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सौंदर्य प्रतियोगिताएं, फिल्म फेस्टिवल और भारतीय बाजार! Beauty contests, Film festivals and Indian Market, Multinational vs Indian Companies, Hindi Article

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वह 21वीं सदी की शुरुआत ही थी, जब एक के बाद एक वैश्विक सौंदर्य प्रतियोगिताएं में भारतीय सुंदरियां जीत रही थीं. ऐश्वर्या राय, सुष्मिता सेन, युक्ता मुखी, लारा दत्ता, प्रियंका चोपड़ा जैसी लड़कियों ने एक के बाद एक झंडे गाड़े तो ऐसा लगा मानो पूरा विश्व की नज़र में अब भारतीय सौंदर्य कीमती हो चला है. हालाँकि, यह बात भी साथ ही साथ दबे छुपे स्तर पर सामने आती रही कि इन सौंदर्य प्रतियोगिताएं की आड़ में भारतीय बाज़ारों पर कब्ज़े का रणनीतिक जाल बहुराष्ट्रीय कंपनियों द्वारा बिछाया गया था. हालाँकि, धीरे-धीरे यह जाल फैलता गया और अब आलम यह है कि आपको महानगर और शहर तो शहर हैं ही, गाँवों और कस्बों में भी लक्मे, लॉरियल जैसे लिपस्टिक ब्रांड आसानी से मिल जायेंगे. पिछले कुछ दशकों में सौंदर्य प्रसाधनों का एक बड़ा बाज़ार फ़ैल चुका है. देखा जाए तो पहले बेहद खूबसूरती से इन कंपनियों ने पहले तो कटगरी क्रिएट किया और फिर उसके बाद अपने सामानों को धड़ल्ले से बेचा! जाहिर है सौंदर्य प्रतियोगिताएं और तमाम फिल्म फेस्टिवल के बारे में होने वाली चर्चाएं और विवाद भी इसी पीआर रणनीति का ही हिस्सा होते हैं! ऐसे ही, पिछले कुछ सालों से कान फिल्म फेस्टिवल में फैशन पुलिस द्वारा आलोचना झेल रही ऐश्वर्या राय इस बार भी खूब चर्चित रहीं. रेड कार्पेट पर अपने स्टाइलिश लुक से ऐश ने सबका दिल जीत लिया और साथ ही फैशन के प्रति रूझान एक कदम और आगे बढ़ गया! बताते चलें कि कान फिल्म फेस्टिवल में ऐश्वर्या राय बच्चन का ये पन्द्रहवां साल है. ऐसे में आप कल्पना कर सकते हैं कि कितने लम्बे समय तक कंपनियां धैर्यपूर्वक अपने काम को अंजाम देती हैं. जैसा कि हम जानते हैं कि भारतीय कलाकार अपनी फिल्म का प्रमोशन करने या किसी पॉपुलर कॉस्मेटिक ब्रांड को रिप्रजेंट करने के लिए कान फिल्म फेस्टिवल में भाग लेते हैं. इसी के तहत ऐश्वर्य पिछले 15 सालों से मशहूर कस्मेटिक ब्रांड 'लॉरियल के ब्रांड एम्बेस्डर' के तौर पर सिरकत कर रही हैं. 

