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चीनी अर्थव्यवस्था की टूटती 'कमर' - Economy of China, World Economy, Indian Economy, Hindi Article

'अंधों में काना राजा' वाली भारतीय अर्थव्यवस्था के बयान पर खूब हो हल्ला हुआ तो रिजर्व बैंक के रघुराम राजन के बयान पर सरकारी मंत्रियों ने भी मुखालफत की. हालाँकि, उनका बयान गलत नहीं था, किन्तु वह राजनीति ही क्या, जो सच्चाई को यथा स्थिति में स्वीकार कर ले. खैर, उनके बयान के एक हिस्से में अगर भारतीय अर्थव्यवस्था को 'काना' कहा गया तो सवाल उठता है कि तब क्या 'चीन' की अर्थव्यवस्था 'अंधी' कही जा सकती है? हालात कुछ ऐसे हैं, जो चीन की अर्थव्यवस्था में भारी उथल पुथल के संकेत देते हैं. विश्व की दूसरी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था वाला देश चीन की विकास दर पिछले 3 दशक में दो अंकों से नीचे नहीं गयी थी, लेकिन पिछले 5 साल में उन दो अंको में न्यूनतम वृद्धि हुई है, जो पुरे विश्व के लिए चिंता का विषय बना हुआ है. ग्लोबली देखा जाय तो विश्व की अर्थव्यवस्था में चीन की 15 प्रतिशत की भागीदारी है. नेशनल ब्यूरो ऑफ स्टैटिस्टिक्स  के अनुसार लगातार पीछे का आंकड़ा देख कर इसका अनुमान लगाया जा सकता है कि आगे क्या होने वाला है! गत सितंबर में प्रोडक्शन रेट 51.1 नोट किया गया था तो वही 23 अक्टूबर को ब्रिटेन के बैंक एचएसबीसी के रिपोर्ट के अनुसार यह 50.4 था. चीन की आर्थिक खरीद प्रबंधकों का सूचकांक (पीएमआई) अर्थव्यवस्था की स्थिति का इंडिकेशन है, जिसमें 50 से ऊपर को वृद्धि माना जाता है, जबकि इससे कम होने पर वृद्धि का कम होना निश्चित हो जाता है.  

वर्ष 2008-09 के वैश्विक वित्तीय संकट के बाद ऐसा पहली बार हुआ है जिसमें चीन ने सबसे धीमी वृद्धि दर्ज की है! आईएमएफ का वार्षिक बैठक में चीन की घटती अर्थव्यवस्था को लेकर विश्व के केंद्रीय बैंकों के गवर्नर से लेकर वित्त मंत्रियों तक सभी ने इसे गंभीर समस्या बताया है, जिसमें वैश्विक अर्थव्यवस्था की वृद्धि को भी झटका लग सकता है. चूंकि, आज के समय में तमाम वैश्विक बाजार एक दूसरे से जुड़े हुए हैं और इसलिए चिंता कहीं ज्यादा बढ़ी हुई प्रतीत होती है. इस चरमराई अर्थव्यवस्था की वहज से चीन ने अपना वर्षों से चले आ रहे आर्थिक ढांचे को भी बदल दिया, किन्तु स्थिति में कुछ ख़ास परिवर्तन दर्ज नहीं किया जा सका! इस आर्थिक मॉडल से पहले  विनिर्माण, निवेश और निर्यात ही चीन का बिज़नेस मॉडल था, लेकिन आज की तारीख में, घरेलू खपत, सेवा और इनोवेशन के तौर पर यह व्यवस्था कहीं ज्यादा आधारित है. अंतरराष्ट्रीय मुद्राकोष (आईएमएफ) को संबोधित कर रहे फ्रांस के वित्त मंत्री मिशेल सैपिन ने कहा की ‘पुनर्संतुलन से चीन के आर्थिक भागीदार प्रभावित हो रहे हैं, हालांकि अभी इसका ठीक-ठीक असर तय करना जल्दबाजी होगी. चीन की गिरती आर्थिक स्थिति को अवगत कराते हुए भारतीय रिजर्व बैंक के गवर्नर रघुराम राजन कहा कि चीन की ये परेशानी सिर्फ चीन की ही नहीं हमारी भी है. इसके साथ भारत चीन की गिरती आर्थिक हालत में भी चीन के साथ अपने व्यापार को लगातार जारी रखे हुए है और इसमें कोई कटौती नहीं हुई है. हालांकि भारत के अलावा अनेक देशों द्वारा चीन के संग व्यापार में थोड़ी कमी जरूर आई है. 

