प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने लाल किले से अपने तीसरे भाषण में कई सारी बातें कहीं, लेकिन सबसे नया और दूसरे सभी मुद्दों पर भारी पाकिस्तान के बलूचिस्तान का ज़िक्र ही रहा. इस मुद्दे के असर का अगली पंक्तियों में विश्लेषण करेंगे, तब तक पीएम की कही अन्य बातों पर एक नज़र डालना ठीक रहेगा. इस क्रम में, भारत के मुख्य न्यायाधीश ने न्यायिक नियुक्तियों पर कुछ न कहने के लिए पीएम के भाषण की आलोचना की तो महिला सुरक्षा के मुद्दे पर भी पीएम ने कुछ ख़ास नहीं कहा. हालाँकि, पीएम ने कई सकारात्मक बातें भी कहीं और कहते हैं दुनिया सकरात्मक उम्मीदों पर ही टिकी है. आज़ादी के 70 साल पूरा (Prime Minister speech on Independence day, Hindi, 70th Function) होने के उपलक्ष्य में हमारे प्रधानमंत्री ने कुछ ऐसी उम्मीद भी बंधाई है देश वासियों को. 70वें स्वतंत्रता दिवस के अवसर पर लाल किले से अपने भाषण में बोलते हुए प्रधानमंत्री ने 'एक भारत, श्रेष्ठ भारत' के सपने पर ज़ोर दिया और साफ़-साफ़ कहा कि इसके लिए हर आदमी को अपनी जिम्मेदारी निभानी होगी. उम्मीदों के अनुरूप अपनी जोरदार भाषण शैली में उन्होंने देश का आह्वान किया कि 'अगर देश के पास समस्याएं हैं, तो सामर्थ्य भी है'. और इसलिए प्रधानमंत्री की यह उम्मीद कतई बेमानी नहीं नही है कि 'देश की यह ऊर्जा आने वाले वक्त में देश को प्रगति की नई ऊंचाई तक पहुंचाने में मदद करेगी'. अपनी लंबे धाराप्रवाह भाषण में जहाँ पीएम मोदी ने महात्मा गांधी, जवाहरलाल नेहरू और सरदार वल्लभभाई पटेल को आजादी के लिए किये उनके प्रयासों के लिए नमन किया, वहीं उन्होंने इसका श्रेय हर एक भारतीय को भी दिया.
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इसी क्रम में स्वराज को सुशासन में बदलने की बात के साथ-साथ पीएम मोदी ने अपने 2 साल के शासन काल में हासिल तमाम उपलब्धियों का ज़िक्र किया, मसलन कम से कम समय में आधार कार्ड बनना, पासपोर्ट और आयकर रिफंड की उपलब्धि, लगातार घाटे में चल रही एअर इंडिया को ऑपरेशनल मुनाफ़े वाली एयरलाइन बनाने में क़ामयाबी, एक मिनट में 15 हजार रेलवे टिकट मिलना संभव बनाना, सरकार के सभी बड़े अस्पतालों में ऑनलाईन रजिस्ट्रेशन, सोलर एनर्जी में 116 प्रतिशत की वृद्धि, 60 हफ्तों में 4 करोड़ गैस कनेक्शन देना, 1700 पुराने और अनुपयोगी कानूनों को रद्द करना, 21 करोड़ लोगों को जनधन योजना से जोड़ना जैसे कार्य शामिल हैं. अपनी भाषण में पीएम मोदी ने 2 करोड़ से ज्यादा शौचालयों (Prime Minister speech on Independence day, Hindi, Development Projects of Modi Government) का निर्माण, जिससे 70,000 से अधिक गांव खुले में शौच से मुक्त हुआ का ज़िक्र किया तो 13 करोड़ एलईडी बल्ब बांटने की बात का भी खासतौर पर ज़िक्र किया, जिससे कई हज़ार मेगावाट बिजली बचेगी. गौरतलब है कि साढ़े तीन सौ रुपये में बिकने वाले एलईडी बल्ब, सरकार की सब्सिडी से 50 रुपये में दिए जा रहे हैं. हालाँकि, एक अपुष्ट रिपोर्ट के अनुसार वितरित एलईडी बल्बों में से 30 फीसदी से अधिक बल्ब खराब होने की शिकायत भी आयी है, जिस पर हमारे पीएम साहब और प्रशासन को सोचना होगा, ताकि क्वालिटी पर कस्टमर चीत न हों! खैर, अपनी भाषण में पीएम ने महंगाई दर का भी ज़िक्र किया, जो 6 फीसदी से ऊपर नहीं गई, जबकि पहले की सरकारों में महंगाई दर 10 फीसदी से ऊपर चली गई थी. पीएम की इस बात से इतर, महंगाई पर जिस तरह 'अरहर मोदी' का नारा उछला, उससे केंद्र सरकार को सचेत हो जाना चाहिए, क्योंकि आने वाले दिनों में कई राज्यों में चुनाव हैं और उनमें 'महंगाई' एक प्रमुख मुद्दे के रूप में अपनी उपस्थिति बनाये रखने वाला है.
