आपको यूपीए सरकार की दुर्गति तो याद ही होगी, जब उसके खिलाफ 'जी' घोटालों की एक सीरीज चल चुकी थी, जो २ जी, ३ जी, जीजा 'जी' और जाने क्या-क्या लेकर प्रचारित हुई और अंततः इसका खामियाजा कांग्रेस सरकार को भुगतना पड़ा. सवाल सरकार के खिलाफ माहौल बनने का है और नरेंद्र मोदी की सरकार को भी 'कॉर्पोरेट' को लेकर कुछ ज्यादा ही सावधानी बरतनी चाहिए. लोगों के मन में यह प्रश्न खूब उठ रहा है कि आखिर अपने खिलाफ शोर शराब होते देखकर विजय माल्या एयरपोर्ट से फरार कैसे हो गया? इस मामले में सरकार के लोग भी समय पर सक्रीय न होने को लेकर अपना सर पीट ही रहे होंगे! भारतीय शराब कारोबारी विजय माल्या को कौन नहीं जनता है, लेकिन इनको लोग अब बुरे रूप में याद रखने वाले हैं. 'किंग ऑफ़ गुड टाइम्स' अब 'बैड टाइम्स' में बदल चुका है. यह इसलिए कि आईपीएल में पैसो की हेराफेरी करनेवाले ललित मोदी की ही तरह माल्या भी फरार हो चुके हैं! और माल्या भी ललित मोदी की तरह लंदन में ही हैं. ललित मोदी को तो सरकार ला नहीं सकी अब देखना ये है कि माल्या को लाने में सफल होती है या नहीं! जाहिर हैं, लोगों की अपेक्षाएं इस मामले में बेहद घुली मिली होती हैं और वह बड़ी आसानी से आंकलन कर लेते हैं कि 'यह सरकार' भी मिली हुई हैं, अन्यथा वह भाग कैसे जाता? या फिर उसे वापस क्यों नहीं लाया जा सका हैं? विजय माल्या से पहले भी कई और डिफाल्टर हैं, जिसे ब्रिटेन ने शरण दी है और हमारी सरकार इस मामले में कारगर समझौते करने में पूरी तरह सफल नहीं हो पायी है और पूरी प्रक्रिया बेहद जटिल हो चुकी है. बताते चलें कि गुलशन कुमार के हत्यारे से लेकर गुजरात बम धमाके से जुड़ा आरोपी भी लंदन में पनाह लिए हुए है. अब तक भारत से भाग कर लंदन में शरण लिए हुए लोगो में ललित मोदी, इंडियन नेवी वॉर रूम लीक केस का आरोपी रवि शंकरण, 1993 गुजरात बम धमाके का आरोपी टाइगर हनीफ, गुलशन कुमार हत्याकांड का आरोपी नदीम सैफी, गोवा में चाइल्ड अब्यूज का आरोपी रेमन्ड वार्ले, लॉर्ड सुधीर चौधरी और खालिस्तान मूवमेंट से रिलेटेड क्रिमिनल्स हैं.
जाहिर है, इन मामलों में बदलती परिस्थितियों के मद्देनज़र यह सोचना सरकार का ही काम है कि आखिर ब्रिटेन एक तरफ तो उससे दोस्ताना व्यवहार की उम्मीद करता है और वहीं दूसरी ओर उसके अपराधियों को बेझिझक शरण भी देता है. इस कड़ी में, भारत ने विजय माल्या को ब्रिटेन से डिपोर्ट करने का अनुरोध किया था, लेकिन ब्रिटेन के कानून के एक्सट्राडीशन ट्रीटी का आर्टिकल-9 के अनुसार वहां की सरकार ऐसा नहीं कर सकती है. इमीग्रेशन लॉ (1971) के मुताबिक, वह किसी भी आरोपी को तब तक ब्रिटेन में रहने से नहीं रोक सकती जब तक उसके पास वैलिड पासपोर्ट और वीजा है. ऐसे में, माल्या ने जब दो मार्च को देश छोड़ा था तब उनका पासपोर्ट वैध था, हालाँकि उनके जाने के बाद भारत सरकार ने उनका पासपोर्ट रद्द कर दिया. लेकिन तकनीकी तौर पर इसका मतलब यह है कि वो जब ब्रिटेन पहुंचे तो उनका पासपोर्ट वैलिड था. हालाँकि, इस मामले में ब्रितानी सरकार 'संतुलन' की नीति अपनाए हुए है और यूके गवर्नमेंट ने भारत से कहा है कि वो माल्या के एक्सट्राडिशन की अर्जी (प्रर्त्यपण) औपचारिक रूप से पेश करें तो उस पर विचार किया जायेगा! गौरतलब है कि विजय माल्या भारतीय बैंकों के 9 हजार करोड़ का कर्जदार है. गिरफ़्तारी और मुसीबत से बचने के लिए माल्या ने सुप्रीम कोर्ट के सामने बैंकों से सेटलमेंट करने के लिए 6,868 करोड़ का ऑफर भी दिया था, जिसे बैंकों ने इंकार कर दिया था. इससे पहले माल्या ने 4,400 करोड़ का ऑफर देकर कहा था कि उनकी पत्नी और बच्चे NRI हैं, लिहाजा उनकी प्रॉपर्टी नहीं बताई जा सकती है. ऐसे में पूरा मामला पेचीदा होता जा रहा है और अब बात बैंकों के क़र्ज़ वसूलने से अलग हटकर विजय माल्या की गिरफ़्तारी और उसके प्रत्यर्पण पर टिक गयी है. जाहिर है, बैंकों के माध्यम से सरकार का जो धन डूबा, उसे वसूले जाने की उम्मीद क्षीण हो गयी है. यह मुख्य बात है, जो जनता में बेहद तेजी से फैलती है और सरकार के खिलाफ माहौल भी तैयार करती है. आंकड़ों के अनुसार देखें तो, 2002 के बाद से भारत अब तक 42 भगोड़ों की लिस्ट संबंधित देशों को सौंप चुका है. हालांकि, यूके से ट्रीटी होने बावजूद शायद ही किसी ऑफेन्डर को भारत सौंपे जाने का मामला सामने आया है. इस मामले में यही कहा जा सकता है कि अगर आरोपी रसूख वाला है तो ब्रिटेन का कानून उसकी पूरी मदद करेगा, क्योंकि छोटे क्राइम के लिए एक्सट्राडीशन की अपील या रिक्वेस्ट करने में देरी भी आरोपी को फायदा पहुंचा सकती है.
