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चुनाव, भारतीय युवा एवं सोशल मीडिया में उभरते मौके - Election, Youth and Social Media in India

यदि भारत को चुनावों का देश कहा जाय तो गलत नहीं होगा, क्योंकि यहाँ लोकसभा, विधानसभा से लेकर तमाम प्रत्यक्ष-अप्रत्यक्ष चुनाव होते ही रहते हैं. इसी तरह हमारे देश को अभी युवाओं का देश कहा जाता है, क्योंकि यहाँ की लगभग 65 फीसदी आबादी 35 वर्ष के आस पास ही है. जाहिर है, 21 वीं सदी में सोशल मीडिया के रूप में जो क्रांति हुई है, उसमें भारतीय युवाओं की सहभागिता सर्वाधिक है. इसके प्रभाव को नए सिरे से व्याख्यायित करने की आवश्यकता नहीं है, क्योंकि 2014 के लोकसभा चुनावों में 150 सीटों पर सोशल मीडिया का प्रभाव बताया गया तो उसके बाद प्रत्येक चुनाव में इसका जमकर प्रयोग होने लगा है. अब लगभग प्रत्येक राजनीतिक दल बड़े पैमाने पर, बड़ी पीआर और डिजिटल एजेंसियों को अपने पक्ष में माहौल बनाने के लिए हायर करने लगे हैं. सोशल मीडिया की आज के समय में इस हद तक ताकत हो चुकी है कि वह मुख्यधारा की मीडिया को कई मामलों में पीछे कर दे रही है तो पेड-न्यूज के कांसेप्ट की चीरफाड़ करने में इसका कोई सानी नहीं है. तभी तो आने वाले उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव में टिकट की बात उठने पर अमित शाह ने खुले तौर पर कहा कि टिकट की उम्मीद वही लोग रक्खें जो फेसबुक पर 25 हज़ार से ज्यादा लाइक पा चुके हों. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने भी भाजपा की राष्ट्रीय कार्यकारिणी की हालिया बैठक में अपने सांसदों द्वारा सोशल मीडिया का जमकर प्रयोग करने की सलाह दी, जिससे सरकार की नीतियां जनता तक आसानी से पहुँच सकें. इसी कड़ी में, पॉलिटिकल कंसल्टेंट के रूप में अपनी पहचान पुख्ता कर चुके प्रशांत किशोर की कहानी भी हमारे सामने ही है. जिस तरह से उन्होंने लोकसभा में भाजपा के लिए और उसके बाद बिहार में नीतीश कुमार के लिए कार्य किया, उसका लोहा हर जगह माना जाने लगा है तो प्रशांत किशोर को उत्तर प्रदेश में कांग्रेस की नैय्या पार लगाने का कार्य भी दिया गया है. राजनीति का शुरूआती ककहरा जानने वाले लोग भी जानते होंगे कि उत्तर प्रदेश में कांग्रेस की क्या हालत है और राष्ट्रीय स्तर पर उसका उत्साह अभी भी किस कदर ठंडा पड़ा है. बावजूद इसके अगर प्रशांत किशोर कांग्रेस की नाव के खेवनहार बने हैं तो इसकी तह में सोशल मीडिया रुपी पतवार ही है, जिसकी तैयारी उन्होंने बखूबी करनी शुरू भी कर दी है. इस क्षेत्र में कैरियर की सम्भावना ढूंढने वाले  युवाओं को प्रशांत किशोर की स्ट्रेटेजी को बारीकी से समझने की सलाह दी जानी चाहिए, जिससे वह अपने फेसबुक, ट्विटर और दुसरे माध्यमों पर लग रहे समय को सही दिशा देने में सक्षम हो सकें! प्रशांत किशोर ने उत्तर प्रदेश के हर विधानसभा क्षेत्र में 20 पूर्णकालिक कार्यकर्ता चुन लेने का फार्मूला कांग्रेसियों को दिया है, जो सोशल मीडिया पर अधिकाधिक सक्रीय रह सकें. जाहिर है, ऐसा प्रयत्न केवल कांग्रेस ही नहीं कर रही है, बल्कि हर चुनाव में प्रत्येक पार्टी करती है. कई युवक इस चुनावी मॉडल में अंशकालिक अथवा पूर्णकालिक भी कार्य कर सकते हैं. कोई फर्क नहीं पड़ता है कि आप बेरोजगार हैं अथवा अपने वर्तमान रोजगार से संतुष्ट नहीं हैं. ध्यान रहे, आप वैसे भी दुसरे तमाम युवकों की तरह सोशल मीडिया पर अपना ढेर सारा समय लगाते ही हैं, किन्तु इस समय को रोजगार में बदलने का अवसर आपके सामने आ गया है. इससे सम्बंधित कुछ बिन्दुओं को नीचे लिखा गया है, जिससे आपको इस क्षेत्र में आ रहे अवसरों को भुनाने का मौका मिल सकता है: 

