समय समय पर चीन अपनी दोहरी नीति का प्रदर्शन करता ही रहता है. कुछ ही महीनों पहले जब भारत को एनएसजी (न्यूक्लियर सप्लायर ग्रुप) में प्रवेश के लिए अनेक देशों का साथ मिला, तब चीन समेत कुछ और देशों ने इसका कड़ा विरोध किया था, जिसके फलस्वरूप भारत एनएसजी की सदस्यता पाने से चूक गया. देखा जाय तो चीन ने जिस मुद्दे को लेकर भारत का विरोध किया था, बरसों से वह खुद वही काम कर रहा है. भारत के एनएसजी में प्रवेश के लिए चीन ने जिस परमाणु अप्रसार संधि (NPT) का रट्टा लगा रखा है, उसी का उल्लंघन करते हुए पाकिस्तान को न्यूक्लियर रिएक्टर्स मुहैया करा रहा है. अगर इस सम्बन्ध में गहराई से देखा जाय तो कोई भी NSG सदस्य देश दो परमाणु रिएक्टर्स उपलब्ध करा सकता है, जो परमाणु अप्रसार संधि के नियम का उल्लंघन होने के बावजूद भी मान्य हैं. लेकिन चीन ने नियमों को ताक पर रखते हुए (China Violates NPT, International Law) पाकिस्तान को पुरे 6 न्यूक्लियर रिएक्टर्स उपलब्ध कराये हैं. यह बात एक रिपोर्ट में पूरी तरह साफ़ हो चुकी है. जाहिर है चीन द्वारा नियमों के इस तरह का उल्लंघन घातक है, वह भी पाकिस्तान जैसे देश के साथ क्योंकि दुनिया का सबसे खतरनाक आतंकवादी ओसामा बिन लादेन वहां की सरकार के संरक्षण में छुपा हुआ था.
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विश्व समुदाय को समझना चाहिए कि अगर चीन पाकिस्तान को इस तरह की न्यूक्लियर सुविधाएं पहुंचा सकता है तो क्या गारंटी हैं कि उसकी सरकारी नीति उत्तर कोरिया जैसे देश को परमाणु हथियार विकसित करने में सहायता नहीं कर रही है. सब कुछ जानने समझने के बावजूद जिस प्रकार विश्व समुदाय चीन की हरकतों पर चुप्पी साढ़े हुए है, वह खतरनाक हैं. अगर गैर-एनपीटी भारत NSG में शामिल हो परमाणु अप्रसार के प्रयासों को जब चोट पंहुचा सकता था, तो क्या 2010 में एनपीटी रिव्यू कॉन्फ्रेंस में रखे प्रस्ताव का उल्लंघन करते हुए चीन NSG और NPT के परमाणु अप्रसार की सुरक्षा कर रहा है? बेशक नहीं! सच कहा जाए तो भारत के परमाणु अप्रसार का रिकॉर्ड चीन से कहीं ज्यादा साफ़ सुथरा है. जाहिर है, चीन के इस रवैये को NSG और NPT में बिलकुल भी अनदेखा नही करना चाहिए. ऐसे में चीन की इस तरह की हरकतों पर लगाम लगाने की आवश्यकता महसूस की जानी चाहिए. हालाँकि, जब अंतरराष्ट्रीय अदालत द्वारा दक्षिणी चीन सागर पर आये फैसले को चीन नहीं मान रहा है (China Violates NPT, International Law, South China Sea, Hindi Article) तो उसकी नीयत को लेकर अब कुछ और सोचना समझना बाकी नहीं रह जाता है. ऐसे में सवाल उठता है कि क्या परमाणु शक्ति के फैलाव की यूं खुली इजाजत चीन को दी जा सकती है?
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आर्म्स कंट्रोल असोसिएशन (एसीए) रिपोर्ट के अनुसार साफ तौर पर पाकिस्तान को परमाणु रिएक्टर्स देना एनपीटी के नियमों का उल्लंघन है, क्योंकि पाकिस्तान अंतरराष्ट्रीय परमाणु ऊर्जा एजेंसी (आईएईए) के मानकों को पूरा नही करता है. बताते चलें कि परमाणु अप्रसार संधि की घोषणा 1970 में हुई थी, जिसके अनुसार इस पर साइन करने वाले 187 देश अंतरराष्ट्रीय परमाणु ऊर्जा एजेंसी के देखरेख में परमाणु ऊर्जा का इस्तेमाल सिर्फ शांतिपूर्ण उद्देश्यों के लिए ही कर सकते हैं, साथ ही भविष्य में परमाणु हथियार भी विकसित नही कर सकते हैं. ज्ञातव्य हो कि एनपीटी के सहमति दस्तावेजों का उल्लंघन करते हुए 2013 में चीन-पाकिस्तान का चस्मा-3 परमाणु रिएक्टर के लिए समझौता हुआ. हालाँकि, दस्तावेजों में साफ-साफ अक्षरों में लिखा हुआ है कि आईएईए के निर्धारित मानकों को स्वीकार करने वाले देश को ही न्यूक्लियर मटीरियल और टेक्नोलॉजी ट्रांसफर किया जा सकता है. साफ़ तौर पर चीन अंतरराष्ट्रीय कानूनों को लंबे समय से धत्ता बताने की जुर्रत कर रहा है (China Violates NPT, International Law) और चूंकि इस पर रोक लगाने की मंशा नहीं दिखलाई जा रही है इसलिए उसके दुस्साहस का बढ़ना स्वाभाविक ही है. लेकिन चीन का कहना है कि यह समझौता उसने पाकिस्तान के साथ 2003 में किया था जबकि उसे एनएसजी की सदस्यता 2004 में मिली.
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- मिथिलेश कुमार सिंह, नई दिल्ली.
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