पिछले दिनों राज्यसभा में 'अगस्टा हेलीकाप्टर मामले' में हो रही चर्चा के दौरान कांग्रेस के आनंद शर्मा ने भाजपा पर चिढ़े हुए शब्दों में पलटवार करते हुए कहा था कि 'यह जो भाजपा के नए गिफ्ट राज्यसभा में आए हैं, वह भाजपा के लिए खुद भी मुसीबत खड़ी करेंगे'! हालाँकि, उनका बयान चिढ़ा हुआ जरूर था, किन्तु सच्चाई से बिलकुल परे भी नहीं था. यूं तो स्वामी की काबिलियत पर किसी को शक नहीं है, किन्तु बताते हैं कि उन्हें 'आर्डर' लेने की आदत नहीं है और यहीं से विवादों की शुरुआत होती है. अपने बयानों से कइयों के लिए मुश्किलें खड़ी करने वाले भाजपा सांसद सुब्रमण्यम स्वामी ने एक बार फिर आरबीआई गवर्नर रघुराम राजन पर निशाना साधा है. स्वामी ने साफ कहा है कि 'रघुराम राजन हमारे देश के अनुकूल नहीं हैं. वह जिस तरह से ब्याज की दरें बढ़ा रहे हैं, इससे बेरोजगारी बढ़ गई है और देश को भुगतना पड़ रहा है, इसीलिए उसकी छुट्टी करके जितनी जल्दी शिकागो भेज सकते हो भेजना चाहिए.' जाहिर है, स्वामी ने निशाना तो राजन पर साधा है, किन्तु इससे यह बात भी जाहिर हो गयी है कि 'मोदी सरकार में रोजगार के मौके घटे हैं!' वह तो शुक्र है कि देश में विपक्ष अपनी ही प्रोब्लेम्स में उलझा हुआ है, अन्यथा सुब्रमण्यम स्वामी की इस बात को लपक कर हंगामा खड़ा कर ही देता. जहाँ तक रिजर्व बैंक द्वारा ब्याज दरों के नियंत्रण की बात है तो सरकार ने भारतीय रिजर्व बैंक की नीति निर्धारण के लिए राज्यसभा में एक बिल पास किया है. इसके तहत ब्याज दरों को तय करने के लिए एक समिति का गठन किया जाएगा.
हालाँकि, स्वामी की राय से कुछ कुछ सरकार भी इत्तेफाक रखती नज़र आती है, खासकर वित्तमंत्री, क्योंकि वर्तमान में आरबीआई से जुड़ी सभी मौद्रिक नीति बनाने का अधिकार पूर्ण रुप से गवर्नर रघुराम राजन के पास है और इनकी सहायता के लिए एक समिति होती है जिसके पास सिर्फ परामर्श देने का अधिकार होता है. अब नए कानून के अनुसार बनाई गई मौद्रिक नीति परिषद में छह सदस्य होंगे और यही समिति ब्याज दरों को अंतिम रुप देगी. यदि सदस्यों में किसी मुद्दे को लेकर बराबरी की स्थिति आती है तो राजन (गवर्नर) के वोट से अंतिम निर्णय होगा. यह भी बात क्लियर हो गयी है कि इस समिति में तीन सदस्य सरकारी पक्ष से होंगे और बाकी तीन आरबीआई के पक्ष से होंगे. बताते चलें कि आरबीआई के गवर्नर के रूप में रघुराम राजन का कार्यकाल 4 सितंबर में खत्म हो रहा है और राजन पहले ही जानकारी दे चुके हैं कि सरकार ने अभी तक उनसे ये नहीं पूछा है कि वो आरबीआई गवर्नर के तौर पर दूसरी पारी खेलना चाहते हैं या नहीं. ऐसे में रघुराम राजन को दूसरी बार गवर्नर पद की कमान मिलने की संभावना बेहद कम दिख रही हैं. हालाँकि, सुब्रमण्यम स्वामी के बयानों से इतर देखें तो रघुराम राजन ने अर्थव्यवस्था को मजबूती ही प्रदान की है और इसकी तारीफ़ कई ग्लोबल एजेंसियों ने खुलकर की है. मूडीज, फिच, एसएंडपी ने अगर भारत को लेकर सकारात्मक रूख दिखाया है तो फिर आप इसकी क्रेडिट राजन से नहीं छीन सकते हैं. हाँ, थोड़े मुंहफट वह जरूर रहते हैं, जो काबिल व्यक्तियों की आदत सी होती है. बताते चलें कि नवंबर 2015 में रघुराम राजन ने कहा था कि असहिष्णुता के कारण आर्थिक विकास प्रभावित हो रहा है तो अप्रैल 2016 में रघुराम राजन ने भारत को अंधों में काना राजा कहा था.
