनियों का काम होता है 'ब्रांडिंग और इमेज बिल्डिंग' जिससे नेताओं या पार्टी की समाज में सकारात्मक छवि बनायी जा सके और उसके सहारे उसकी 'चुनावी' नैय्या पार हो सके! इसकी कार्यप्रणाली की बात करें तो, पीआर कंपनियां जनता या टार्गेट ऑडियंस के मन में किसी भी पार्टी की सकारात्मक इमेज बनाने में सक्षम होती हैं और इसके लिए, गलत या सही तरीके से टार्गेट ऑडियंस को प्रभावित करने वाले लोगों और चीजों पर उनका ध्यान सर्वाधिक होता है. 

इस क्रम में, एजेंसियां सबसे पहले यूथ वोटर्स के बीच सीरियस इमेज रखने वाले प्रभावशाली लोगों को चुनने का काम करती हैं और ऐसे में, कंपनी की ओर से ये ध्यान रखा जाता है कि ये लोग राजनीतिक न हों और उनका उनके समाज में ठीक ठाक प्रभाव हो. समाज के अलग-अलग वर्ग से प्रभावशाली लोगों को चुनने के बाद उनसे आर्टिकल, बाइट और पब्लिक इवेंट में अप्रत्यक्ष तौर पर क्लाइंट (जिसकी ब्रांडिंग करनी हो) की तारीफ या उनकी इमेज को बेहतर करने का काम होता है. जाहिर है, इससे काफी फर्क पड़ता है और एक हद तक जनता प्रभावित भी होती है तो इसके लिए पैसे का लेन-देन भी खूब होता है, जो अंततः जनता की जेब से निकाले जाते हैं. इन सबके बीच सोशल साइट्स, मीडिया मैनेजमेंट, स्पीच राइटिंग, प्रेस रिलीज मैनेजेमेंट, पब्लिक इवेंट कराना, वेब ब्लॉग और अन्य जगहों पर भी क्लाइंट की इमेज बिल्डिंग का काम खूब ज़ोर शोर से जारी रहता है. ऐसा नहीं है कि पीआर कंपनियों का कांसेप्ट कोई नया है, किन्तु इससे पहले जब भी 'पीआर' का नाम सुना जाता था, वह बॉलीवुड सेलिब्रिटीज़ या फिर कॉर्पोरेट के प्रोडक्ट्स और इमेज बिल्डिंग के सन्दर्भ में ही सामने आता था. भारत में, इसकी गम्भीर शुरुआत प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी द्वारा 2014 के लोकसभा चुनावों से मानी जा सकती हैं. नरेंद्र मोदी की धुआंधार सफलता से, अधिकांश राजनेताओं का ध्यान इस तरफ गया है. उस समय, जहाँ एक तरफ मोदी की जीत की चर्चा हो रही थी वहीं उनके जीत में सहायक "प्रशांत किशोर" का नाम भी खूब मशहूर हुआ. ये वही प्रशांत किशोर हैं जिन्होंने मोदी की खूब ब्रांडिंग की और नारा दिया "अबकी बार मोदी सरकार". खूब चढ़ा ये नारा लोगों की जुबान पर! मोदी से प्रभावित हो कर उनके प्रतिद्वंदी नीतीश कुमार ने भी बिहार चुनाव के दौरान प्रशांत किशोर का सहारा लिया और जीत का बढ़िया स्वाद चखा. पीआर कंपनियों और उनके कंसल्टेंट्स की हनक इस बात से ही समझी जा सकती है कि नीतीश ने प्रशांत किशोर को अपने मंत्रिमंडल के समकक्ष स्थान दिया और अपना राजनीतिक सलाहकार ही बना डाला! 

