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'देशद्रोह' के प्रति कड़े विरोध की सामाजिक जरूरत! National Anthem ban in school, Allahabad Muslim School, Hindi Article, New, Social Resistance needed



21वीं सदी के दुसरे दशक में भारत बेशक विश्व पटल पर कई उपलब्धियां हासिल कर चुका हो, किन्तु इसके साथ-साथ सहिष्णुता, असहिष्णुता, गाय-बीफ, भारत माता की जय, वंदे मातरम जैसे विवादों को सुलझाने में भी खासा समय लग रहा है. ऐसे विवादों का मूल कारण है जातीय कट्टरता और साम्प्रदायिक सोच! पिछले दिनों बॉलीवुड अभिनेता आमिर खान और शाहरुख़ खान का भारत में असहिष्णुता के बयान पर काफी विवाद हुआ था, तो मार्च 2016 में  'हिंदुस्तान जिंदाबाद' और 'जय हिन्द' के नारे लगाने वाले ऑल इंडिया मजलिस-ए-इत्तेहादुल मुस्लमीन प्रमुख और हैदराबाद से लोकसभा सदस्य असदुद्दीन ओवैसी ने 'भारत माता की जय' (Bharat Mata ki jai) बोलने पर विवाद खड़ा कर दिया था. साफ़ जाहिर है कि ऐसे मामलों में सरकार से ज्यादा रोल समाज के विरोध का है, वह भी शांतिपूर्ण तरीके से! अगर देश ही नहीं रहा, वतन ही नहीं रहा तो फिर हम और हमारा धर्म, जाति कहाँ के रह सकेंगे. साफ़ ज़ाहिर है कि हर हाल में वतनपरस्ती हमारा सब कुछ होना चाहिए, हर चीज से ऊपर! तमाम विवादों से गुजरते हुए एक नया देशद्रोह-सदृश मामला सामने आया है, जो चर्चा का विषय बना हुआ है. बताते चलें कि उत्तर प्रदेश के इलाहाबाद में एक स्कूल में राष्ट्रगान गाने पर पाबन्दी (National Anthem ban in school, Allahabad Muslim School, Hindi Article) लगी है. शायद भारत का यह पहला ऐसा स्कूल होगा जिसमें राष्ट्रगान नही गाया जाता है और दुःख की बात तो यह है कि इसके लिए भी धर्म का सहारा लिया गया है. 

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हर मामले में 'धर्म' घुसेड़े जाने से हमारे भारत की आत्मा कराह देती है, किन्तु वह कर भी क्या सकती है, आखिर अपने बच्चे ही तो हैं. गौरतलब है कि इलाहाबाद के एमए कान्वेंट स्कूल में पिछले 12 साल से राष्ट्रगान नही गाया गया है, लेकिन यह बात तब सामने आई जब स्कूल-प्रबंधन द्वारा स्कूल के प्रधानाध्यापक और शिक्षकों को इसी मुद्दे पर स्कूल से निकाल दिया गया. इस स्कूल से निकाले गए शिक्षकों ने छात्रों से 15 अगस्त की तैयारी में राष्ट्रगान गाने को कहा था. जिस आज़ादी के लिए हिन्दू-मुसलमान और हर धर्म-जाति के लोग फांसी के तख्तों पर झूल गए, उसी देश में केजी से आठ तक के इस गैर मान्यता प्राप्त स्कूल में छात्रों को राष्ट्रगान (जन गन  मन ) के बारे में कुछ पता नही होना हमारी बौद्धिक दरिद्रता (National Anthem ban in school, Hindi Article, Social Responsibility) ही तो दिखलाता है. ऊपर से इसके पीछे स्कूल प्रबंधन का तर्क सुनेंगे तो क्रोध, दुःख और हंसी का मिश्रण ही उत्पन्न होगा. इस स्कूल में राष्ट्रगान नही गाने का जो कारण बताया गया है, उसमें 'भारत भाग्य विधाता' का होना है, क्योंकि यह स्कूल प्रबंधक जियाउल हक के अनुसार उनके धर्म इस्लाम के खिलाफ है. इसीलिए जियाउल हक ने खास तौर पर मुस्लिम छात्रों को राष्ट्रगान गाने के लिए मना किया था. अब ऐसे में खुद मुसलमान बंधुओं को इस तरह की नालायक हरकत के खिलाफ आवाज उठानी चाहिए थी और यह ख़ुशी की बात है कि फेसबुक पर कुछेक बौद्धिक मुसलमानों ने इसकी आवाज उठायी भी! एक बुद्धिजीवी मुसलमान ने अपने फेसबुक पर लिखा कि-
"मेरे मज़हब से ना तौल वतन से मोहब्बत मेरी  
सजदा भी करता हूँ तो जमीं चूमता हूँ मै...!! "