रघुराम राजन के इस बयान पर वित्त मंत्री अरुण जेटली और निर्मल सीतारमण ने भी कड़ी आपत्ति जताई थी. ऐसे में जब स्वामी का बयान इस सम्बन्ध में आया है तो माना जा सकता है कि इसका इशारा कहीं न कहीं ऊपर से मिल चुका है. भारत में बैंकिंग से सम्बंधित समस्याओं की बात करें तो हाल ही में विजय माल्या को लेकर सरकारी बैंकों के एनपीए(नॉन परफार्मिंग असेट्स) की बात खूब उछली है. इस मामले में खूब उथल पुथल हुई है तो बैंकों के विलय की बात भी सामने आयी है. रघुराम राजन का इस मामले में बेहद साफ़ रवैया सामने आया है. उन्होंने कहा है कि 'भेड़िया वाली कहानी तो सबने सुनी ही होगी, कुछ ऐसी ही हालत सरकारी बैंकों की हो गई है और बैंकों को चेतावनी को चेतावनी के स्वर में वह कहते हैं कि यदि आप बार बार भेड़िया आया, भेड़िया आया के रोना रोएंगे तो कल आप पर कोई भरोसा नहीं करेगा. जाहिर है, बैंकों की कार्यप्रणाली के बारे में यह एक सटीक टिपण्णी ही है, क्योंकि अगर बैंकों का एनपीए बढ़ा है तो उसके लिए जिम्मेदार भी तो खुद बैंक ही हैं, जो बिना किसी ठोस गारंटी के विजय माल्या जैसों को लोन दे देते हैं और देते ही रहते हैं. इसी क्रम में, अपनी टिप्पणी के लिये चर्चित गवर्नर रघुराम राजन ने अपने उन उपायों का समर्थन भी किया जो वृद्धि को गति देने के लिये जरूरी थे. अंतरराष्ट्रीय मुद्राकोष में मुख्य अर्थशास्त्री की भूमिका निभा चुके रघुराम राजन औद्योगिक देशों के लघु एवं मझोले उद्यमों की तुलना भारत के वर्तमान औद्योगिक स्थिति से करते हुए कहते हैं कि दोनों ही परिस्थितियों में मुख्य कारक इनको तेजी से बढ़ाना है. गवर्नर रघुराम राजन के अनुसार वित्तीय कठिनाई के बाद बैंक पर पूंजी रखने की मांग सस्ती नहीं होती है. रघुराम राजन की यह टिपण्णी भी महत्वपूर्ण है कि विदेशी बैंकों ने हमारे यहां नयी शाखाएं खोलनी बंद कर दी हैं, क्योंकि हमारी क्रेडिट रेटिंग 'बीएए' है जिसका अर्थ है ‘अपेक्षाकृत अधिक जोखिम’.
इस लिहाज से अंतरराष्ट्रीय बैंकों, जिन्हें भारत में निवेश करने के लिए कहा जा रहा है, उन्हें लगता है कि ऐसा करना ठीक नहीं है. बैंकों को खत्म करने को राजन व्यावहारिक विकल्प नहीं मानते हैं, क्योंकि बैंकों को खत्म करने के प्रस्ताव से वित्त लागत बढ़ेगी. बैंकों के प्रति कम होती विश्वसनीयता को रोकने के लिए बैंकों को अपने कामकाज में पेशेवर रुख लाने की तत्काल जरूरत पर राजन बल देते हैं, क्योंकि सरकारी बैंकों के कामकाज में पेशेवर रुख का अभाव है. जाहिर है, इन तमाम बातों पर नज़र डालते हैं तो रघुराम राजन के रूप में एक योग्य गवर्नर ही दिखता है जो भारतीय बैंकिंग तंत्रों को दुरुस्त रखने के लिए सजगता से आगे बढ़ता रहा है. हालाँकि, यह बात भी सच है कि हर सरकार का अपना कामकाज करने का तरीका होता है और वह अपने कम्फर्ट ज़ोन के हिसाब से ही लोगों का चयन करती है. राजन अगर हटते हैं तो इस बात से किसी को आपत्ति नहीं होनी चाहिए, क्योंकि वर्तमान सरकार का यह हक़ है, लेकिन उनके स्थान पर जो भी आये उसे अर्थव्यवस्था और रोजगार बढ़ाने के मोर्चे पर बेहतर कार्य करना होगा तो भारतीय बैंकिंग को पेशेवराना अंदाज देने के मामलों में भी अपनी काबिलियत दिखानी होगी, जिसकी कोशिश राजन ने अपने कार्यकाल में ईमानदारी से किया है.
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2 टिप्पणियाँ
इसमें कोई शक नहीं है की भारत की आर्थिक मजबूती रघुराम राजन की वजह से आई है .
जवाब देंहटाएंरघुराजन राम के योग्यता पर सवाल उठाने का कोई प्रश्न ही नहीं बनता,लेकिन ये भी सच्चाई है की उनके इस कार्यकाल में भारत को कुछ विशेष लाभ नहीं मिला जिसकी लोगों ने उम्मीद की थी. वैसे उनके काम करने के जोश को देखकर मोदी सरकार को उन्हें एक मौका और देना चाहिए.
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