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क्या प्रियंका उठाएंगी नयी जिम्मेदारी? Priyanka Gandhi in UP Election 2017, Congress Party, Hindi Article, Mithilesh

इस बात से कोई इंकार नहीं कर सकता है कि इतिहास के सर्वाधिक बुरे दौर से कांग्रेस पार्टी गुजर रही है और विशेषज्ञ तो यहाँ तक कह रहे हैं कि अब कोई चमत्कार ही इस पार्टी को बचा सकता है! जाहिर है कांग्रेस में जब चमत्कार की बात की जाए, तो घूम फिरकर निगाहें 'नेहरू खानदान' की ओर घूम जाती हैं. अब चूंकि, राहुल गांधी तो पिछले 15 साल से राजनीति में लगे हैं, लेकिन 'पप्पू' की छवि से लड़ते रह गए हैं, ऐसे में निगाहें बरबस ही प्रियंका गांधी पर टिक जाती हैं. हालाँकि, प्रियंका कांग्रेस पार्टी का 'ट्रम्प-कार्ड' मानी जाती हैं, इसलिए वह ऐरे-गैर मौके पर इसे जाया नहीं करना चाहेंगे. पर सवाल यह भी उठता है कि जब कांग्रेस पार्टी ही मिट्टी में मिल जाएगी, तो 'ट्रम्प-कार्ड' बचाकर क्या फायदा? भारत के चुनावी माहौल में उत्तर प्रदेश अपना खास स्थान रखता है और आजकल चुनावी माहौल की गर्मी बढ़ाई है देश के सबसे चर्चित चुनावी सलाहकार प्रशांत किशोर ने, जिन्होंने लगातार दो चुनावों में सफलता हासिल की है और तीसरी बार कांग्रेस को उत्तर प्रदेश में सत्ता दिलाने की जिम्मेदारी भी उठा ली है. हालाँकि उत्तर प्रदेश में चुनाव अगले साल हैं, लेकिन सभी पार्टियों ने अगले साल होने वाले विधानसभा चुनाव की तैयारी अभी शुरू कर दिया है. खबरों के अनुसार, कांग्रेस के वर्तमान चुनावी रणनीतिकार प्रशांत किशोर ने भी यूपी में प्रियंका या राहुल गांधी गांधी के नाम का प्रस्ताव कर दोनों को यूपी के चुनाव में सक्रीय करने की मांग कर रहे हैं. जो ख़बरें छनके बाहर आ रही हैं, उसके अनुसार प्रशांत किशोर चाहते हैं कि प्रियंका गांधी को यूपी चुनाव का इंचार्ज बनाया जाए. 

प्रशांत के सुझाव का बड़ी तादाद में कांग्रेसी भी समर्थन कर रहे हैं, क्योंकि उन्हें लगता है कि प्रियंका ही ऐसा चेहरा हैं, जो कांग्रेस की किस्मत बदल सकती हैं. तमाम कांग्रेसी उनमें उनकी दादी 'इंदिरा गांधी' का अक्स भी देखते हैं. इस सम्बन्ध में यूपी कांग्रेस के महासचिव कहते हैं कि 'हमने उन्हें करीब से देखा है...उनमें इंदिरा जी का अक्स दिखाई देता है. उनका तेज चलने का अंदाज, उनकी हाजिरजवाबी, लोगों से जो उनका कनेक्शन है, सब कुछ इंदिरा जी जैसा है! कांग्रेसी खुलकर कहते हैं कि 'उनका राजनीति में आना कांग्रेस के लिए वरदान साबित होगा'. प्रियंका गांधी सिर्फ प्रशांत किशोर की ही पसंद नहीं हैं, यूपी के आम कांग्रेसी भी उनमें अपना भविष्य तलाश रहे हैं. तमाम ऐसी होर्डिंग्स लग रही हैं, जिनमें प्रियंका को राजनीति में आने की दावत दी जा रही है. कुछ समय पहले इलाहाबाद में कांग्रेसियों द्वारा लगाया गया पोस्टर खूब चर्चा में रहा था, जिसका कंटेंट था, "मैया है बीमार, भैया पर पड़ गया भार, प्रियंका को बनाओ उम्मीदवार, पार्टी का करो बेड़ा पार." हालाँकि, खुद प्रियंका गांधी की राय इन मामलों पर कभी खुलकर नहीं आयी है. पत्रकारों के सवाल पर दार्शनिक हो कर प्रियंका ऐसा कहती हैं क‍ि राजनीति का मतलब स‍िर्फ लोगों की सेवा करना है और यह मैं पहले से कर रही हूं! जाहिर है कि बात उतनी भी सीधी नहीं है जितनी नज़र आ रही है. भारतीय समाज में बेटों को आगे बढ़ाने की पुरानी परंपरा रही है और अगर प्रियंका गांधी मैदान में आ जाती हैं तो कहीं भाई-बहन के बीच प्रतिद्वंदिता न हो जाए, यह एक बड़ा डर है, जिससे सोनिया गांधी चिंतित बतायी जाती हैं. अगर प्रतिद्वंदिता न भी हुई तो इस बात में कोई दो राय नहीं है कि प्रियंका गांधी राहुल गांधी से ज्यादा वजनदार हो जाएँगी, क्योंकि एक तो उनकी खुद की पर्सनालिटी भी वजनदार है, दूसरा औरत होना और इंदिरा गांधी का उत्तराधिकारी होना अपने आप में बड़ा कारण है. 

