'कॉमेडी नाइट्स विद कपिल' ने सफलता के जो कीर्तिमान रचे, उससे किसी भी दुसरे कॉमेडियन को ईर्ष्या हो सकती है. हालाँकि, उनकी बढ़ती लोकप्रियता से न केवल कॉमेडियन्स ही ईर्ष्यालु हो गए, बल्कि उनकी 'कलर्स' चैनल वालों से भी अनबन शुरू हो गयी और इसके बाद कपिल शर्मा ने नयी राह पकड़ ली! सोनी चैनल पर आने वाला 'दी कपिल शर्मा शो' सफल होगा कि असफल यह तो देखने वाली बात होगी, लेकिन जिस प्रकार कपिल शर्मा ने अपनी टीम को सहेज कर रखा है, वह उनकी प्रबंधन क्षमता साबित करने के लिए काफी है. चूंकि कपिल शर्मा का यह शो भी काफी कुछ 'पुराने फॉर्मेट' पर ही है और टीम भी उनकी साथ ही है तो विश्लेषक यह भविष्यवाणी कर पा रहे हैं कि कपिल अपना पुराना रूतबा बरकरार रखने में सफल रह सकते हैं. हालाँकि, इस बीच कॉमेडी के बदलते हुए स्वरूपों पर एक नज़र डालना लाजमी हो जाता है. यह इसलिए भी आवश्यक हो गया है, क्योंकि लोगों में और बच्चों में कहीं न कहीं इस बात का 'रिफ्लेक्शन' भी खूब जाता है और इससे हमारा समाज प्रभावित भी होता है. आज के समय में कॉमेडी का मतलब ही बदल गया है, जिसमें किसी का मजाक उड़ाकर उसे ही कॉमेडी मान लिया जाता है तो किसी से डबल मीनिंग बात करने को ही कॉमेडी कह दिया जाता है. किसी की मिमिक्री तक तो ठीक है, किन्तु खुद कपिल शर्मा के पिछले शो में 'सुमोना चक्रवर्ती' के होठों का जिस तरह से बार-बार मजाक बनाया जाता है, उससे कहीं न कहीं एक सामाजिक जिम्मेदारी का भी मजाक बन जाता है. आज भी हमारे देश में लड़कियों को बराबरी का हक़ मिलने में काफी कुछ बाकी है तो कई लडकियां इस हद तक 'ब्यूटी कॉन्शियस' होती हैं कि वह इन बातों को अपने दिल पर ले लेती हैं. ऐसे में इसे बेशक कॉमेडी कहकर इग्नोर करने की कोशिश की जाय, किन्तु फर्क तो पड़ता ही है.
हालाँकि, कपिल शर्मा के पिछले शो में दुसरे शोज की अपेक्षा कम अश्लीलता होती है, किन्तु फिर भी कपिल काफी द्विअर्थी बातें कह जाते हैं. अब चूंकि वह एक बड़ी सेलेब्रिटी बन चुके हैं, अतः उन्हें अपने कंटेंट पर कहीं ज्यादा ध्यान देना होगा. यदि आपने "हम पांच", 'तू तू मैं मैं', ऑफिस-ऑफिस जैसे कॉमेडी शो देखे होंगे तो आपको याद होगा कि उसमें परिस्थितिजन्य हास्य की बातें ज्यादा होती थीं और फूहड़ता कम! इस तरह के शो में कलाकार जो भी दिखते थे, जो भी दिखाते थे, उसमें किसी को आपने आप में ग्लानि महसूस नहीं होती होगी और न कोई किसी के सामने अपनी बेइज्जती ही महसूस करता था, जैसाकि आज-कल के शो में होता है. पुराने कॉमेडी शोज में भाषा भी मर्यादित और शालीन होती थी तो उस समय किसी भी कॉमेडी शो में 'अपशब्द' तो होते ही नहीं थे, लेकिन आज कल इसका ही ट्रैंड हो गया है. आप टीवी शो से लेकर रेडियो के किसी भी प्रोग्राम को देख सुन सकते हैं और वहां आपको शालीनता के पैमाने पर निराश ही हाथ लगेगी. पिछले दिनों 'एआईबी' (आल इंडिया ***द) की भी खूब चर्चा हुई थी, जिसने अश्लीलता की सीमाओं को कॉमेडी के नाम पर भरपूर लांघा था. इस शो के लिए कारन जौहर, रणवीर सिंह और अर्जुन कपूर जैसे सितारों को भी बदनामी झेलनी पड़ी थी. हालाँकि, परवाह किसको है और क्यों है भला! टीआरपी तो मिल रही