कश्मीर पर पीएम का रवैया सकारात्मक, साकार होगा 'अटल-स्वप्न'!
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नब्ज़ पकड़ने में माहिर प्रधानमंत्री ने अपने भाषण में इस अहम् मुद्दे 'महंगाई' पर भी खूब बोला और लोगों को आश्वाशन दिया कि वो जल्दी ही इसे काबू में कर लेंगे. यह एक सकारात्मक बात है कि पीएम को इस बात की खबर है कि पिछले 2 साल में दाल और सब्जियों के बढ़े दामों ने केंद्र सरकार की खूब किरकिरी कराई है! और जब आपको किसी बात की खबर होती है और आप उसका पब्लिकली ज़िक्र करने की हिम्मत भी रखते हैं, तो निश्चित रूप से आपके पास उस समस्या का हल निकालने की क्षमता भी होती है. उम्मीद की जानी चाहिए कि आने वाले दिनों में पीएम और उनकी टीम 'महंगाई' रुपी जिन्न (Prime Minister speech on Independence day, Hindi, Inflation, Government Policy) को काबू करने की तरकीब ईजाद कर लेगी! ऐसे ही, अपनी सरकार को गरीबों और किसानों की सरकार कहने वाले नरेंद्र मोदी पर पिछले दिनों आरोप लगे कि उन्होंने गरीबों कि थाली से खाना ही छिन लिया, वहीं किसानों को भी कुछ विशेष लाभ नहीं हुआ. इस मुद्दे पर प्रधानमंत्री ने 2022 तक किसानों की आय दोगुना करने पर जोर देने की बात कही और ये भी कहा कि अगले साल तक दलहन की पैदावार को डेढ़ गुना बढ़ा कर दाल के बढ़े कीमतों पर अंकुश लगाया जायेगा. हालाँकि, पीएम किसानों की आय 2022 तक किस प्रकार दूना करेंगे, इसका ज़िक्र करना भूल गए और इसलिए उनके आलोचक उनकी इस बात को 'जुमला' कहने से चूक नहीं रहे हैं. इसमें समझने वाली बात यह है कि किसानों और गरीबों की समस्या कोई एक दिन की नहीं है, तो इसे दुरुस्त करने में भी लंबा समय लगेगा. जिस मजबूती से प्रधानमंत्री ने उम्मीद बंधाई है इससे जरूर ही किसान भाईयों को थोड़ी राहत मिली होगी, पर उनकी समस्या पर वास्तव में किस स्तर से ध्यान दिया जाएगा, इसे लेकर उनकी मनः स्थिति में भारी कन्फ्यूजन है. इन सब बातों के अलावा, पीएम से पाकिस्तान-नीति पर बोलने की उम्मीद भी की जा रही थी, जो उन्होंने पूरा भी किया.
