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नशे की महामारी, हमारी जिम्मेदारी एवं राजनीतिक बिरादरी! World no tobacco day article in hindi, naya lekh, smoking is dangerous!


हमें यह बात स्वीकारने में गुरेज नहीं होना चाहिए कि भारत में पुराने समय से ही तम्बाकू का प्रचलन रहा है. पहले के समय में भी हुक्का-चिल्लम, बीड़ी, खैनी आदि के द्वारा लोग नशा करते रहे हैं, किन्तु आज स्थिति कहीं ज्यादा विस्फोटक हो चुकी है. अब तो जमाना एडवांस हो गया है और एडवांस हो गए हैं नशे करने के तरीके! बीड़ी की जगह सिगरेट ने ले लिया है तो हुक्का और चिल्लम की जगह स्मैक, ड्रग्स ने और खैनी बन गया है गुटखा! वहीं शराब की तो पूछनी ही नहीं है. पहले शराब अमीर लोगों का शौक हुआ करता था तो अब शराब के कई सस्ते वर्जन आम लोगों की दिनचर्या का अहम हिस्सा बन गया है. ये जानते हुए भी कि तम्बाकू एक धीमा जहर है, जो सेवन करने वाले व्यक्ति को धीरे धीरे करके मौत के मुँह मे धकेलता रहता है, तब भी लोग बेपरवाह हो कर इसका इस्तेमाल किये जा रहे हैं. वैसे तो देश तमाम बीमारियों के कहर से परेशान है, लेकिन इन सब में तम्बाकू से होने वाली बीमारियां और नुकसान अपनी जड़ें और गहरी करती जा रही हैं. लोग जाने-अनजाने या शौकिया तौर पर तम्बाकू उत्पादों का सेवन करना शुरू करते हैं धीरे धीरे शौक लत में परिवर्तित हो जाता है. 'नशा' एक ऐसी बीमारी है जो हमें और हमारे समाज को, हमारे देश को तेजी से निगलती जा रही है, लेकिन सबसे बड़ा दुःख ये है की हमारा युवा-वर्ग इसकी चपेट में कहीं बड़े स्तर पर आ चुका है. पहले के समय और आज के समय में यह सबसे बड़ा अंतर है, क्योंकि पहले बुजुर्ग लोग हुक्का-चिल्लम इत्यादि का सेवन करते थे तो आज 15 साल के बच्चों को भी धड़ल्ले से सिगरेट, शराब, यहाँ तक कि शहरों में 'ड्रग्स' सेवन करते पाया गया है. ऐसे में देश के भविष्य को लेकर चिंता होनी ही है. 

आज शहर और गाँवों में पढ़ने खेलने की उम्र में स्कूल और कॉलेज के बच्चे, युवा वर्ग मादक पदार्थों के सेवन के आदी हो गए हैं, लेकिन इसमें सारी गलती बच्चों की ही नहीं है. गौर से देखा जाये तो कुछ हद तक इस स्थिति के जिम्मेदार हम लोग भी हैं जो इस कदर अपने कैरियर को बढ़ाने में मशगुल हैं कि हमें परवाह ही नहीं है कि हमारे बच्चे क्या कर रहे हैं, कहाँ जा रहे हैं, किससे मिल रहे हैं, ये सब जानने की हमें फुर्सत ही नहीं है! बस बच्चों की मांगे पूरी करना ही हम अपनी जिम्मेदारी समझ बैठे हैं. कभी दूसरों की देखा देखी, कभी बुरी संगत में पड़कर,  कभी मित्रों के दबाब में, कई बार कम उम्र में खुद को बड़ा दिखाने की चाहत में तो कभी धुएँ के छ्ल्ले उडाने की ललक, कभी फिल्मों मे अपने प्रिय अभिनेता को धूम्रपान करते हुए देखकर तो कभी पारिवारिक माहौल का असर तम्बाकू उत्पादों की लत का प्रमुख  कारण बनता है. इसी कड़ी में, टीवी और पोस्टरों में तम्‍बाकू के विज्ञापन देखकर अधिकांश किशोर धूम्रपान की ओर आकर्षित हो जाते हैं. यह भी बेहद दुःख की बात है, भारतीय फिल्म इंडस्ट्री के कई चर्चित अभिनेता-अभिनेत्री सिगरेट, शराब, गुटखा का खुलकर प्रचार करते हैं और सरकारी नियम इस मामले में उसका कुछ नहीं बिगाड़ पाते हैं. ब्रिटिश मेडिकल जर्नल में प्रकाशित एक ताजा अध्ययन में कहा गया है कि तम्बाकू के विज्ञापन देखने से किशोरों में धूम्रपान शुरू करने का खतरा बढ़ जाता है. शोधकर्ताओं ने पाया है कि 38 प्रतिशत किशोर, तम्बाकू के 10 अतिरिक्त विज्ञापन देखने से धूम्रपान की ओर आकर्षित होते हैं. वहीं गौर करने वाली बात ये भी है कि भारत समेत दुनिया के कई देशों में तम्‍बाकू विज्ञापनों पर प्रतिबंध है और संचार के किसी भी माध्‍यम पर तम्‍बाकू और उससे जुड़े उत्‍पादों का विज्ञापन नहीं दिखाया जा सकता है, तथा फिल्‍मों में भी धूम्रपान या अन्‍य किसी तम्‍बाकू उत्‍पाद का सेवन करते समय नीचे वैधानिक चेतावनी दिखायी जानी जरूरी है. बवजूद इसके छिपे रूप में और खुलकर तम्बाकू उत्पादों का प्रचार-प्रसार धड़ल्ले से चल रहा है. 