कब कौन सा मीडिया: सोशल मीडिया के तमाम प्लेटफॉर्म हमारे सामने मौजूद हैं, मसलन फेसबुक, ट्विटर, लिंकेडीन, गूगल प्लस इत्यादि. सभी प्लेटफॉर्म्स अपनी जगह उपयोगी हैं, किन्तु आम जनता से सीधे जुड़ने के लिए फेसबुक सर्वाधिक उपयोगी और बड़ा प्लेटफॉर्म है. मतलब अगर आप लोगों तक सीधे और जल्दी पहुंचना चाहते हैं तो इससे बेहतर कुछ और नहीं. अगर आप चुनावी परिदृश्य में सोशल मीडिया कंसल्टेंट के रूप में अपनी भूमिका निभाना चाहते हैं तो आपको इस फेसबुक की अच्छी समझ होनी चाहिए तो फेसबुक ग्रुप, फेसबुक पेज, स्पॉन्सर्ड पोस्ट और इन सबसे बढ़कर लोगों से इंटरेक्शन करने की कला में महारत होनी चाहिए. किसी एक व्यक्ति को चुनाव में चर्चा दिलाने के लिए, यह आज का ब्रह्मास्त्र है तो उस व्यक्ति के बारे में जनता क्या सोचती है, इसका भी अंदाजा आप आसानी से लगा सकते हैं. ट्विटर का प्रयोग उस स्थिति में लाभदायक रहता है अगर आप किसी बड़े मुद्दे के ऊपर अपनी राय रखते हैं. मसलन केंद्र सरकार की नीतियां, योजनाएं इत्यादि. इसमें आप तब ज्यादा लाभ प्राप्त कर सकते हैं, अगर किसी पार्टी की नीतियों का प्रसार करें अथवा विरोध करें. इसमें आपकी पोस्ट अगर किसी सेलिब्रिटी के ट्विटर हैंडल से जाती है तो उसका प्रभाव कई गुना हो जाता है. इसका प्रयोग प्रशांत किशोर ने बिहार चुनाव में नीतीश कुमार के ट्विटर हैंडल से बेहतरीन तरीके से किया था. जब भी केंद्र सरकार की किसी योजना की घोषणा होती थी, तब चटपट उनकी टीम उसका काट तैयार करके ट्वीट करती थी, जिसे बड़ी कवरेज मिलती थी. इन दोनों माध्यमों के अतिरिक्त आप दुसरे प्लेटफॉर्म्स का भी संशाधन की उपलब्धता के आधार पर सटीक प्रयोग कर सकते हैं. 

डिजिटल एजेंसीज से संपर्क एवं नेटवर्क: आप अपनी पसंदीदा पार्टी, उम्मीदवार से फोन अथवा मेल के माध्यम से संपर्क कर सकते हैं तो आप उनके दफ्तर जाकर अपनी सक्रियता के बारे में तथ्यात्मक रूप से बता सकते हैं. इसके अतिरिक्त, तमाम बड़ी एजेंसियां अलग-अलग पक्षों से सोशल मीडिया के रूझानों पर कड़ी नज़र रखती हैं और अगर सच में आप किसी के पक्ष में अथवा विपक्ष में धारदार सक्रियता बनाये रखते हैं तो वह आपसे संपर्क कर सकती हैं. इसके अतिरिक्त गूगल से भी डिजिटल और पीआर एजेंसीज की कांटेक्ट डिटेल्स आप ढूंढ कर उनसे संपर्क कर सकते हैं. बेहतर होगा कि आप अपने विचारों से मिलते जुलते दुसरे सोशल मीडिया व्यक्तियों से भी संपर्क में रहें, ताकि किसी कैम्पेन को करने में आपको सहूलियत रहे. नेटवर्क बढ़ाना हमेशा से ही कई क्षेत्रों में फायदेमंद रहा है, विशेषकर टेक पर्सन्स के लिए! 

