बड़ा आश्चर्य होता है कि एक ओर विश्व के तमाम गरीब देशों में भूख से जनता तड़प तड़प कर दम तोड़ देती है, वहीं दूसरी ओर तमाम धनपति और उनके नेता भी 'काले कारनामों' में लिप्त होकर अपने ही देश को भ्रष्टाचार की आग में झोंकने से बाज नहीं आते. इस सम्बन्ध में जो हालिया खुलासा हुआ है, उसे 'पनामा लिक्स' का नाम दिया जा रहा है. वस्तुतः, उत्तर अमेरिका और दक्षिण अमेरिका दो महाद्वीपों को आपस में जोड़ता मध्य अमेरिका के सबसे दक्षिणतम राष्ट्र का नाम पनामा है. पनामा नहर के लिए विख्यात पनामा, आजकल विदेशी बैंक खातों की सूचना के लिए खासा चर्चे में है. सबसे बड़ी बात यह है कि, इस कड़ी में, पनामा जैसे बहुतेरे ऐसे देश हैं, जिनके पास विदेशी बैंक खाते हैं और जिसमें लेन-देन भी होता है, लेकिन इसकी कोई खबर किसी के भी पास अब तक नहीं थी. इस पूरे मामले को हम अगर भारत से जोडें तो 2014 के लोकसभा चुनाव से पहले बाबा रामदेव द्वारा उठाये गए 'काले धन' के मुद्दे का रिफ्रेंस दे सकते हैं. केंद्र में सरकार बदलने के पीछे यह एक बड़ा मुद्दा था, हालाँकि नयी सरकार के आने के बाद इसे 'जुमला' बताकर टाल दिया गया. सवाल उठता ही है कि पनामा और स्विस जैसे दूसरे देशों में आखिर कोई पैसा क्यों रखना चाहेगा? इसका यदि सीधा जवाब दें तो वह है सिर्फ सरकार को टैक्स देने से बचना! अमीर वर्ग यदि और अमीर होता जा रहा है, तो इसके पीछे की हकीकत यही 'काला धन ही तो है', जिसे टैक्स बचाकर दूसरे देशों में भेज दिया जाता है. इस स्थिति में, गरीब और गरीब होते जा रहे हैं और सरकार भी सिर्फ उन्हीं लोगों से टैक्स ले पा रही है जो 'हैण्ड टू माउथ' हैं, यानि देश का 'मिडिल क्लास'! भारत जैसे देश में भी, हाई क्लास के लोग अपने सम्पति का कम से कम हिस्सा ही दिखाते हैं और उसी का टैक्स भरते हैं!
धनाढ्यों के यह पैसे देश के बाहर किसी 'गुप्त' ठिकाने पर गुप्त रूप छिपा दिया जाता है, जिसकी भनक सरकार को भी नहीं लगती है. अंततः इस पूरे प्रकरण में नुक्सान राष्ट्र का ही होता है, जो घूम फिरकर राष्ट्रवासियों के सर पर मढ़ दिया जाता है. जो खुलासा हुआ है, उस पनामा पेपर में जिसका भी नाम है, वह सभी लोग किसी ना किसी राष्ट्र का नामी गिरामी हस्ती हैं, जैसे रूस के राष्ट्रपति पुतिन, चीन के राष्ट्रपति शी जिनपिंग, पाकिस्तान के प्रधानमंत्री नवाज शरीफ, मलयेशिया के प्रधानमंत्री सहित आइसलैंड के प्रधान मंत्री डेविड गुंलागसन, यूक्रेन के राष्ट्रपति पेट्रो पोरोशेंक, अर्जेंटीना के राष्ट्रपति मारिशियो मर्सी एवं दक्षिण अफ्रीका के जैकब जुमा जैसे अनेक महत्वपूर्ण लोग! गौरतलब है कि यह सारे लोग अपने-अपने राष्ट्र के न केवल पूंजीपति ही हैं, बल्कि तमाम सरकारी नीतियों को प्रभावित करने की सीधी क्षमता भी रखते हैं. इनमें ब्रितानी प्रधान मंत्री डेविड कैमरून, रूसी राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन और चीनी राष्ट्रपति शी जिनपिंग का नाम मामले को बेहद गहरा और गंभीर बना रही है, क्योंकि यह विश्व के शक्तिशाली देशों का प्रतिनिधित्व करते हैं. वैसे तो अनेक देशों में विदेशी बैंक खाते रखना गैर कानूनी नहीं माना जाता है, लेकिन जैसे इन खातों का उपयोग गोपनीय तरीके से अपनी आय बचाने के लिए होता है, अधिकांश देशों के लिए गैरकानूनी ही है. इस दस्तावेजों में भारत के भी छोटे-बड़े कुल मिलाकर 500 नामों का खुलासा हुआ है, जिसकी जांच के लिए स्पेशल इन्वेस्टीगेशन टीम (एसआईटी) का गठन हो चूका है. इस एसआईटी में, आयकर विभाग, रिजर्व बैंक ऑफ इंडिया और प्रवर्तन निदेशालय के अधिकारी शामिल हैं. हालाँकि, बेहद आश्चर्य की बात है कि इन खुलासों पर पक्ष या विपक्ष के नेताओं ने बहुत-कुछ नहीं कहा, बल्कि इस मुद्दे को भारत में अनदेखा ही किया गया.