है न, और क्या चाहिए भला! कुछ दिन पहले टीवी पर एक कॉमेडी शो आता था, जिसमें स्टेज पर एक कॉमेडी किंग होता था और सामने आम मध्यवर्गीय श्रोता बैठे होते थे. कॉमेडी किंग 'ऑडिएंस' में से जान बूझकर बहुत दुबले, बहुत मोटे या बेसुरा गाने वाले को बुलाता या उसे सवाल पूछने का आमंत्रण देता था और फिर उसका मजाक उड़ाया जाता था. दुबला आदमी है तो उसके दुबलेपन का और मोटा आदमी है तो उसके मोटापे का मजाक उड़ाया जाता था. इतना ही नहीं उसके प्रोफेशन को भी नहीं छोड़ा जाता था. हालाँकि, समाज में आ रही गिरावट सिर्फ कॉमेडी और बॉलीवुड के क्षेत्र में ही नहीं है, बल्कि दुसरे क्षेत्रों में भी इसने अपना ख़ासा प्रभाव जमा लिया है, किन्तु जब बात कॉमेडी की करते हैं तो इसका अभिप्राय समाज के दूसरे क्षेत्र जो गलत राह पर हैं और किसी की सुनना समझना नहीं चाहते हैं, उनको कॉमेडी के माध्यम से एक ट्रैक पर लाना ही तो है, किन्तु अफ़सोस के साथ कहना पड़ रहा है कि अब सिर्फ टीआरपी का गेम ही मामले को तय कर रहा है.
जहाँ तक बात कपिल शर्मा की कॉमेडी की है तो इस कॉमेडी के सब्जेक्ट में एक रंगीन मिजाज विधवा दादी, एक उम्रदराज और बिनव्याही बुआ, एक मुंहलगू नौकर हास्य उत्पन्न जरूर करते हैं, किन्तु कई बार दादी और बुआ की हरकतों में थोड़ी अश्लीलता भी दिख ही जाती है तो पिछले शो की दादी का काम शराब पीकर डांस करना, किस करना और डबल मीनिंग संवाद थोड़ा असहज भी कर देते हैं. हालाँकि, आज के समय के बिजनेस की डिमांड भी कुछ अलग ही है. मिमिक्री भी कॉमेडी के साथ ही आता है, लेकिन इसके नियम जो बताये जाते हैं, उसके अनुसार किसी बेरोजगार या किसी के मर जाने पर उसकी मिमिक्री नहीं की जाती थी, किन्तु यह नियम भी बाद में तोड़े जाने लगे. यदि रेडियो की बात करें, तो कई एफएम स्टेशन के रेडियो जॉकी (आरजे) उचक्केपन के साथ अपने सुनने वालों के साथ पेश आते हैं, जिसमें किसी का बैंड बजाना, हड़काना, अश्लील भाषा के लिए उकसाना और अंत में माफ़ी मांगना और कहना कि "यार बुरा मत मानो हम तो तुम्हारा बैंड बजा रहे थे". कई बार यह हरकतें श्रोताओं का मनोरंजन तो जरूर करती हैं और लोग भी चटकारे ले लेकर इसे सुनते और देखते हैं, किन्तु इस बात से कौन इंकार कर सकता है कि छोटे-छोटे बच्चे भी यही सब देख कर सीखते हैं और वह इसे कॉमेडी के रूप में नहीं, बल्कि गलत आदत के रूप में विकसित कर लेते हैं. आज जो बच्चों में चिड़चिड़ापन, आक्रामकता, शैतानी की पराकाष्ठा है, उसमें कहीं न कहीं फिल्म, रेडियो और कॉमेडी शोज की भी जिम्मेदारी निहित है. आखिर, एक बच्चे का दिमाग किस प्रकार परिस्थितियों को जज कर पाएगा और वह जो दिखता है, जैसा दिखाया जाता है, वैसा व्यवहार करने को उत्सुक हो जाता है. थोड़े टाइम पहले विदेशी मजाकों का भद्दा भारतीय संस्करण दिखाया जाता था , जिसमे एक कमरे को छुपा कर लगाते थे उसके बाद उस शो का मेंबर किसी मुसीबत में फसे होने का नाटक करता था जिसका असर गुजरने वालो पर पड़ता था जो उन्हें सुनते थे या उनकी मदद के लिए आगे आते था, लेकिन जब उन्हें पता लगता था की यह सब एक ड्रामा हो रहा है तो एक झेंपने वाली मुस्कान के साथ आगे बढ़ जाते थे.
