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भारत में मिरगी पुरानी बीमारियों में से है, जिसे नए जमाने के अंधविश्वासी लोग भी देवी-देवताओ का प्रकोप या फिर जादू-टोना मानते हैं. ऐसी स्थिति में, मरीज की परेशानी घटने की बजाय और बढ़ जाती है. यदि तार्किक ढंग से देखा जाए तो, मिर्गी सामान्यतः एक दिमागी बीमारी है, जिसका इलाज अब आसानी से उपलब्ध हैं. यही जानकारी लोगों तक पहुंचाने के लिए 17 नवंबर को देश भर में राष्ट्रीय मिरगी दिवस मनाया जाता है और लोगों को इसके प्रति जागरूक किया जाता हैं. अगर डॉक्टरी भाषा में बात करें तो, मिरगी दिमाग की नसों से जुड़ी बीमारी है, जिसे चिकित्सा विज्ञान में न्यूरॉजिकल डिस्ऑर्डर कहते हैं. इसी क्रम में, इस बीमारी को अपस्मार और ऐपिलेप्सी (National Epilepsy Day, Health is wealth) के नाम से भी जानते हैं. आमतौर पर इसमें मरीज को 30 सेकेंड से लेकर 2 मिनट तक का दौरा पड़ता है, जिसके दौरान मरीज अपनी सुध-बुध खोकर बेहोशी की हालत में होता है. इसमें दिमागी संतुलन खोने के साथ ही इसका असर शरीर के किसी एक हिस्से पर कुछ ज्यादा ही दिखने लगता है, जैसे चेहरे, हाथ या पैर पर! इसके दौरे पड़ने पर मरीज का बेहोश हो जाना, दांत भिंच जाना, शरीर लडख़ड़ाना, मुंह से झाग निकलना समान्य बात है. ऐसे समय मरीज को तुरंत इलाज की जरूरत पड़ती है. कई लोग ऐसे समय मरीज को 'गंदे मोज़े' सुंघाते हैं, जो बिलकुल गलत प्रक्रिया है, बल्कि ऐसे समय मरीज को तत्काल इलाज की आवश्यकता होती है.
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यदि इसके कुल मरीजों के संख्या की बात करें तो विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यूएचओ) के आंकड़ों के अनुसार पूरी दुनिया में आज भी 5 करोड़ लोग इससे ग्रसित हैं, जिसमें 20 फीसदी मरीज भारत में हैं. मरीज की पहचान की बात करें तो, यदि किसी को दो बार दौरा पड़ चुका है तो, वह मिर्गी का मरीज हो सकता है. इसी क्रम में, कुछ लोगों का ऐसा भी मानना होता है कि इंफेक्शन वाला पोर्क, बीफ और पालक तथा बंदगोभी जैसी हरी पत्तेदार सब्जियों के खाने से दिमाग में कीड़ा चले जाते हैं जो मिरगी का कारण हो सकता है, पर यह धारणा पूरी तरह से गलत है. देखा जाए तो दिमाग में ट्यूमर, टीबी और धमनियों में गुच्छे के संकेत हैं जो बच्चों में बुखार, दिमाग का सही विकास न हो पाने, ब्रेन इंजरी, ब्रेन में इंफेक्शन और ट्यूमर की वजह से होता है. इस सम्बन्ध में, विशेषज्ञों का कहना है कि, 'हमारे दिमाग में इलेक्ट्रिक एक्टिविटी चलती रहती है, लेकिन जब यह एक्टिविटी या इलेक्ट्रिक डिस्चार्ज बढ़ जाता है तो झटके लगने या बेहोशी की दिक्कत आती है.' इस सम्बन्ध में यह बात समझनी चाहिए कि यदि किसी को दौरे पड़ते हैं, लेकिन फिर भी उसको लगता है कि उसको मिर्गी (National Epilepsy Day, Health is wealth) की बीमारी नहीं है, तो मरीज को बीमारी का पता लगाने के लिए एमआरआई, सीटी स्कैन जैसे टेस्ट करा सकते हैं. इसके जरिये दिमाग की आंतरिक गतिविधियों को देखा जा सकता है, जिससे बीमारी की पुष्टि करना आसान हो जाता है. अगर मिर्गी के लक्षणों की बात करें तो मरीज के मुंह का स्वाद बदल जाता है, आँखों में दर्द होने के साथ-साथ धुंधला दिखाई देता है, तो मांसपेशियों में फडफ़ड़ाहट भी हो सकती है. इतना ही नहीं हाथ-पैर लडख़ड़ाने, जबड़ा भिंच जाने और पेशाब निकल जाने जैसे लक्षण भी इसमें आम होते हैं. दिलचस्प बात यह है कि कई बार मरीज अपना दौरा पड़ने वाली बात भी भूल जाता है और अगर आप उससे बाद में पूछेंगे तो वह साफ़ इंकार कर देगा कि उसे कोई दौरा भी आया था!