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पडोसी देश पाकिस्तान का नाम लिए बगैर प्रधानमंत्री ने उस पर जम कर निशाना साधा और साफ़ शब्दों में कहा कि जब पेशावर में आतंकवादियों ने निर्दोष बच्चों की हत्या की तब समूचे भारतवासियों की आँखों में आंसू थे, लेकिन आज उन्हीं लोगों के द्वारा आतंवादियों का महिमा मंडन किया जा रहा है. छुपे शब्दों में उन्होंने पाकिस्तान को नसीहत भी दी कि लड़ना ही है, तो गरीबी से लड़ो. न केवल नसीहत, बल्कि अपनी भाषण में पीएम ने सख्त चेतावनी देते हुए कहा कि देश आतंकवाद, माओवाद या किसी तरह की हिंसा बर्दाश्त नहीं करेगा. कश्मीर में जारी घटनाक्रम पर पीएम ने भटके हुए नौजवानों से कहा कि हिंसा का रास्ता छोड़कर (Narendra Modi, Red Fort Speech, Lal Quila, Analysis, Baluchistan, Avoid Violence, Terrorism) लौट आएं और देश को आगे बढ़ाने की दिशा में काम करें. ऐसे ही, पिछले कुछ दिनों से हो रहे दलितों अत्याचार के मुद्दे को भी पीएम ने उठाया और रामानुजाचार्य का उदाहरण देते हुए कहा कि किसी का भी उम्र और जाति के कारण अनादर न करो. महात्मा गांधी और अम्बेडकर आदि सभी ने सामाजिक एकता की बात कही है, इसलिए हम सबको सामाजिक बुराइयों के ख़िलाफ़ लड़ना होगा. पीएम ने साफ़ तौर पर सोशल ईविल के खिलाफ आवाज उठायी और कहा कि 'ऐसा होता है, चलता है' कहने से काम नहीं चलेगा और हमें सामाजिक बुराइयों के प्रति हर हाल में सजग रहना होगा. पीएम ने इस बात की पुष्टि करी कि सिर्फ़ आर्थिक प्रगति हिंदुस्तान की प्रगति की गारंटी नहीं है, बल्कि सामाजिक न्याय से ही सशक्त देश का निर्माण होता है. सबसे अधिक आश्चर्य और पीएम के लाल-किले से उठाये गए जिस मुद्दे की चर्चा चहुंओर हो रही है, वह उनके 'बलूचिस्तान' और पाक अधिकृत कश्मीर, गिलगित-बल्तिस्तान' मुद्दे को उठाना है.
'देशद्रोह' के प्रति कड़े विरोध की सामाजिक जरूरत!
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पाकिस्तान के इन प्रदेशों का ज़िक्र लालकिले से शायद पहली बार हुआ है. मोदी ने कहा कि इन जगहों से सम्बंधित लोगों ने मेरा आभार जताया है. पीएम ने इस सम्बन्ध में आगे कहा कि दूरदराज़ बैठे लोग हिंदुस्तान के प्रधानमंत्री का आदर करते हैं तो ये मेरे सवा सौ करोड़ देशवासियों का सम्मान है. मैं उन लोगों का आभार जताना चाहता हूं." बताते चलें कि प्रधानमंत्री मोदी के इस भाषण के बाद बलूचिस्तान में आंदोलन चला रहे लोगों ने उनकी सराहना की है. पाकिस्तान में इस बयान से जो हलचल मची सो मची, हिंदुस्तान में भी विपक्षी कांग्रेस के कान खड़े हो गए. पूर्व विदेश मंत्री सलमान खुर्शीद ने पीएम के 'बलूचिस्तान ज़िक्र' को देशहित के खिलाफ और गैर-जिम्मेदाराना कदम बताया तो कांग्रेस ने उनके बयान को निजी बताते हुए पीएम के बयान से सहमति व्यक्त की. पीएम के इस तीर की आतंरिक राजनीति में पड़ने वाले असर को कुछ यूं समझा जा सकता है कि राज्यसभा में विपक्ष के नेता गुलाम नबी आजाद, पूर्व विदेश मंत्री सलमान खुर्शीद (Narendra Modi, Red Fort Speech, Lal Quila, Analysis, Baluchistan, Salman Khursheed, Congress reaction) और यूपीए सरकार में मंत्री रहे राजीव शुक्ला ने बलूचिस्तान पर अलग-अलग बयान दिए. बलूचिस्तान के मुद्दे पर गुलाम नबी आजाद ने कन्नी काटने की कोशिश की, सीधे जवाब देने के बजाए उन्होंने कहा कि फिलहाल मुद्दा बलूचिस्तान नहीं कश्मीर है, जहां 37 दिनों से कर्फ्यू लगा है. वहीं यूपीए सरकार में मंत्री रहे राजीव शुक्ला ने प्रधानमंत्री के बलूचिस्तान पर दिए बयान को सही ठहराया, लेकिन यह भी जोड़ दिया कि यह नीति कांग्रेस की नरसिम्हा राव सरकार की रही है. नेताओं की बयानबाजी के बाद कांग्रेस को लगा कि सियासी तौर पर सलमान का बयान उसके लिए नुकसानदेह साबित हो सकता है, क्योंकि मोदी के बयान का आगे जो होगा सो होगा, लेकिन अभी भारतीय जनमानस में इसका सटीक प्रभाव ही पड़ा है. ऐसे में कांग्रेस के मीडिया प्रभारी रणदीप सुरजेवाला ने कहा कि सलमान खुर्शीद का बयान पार्टी का बयान नहीं है, यह उनका निजी बयान है.