वहीं कई राज्‍यों में 18 वर्ष से कम आयु के बच्‍चों को तम्‍बाकू उत्‍पाद बेचना भी दण्‍डनीय अपराध है, फिर भी तम्बाकू के फैलते प्रभाव को रोकने में सरकार पूरी तरह से अगर असमर्थ नज़र आती है, तो इसके पीछे उसका नकारापन कहीं ज्यादा जिम्मेदार है. सरकार के नाक के नीचे धड़ल्ले से नशे की सामग्री बेची जा रही है. हालाँकि, सुप्रीम कोर्ट ने आदेश तो दे दिया है कि तम्बाकू उत्पादों पर 70 प्रतिशत कंटेंट चेतावनी के होंगे, लेकिन चेतावनी तो पहले भी लिखी होती थी तम्बाकू उत्पादों पर! क्या सिर्फ चेतावनी भर से इस मर्ज़ का इलाज किया जा सकता है? कई तम्बाकू निर्माता चेतावनी भी कुछ इस अंदाज में लिखते हैं कि वह 'विज्ञापन' ज्यादा दिखता है, खतरा कम! नशे के कारोबार ने देश में अपना बहुत बड़ा बाजार खड़ा कर लिया है और बड़े-बड़े औद्योगिक घराने इसमें शामिल हैं. लेकिन आम जन मानस तक इसकी पहुँच कम तो की ही जा सकती है और अगर ठीक ढंग से इच्छाशक्ति प्रदर्शित की गयी तो इस पर पूर्ण प्रतिबन्ध भी लगाया जा सकता है, इस बात में दो राय नहीं! आखिर, बिहार जैसे राज्य में शराब पर 'पूर्ण प्रतिबन्ध' लगाकर वहां के राजनीतिक नेतृत्व ने एक मजबूत इच्छाशक्ति का परिचय दिया है, जिसकी जितनी भी तारीफ़ की जाए, कम ही है. एक सकारात्मक खबर यह भी दिखी, जिसमें बताया गया कि मध्य प्रदेश में पिछले 10 सालों में तंबाकू खाने वालों की संख्या में कमी आई है. भारत सरकार के स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण मंत्रालय द्वारा साल 2015-16 में कराए गए राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य सर्वेक्षण-4 (एनएफएचएस-4) से पता चला है कि 59 प्रतिशत पुरुष और 10 प्रतिशत से अधिक महिलाएं आज भी तंबाकू का सेवन करती हैं. जाहिर है, हालात कहीं ज्यादा चिंताजनक हैं. इसके अतिरिक्त, हमारे देश में बिकने वाले बड़े -बड़े नामी ब्रांड्स के तम्बाकू उत्पादों पर बिक्री कर बहुत ही कम है लगभग 10 से 30 प्रतिशत, जबकि विशेषज्ञों का कहना है कि इस टैक्स को 65 से 85 प्रतिशत तक बढ़ा देना चाहिए, जिससे ये उत्पाद आम लोगों की पहुँच से बाहर आ जाएँ. इसके अतिरिक्त, अमेरिका और अन्य कई देशों में यह प्रावधान है कि जो भी तम्बाकू इत्यादि के कारोबारी हैं, उन्हें अपनी आय का एक बड़ा हिस्सा 'कैंसर' और दुसरे रोगों के इलाज हेतु लगाना पड़ता है, किन्तु ऐसे नियम के बारे में सोचा तक नहीं गया है, जो अपने आप में चिंताजनक है. यह स्थिति तो अपनी जगह है, किन्तु तम्बाकू उत्पादों के विज्ञापन को पूरी तरह प्रतिबंधित करने का नियम भी लागू किया जा सकता है, ताकि इसका प्रचार-प्रसार कम से कम हो और अंततः यह समाप्ति की ओर अग्रसर हो! अगर हम  बात करें, तम्बाकू उत्पादों से होने वाले नुकसान की तो, तम्बाकू में मादकता या उतेजना देने वाला मुख्य घटक निकोटीन(Nicotine) है, यही तत्व सबसे ज्यादा घातक भी होता है. 