हां, अरुण जेटली ने जरूर इस मामले में यह बयान दिया था कि अगर पनामा लिक्स की रिपोर्ट खुलकर बाहर आयी तो कांग्रेस पार्टी 'मुस्करा' नहीं पायेगी. हालाँकि, उनके इस बयान को सामान्य माना जाना चाहिए कि कांग्रेस पार्टी को धमकी, यह बात समझना काफी मुश्किल काम है. खैर, सभी पार्टियों ने इन मामलों पर इसलिए भी चुप्पी साधी हो सकती है, क्योंकि 'हमाम' में वैसे भी सभी नंगे ही होते हैं. जिन भारतीयों का खुलासा इस लीक में हुआ है, उनमें अभिनेता, राजनीतिज्ञ और उद्योगपति शामिल हैं. यह भारतीयों द्वारा 1977 से 2015 तक की अवधि के दौरान किए गए अनुमानित निवेशों के बारे में बताया जा रहा है. कहा तो यह भी जा रहा है कि इस मामले से जुड़े ज्यादातर भारतीय लोगों के खाते आरबीआई की उदारीकृत विप्रेषण योजना (एलआरएस) के तहत नियम-कायदों के मुताबिक खोले गये थे. गौरतलब है कि विदेशी बैंकों के अकाउंट को क़ानूनी तौर पर खोलने के लिए उदारीकृत विप्रेषण योजना की मदद ली जाती है. हालाँकि, भारत में पनामा पेपर पर अभी जाँच चल रही है और इसका कोई समय निर्धारित नहीं हुआ है कि कब तक इसका पूरा पूरा ब्यौरा सामने आएगा और जब तक बातें खुलकर सामने नहीं आती हैं, तब तक कोई दावा करना मुश्किल ही है. हालाँकि, इस बात की उम्मीद कहीं ज्यादा है कि बाकी सारी समस्याओं की तरह इसको भी कुछ दिन अंडर इन्वेस्टिगेशन रखने के बाद शायद इसकी रिपोर्ट भी चुप्पी साध ले! खैर, आगे क्या होगा, इस बारे में बहुत कुछ न जानते हुए भी सबको ही पता है कि 'धन' की तीन गतियों में से एक गति अवश्य ही होगी. हमारी भारतीय सभयता में कहा गया है कि धन को या तो 'परमार्थ' में लगा लो, या तो खुद के लिए 'उपभोग' कर लो, अन्यथा यह 'नाश' तो आप ही हो जाता है. अफ़सोस इस बात का भी होना चाहिए कि तमाम सरकारों को चूना लगाकर विदेशी खातों में रखे गए धन, कभी भी स्वदेश वापस नहीं आ पाते हैं, खासकर भारत जैसे देशों के सम्बन्ध में!
काश, इसे उपयोग में लाने के बारे में सोचा और विचारा जाता, तब स्थिति अवश्य ही ज्यादा सार्थक और उपयोगी होती, पूरे देश के लिए! इस कड़ी में हमें, पनामा के लिए कार्य करने वाले पत्रकारों और उनके सहयोगियों को बधाई देनी चाहिए, क्योंकि काले धन और प्रभावशाली लोगों का कुछ हो न हो, समय-समय पर उनके चेहरे से नकाब उतरते रहने चाहिए. जहाँ तक काले धन की बात है तो जिन्हें अपने देश, कर्त्तव्य और मातृभूमि से 'पैसा' ज्यादा प्रिय है, वह कभी टैक्स बचाकर, गलत मदों से पैसा कमाकर 'काले धन' की उत्पत्ति करते रहेंगे और न केवल 'काले धन' की उत्पत्ति होती रहेगी, बल्कि हवाला के माध्यम से 'काले खेल' को बढ़ावा भी मिलता रहेगा. जाहिर है, भारत में किस रास्ते से और किस उद्देश्य के लिए धन आता है, इस बाबत भी सावधानी से जांच बढ़ाने की आवश्यकता है. इसके अतिरिक्त, चुनावों में बेतहाशा खर्च ने भारत जैसे देशों के नेताओं और राजनीतिक कार्यकर्ताओं को इस बात के लिए बखूबी तैयार किया है कि 'काले धन' और 'सफ़ेद कॉलर' के लोगों को बचाते रहना है. किन्तु, इस पूरे खेल में देश का नुक्सान कितना है, काश इस बाबत भी सोचने और कुछ ठोस करने की ज़हमत उठायी जाती.
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1 टिप्पणियाँ
पनामा लिंक्स पूजीपतियों के दोहरे चेहरे को दर्शाता है भारत में गरीबी का ये भी बहुत बड़ा कारन है सरकार को इसके लिए ठोस कदम उठाना चाहिए .
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