आगे इसकी व्याख्या उन्होंने कुछ यूं कि-
इलाहाबाद में किसी बेवकूफ मुसलमान ने अपने स्कूल के बच्चों को 'जन गण मन' गाने से मना कर दिया. ऐसे लोगों की हरकत को सिरे से नकार कर टाइट करना चाहिए, क्योंकि देश से ऊपर कुछ भी नहीं होता. देश नहीं होगा तो हमारा अस्तित्व भी नहीं रहेगा. उन महोदय ने आगे लिखा कि 'राष्ट्रगान, गाते वक्त मेरे जिस्म के रोएं खड़े हो जाते हैं. एक मुसलमान होने के कारण मैं, मेरे अल्लाह के सिवा किसी को पूज्यनीय नहीं मानता लेकिन देश, जहां मैंने जन्म लिया है, जिसकी माटी मेरे जिस्म पर चुपड़ी है, और जिस मिट्टी में दफ्न हो जाना है उसके प्रति आदर और सम्मान में तनिक भी कमी नहीं कर सकता. देश के लिए जान भी देनी पड़े तो मैं पीछे नहीं हटूंगा. भारत की कल्पना मेरे लिए किसी भारत माता की तस्वीर भर नहीं है, बल्कि भारत मेरे नज़दीक मेरा मुल्क है, मेरा ठिकाना है, मेरी सरज़मीं है. अगर भारत न होता तो मैं न होता, हममें से शायद कोई भी न होता. अपनी इस पोस्ट की अंतिम लाइन में उन महोदय ने लिखा कि "मौका मिला तो उस स्कूल के गेट पर जा कर राष्ट्रगान को ऊंची आवाज़ में गाऊंगा जहां उसे गाने पर रोक लगाने की बात सामने आई है."
साफ़ जाहिर है कि ऐसी हरकतों का कहीं कोई औचित्य नहीं है. जो इस्लाम को मानते हैं, वह मानें पर जबरदस्ती का देशभक्ति और देशप्रेम के प्रतीकों के खिलाफ कार्य करना तो 'देशद्रोह' की ही श्रेणी में आना चाहिए. 

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वैसे भी, वह इस्लामिक स्कूल, बिना पंजीयन के 12 साल यानि एक दशक से अधिक समय से चल रहा है, किन्तु आश्चर्य है कि प्रशासन की नजर इस पर नही पड़ी, जबकि प्रशासनिक कार्यालय से यह विद्यालय काफी नजदीक है. समाज के साथ प्रशासन को भी इस तरह की गतिविधियों की सूचना होनी चाहिए, अन्यथा यही बातें धीरे-धीरे बढ़ते हुए देशद्रोह और अंततः तनाव का कारण बन जाती हैं. हालाँकि, अब शायद उस स्कूल के खिलाफ प्राथमिकी दर्ज कर ली गयी है, किन्तु सवाल उठता है कि यही कार्य पहले क्यों नहीं किया जाता है? छात्रों के परिजनों को भी इस तरह के वाकयों की पड़ताल करनी चाहिए कि उनका बच्चा जहाँ जा रहा है, कहीं वहां उसे देशद्रोह का पाठ (National Anthem ban in school, Hindi Article, Care for your child, Guardian Responsibility) तो नहीं पढ़ाया जा रहा है. आज वैसे भी चरमपंथी यहाँ वहां अपनी कारगुजारियों को अंजाम दे रहे हैं और अगर ऐसे में अभिभावक अपनी नज़रों को उन पर नहीं रखेंगे तो पता चलेगा कि उनके बच्चे 'इस्लामी स्टेट' में भर्ती होने के लिए निकल गए हैं. देश-दुनिया में ऐसी कई वाकये  सामने आ चुके हैं, जहाँ माँ-बाप को कुछ पता ही नहीं है और उनके बच्चे, चरमपंथियों के बहकावे में आकर गलत रास्ते पर निकल जाते हैं. सरकार इस तरह के मामलों में जो करे सो करे, किन्तु समाज के लोग ऐसे मामलों को कतई अनदेखा न करें और चरमपंथ और देशद्रोह की बू मिलते ही उसका नैतिक और कानूनन विरोध अवश्य करें!

- मिथिलेश कुमार सिंह, नई दिल्ली.




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