हालाँकि, इन सबसे बढ़कर कांग्रेसियों को इस बात की भी चिंता सता रही है कि अगर कांग्रेस पार्टी ही न रही तो राहुल गांधी फिर किस सहारे अपना वजन भारी करेंगे? गौरतलब है कि प्रियंका हर चुनाव में सोनिया और राहुल  की भरपूर  मदद करती हैं. हालाँकि सिर्फ प्रियंका रायबरेली और अमेठी में सोनिया-राहुल का प्रचार करती हैं, किन्तु अपने हंसमुख और मिलनसार स्वाभाव के चलते प्रियंका जल्दी ही लोगों के साथ रिश्ता जोड़ लेती हैं. पर ऐसा भी नहीं है कि प्रियंका गांधी के यूपी की राजनीति में आने से सब खुश ही हैं, बल्कि कांग्रेस के कुछ बड़े नेताओं को प्रशांत का सुझाव कुछ खास पसंद नहीं आ रहा है. खास कर राहुल गांधी के नाम पर कांग्रेस के महासचिव और यूपी प्रभारी मधुसूदन मिस्त्री का कहना है कि राहुल और प्रियंका दोनों राष्ट्रीय नेता हैं और उनको सिर्फ यूपी तक सीमित नहीं किया जा सकता है. वहीं जयराम रमेश ने एक पार्टी प्रेस कॉन्फ्रेंस में कहा कि राहुल गांधी सांसद हैं और  पार्टी उपाध्यक्ष हैं. इसके साथ जयराम रमेश को यह भी उम्मीद है कि  2016 में कांग्रेस अध्यक्ष होंगे. जाहिर है राहुल गांधी को पीएम बनाने का सपना देख रहे लोगों के लिए ये झटका कम नहीं होगा कि पीएम बनते-बनते राहुल बाबा सीएम के लिए मुकाबला करने लगे, वह भी वहां, जिस प्रदेश में कांग्रेस कैडर कई दशक पहले दम तोड़ चुका है. हालाँकि राहुल गांधी ने 2007 और 2012 के यूपी चुनाव में अपनी पार्टी के लिए जम के प्रचार किया था, लेकिन उनका ये प्रचार कुछ काम नहीं आया और कांग्रेस यूपी में कोई करिश्मा नहीं दिखा पाई थी.  