जाहिर है, यह इसलिए भी था ताकि प्रशांत किशोर किसी और खेमे में न चले जाएँ, जैसा कि नरेंद्र मोदी के सफल कैम्पेनिंग के बाद वह भाजपा का कैम्प छोड़ चुके थे. ऐसा भी नहीं है कि हमारे देश में ही मोदी ने ये शुरुआत की है, बल्कि विदेशो में तो पीआर कंपनियों द्वारा इमेज ब्रांडिंग का खूब चलन है, जो राजनीतिक क्षेत्रों में भी ख़ासा दखल रखती है. रूस के प्रेसीडेंट व्लादिमीर पुतिन ने अपनी ब्रांडिंग और पीआर का काम अमेरिकी फर्म कैचम को दे रखा है. यही फर्म अमेरिका के पूर्व राष्ट्रपति जॉर्ज बुश की इमेज बिल्डिंग का भी काम करती थी. कंपनी की सॉलिड ब्रांडिंग और लॉबिंग के चलते ही पुतिन को 2007 में टाइम मैग्जीन से पर्सन ऑफ द ईयर का अवार्ड मिला था. अमेरिकी राष्ट्रपति जिमी कार्टर, बिल क्लिंटन के साथ-साथ बराक ओबामा ने भी अपने लिए पीआर कंपनियों का सहारा लिया था. इस बार इस फार्मूले को प्रयोग करने जा रहे हैं उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री अखिलेश यादव! कहने को तो अखिलेश को उत्तर प्रदेश की गद्दी विरासत में मिली है लेकिन इसके पीछे अखिलेश की मेहनत भी रही है, हालाँकि सपा की कानून व्यवस्था और कुछ नेताओं की विवादित छवि से वह चिंतित बताये जाते हैं. चूंकि वह नयी पीढ़ी के नेता हैं, इसलिए 'पीआर' एजेंसियों का कांसेप्ट उन्हें जंचा है, लेकिन वह कितना सफल होता है, यह जरूर देखने वाली बात होगी. 

इसके लिए, पीआर के क्षेत्र में एक बड़े नाम, गेराल्ड जे ऑस्टिन से अखिलेश यादव की पहली मुलाकात लंदन में हुई बतायी जा रही है और ऑस्टिन ने भी समाजवादी पार्टी के लिए अभियान की योजना बनाने के लिए हामी भर दी है. मिली जानकारी के अनुसार गेराल्ड ने कहा है कि वह उनके राजनीतिक सलाहकारों और समर्थकों को ट्रेनिंग दे सकते हैं. अमेरिका के चार-चार प्रेसिडेंट्स का चुनावी कैंपेन सफलतापूर्वक संभाल चुके ऑस्टिन के बारे में सीएम अखिलेश ने भी पूरी जानकारी जुटा रखी है. अमेरिका की डेमोक्रेट पार्टी के चुनाव सलाहकार गेराल्ड ऑस्टिन साल 1968 से ही राष्ट्रपति चुनावों के लिए पार्टी की योजना बनाते रहे हैं. वे चार अमेरिकी राष्ट्रपति जिमी कार्टर, बिल क्लिंटन के साथ-साथ बराक ओबामा के चुनाव कैंपेन को पूरी तरह से कामयाब बना चुके हैं. जाहिर है ऐसे व्यक्तित्व को हायर करने के बाद अखिलेश का उत्साह चरम पर होगा, लेकिन सवाल यह उठता है कि उत्तर प्रदेश की जनता की किस हद तक समझ और उससे बढ़कर किस हद तक परवाह इन जैसी एजेंसियों को रहेगी. सवाल यह भी उठेगा कि इधर या उधर से कितनी मोटी रकम इनको जायेगी, जो चुनाव में जिताने की गारंटी लेते हैं. सवाल उठता ही है और उठेगा ही कि 'पीआर' के सहारे राजनीति करने वालों को प्रदेश के विकास और उसकी प्रगति की कितनी फ़िक्र है तो चुनाव आयोग के निर्देशों का कितना पालन करती हैं राजनीतिक पार्टियां!

Digital agencies and Politics in India, Hindi Article, Mithilesh,
narendra modi and agencies, how to win eletions, black money, top digital agencies, blogging, social media marketing, press release generators, Mission 2017, BJP, Akhilesh yadav, UP, development, samajwadi party, anarchy, laxmikant bajpai, SP, akhilesh yadav, US, election strategies, american pr company, up election,pr company, UP chief minister, Akhilesh, Mulayam Singh Yadav, Goodluck, up,election, election commission, chunav aayog, politics and pr, heavy fees for consultants, good, better, best, gerald, prashant kishor,

एक टिप्पणी भेजें

1 टिप्पणियाँ

  1. चार साल बीत जाने के बाद भी 'उम्मीदों का प्रदेश उत्तर प्रदेश ' को उम्मीद के अनुसार कुछ भी नहीं मिला अखिलेश जी .

    जवाब देंहटाएं
Emoji
(y)
:)
:(
hihi
:-)
:D
=D
:-d
;(
;-(
@-)
:P
:o
:>)
(o)
:p
(p)
:-s
(m)
8-)
:-t
:-b
b-(
:-#
=p~
x-)
(k)