आतंकियों के भाषण, तक़रीर से हेडली जैसे मुसलमानों का ब्रेनवाश किस कदर होता है, अगर किसी को यह समझना हो तो उसे वीडियो कांफ्रेंस द्वारा भारतीय अदालत को दिए गए बयान को जरूर ही सुनना चाहिए. खुलेआम हाफिज सईद, अज़हर मसूद और दुसरे ऐसे आतंकी, पाकिस्तानी आवाम का ब्रेनवाश तो कर ही रहे हैं, इसके साथ ही साथ वह पाकिस्तान को लगातार फेल स्टेट भी घोषित करते जा रहे हैं. हाल ही में आयी पाकिस्तानी संसद की विदेशी मामलों की स्थायी संसदीय समिति ने कहा है कि पाकिस्तान सरकार उन आतंकवादी गिरोहों को ज़रा भी प्रोत्साहित न करे, जो कश्मीर के नाम पर आतंकवाद फैलाते हैं. इस संसदीय समिति की अध्यक्षता कर रहे अवैस अहमद लघारी पाकिस्तान के पूर्व राष्ट्रपति फारुक लघारी के पुत्र हैं. आश्चर्य तो यह है कि अवैस लघारी की इस रिपोर्ट का समर्थन मियां नवाज़ की मुस्लिम लीग और आसिफ ज़रदारी की पीपल्स पार्टी भी कर रही है, मगर कुछ बदलाव यथार्थ रूप में परिणित हो, ऐसा कदापि नहीं दिख रहा है. मुंबई हमला और उसके बाद पठानकोट हमले में भारतीय पक्ष द्वारा दिए गए सुबूत को बार-बार झुठलाने वाली पाकिस्तानी सरकार आखिर इस बाबत क्या कहेगी कि उसी की पाकिस्तानी संसद ने यह माना है कि पाकिस्तान की सरकार हिंसक गतिविधियों को प्रोत्साहित करती रही है. अंतर्राष्ट्रीय समुदाय के बीच इस तथ्य से पाकिस्तान की पोल खुली ही थी कि हेडली की सार्वजनिक स्वीकारोक्ति, वह भी दूर देश में बैठे हुए वगैर भय के स्वीकारोक्ति ने पूरी दुनिया के सामने पाकिस्तान का आतंकपरस्त चेहरा उजागर कर दिया है. वैसे तो पाकिस्तान के कान पर किसी बात को लेकर जूं रेंगती नहीं है, लेकिन इस बार ऐसा प्रतीत होता है कि उसे आतंकी पनाहगारों को स्थान देने के मामले में जवाब देना मुश्किल पड़ने वाला है.
लश्कर ए तैयबा का पाकिस्तानी-अमेरिकी सदस्य डेविड हेडली 26/11 मामले में सरकारी गवाह बनाये जाने के बाद वीडियो लिंक के जरिए अदालत के समझ पेश हुआ और उसने साफ़ कहा कि वह 2008 में मुंबई में किये गये हमलों से पहले सात बार भारत आया था और लश्कर में उसका मुख्य संपर्क साजिद मीर के साथ था. गौरतलब है कि मीर भी इस मामले में एक आरोपी है तो हेडली पहली बार अदालत के समक्ष पेश हुआ है. अपने सनसनीखेज बयान में हेडली ने कहा कि वह ‘लश्कर का कट्टर समर्थक' था और वह कुल आठ बार भारत आया था. अदालत में फिलहाल मुख्य साजिशकर्ता सैयद जबीउद्दीन अंसारी उर्फ अबू जिंदाल पर मुकदमा चल रहा है. अब सबसे बड़ा सवाल यह है कि इतने बड़े खुलासे के बाद क्या पाकिस्तान अपने आतंकी आकाओं पर कार्रवाई करने के लिए प्रेरित होगा. क्या उसे अपने राष्ट्र की परवाह ज़रा भी होगी, अथवा वह दूसरों के घर में आग लगाते लगाते अपने यहाँ भी पेशावर आर्मी स्कूल और बाचा खान यूनिवर्सिटी जैसी आग लगाता रहेगा! हेडली के सन्दर्भ में, विशेष सरकारी अभियोजक उज्ज्वल निकम ने कहा, भारतीय कानून के इतिहास में पहली बार कोई विदेशी आतंकवादी किसी भारतीय अदालत में पेश होगा और बयान देगा. निकम ने यह भी कहा कि 26/11 के हमले के पीछे के कई तथ्यों को सामने लाने के लिए हेडली की गवाही बेहद महत्वपूर्ण है. गौरतलब है कि मुंबई आतंकी हमलों में 166 लोग मारे गये थे और 309 घायल हो गए थे. और अब जबकि हेडली ने अपना बयान दे दिया है, तो इस मामले में पाकिस्तान की भूमिका शीशे की तरह साफ़ उजागर हो गयी है. इस सन्दर्भ में अगर पीछे के तथ्यों को टटोलें तो, अदालत ने 10 दिसंबर, 2015 को हेडली को सरकारी गवाह बनाया था और उसे आठ फरवरी को अदालत के समक्ष गवाही देने का निर्देश दिया था. फिलहाल मुंबई हमलों में अपनी भूमिका को लेकर अमेरिका में 35 साल की कैद की सजा काट रहे हेडली ने विशेष न्यायाधीश जी ए सनप से कहा था कि अगर उसे माफ किया जाता है तो वह गवाही देने को तैयार है.