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मिर्गी के दौरे में सबसे समान्य बात बेहोश होना है. कई बार लोगों में मिर्गी होने का पता भी नहीं चलता है, जिसके लिए 'इडियोपैथिक ऐपिलेप्सी में टेस्ट करना पड़ता है. कुछ लोगों में यह आनुवांशिक (National Epilepsy Day, Health is wealth) भी होती है, लेकिन राहत की बात यह है कि अब इसका इलाज संभव है और हर एक मरीज को बिना किसी हिचकिचाहट के इलाज के लिए जाना चाहिए. कई मरीज जान-बूझकर अपने रोगों को छुपाते है, जो बाद में खुद उनके लिए ही घातक हो जाता है. देखा जाय तो 60-70% मरीज दवा से ठीक हो जाते हैं, जबकि 30% मरीजों को ठीक करने के लिए सर्जरी करनी पड़ती है. अधिकांश मरीजों को लगातार 3 साल दवा लेने के बाद यह रोग हमेशा के लिए बंद या कंट्रोल हो जाता है, लेकिन कई मरीज को जीवनभर दवा लेने की जरूरत होती है. जाहिर है, ऐसे में डॉक्टर की सलाह का नियमित पालन ही लाभकारी रहता है. यहाँ यह बात ध्यान रखी जानी चाहिए कि यदि किसी मरीज को दौरा पड़ता है, तो बिलकुल भी न घबराएँ. बल्कि, मरीज को नियंत्रित करने की बजाय यदि कोई ऐसी वस्तु आस-पास पड़ी है, जिससे उसे हानि हो सकती है, तो उसको वहां से हटा दें. ऐसे में, मरीज का कपडा ढीला-ढाला होना चाहिए. ऐसे में, मरीज को एक तरफ ही लिटाएं, जिससे उसके मुंह से निकलने वाला किसी भी तरह का तरल पदार्थ सुरक्षित रूप से बाहर आ सके. जीभ बाहर निकलने के डर के कारण, उसके मुंह में कुछ भी न डालें तो मरीज को अकेला नहीं छोड़ें, अन्यथा वह खुद को ही नुक्सान पहुंचा सकता है. उसके सिर के नीचे कुछ आरामदायक वस्तुएं रखें और उसे आराम करने या सोने दें.
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यह बेहद जरूरी है कि नियमित रूप से रोगी चिकित्सक की सलाह के अनुसार दवा लेता रहे, समान्य होने के बाद भी. इस रोग में सबसे खास बात यह है कि मरीज को कोई भी नशे वाले पदार्थ का सेवन नहीं करना चाहिए, क्योंकि इसके सेवन से दौरा पड़ने की संभावना बढ़ जाती है. इस रोग में किसी प्रकार की असामान्य बात नहीं है और यह भी दूसरी बिमारियों की तरह ही है, लेकिन कुछ लोग इसे भेदभाव का कारण बना लेते हैं, जैसे किसी लड़की की शादी में दिक्कत आने लगती है, लेकिन डॉक्टरों के अनुसार, इसमें कुछ भी समस्या वाली बात नहीं होती है तो कानून भी कड़ाई से भेदभाव का विरोध करता है. बताते चलें कि दुनिया के सर्वश्रेष्ठ फील्डर कहे जाने वाले साउथ अफ्रीका के क्रिकेटर रहे जोंटी रोड्स मिर्गी (National Epilepsy Day, Health is wealth) से पीड़ित रहे हैं, लेकिन वह अपने क्षेत्र में पूरे विश्व में सर्वश्रेष्ठ रहे हैं. इसी तरह मिरगी के बावजूद टोनी ग्रेग क्रिकेट के मैदान से कमेंट्री बॉक्स तक तहलका मचा सकते हैं, तो फिर कोई भी आम आदमी इससे आसानी से लड़ सकता है. बस जरूरत है सही जानकारी और सही समय पर उपचार की. और हाँ, मरीज की देखभाल और उसका सपोर्ट करने से बड़ा तो कोई अस्त्र हो ही नहीं सकता, क्योंकि इससे उसे मानसिक ताकत मिलती है और रोगों से लड़ने की उसकी ताकत दोगुनी हो जाती है. आइये, इस राष्ट्रीय मिर्गी दिवस पर हम इस रोग से पीड़ित मरीजों की सही देखभाल का संकल्प व्यक्त करें और इसी से हमारा देश मिर्गी रोग से मुक्त हो सकता है.
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