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लॉरियल की तरफ से ही सोनम कपूर भी पिछले 6 सालों से लगातार 'कान' में अपनी उपस्थिति दर्ज करा रही हैं. अपने लुक और फैशन सेन्स को लेकर सोनम  ने शुरू से ही लोगों का ध्यान अपनी तरफ खींचा है. लॉरियल की तरफ से कैटरीना कैफ और फ्रीडा पिंटो भी कान में हिस्सा ले चुकी हैं. जाहिर है, जितनी बड़ी मार्किट, उतने बड़े उसके प्रतिनिधि! हालाँकि, फ्रांस में आयोजित होने वाले इस फिल्म फेस्टिवल में भारतीय चेहरे के रूप में ऐश ने निसंदेह अपनी पहचान बनायीं है, और इसे सिर्फ नकारात्मक रूप से नहीं लिया जाना चाहिए. वैसे भी ग्लोबलाइजेशन के दौर में आप ज्यादा कुछ कर भी नहीं सकते हैं. हालाँकि, सौंदर्य प्रसाधनों के मामले में भारतीय कंपनियां इन विदेशी कंपनियों के मुकाबले कहीं खड़ी नज़र नहीं आती हैं और यही मुख्य चिंता की बात भी है. हालाँकि, लॉरियल जैसे वैश्विक ब्रांड्स ने भी भारतीय चेहरों को अंतरास्ट्रीय फैशन जगत में पहचान बनाने में भरपूर सहयोग दिया है और उन्हें इसका क्रेडिट दिया जाना चाहिए! हालाँकि, इसमें इन कंपनियों का अपना ही स्वार्थ रहा है, क्योंकि इसके साथ ही फैशन के मामले में उभरते भारतीय बाजार में इन्ही मशहूर चेहरों के द्वारा अपनी पैठ भी इन कंपनियों ने बनाई है. जाहिर तौर पर इनका माध्यम बना है, विश्व भर में आयोजित होने वाली सौंदर्य प्रतियोगिताएं. 1966 में मुंबई की रीता फारिया के मिस वर्ल्ड बनने के लम्बे अंतराल के बाद 1994 में ऐश्वर्या राय मिस वर्ल्ड बनी और उसके बाद तो जैसे सिलसिला ही शुरू हो गया, डायना  हेडन ने 1997  में, युक्ता मुखी 1999 में, प्रियंका चोपड़ा सन 2000 में मिस वर्ल्ड के ताज को अपने नाम किया. इसके बाद मिस एशिया पैसिफिक, मिस इंडिया जैसी कई सौंदर्य प्रतियोगिताएं आयोजित होती ही रही हैं. 
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लोगों ने बहुत पहले ही कयास लगाना शुरू कर दिया था कि इंटरनेशनल कॉस्मेटिक ब्रांडों की नजर भारत के बाजार पर थी इसीलिए भारतीय सुंदरियों को ख़िताब दिया गया. ये बात काफी हद तक सच भी है. आखिर लक्मे (Lakme) चैंबर(Chambor), एल्ले18 (Elle18)  एवन(Avon), कलर  बार(Color Bar), मेबलीन(Maybelline), लोरियल (L’Oreal), एमवे(Amway), रेवलॉन(Revlon) जैसे इंटरनेशनल ब्रांड ने भारतीय बाजार पर अपना कब्ज़ा जमा ही लिया है, तो इसमें सौंदर्य प्रतियोगिताएं और फिल्म फेस्टिवल्स का ही तो मुख्य योगदान रहा है. यह भी दिलचस्प है कि जैसे ही भारतीय बाजार पर इनका एकाधिकार हुआ तो मिस वर्ल्ड और मिस यूनिवर्स का तो भारत में जैसे अकाल ही पड़ गया! भाई, अब विश्व में दूसरी मार्केट्स भी तो हैं, और बहुराष्ट्रीय कंपनियों की तो परिभाषा ही 'बहु-राष्ट्रीय' है. हालाँकि, कुछ भारतीय कंपनियां भी जरूर उभर रही हैं जैसे, शहनाज़ हुसैन, हिमालया, बायोटिक (Biotique), लोटस, कलरसेंस (Coloressence)  VLCC, जोविस(Jovees),  Viviana Colors और अब कुछ उत्पादों के साथ बाबा रामदेव की पतंजलि भी आ चुकी है. लेकिन देखने वाली बात यह है कि लोगों की जुबान पर चढ़े बड़े विदेशी ब्रांडों को हटाना इनके लिए बेहद मुश्किल बन चुका है. हालाँकि भारतीय उपभोक्ता भी अब काफी समझदार हो रहा है और नाम के पीछे न जाकर काम और किफ़ायत पर ज्यादा ध्यान देने लगा है. इसलिए भारतीय कंपनियों को किफ़ायत का ख्याल रखना ही होगा,अगर बाजार में पैठ बनाना है तो! यही असली मन्त्र है और जो इस मन्त्र को समझ जाता है वह बाज़ार में पकड़ बना लेता है. समझने वाली बात यह भी है कि यह मार्किट जो अब हज़ारों करोड़ के दायरे में फ़ैल चुका है, वह सिर्फ और सिर्फ ब्रांडिंग का ही है. मतलब, जिसका नाम है, उसका उतना ही ज्यादा दाम है और इस सूत्र को बेहद सटीकता से पकड़कर विदेशी कंपनियां आगे बढ़ रही हैं. ध्यान से सुनिए आप भी, ऐश्वर्या राय के 'पर्पल लिपस्टिक' पर हो रही चर्चा को!
- मिथिलेश कुमार सिंह, नई दिल्ली. 




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