न्यायाधीश ने हेडली को कुछ शर्तों के आधार पर सरकारी गवाह बनाया था और उसे माफी दी थी. आतंकवादी हमलों में शामिल होने के मामले में अमेरिका में 35 वर्ष के कारावास की सजा भुगत रहे हेडली ने यह भी कहा कि उसने 2006 में अपना नाम दाउद गिलानी से बदलकर डेविड हेडली रख लिया था ताकि वह भारत में प्रवेश कर सके और यहां कुछ कारोबार स्थापित कर सके. हेडली ने यहां अदालत से कहा, ‘मैंने फिलाडेल्फिया में पांच फरवरी 2006 को नाम बदलने के लिए आवेदन किया था. मैंने नये नाम से पासपोर्ट लेने के लिए अपना नाम बदलकर डेविड हेडली रख लिया. मैं नया पासपोर्ट चाहता था ताकि मैं एक अमेरिकी पहचान के साथ भारत में दाखिल हो सकूं.' अब सवाल यह है कि क्या क्या इन समस्त खुलासों के बाद पाकिस्तान पर रत्ती भर भी अपनी आतंक-नीति को लेकर दबाव पड़ेगा अथवा वह अपना टालू रवैया जारी रखेगा. अब चूँकि हेडली जैसा महत्वपूर्ण गवाह भारतीय एजेंसियों के पास भी नहीं है, जिससे पाकिस्तान यह आरोप लगा सके कि उसने दबाव या डर से यह बयान दिया है. पर इन समस्त कवायदों से कुछ निकालकर आएगा, इस बात में शायद ही किसी को कुछ उम्मीद हो! वो कहते हैं न कि 'भैंस के आगे बीन बजाओ... भैंस चले पगुराय'! या फिर 'सांप को कितना भी दूध पिलाओ, वक्त आने पर वह अपनी औकात दिखा ही देगा'! काश कोई भी पाकिस्तानी अपने राष्ट्र की परवाह करे और हेडली की गवाही की मुख्य बातों से अपने लिए निष्कर्ष निकाले, जो किसी अंधे को भी समझ आती हैं. उसने कहा कि, वह लश्कर-ए-तैयबा का एक सच्चा अनुयायी था. (अर्थ: पाकिस्तान में एक बड़ी जनसंख्या इसी रास्ते पर है!).
उसने यह भी बताया कि साजिद मीर (लश्कर-ए-तैयबा) चाहता था कि वह भारत में कुछ व्यापार करे और एक ऑफिस खोले. (अर्थ: आतंक के तमाम संगठित रूप पाकिस्तान में गली-गली हैं!). नया पासपोर्ट मिलने के बाद वह आठ भारत भारत गया, जिसमें से सात बार मुंबई गया, साथ ही साथ उसे हाफिज सईद के कहने पर ISI के मेजर इक़बाल से मिलवाया गया, जिसने उसे रेकी के लिए पूरी फंडिंग उपलब्ध कराई. (अर्थ: पाकिस्तानी विदेश विभाग के साथ सरकार की संलिप्तता जगजाहिर!). अब अगर इतना खुला आक्षेप किसी राष्ट्र पर लगे और वह बेपरवाह रहे तो सीधा सन्देश जाता है कि न तो उसे अपने लोगों की परवाह है और न ही उसे अपने बच्चों के भविष्य की! आखिर, ऐसे राष्ट्र का क्या अंजाम होने वाला है, जिसके बच्चे किसी हाफिज सईद जैसे अंतर्राष्ट्रीय आतंकी के अनुयायी ही नहीं, बल्कि सच्चे अनुयायी हो रहे हों! देखना तो यह दिलचस्प होगा कि भारतीय पक्ष अमेरिका, चीन और दुसरे देशों के सामने इन सुबूतों के जरिये पाकिस्तान पर किस हद तक दबाव बनाने में सक्षम हो पाता है, क्योंकि भारतीय सन्दर्भ में यहीं थोड़ा बहुत हासिल होने की सम्भावना है, अन्यथा कीचड में कंकड़ फेंकना भारत के लिए भविष्य में जरूरी होने वाला है!!
26, 11 mumbai attack, headley statement against pakistan, mithilesh article,
मुंबई हमला, 26/11 हमला, डेविड कोलमैन हेडली, मुंबई कोर्ट, उज्ज्वल निकम, Mumbai attack, 26/11 attack, David Colmen Headley, Mumbai court, Ujjwal Nikam, pakistani parliamentary committee, terror country, isi funding to terrorists, daud gilani, hafeej saeed, pathankot attack, failed state, video confrencing, विदेश, overseas, kootniti, diplomacy
0 टिप्पणियाँ