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साफ़ है कि पीएम मोदी ने पाकिस्तान के बलूचिस्तान वाले मुद्दे को छेड़कर अपनी 56 इंची सीने वाली बात याद दिला दी है, जिसे जनता ख़ासा पसंद भी करेगी. मुश्किल यह है कि बलूचिस्तान का मुद्दा उठाने भर से ही मतलब नहीं है, बल्कि वहां के नेताओं को अब नैतिक समर्थन देने की जिम्मेदारी भी आ जाएगी. क्या वाकई, भारत इस तरह की राजनीति के लिए तैयार है या पीएम ने बस एक 'हवाई जुमला' ही फेंका है. हो सकता है कि घरेलु राजनीति में नरेंद्र मोदी को इस मुद्दे से फायदा हो जाए, ठीक वैसे ही जैसे नवाज शरीफ़ पाकिस्तान की घरेलु राजनीति में अपनी स्थिति को मजबूत करने के लिए कश्मीर मुद्दे को अनावश्यक तूल देते रहते हैं, किन्तु इन दोनों नेताओं की 'कश्मीर और बलूचिस्तान' को तूल देने से साउथ एशिया की राजनीति में नकारात्मकता ही बढ़ेगी. हालाँकि, इसके लिए सीधे-सीधे पाकिस्तान का 'कश्मीरी उतावलापन' ही जिम्मेदार है. अगर पाकिस्तान के प्रधानमंत्री नवाज़ शरीफ़ कश्मीर में जारी तनाव और हिंसा को लेकर इतने बयान न देते, अभियान न चलाते तो भारत को इस तरह का स्टैंड लेने की ज़रूरत शायद ना पड़ती (Narendra Modi, Red Fort Speech, Lal Quila, Analysis, Baluchistan, Nawaj Shariff, Kashmir issue)." लाल किले से पीएम का यह भाषण निश्चित रूप से आने वाले दिनों में घर असर छोड़ेगा, तो सलमान खुर्शीद का एक हिस्सा भी यहाँ गौर करने लायक है, जिसमें पूर्व विदेश मंत्री ने कहा कि विदेश नीति कोई गुल्ली डंडे का खेल नहीं कि आपने एक डंडे से किसी को गोली मारी, माफी मांग ली और बात खत्म हो गई.
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प्रधानमंत्री को एक बार फिर से पाकिस्तान पर अपनी नीति पर विचार करना चाहिए. ऐसा नहीं चलेगा कि कभी आप अपने शपथ ग्रहण में नवाज शरीफ को बुलाएं और फिर अचानक उनसे मिलने पाकिस्तान चले जाएं और बाद में हमलावर हो जाएं. साफ़ ज़ाहिर है कि मोदी सरकार की पाकिस्तान नीति में स्थिरता की कमी है और 'बलूचिस्तान मुद्दे' का ज़िक्र शायद इस अस्थिरता को ही बढ़ाये, पर कई बार कूटनीति में आपके पास कोई और विकल्प नहीं होता और जिस तरह से पाकिस्तान ने 'कश्मीर' पर आक्रामकता दिखलाई, उसके बाद भारत के पास कोई और विकल्प था भी नहीं. वैसे, विदेश नीति में आपके पास विकल्प न हों, यह भी कोई बेहतरीन परिस्थिति नहीं है और उम्मीद की जानी चाहिए कि महंगाई, जजों की नियुक्ति, महिला-सुरक्षा जैसे विषयों के साथ भारत की पाकिस्तान-नीति में 'विकल्पहीनता' की स्थिति का नरेंद्र मोदी प्रशासन को पूरी तरह भान होगा और इस तरह की जानकारी होने की दशा में ही शायद कुछ कार्य करने की स्थिति भी बने! क्या कहते हैं आप ... !!!
- मिथिलेश कुमार सिंह, नई दिल्ली.
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