इसके अलावा तम्बाकू मे अन्य बहुत से कैंसर उत्पन्न करने वाले तत्व पाये जाते है. धुम्रपान एवं तम्बाकू खाने से मुँह, गला, श्वांसनली व फेफड़ों का कैंसर(Mouth, throat and lung cancer) होता है. बीमारियां यहीं तक नहीं हैं, बल्कि दिल की बीमारियाँ (Heart Disease), धमनी काठिन्यता, उच्च रक्तचाप (High Blood Pressure), पेट के अल्सर (Stomach Ulcer), अम्लपित (Acidity), अनिद्रा (insomnia) आदि रोगों की सम्भावना तम्बाकू उत्पादों के सेवन से बेहद बढ़ जाती है. इससे आगे देखते हैं तो गर्भवती महिलाओं के लिए तो ये और भी खतरनाक दिखता है. चाहे वो महिला स्मोकिंग करती हो या नहीं दोनों ही अवस्था उसके लिए ठीक नहीं है, क्योंकि दूसरे के द्वारा छोड़ा गया धुआं भी उसके लिए नुकसानदेह है. गर्भवती महिला जब 'सिगरेट के धुएं' के संपर्क में आती है, तो प्लासेंटा ठीक से काम नहीं करता है. थोड़ी मेडिकल भाषा में बात करें तो, निकोटीन जब प्लासेंटा से होकर गुजरता है तो भ्रूण में रक्त का प्रवाह कम हो जाता है. इससे फेटल कार्डियोवेस्कुलर सिस्टम, गैस्ट्रोइंटेसटाइनल सिस्टम और सेंट्रल नर्वस सिस्टम पर असर पड़ता है और कई बार पैसिव स्मोकिंग 'गर्भपात या जन्म के समय शिशु का वजन कम होने' जैसी समस्याओं के रूप में सामने आता है. ऐसे ही, सुन्‍दरता को बरकरार रखने में हमारे दांतों का बहुत बड़ा योगदान होता है, लेकिन सिगरेट में मौजूद निकोटीन आपके दांतों को पीला कर देता है. सिगेरट से दांतों पर दाग आ जाते हैं और धीरे-धीरे दांत अपनी चमक और असली रंग को खो देते हैं. इतना ही नहीं, धूम्रपान करने वाले न करने वालों की तुलना में लगभग 1.4 साल तक अधिक बड़े दिखते हैं, तो धूम्रपान त्‍वचा को स्‍वस्‍थ रखने वाले ऊतकों को रक्त की आपूर्ति करने में बाधा उत्‍पन्‍न करता है, जिसके परिणामस्‍वरूप आपके चेहरे पर झुर्रियां आने लगती है और आप उम्र से ज्यादा बड़े लगने लगते हैं. यह भी बेहद आश्चर्य की बात है कि धूम्रपान के आदी लोगों को दिल, फेफड़े, मस्तिष्क और सेक्स जीवन पर धूम्रपान के बुरे प्रभावों की काफी हद तक जानकारी है, बावजूद इसके वह अपने स्वास्थ्य हितों को 'सिगरेट के धुएं में जला डालते हैं'. यह 'स्मोकर्स' को पीला और बीमार कर सकता है तो आपके समग्र व्यक्तित्व को बिगाड़ सकता है. धूम्रपान कई प्रकार की दंत समस्‍याओं जैसे ओरल कैंसर और अन्‍य कई प्रकार के मसूड़ों के रोगों का कारण बनता है. 

तम्बाकू और धूम्रपान का असर इतना घातक है कि नशा छोड़ने के बाद भी इसका असर खत्म नहीं होता है, इसलिए बेहतर यही होगा कि नयी पीढ़ी को इसके चंगुल में फंसने से रोका जाए! यूनिवर्सिटी आफ सिडनी के शोधकों ने यह पाया है कि धूम्रपान आपके हवा नाल की ऊतकों में ऐसे बदलाव कर सकता है कि धूम्रपान छोड़ने के बाद भी वो 'क्षति' कई बार रूकती नहीं है, इसलिए स्मोकर्स अगर खुद को यह दिलासा देते हैं कि वह आज तो 'सिगरेट' पी लेते हैं, कल छोड़ देंगे, तो वह खुद को ही नुक्सान पहुंचा रहे होते हैं. एक आंकड़े के अनुसार, साल 2020 तक मौत के तीन मुख्य कारणों में से एक 'स्मोकिंग जनित' रोग बन जाएंगे. जैसाकि हम सभी जानते ही हैं कि 31 मई को तम्बाकू निषेध दिवस (World No Tobacco Day) मनाया जाता है. तो तम्बाकू के ऐसे भयावह दुष्परिणाम को देखते हुए हम ये दृढ निश्चय करें कि अपने और अपने प्रियजनों को इससे दूर रखेंगे. ये जिम्मेदारी हमारी है और इसे सिर्फ सरकार के भरोसे नहीं छोड़ा जा सकता है. हाँ, सरकार भी सिर्फ 'रेवेन्यू' के लालच में और इस तरह के उद्योगपतियों के दबाव से जितनी जल्दी बाहर आ जाए, उतनी जल्दी फायदा देशवासियों को पहुंचना शुरू हो जायेगा, इस बात में संशय नहीं!
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