वहीं, यूके का ह्यूमन राइट्स एक्ट वहां के हर सिटीजन के 15 फन्डामेंटल फ्रीडम्स को प्रोटेक्ट करता है. वहां से किसी को डिपोर्ट तभी किया जा सकता है, बशर्ते संबंधित देशों में आरोपी के ह्यूमन राइट्स का वॉयलेशन न हो. हालाँकि, माल्या के लिए ईडी (एन्फोर्समेंट डायरेक्टोरेट) नॉन-बेलेबल वारंट जारी कर चुका है और उसके लिए भी मामला इतना सरल नहीं है, किन्तु भारत न आने के लिए वह अपना पूरा ज़ोर लगा देगा, इस बात में दो राय नहीं! बताते चलें कि यूके में एंट्री करना, प्रॉपर्टी खरीदना और वहां सेटल होना रईस भारतीयों के लिए बेहद आसान है. यूके का होम डिपार्टमेंट, बिजनेस और अर्जेंट ट्रैवलर्स को 24 घंटे के अंदर सुपर प्रायोरिटी वीजा सर्विस ऑफर करता है. एक रिपोर्ट के अनुसार , एक आंत्रपेन्योर वीजा के लिए आपको 2 करोड़ रुपए का इन्वेस्टमेंट शो करना होगा. वहीं, इन्वेस्टर वीजा हासिल करने के लिए 20 करोड़ रुपए का इन्वेस्टमेंट शो करना होगा. इसकी वैलिडिटी तीन साल तक के लिए रहती है, जिसे बढ़ाया भी जा सकता है. एक अन्य खबर के मुताबिक, लंदन के पॉश इलाके मेफेयर में तीन हजार इंडियन फैमिलीज की अपनी लग्जरी प्रॉपर्टीज हैं. जाहिर है मामला बेहद उलझाऊ है और अगर केस चली भी तो विजय माल्या बूढा होकर मर खप जायेगा और उसके साथ ही बैंकों की 9000 करोड़ की पूँजी भी डूब जाएगी! हालाँकि, माल्या की राज्यसभा से सदस्यता भी रद्द कर दी गई है, पर सवाल यही है कि यह सारी प्रिकॉशन पहले क्यों नहीं ली जाती है? क्या सरकारी विभाग हाथ पर हाथ धरे बैठे रहता है कि लोग विदेश भाग जाएँ और वह झूठ मूठ की मगजमारी करे? माल्या के इतने बैंकों को एक साथ चुना लगा कर बिना किसी की मदद के बाहर कैसे जा सकता था? माल्या ने साफ़ तौर पर यह भी कहा है कि फ़िलहाल उसका भारत लौटने का कोई इरादा नहीं है. यह भी बड़ा प्रश्न है कि यदि माल्या ने 1993 में ही ब्रिटेन की नागरिकता हासिल कर ली थी, तो उसे राज्यसभा की सदस्यता कैसे दी गई? क्या इस सम्बन्ध में कोई कानून है या फिर कानून में इतना झोल है कि उसका फायदा जब न तब कोई भी उठा ले! इससे भी बड़ा प्रश्न यह है कि जब बैंकों को ये पता था कि माल्या की आर्थिक हालत ठीक नहीं है फिर भी उनको इतना बड़ा लोन कैसे मिल गया? माल्या ही नहीं और भी बहुत सारे उद्योगपति हैं जिनके लोन की राशि पुरे भारत को मिला कर किसानों को दिए गए लोन की राशि से भी अधिक है और इस लोन का अधिकांश भाग 'एनपीए (बैड लोन)' में बदलता जा रहा हैं! बिना सरकार के हाथ के कोई इतनी बड़ी रकम को चुकाए देश छोड़ कर कोई चला जाए तो उसे आप आसानी से हज़म नहीं कर सकते हैं! सवाल यही है कि अगर ऐसे कुछ और केस आ गए तो ईमानदारी के ढिंढोरे के बावजूद मोदी सरकार की साख खतरे में पड़ जाएगी और ऐसा नरेंद्र मोदी तो कतई नहीं चाहेंगे!
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2 टिप्पणियाँ
इसमें कोई शक नहीं की बिना सरकारी मदत के इतना बड़ा लोन दिया जाता है वो भी ऐसे आदमी को जो पहले से ही क़र्ज़ में डूबा है.
जवाब देंहटाएंमुझे तो यह समझ में नहीं आ रहा है की दोहरी नागरिकता के व्यक्ति को राज्यसभा का सदस्य कैसे बनाया गया
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