यह बातें कॉमेडी की सीमा में आती हैं कि नहीं यह तो नहीं पता, किन्तु यह सब देखकर लोग सच में मुसीबत में फंसे व्यक्ति को 'कॉमेडी' समझकर ही आगे बढ़ने लगे हैं. आखिर, चरवाहे का बच्चा और भेड़िया की कहानी तो हम सब को पता ही है, जिसमें कॉमेडी करने के मकसद से वह लड़का झूठ-मूठ का 'शेर-शेर' चिल्लाता है और गाँव वाले उसकी मदद को आगे आते हैं, किन्तु जब उसके झूठ को सब जान जाते हैं तब सच में 'शेर' आने पर कोई उसकी मदद को नहीं आता. आखिर, इस तरह की बातें कॉमेडी में किस प्रकार आ सकती हैं, यह समझ से बाहर की बात दिखती है. यदि ऋषिकेश मुखर्जी और जसपाल भट्टी जैसे कॉमेडी करने और बनाने वाले ये कॉमेडी शोज देखते तो उनको भी एक बार रोना आ जाता! स्वस्थ कॉमेडी में कभी भी व्यक्ति पर नहीं हंसा जाता है, बल्कि हंसने वाले परिस्थितियों पर ही कॉमेडी करते हैं. यदि अनपढ़ और विकलांगों पर कॉमेडी की जाय, मजहब, जाति, धर्म, सरदार, सांप्रदायिक और महिलाओं के खिलाफ कॉमेडी की जाय तो इसे हंसी के काबिल माना जाय या तरस के, यह बात समझ से बाहर है. इसी तरह, बीमारी, बुढ़ापे, हकलाहट, लंगड़ेपन या अंधेपन के साथ अपनी बीवी और साले सालियों तक को हास्यकवि के कविता का शिकार होना पड़ता है. हालाँकि, कई बार बिचारे कॉमेडियन भी अतिवादिता का शिकार हो जाते हैं, जैसे 'कीकू शारदा' अभी जेल होकर आये हैं, क्योंकि उन्होंने एक धर्मगुरु के जैसे कपड़े पहनकर कॉमेडी करने की जुर्रत कर दी थी. कॉमेडी अगर दिखावे का विरोध करे, अंधविश्वास पर चोट करे, लोगों को हंसी-हंसी के माध्यम से मोरल वैल्यूज का थोड़ा बहुत ही सही, परिचय कराये तो फिर 'बात बन जाए, किन्तु इन बातों को 'टीआरपी' के दल्लों को कौन समझाए!
Definition of Comedy in Hindi, The Kapil Sharma Show, Hindi Article, Mithilesh,
Comedy, विचार, समाज, हास्य and tagged cheap, comedians, comedy, jaspal bhatti, jokes, laughter, mimicry, raju shrivastav, stand up comedy, TV shows, umar sharif, Kapil sharma , Bharti singh, krishna sudesh , Raju shrivastav, what is comedy in hindi, majak, vinod, hasya, kavi sammelan, jija sali, best comedy article, kapil sharma, comedy nights, kikoo jail, situation based comedy, vulgar comedy, ashleelta, double meaning dialogue, dwiarthi samvaad, views of society, TRP Game, business and comedy, formats of comedy, hrishikesh mukharji comedy films
2 टिप्पणियाँ
आज के कॉमेडी का मतलब कपिल शर्मा , क्योकि कपिल शर्मा शो का सेन्स ऑफ़ हुमर कमल का है जिसके लोग कायल है. कॉमेडी करने के लिए आपको हाजिर जबाबी भी होना चाहिए जैसे की कपिल शर्मा . लेकिन कपिल की टीम के बिना कपिल शर्मा के शो में उतना दम नहीं रह जाता है यह तब लगा जब गुँथी शर्मा के शो से बहार थे , उनके आते ही शो की अधूरापन ख़त्म हो गया .
जवाब देंहटाएंआज के कॉमेडी का मतलब कपिल शर्मा , क्योकि कपिल शर्मा शो का सेन्स ऑफ़ हुमर कमल का है जिसके लोग कायल है. कॉमेडी करने के लिए आपको हाजिर जबाबी भी होना चाहिए जैसे की कपिल शर्मा . लेकिन कपिल की टीम के बिना कपिल शर्मा के शो में उतना दम नहीं रह जाता है यह तब लगा जब गुँथी शर्मा के शो से बहार थे , उनके आते ही शो की अधूरापन ख़त्म हो गया .
जवाब देंहटाएं