थोड़ा सामान्य ढंग से अगर चीन की अर्थव्यवस्था का आंकलन करें तो प्रीमियम मोबाइल कंपनी एप्पल को अपने आईफ़ोन के लिए आधे कीमत पर भी कोई खरीददार नहीं मिल रहा और इसकी वजह से एप्पल भी घाटे में है. यह कहानी अनेक कंपनियों की है. यदि चीन की मंद अर्थव्यवस्था को भारत के सन्दर्भ में देखें तो, इसकी सुस्ती ने बेसिक तौर पर भारत के निर्यात को प्रभावित किया है, जिसमे जींस और कच्चे तेल पर ज्यादा प्रभाव पड़ा है. हालाँकि, तमाम वैश्विक एजेंसियों ने भारत को मजबूत रेटिंग दी है और खुलकर कहा है कि आने वाले समय में भारत वैश्विक अर्थव्यवस्था के लिए मजबूती की उम्मीद है. देखा जाय तो चीन की नीतियां और उसके दो नंबर के सामानों से भारत समेत, शेष विश्व पहले ही परेशान था. अब चूंकि, धीरे-धीरे वैश्विक मार्किट में चीन की पोल-पट्टी खुलती चली गयी और ऐसे में इस अर्थव्यवस्था का दबाव में आना स्वाभाविक ही था. यूरोप और अमेरिकी अर्थव्यवस्था की हालत भी कुछ ख़ास अच्छी नहीं है, जिससे चीनी खरीददार कम हुए हैं और ऐसे में चीन के निर्यात क्षेत्र की बैंड बजनी तय थी. 

चीन की अर्थव्यवस्था में आया वर्तमान संकट अन्य देशों के लिए एक सबक है कि घटिया सामानों का उत्पादन और उसके आधार पर बाजार में अपनी साख का निर्माण लम्बे समय तक नहीं किया जा सकता है. आप घटिया सामानों के निर्यात-आयात को दिखाकर अपने यहाँ निवेश भी आकर्षित कर सकते हैं, किन्तु यह क्षणिक ज्यादा होता है. जब थोड़ा झटका भी लगता है तो अर्थव्यवस्था डांवाडोल हो जाती है. चीन की अर्थव्यवस्था और भारतीय अर्थव्यवस्था के सन्दर्भ में रिजर्व बैंक के गवर्नर रघुराम राजन की टिपण्णी बेहद सटीक है और वह यह बताती है कि 7.5 की विकास दर पर पटाखे नहीं फोड़े जाने चाहिए, बल्कि कृषि, निर्माण और सेवा क्षेत्र की मजबूती के लिए ठोस प्रयास किये जाने चाहिए, अन्यथा संकट आ सकता है और फिर उससे उबरने की राह ढूंढें नहीं मिलेगी.

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1 टिप्पणियाँ

  1. दो नंबर का धंधा करना सरासर गलत है जिसे करके सिर्फ और सिफर क्षणिक ख़ुशी मिल सकती है . यही हुआ है चिन के साथ , चिन दो नंबर कि अपनी प्रोडक्शन से जो बिज़नेस को खड़ा किया था उसे रक दिन गिरना ही था . चिन अपनी आर्थिक का जिम्मेदार खुद है . चिन को अपनी इस हालत से सबक लेकर प्रोडक्ट में सुधर करना चाहिए ...

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