कांग्रेसियों के लिए मुश्किल सवाल यह भी है कि 2017 के चुनाव में राहुल गांधी को सीएम कैंडिडेट बनाने के बाद भी कामयाबी हासिल नहीं हुयी तो फिर प्रधानमंत्री की कुर्सी की दावेदारी तो छोडिए, गांधी परिवार का बचा-खुचा जादू भी ख़त्म होने का संकट उत्पन्न हो जायेगा. ऐसे में यूपी में सहारा ढूंढ रही कांग्रेस के लिए एक मात्र सहारा  प्रियंका गांधी ही दिखती हैं, जिनको कम से कम यूपी चुनाव अभियान का प्रमुख तो बनाया ही जा सकता हैं. प्रशांत किशोर की सोच को हवा में इसलिए नहीं उड़ाया जा सकता है क्योंकि बिना किसी मजबूत चेहरे के आप हवा-हवाई में यूपी चुनाव में नहीं उतर सकते हैं, जहाँ अखिलेश यादव, मायावती और भाजपा से वरुण गांधी, आदित्यनाथ और खुद नरेंद्र मोदी का करिश्मा भी अभी कायम है. अगर प्रियंका गांधी  सीएम उम्मीदवार के पद पर चुनाव में उतरती हैं तो अन्य पार्टियों के लिए मुश्किल तो खड़ी होगी ही! राजनीतिक विश्लेषक बेझिझक मानते हैं कि प्रियंका में अभी वह करिश्मा बाकी है कि लगभग ख़त्म हो चुकी कांग्रेस को चर्चा में ला सकती हैं. हाँ, उनकी लोकप्रियता वोट में कितनी कन्वर्ट हो पायेगी, यह जरूर देखने वाली बात होगी, क्योंकि वोट मिलना न मिलना कई फैक्टर्स के ऊपर निर्भर करता है. वैसे अगर कार्यकर्त्ता प्रेरित हो गए तो यूपी की राजनीति में बड़े स्तर पर वोट की गणित इधर उधर हो सकती है और प्रियंका गांधी में इतनी क्षमता तो साफ़ दिखती है कि 'कार्यकर्त्ता उनसे प्रेरित हो सकें'! उत्तर प्रदेश के वर्तमान हालातों को देखते हुए इतना जरूर कहा जा सकता है कि प्रियंका की उम्मीदवारी बीजेपी समेत अखिलेश और मायावती को भी चिंता में डाल देगी. उत्तर प्रदेश में सवर्ण मतदाताओं ने हालिया दिनों में बसपा और सपा को बतौर वैकल्पिक पार्टी के रूप में ही देखा है न कि पहली पसंद के रूप में और प्रियंका की उम्मीदवारी से कांग्रेस बीजेपी से खफा चल रहे सवर्ण मतदाता को कांग्रेस की तरफ खींचने का दांव कांग्रेस आलाकमान को लेना ही पड़ेगा. 

हालाँकि प्रियंका को यूपी में बड़ी भूमिका देने से पहले कुछ सवाल भी हैं जिससे पार्टी को दो-चार होना पड़ेगा, क्योंकि पिछले एक दशक से प्रियंका पारिवारिक छवि में ही नजर आई है. जहां तक राजनीतिक दायित्व की बात है, तो प्रियंका ने अब तक एक भी चुनाव में खुद को नहीं आजमाया है, यहां तक कि प्रचार के दौरान भी खुद को गांधी परिवार के गढ़ अमेटी और रायबरेली तक ही सीमित रखा है. ऐसे में राहुल की जगह प्रियंका को यह भूमिका देना 'उलटा' भी पड़ सकता है, लेकिन चूंकि 'पार्टी अध्यक्ष और 2019 प्रधानमंत्री पद के उम्मीदवार' घोषित करने के लिए राहुल को बचा कर रखने की जरूरत कांग्रेसी महसूस करते हैं, इसलिए यूपी में प्रियंका के अतिरिक्त कांग्रेस पार्टी के पास चारा भी क्या है? इन सबके बावजूद सबसे बड़ा सवाल यह है कि इस भूमिका के लिए प्रियंका तैयार भी है या नहीं, तो सोनिया गांधी भी कांग्रेस में जान फूंकने के लिए राहुल को कुछ समय के लिए बैक-सीट पर बिताएंगी अथवा कांग्रेस को अपनी आँखों के सामने डूबता हुआ देखेंगी! 
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1 टिप्पणियाँ

  1. अगर कांग्रेस वक़्त की मांग को समझती है तो जरूर उत्तर प्रदेश में प्रियंका को आगे करेगी नहीं तो पार्टी में तो वैसे भी कोई आकर्षण नहीं बचा है.

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