सावधानियाँ: यह कहने में कोई लाग लपेट नहीं होनी चाहिए कि नेताओं की प्रजाति सबसे चतुर (कनिंग) होती है. लच्छेदार बातें और काम होने के बाद आपकी शकल न पहचानना उनकी खूबियों में शुमार होता है. ऐसे में चिकनी चुपड़ी बातों और वादों पर भरोसा करने की बजाय आप प्रोफेशनल रवैया अपनाएं. मतलब, इतना कार्य करूंगा और यह मेरी पेमेंट रहेगी. पेमेंट आप साप्ताहिक, मंथली तय कर सकते हैं और इस मामले में सख्त रहें, क्योंकि नेताओं के यहाँ से पेमेंट डूबना कोई बड़ी बात नहीं होती है. अन्य क्षेत्रों से ज्यादा सावधानी की आवश्यकता आपको यहाँ होती है, जिसे आपको समय रहते ही भांपना पड़ेगा. दूसरी ओर जहाँ और भी ज्यादा सावधानी की बात है, वह है ओवर एक्सपोसिंग! इससे बचें. कभी भी ऐसा आभाष न दें कि आप अमुक व्यक्ति या पार्टी को अकेले जिता ही देंगे, बल्कि आप यह बताएं कि आप उसके लिए सोशल मीडिया पर 'चिन्हित' जिम्मेदारियों को पूरा करेंगे. आप प्रतिदिन कितना समय देंगे, कितनी पोस्ट करेंगे, कितना कंटेंट लिखेंगे, इस बाबत लिखित रिकॉर्ड (कन्वर्सेशन) रखें. सोशल मीडिया पर एक और ध्यान देने वाली बात है कि आप ऊपर से पोस्ट करते जाते हो और वह टाइमलाइन पर नीचे जाती रहती है, इसलिए आप सम्बंधित व्यक्ति या कैम्पेन के लिए एक वेबसाइट या फ्री ब्लॉग बनाएं, जिससे उस पर आपकी मेहनत सामने दिखेगी तो गूगल-सर्च में भी यह कंटेंट फेसबुक पोस्ट से ज्यादा सहायक साबित होगा. ध्यान रहे, आपका ब्लॉग/ वेबसाइट रेस्पॉन्सिव जरूर रहे, क्योंकि मोबाइल पर कंटेंट देखने वालों की संख्या में बेतहाशा बढ़ोतरी दर्ज हुई है. 

व्यक्तिगत तैयारियां: यह मामला ऊपर से जितना सरल दिखता है, भीतर से उतना ही गूढ़ है. इस फिल्ड में हो रही तमाम क्षेत्रीय, राष्ट्रीय राजनीतिक उठापठक पर आपको बारीक निगाह रखनी पड़ेगी तो तमाम अख़बारों के सम्पादकीय पृष्ठ को पूरा पढ़ने की आदत विकसित करनी होगी, जिससे आप सिक्के का दूसरा पहलू देखने में समर्थ हो सकें. सूचना प्रौद्योगिकी क्षेत्र में आ रहे बदलावों पर भी आपको दृष्टि विकसित करनी होगी, क्योंकि इसके वगैर आप चुनावी क्षेत्र में बहुत ज्यादा महत्त्व की भूमिका का निर्वाह नहीं कर सकेंगे. अपने लिए एक वेबसाइट, ब्लॉग का निर्माण कर के खुद को एक ब्रांड के रूप में प्रतिष्ठित करने से आप निश्चित तौर पर भविष्य में और बेहतर संभावनाओं का निर्माण कर सकते हैं. संभावनाएं इसमें अपार हैं और यह एक ऐसा फिल्ड है, जहाँ रोजगार की संभावनाएं दिन ब दिन बढ़ती ही जाएँगी, किन्तु इसके लिए बेहद आवश्यक है कि आप की तैयारियां, नेटवर्क और टेक्नोलॉजी की जानकारी अप-टू-डेट और सटीक हो तो राजनीतिक क्षेत्र की समय आपके लिए सोने पर सुहागा वाली बात हो सकती है.

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